Tuesday 14 May 2019

अतिरिक्त मूल्य रा सिद्धान्त, कार्ल मार्क्सा री प्रसिद्ध खोज




पैहलकी व्यवस्था ले विपरीत पूँजीवादी व्यवस्था बिच माहणु री सम्पत्ति तेस कठे अधिकृत व्यक्तिगत सुविधा या उपभोगा री चीजा मंझ निहित नीं हुंदी। पूँजीवादी उत्पादना रा विशिष्ट लक्षण होर चरित्र ये हा भई चीजा उत्पादका होर मालिका री निजी जरूरता री सन्तुष्टि कठे नीं बल्कि मात्र विनमया कठे उत्पादित किती जाहीं। यों उत्पादित चीजा, सामग्री, व्यापारिक माल, या अर्थशास्त्रीय शब्दावली मंझ पण्य या कमोडिटी या बिकाऊ चीज हुआईं। होर क्योंकि पूँजीवादी समाजा मंझ सम्पत्ति बिकाऊ चीजा रे एकी विराट संचया रे रूपा मंझ साम्हणे आवाहीं। आसारा शोध बी बिकाऊ चीजा रे विश्लेषणा ले हे शुरू हुणा चहिए।
कार्ल मार्क्स बिकाऊ चीजा या पण्य (कमोडिटी) रा गैहरा विश्लेषण करदे हुए एस निष्कर्षा पर पौहचाहें भई पूँजीवादी व्यवस्था मंझ उपयोग मूल्य अर्थात उपभोगा कठे तेतारी उपयोगिता रे अलावा एतारा एक होर विशिष्ट लक्षण एतारा विनिमय मूल्य हुआं। कोई चीज तेबे तका बिकाऊ चीज रैहाईं जेबे तका तेतारा उपयोग मूल्य आपु जो प्रकट नीं करदा अर्थात जेबे तका ये केसी बी रूपा या अंशा मंझ उपभोक्ता रे उपयोगा मंझ नीं आई जांदी। केसी चीजा रा उपयोग मूल्य तेतारे उपभोक्ता रे संन्दर्भा मंझ आपु तेसा चीजा मंझ हे अन्तर्निहित रैहां जेबेकि तेतारा विनिमय मूल्य एकी सुनिश्चित आर्थिक सम्बन्ध, जरूरी रूपा के सामाजिक उत्पाद हुआं होर आपणे सभी विशिष्ट लछणा कठे तात्कालीन उत्पादन पद्धति पर निर्भर रैहां। गेहूँ रे स्वादा ले कोई ये नीं दसी सकदा भई से केसी रूसी भूदासे, फ्रांसीसी किसाने, या फेरी अंग्रेज पूँजीपतिए उगाईरा। चाहे जिहां बी उगाया गईरा हो एतारा उपयोग मूल्य से हे रैहां। पर केसी सामाजिक व्यवस्था मंझ एतारा विनिमय मूल्य तेस समाजा मंझ प्रचलित उत्पादन प्रणालियां ले निर्धारित हुआं। पूँजीवादी सम्पत्ति विनिमय मूल्या रा समुच्चय हुआईं होर पूँजीवादा जो समझणे कठे विनिमय मूल्या री प्रकृति होर बिकाऊ चीजा रे वितरणा री व्याख्या जरूरी हुई जाहीं। उदाहरणा कठे केसी बी फैक्टरी-उत्पादा जो लेई सकाहें जे पूँजीवादी समाजा मंझ उत्पादना रा लाक्षणिक स्वरूप हा। एतारा उत्पादन फैक्टरी मंझ मालिका रे द्वारा मजदूरी पर रखे गए मजदूरा री विशाला संख्या द्वारा कितेया गया। फेरी ये थोक व्यपारी, होर फेरी परचून व्यपारी बाल़े भेजया गया जिने एतारा विक्रय उपभोक्ता जो करी दिता। चीजा रे उत्पादन होर उपभोगा रे बीच भरा बिचौलियां री संख्या कम या ज्यादा रैहीरी हुई सकाहीं, पर उत्पादन होर वितरणा मंझ तिन्हां सभी रा योगदान तेसा वस्तु री आवश्यकता या तेतारे प्रति लगावा रे करूआं नीं बल्कि आपणे कठे मुनाफा कमाणे रे उद्देश्या के रैहीरा। तिन्हां सभी रे हिस्से रा ये मुनाफा आया किथी ले? आसे मनी लैहाएं भई स्यों सभ लोक बिल्कुल ईमानदार हे होर तिन्हां मंझा ले हरेके चीजा रा उचित बाजार-भावा पर मूल्य बी चुकाईरा। हरेके उपभोक्ता रे चुकाईरे क्रय मूल्य या तेसा चीजा रे विनिमय मूल्या मंझा ले आपणा हिस्सा प्राप्त कितेया। तेसा चीजा रा विनिमय मूल्य पैहले ता थोक व्यपारी री उत्पादका जो चुकाई गईरी कीमता मंझ अभिव्यक्त हुआ। इथी ये ध्याना मंझ रखणा पौणा भई मूल्य कीमता रा कारण हुआं, खुद कीमत नीं हुंदा, होर दोन्हों हमेशा मात्रा री दृष्टि ले समानुरूप बी नीं हुंदे। चीजा सस्ती या मैहंगी यानि आपणे मूल्य ले कम या ज्यादा कीमता बिच खरीदी जाई सकहाईं, क्योंकि जिथी मूल्य उत्पादना री सामाजिक परिस्थितियां के निर्धारित हुआं तिथी कीमत व्यक्तिगत उद्देश्या के तय हुआईं अर्थात माहणु द्वारा या तेस कठे चीजा रे मूल्या रा अनुमान, बजारा री सौदेबाजी, माँग होर आपूर्ती बगैरा-बगैरा। केसी चीजा री बाजार मंझ कीमत तेता कठे चुकायी गई कीमता रा औसत हुआईं होर ये सदा तेसा चीजा रे सामाजिक मूल्या ले तय हुआईं।
सभ बिकाऊ चीजा (कमोडिटी) मंझ निहित ये सामाजिक मूल्य हुआं क्या हा? ये हुआं मानवीय श्रम। केसी बी चीजा रा विनिमय मूल्य तेता मंझ निहित मानवीय श्रम-शारीरिक या मानसिका- रे बराबर हुआं। होर एतारा अर्थ केसी बी परिस्थिति मंझ कितेया गया श्रम नीं हा। चीजा रा मूल्य तेता मंझ निहित सामाजिक रूपा ले जरूरी श्रम हुआं यानि के तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियां मंझ तेतारे उत्पादना कठे आवश्यक श्रमा री औसत मात्रा। अगर कोई एताले कम या ज्यादा श्रमा रा उपयोग करे ता बी चीजा रा विनिमय मूल्य अपरिवर्तित रैहां क्योंकि से ता सामाजिक रूपा ले आवश्यक श्रमा ले हे तय हुआं। होर ये बी भई अगर विद्यमान सामाजिक परिस्थितियां मंझ वितरणा योग्य परिमाणा ले ज्यादा मात्रा मंझ चीजा रा उत्पादन कितेया जाहां ता तिन्हां चीजा रे विनिमय मूल्या मंझ गिरावट आई जाहीं। अगर उत्पादना रे उपकरणा मंझ सुधार हुआं ता संक्रमणा रे शुरूआती दौरा मंझ, जेबे तका उत्पादना रे पुराणे तरीके हे आम तौरा पर स्वीकार्य हुआएं, केसी चीजा रा मूल्य पुराणी उत्पादन पद्धति रे अनुसार सामाजिक रूपा ले आवश्यक मानवीय श्रमा रे परिणामा ले निर्धारित हुआं, पर नौवीं उत्पादन पद्धति रे लगातार प्रचलना मंझ आउणे रे सौगी-सौगी मूल्य रा निर्धारण बी नौवीं व्यवस्था रे अनुरूप हुंदा लगहां।
होर ये नियम सभी बिकणे लायक चीजा पर लागू हुआं जेता बिच से विशिष्ट बिकाऊ चीज-मानविय श्रम-बी सम्मलित हुआं जे माहणु रे स्वामित्व मंझ होर तेसले अवियोज्य हुंदे हुए बी पूँजीवादी उत्पादन पद्धति मंझ, पिछली सभी व्यवस्थावां रे विपरीत, अन्य केसी बी बिकाऊ चीजा रे हे साहीं बेचया होर खरीदेया जाई सकहां। बाकी बिकाऊ चीजा साहीं हे, पूँजीपति द्वारा खरीदे जाणे परा, श्रमिका री श्रम-शक्ति रे मूल्य रा भुगतान बी तेसरे पुनरूत्पादना कठे सामाजिक रूपा ले आवश्यक मानवीय श्रमा के हुआं। यानि के पूँजीपति जो मजदूरी रे रूपा मंझ तितनी मानराशि रा भुगतान करना हुआं जितनी मजदूरा रे आपणे भरण-पोषण होर आपणी वंश-वृद्धि कठे जीवना री तत्कालीन परिस्थितियां मंझ जरूरी हा। जीवन-स्तर, श्रमा री आपूर्ती होर मांग, होर आपणे साझा हिता कठे मजदूरा री एकजुटता रे स्तर बगैरा कारका रे मुताबिक ये मानराशि बी अलग-अलग हुई सकाहीं। पर जेबे तका समाजा रा मात्र एक हे हिस्सा उत्पादना के जुड़ीरा होर दूजा हिस्सा तेस श्रमा रे उत्पादा पर जीहां तेबे तका श्रमिक रे भरण-पोषणा कठे दिती जाणे वाल़ी मजदूरी तेस द्वारा उत्पादित चीजा रे मूल्य ले कम हे रैहणी। ये हा सार-तत्व उत्पादना री पूँजीवादी व्यवस्था रा। मजदूरा रा आपणी मजदूरी रे समतुल्य मूल्या रे उत्पादना मंझ लगाया जाणे वाल़ा श्रम “आवश्यक” श्रम हुआं, एतारा उत्पाद “आवश्यक” उत्पाद, होर एस उत्पादा रा मूल्य “आवश्यक” मूल्य। मजदूरी रे मूल्या रे पुनरूत्पादना कठे आवश्यक श्रमा ले अलावा लगाया जाणे वाल़ा श्रम “अतिरिक्त” श्रम, एस श्रमा रा उत्पाद “अतिरिक्त” उत्पाद होर एतारा मूल्य “अतिरिक्त” मूल्य हुआं। इथी आवश्यका रा मतलब तेस परिमाणा ले हा जितना तत्कालीन परिस्थितियां मंझ जीवन यापना कठे जरूरी हा।
इथी एकी-दो बिन्दुआं परा ध्यान देणा जरूरी हा। आपणी पूँजी मंझ वृद्धि होर संयन्त्रा होर मशीना मंझ सुधार करीके पूँजीपति आपणा मुनाफ़ा बधाई लैहां (हालांकि ध्यान रौहो भई मुनाफ़े री दर नीं बधदी पर एस विषया पर चर्चा अझी नीं करनी) । एताले ऊपरी तौरा पर ये लगी सकहां भई मशीनें तेसरा अतिरिक्त मूल्य कुछ सीमा तका बधाई दितीरा। पर पूँजीपति जो बिक्री कठे उत्पादित किती जाणे वाल़ी मशीन बी केसी बी होरी चीजा रे हे साहीं एक बिकाऊ चीज हे हुआईं होर एता मंझ निहित मूल्य बी एतारे उत्पादना कठे आवश्यक सामाजिक श्रमा रे बराबर हे हुआं। होर ये हे गल्ल केसी बी चीजा, उदाहरणा कठे कपड़े रे उत्पादना ले सम्बन्धित संयन्त्र, कच्चे माल, होर बाकी सहायक सामग्रियां पर लागू हुआईं। कुछ साल बीतणे रे सौगी-सौगी कच्चे माल, मशीना बगैरा रा ये मूल्य तैयार उत्पाद-कपड़े मंझ हस्तांतरित हुई जाहां। तैयार कपड़े मंझ कपास या सहायक सामग्री रा मूल्य नीं बधलदा, मशीन होर संयन्त्रा रा बी मूल्य नीं बधलदा सिवाय एतारे भई तेतारा एक अंश हस्तान्तरित हुआ जाहां जेता जो टूट-फूट या घिसाई रे नावां पर बट्टे खाते मंझ पाई दितेया जाहां।
अगर मुनाफ़ा अतिरिक्त श्रमा रा उत्पादित अतिरिक्त मूल्य रा परिणाम हा ता फेरी मशीना मंझ सुधारा रे सौगी-सौगी मुनाफ़ा बी किहां बधी जाहां? सीधा जेह जवाब हा- क्योंकि मशीना समय बचाणे रा यन्त्र हा। से मजदूरा जो आपणी मजदूरी रे समतुल्य मूल्य रा उत्पादन दिना रे होर बी कम घण्टेयां मंझ करने बिच समर्थ करी देहां होर इहां दिना रे होर बी ज्यादा घण्टे अतिरिक्त मूल्य रा उत्पादन करने कठे बची जाहें। अगर पैहले मजदूरा जो दिना रे बारा मंझा ले छैह घण्टे आपणी मजदूरी रे समतुल्य मूल्य रे उत्पादना मंझ लगाणे हुआएं थे ता परिष्कृत मशीना के से ये हे काम तीन घण्टे मंझ करी लैहां होर इहां से पूँजीपतियां जो आपणे नौ घण्टेयां रा श्रम निःशुल्क भेंट करी देहां। ये हे कारण हा भई उत्पादन प्रणाली मंझ हर प्रगति शोषणा री दरा जो बधाईं होर मजदूरा होर पूँजीपतियां रे वर्गीय वैरा जो होर बी तीखा करी देहाईं। एहड़ा हे परिणाम यानि के शोषणा री दरा मंझ वृद्धि कामा रे घण्टे बधाई के प्राप्त कितेया जाहां (हालांकि तेसा सीमा तक हे जिथी तका से मजदूरा री क्षमता पर कोई दुष्प्रभाव नीं पाओ)। शोषणा रा सीधा, खुला प्रयास हुणे रे करूआं एतारा प्रतिरोध हुआं होर पूँजीपतियां होर मजदूरा रे बीच कार्य-दिवसा जो लेई के संघर्ष शुरू हुई जाहां।
ये हे परिणाम मज़दूरा रा जीवन स्तर थाल्हे ल्याई के या जीविका री लागत कम करीके बी हासिल कितेया जाहां होर एताके एकी बखौ जनानेयां होर बच्चेयां जो कामा पर रखी लितेया जाहां जिन्हारा जीवन स्तर आमतौरा पर मर्धा री अपेक्षा थाल्हे हुआं, होर ज्यों अजही तका पुरूषा री अपेक्षा उत्पादना रे ज्यादा विनीत होर निरीह उपकरण हुआएं, होर दूजी बखौ मुक्त व्यपारा री स्थापना करीके, क्योंकि अजही तका इंग्लैण्डा रे सामहणे होरी देशा री प्रतिस्पर्धा ले भयभीत हुणे रा कोई कारण उपस्थित नीं हा, मजदूरा रे भोजना री लागत कम करीके। ये संयोग मात्र नीं हा भई जे औद्योगिक पूँजीपति भोजना री लागत घटाणे रे आपणे स्वघोषित लक्ष्या रे कठे मुक्त व्यपारा री स्थापना कठे मुख्यतया जिम्मेवार थे, स्यों हे परोपकारी कार्य-दिवसा जो छोटा करने होर नितान्त अमानवीय दशा मंझ बी जनानेयां होर बच्चेयां ले काम लेणे पर अंकुश लगाणे रे कट्टर विरोधी थे।
होर मर्धा, जनानेयां होर बच्चेया रे अतिरिक्त श्रमा ले पैदा हुईरा ये अतिरिक्त मूल्य, जेता कठे पूँजीपतिए कोई कीमत नीं चुकाईरी, हे तेसरी सम्पत्ति होर धन-दौलता रा स्त्रोत हा। एक समय था जेबे दास होर भूदासा रे स्वामी आपणी एसा चल सम्पत्ति रे उत्पादना जो सीधे-सीधे अधिग्रहित करी लैहाएं थे होर तिन्हारे खाणे-कपड़े बगैरा रा तेहड़ा हे ध्यान रखाहें थे जेहड़े आपणे मवेशियां रे खाणे-कपड़े बगैरा रा। पर अब माहणु बाहरी तौरा पर स्वतन्त्र हे होर अनुत्पादक वर्गा री सम्पत्ति एक रहस्य बणीरी। पर रहस्य मात्र ये हा-पूँजीपति रा मजदूरा रे अतिरिक्त श्रम या उत्पादित अतिरिक्त मूल्य रा अधिग्रहण। एकी वर्गा रा दूजे वर्गा रे स्वत्वहरणा रा ये एक विशिष्ट स्वरूप हा होर एस स्वरूपा पर पूँजीपति होर मजदूरा रा वर्गीय सम्बन्ध पूँजीवादी उत्पादन पद्धति रा सारतत्व हा। पूँजीवादी न्यायशास्त्रा रा पूरा ढांचा, सम्पत्ति रे पूँजीवादी कानून, पूँजीवादी आचार संहिता, एकी शब्दा मंझ बोलियें ता पूरी पूँजीवादी विचारधारा परा आधारित हुआं। होर कितने हे सुधार की नीं करी दिते जाये जेबे तका उत्पादना री पूँजीवादी पद्धति रैंहगी, मजदूरा रा शोषण जारी रैहणा होर पूंजीवादी आचार-विचार हे समाजा रे सामान्यतया स्वीकृत आचार-विचार रैहणे। देशा री विशाल बहुसंख्या- मजदूरा री शारीरिक होर मानसिक मुक्ति ता तेबे हे सम्भव हुणी जेबे “हस्तगतकर्ता रा हे हस्तगतीकरण” करी लितेया जांघा होर मुनाफे कठे उत्पादना री जगहा उपयोगा कठे उत्पादन लेई लैंघा।
---ज़ेल्डा काहन-कोटस लिखित कताब “कार्ल मार्क्स-जीवन और शिक्षाएं” रे मण्डयाल़ी नोट्स। ये कताब राहुल फाउण्डेशन, लखनऊ ले छपीरी।
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Thursday 9 May 2019

राहुल सांकृत्यायना री कताब ‘साम्यवाद हे की?’ रे मंडयाली नोट्स




‘साम्यवाद हे की?’ कताबा बिच महापंडित राहुल सांकृत्यायने साम्यवादा री जानकारी करवाणे री कोशीश कितिरी। समाजा रा विकास हुंदे-हुंदे एकी मंजला परा साम्यवादा तका किहां पौंहची गया- ऐता जो इतिहास-चक्रा रा एक अध्याय बोल्या जाई सकहां। दुनिया बिच साम्यवाद ल्याउणे रे भतेरे कारण तिहाएं मौजूद हुई गए थे जिहां पूँजीवादा कठे हुई गए थे। दरअसल साम्यवादा रे कठे भयंकर गरीबी प्रमुख कारण रैहिरी। आजकाले रा आधुनिक विज्ञान बी साम्यवादा रा समर्थन करहां। आधुनिक विज्ञान साम्यवादा रा समर्थन किहां करहां ऐता कठे तुसे राहुला होरी री हे कताब ‘विश्व की रूपरेखा’ पढ़ी सकाहें। साम्यवादी दर्शना कठे ‘वैज्ञानिक भौतिकवाद’ होर पूरब-पश्चिमा रे सभी दर्शना री साम्यवादी गवेषणा कठे तिन्हारी ‘दर्शन-दिग्दर्शन’ कताबा ही। इतिहासा रे सौगी-सौगी चलदे-चलदे साम्यवादा रे दरवाजे तका किहां पौंहचेया गया एता जो कहाणियां रे रूपा बिच पढ़ना हो ता तिन्हारी ‘वोल्गा से गंगा’ कताब ही। एतारे अलावा तिन्हें साम्यवाद रे महान शिक्षक मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन होर स्तालिना रे कितने हे ग्रंथा रे हिंदी अनुवाद बी कितिरे। ज्यों दो-तीन घन्टे मंझ हे साम्यवाद जो समझणा चाहें तिन्हा कठे ये कताब ‘साम्यवाद हे की?’ एक प्रवेशिका साहीं लिखिरी तिन्हें। राहुल एसा कताबा रे पैहले संस्करणा री भूमिका बिच दसहाएं भई ‘बाइसवीं सदी’ जो लिखदे वक्ता तका स्यों अर्थशास्त्र होर साम्यवादा रे ज्ञाना ले बिल्कुल कोरे थे। एसा कताबा जो लिखदे बक्त तिन्हे साम्यवादा रा अध्ययन करी लितेया था पर स्यों आपु मनहाएं भई ये ज्ञान भी बहुत फौहका था। ये ग्रन्थ तिन्हें आपणे दिला बिच उठणे वाली शंका रे समाधाना जो सामहणे रखुआं लिखेया था। आधुनिक सभ्यता होर तेता रे साधना ले बहुत दूर ल्हासा शैहरा बिच लिखणे रे करूआं तिन्हा जो जरूरी ग्रंथा री मदद लैणा रा मौका नीं मिलेया था।
माहणु री उत्पत्ति होर विकास
साम्यवाद माहणु रे विकासा री एक अवस्था ले जमी रा। इधी कठे इन्हा जो समझणे कठे आसा जो माहणु री उत्पत्ति होर विकासा किहां हुआ एता रे बारे बिच वैज्ञानिका रा मत क्या हा ये जाणना बौहत जरूरी हा। वैज्ञानिका रा मनणा हा भई अरबों साल पैहले सूरजा रा एक हे पिण्ड था होर ये बौहत दूरा तका फैह्ली रा था। केसी बक्त आकाशा रे केसी दूरा वाले भागा ले एक विशाल तारा सूरजा बखौ आया। जिहां-जिहां ये सूरजा रे नेडे आउंदा गया तिहां-तिहां हे सूरजा रे भाफा रे समुद्रा मंझा ज्वार-भाटे उठदे लगे। सभी थे नेडे वाली जगहा पर पौंहचणे पराले ये ज्वार-भाटा सूरजा री करोड़ों मील लंबी सिगारा साहीं पूँछ बणी गया। जेबे तारा सूरजा ले दूर जांदा लगेया तो भाफा वाले सूरजा रा ये अंश आपणे प्रधान पिण्डा ले अलग छिटकी गया होर कई खंडा मंझ अब सूरज-पिण्डा रे चहुं ओर घूमदा लगया। यों सौर-मण्डला रे ग्रह बणी गए। करीब दो अरब साल पैहले इहां पृथ्वी सूरज-पिण्डा ले अलग हुई। इहाएं केसी आकाशीय तारे रे करूआं पृथ्वी रा एक भाग अलग हुई के चन्द्रमा रे रूपा बिच बधली गया। पृथ्वी-पिण्डा री गर्मी निकली-निकली के अब आपणे चारों बखा रे ठंडे आकाश बिच फैलदी लगी। फेरी ऊपरी भागा पर पापड़ी जमदी लगी जेता रे चारों बखा गर्मी के बणिरे वायु-मण्डल होर मेघ-मण्डल मँडरांदे लगे। कधी-कधी बरखा भी हुआईं थी, पर तेसा तपीरी पापड़ी परा से एक दम सुकी के गायब हुई जाहीं थी। बीचा-बीचा मंझ पृथ्वी थरथराई जाहीं थी होर पापड़ी टूटी-फूटी के ऊंची-नीची जमीन या खाड्डा तैयार करहाईं थी। जेबे पृथ्वी रा तापमान कुछ कम हुआ, तेबे बरखा रा पाणी इन्हा खाड्डा मंझ ठैहरदा लगया। ये हे आदिकालीन समुद्र हुआ जेता रा पाणी खारा नीं था। यों पापड़ी वाले पात्थर हे आज स्फटिका बगैरा री स्तररहित चट्टाना ही। पैहले समुद्रा रा पाणी बौहत गर्म था। जेबे कई लाख साला बाद पृथ्वी रा उपरला भाग कुछ होर ठण्डा हुई गया होर समुद्रा रा तापमान घटया तो पैहले-पैहले तेता बिच केंचुए साहीं अस्थि रहित जीव पैदा हुंदे लगे। जीवा रा विशेष गुण हा भीतरा ले वृद्धि होर प्रसव।
भूगर्भशास्त्री पृथ्वी परा जीवा री उत्पत्ति हुइरे 30 करोड साल मनहाएं। जेता जो जीवकल्प बोल्या जाहां होर एते पैहलके बक्ता जो अजीवकल्प (एज़ोइक) बोल्हाएं। मृत जीवा होर घुली के आइरे कीचड़ा के मिलुआं अब होर ज्यादा विकसित जीवा रा खाणा तैयार हुंदा लगया। जेता के केकड़े बगैरा साहीं जन्तुआँ होर हल्की किस्मा रे वनस्पति री सृष्टि हुई। जेबे आसे एस 30 करोड़ साल पैहले शुरू हुइरे पुराण-जीवकल्पा ले चलीके 20 करोड़ साल पैहले शुरू हुए मध्य-जीवकल्पा बिच आवहाएं, ता पृथ्वी परा गोह होर मगरा री जाति रे विकराल सरीसृप सूझदे लगहाएं। पृथ्वी रे गर्भा मंझ सौ-सौ फुट लम्बी इन्हारी पथराई गइरी हड्डियां मिल्हीरी। तेस वक्त पृथ्वी रे दलदला मंझ करीला साहीं पत्ते-रहित विशाल डाल़ पैदा हुए जिन्हा जो आज आसे पात्थरा रे कोयले रे रूपा बिच पाहें।
सरीसृपा रे काला रे मुकणे परा पृथ्वी री जलवायु मंझ कुछ एहडा भयंकर बदलाव हुआ जे तिन्हारी ज्यादातर जातियाँ नष्ट हुई गई। तेस बक्त डाल़ समुद्रा रे सौगी वाली सुक्की जमीना पर भी पैदा हुंदे लगे थे। पाणी होर जमीना पर रैहणे वाले जीवा ले एक बखौ लोमधारी होर स्तनधारी जन्तु ता दूजी बखौ पक्षी उत्पन्न हुंदे लगे थे। वैज्ञानिका रा बोलणा हा भई इन्हा लोमधारी होर सस्तन जीवा मंझा ले कुछ आपणे दुश्मणा ले बचणे कठे डाल़ा पर चढ़ने री कोशीश करदे लगे। सैकड़ों पीढियां री लगातार इच्छा होर अभ्यासा के तिन्हारे हाथ-पैर डाल़ा पर चढ़ने कठे उपयोगी हुई गए। इहां डाल़ा पर चढ़ने वाल़े बांदरा री सृष्टि हुई। एभे आसे सरीसृपा रे युगा ले नवजीवन-कल्पा मंझ हुंदे हुए नवजीवा री उषा (इयोसीन) युगा बिच पौहंची गए।
अल्प नवजीव उषा रे बक्त भारता मंझ विन्ध्याचला ले दक्षिणा वाला भाग हे समुद्रतला ले बाहर था। हिमालय, तिब्बत होर सारा भारत तेस बक्त समुद्रा रे पाणी हेठ था। मध्य नवजीव उषा (मिओसीन) युगा मंझ प्रचंड भूकंपा रा तांता लगी गया जेता के हिमालय पृथ्वी रे गर्भा ले ऊपर उठी गया। समुद्र-गर्भा ले निकलणे रे करूआं हिमालय री ऊँची चोटियां पर आजकाले तका समुद्रा रे जन्तुआँ री पथराई हड्डियाँ मिल्हाईं। भूचाले जमीन हेठा ले सीधी ऊपरा जो नीं चकी। इधी कठे अजीवकल्पा ले समुद्रा रे गर्भा मंझ तैह-पर-तैह जमदी माट्टी सीधे एकी पराले दूजी न हुई के आडे-तिरझे हुई गई। ये हे कारणा जे आसे पहाड़ा मंझ पात्थरा री तैहा जो अस्त-व्यस्त पाहें। हिमालय ले बरखा रा पाणी अब समुद्रा बखौ बैहंदा लगया। ये जलमार्ग या नदियाँ आपणे सौगी अपार मृत्तिकाराशि जो समुद्रा बिच भरदी रैही। जबकि हुंदे रैहणे वाले भूचाला के समुद्रा री स्थिति पर प्रभाव पया। इहां गंगा बगैरा नदियें लाखा साला री मेहनत ले बाद उत्तर भारता रे मैदान समुद्रा रे पाणी ले बाहर काढ़े।
जेस बक्त उत्तर भारता रा मैदान बणी करहां था, तेस बक्त हिमालय रे थाल्हके भाग सिवालिका (सपादलक्ष) मंझा कई जन्तुआँ री वृद्धि हुई करहाईं थी। इन्हां बिच गोरिल्ला बगैरा कितने हे आजकाले तिथी नीं मिलणे वाल़े प्राणी बी थे जिन्हां री पथराई री हड्डियाँ (फासिल्स) आज बी तिथी मिल्हाईं। नवजीवोषा युगा रे एस भागा जो, प्राणियां री अधिकता रे करूआँ बहुनवजीवोषा बोल्हाएं जे करीब तीह लाख साल पैहले शुरू हुआ था। एतारे अन्तिम भागा बिच यानि आजा ले 4-5 लाख साल पैहले सिवालिका मंझ एहडे वनमाहणु थे जिन्हारी हड्डियां ले पता लगहां भई स्यों मानवता बखौ बधी करहाएं थे। तीन-चार लाख साल पैहले, नवजीवोषा युगा बिच हिमालय रे हेठले हिस्से वाला भाँगर प्रदेश बणी करहां था। इथी मिलिरी पथऱाई अस्थियां ले पता लगहां भई तिथी कितने हे एहडे घोड़े, गाय, गैंडे, दरियाई घोड़े बगैरा रैहाएं थे जिन्हारी जातियाँ एभे लुप्त हुई गईरी। एस बक्त सिवालिका मंझ मनुष्य होर वनमाहणु रे बीचली स्थिति रे प्राणी रैहाएं थे।
करीब दो लाख चाल़ी हजार साल पैहले पृथ्वी परा एक भयंकर हिमप्रलय हुआ। वैज्ञानिक अनुमान लगाहें भई एस बक्त सौरमण्डला रे बाहरा ले कोई तारा पृथ्वी रे नेडे ले गुजरेया जेता के पृथ्वी री भ्रमणधुरी तिरछी हुई गई होर एता के ऋतुआँ मँझ फर्क पई गया। तेस बक्त पृथ्वी री भ्रमण-धुरी तिरछी हुणे रे करूआं सर्दी बधी गई होर उत्तरी गोलार्द्ध मंझ उत्तरी ध्रुवा पर बधदी बर्फा रे करूआं सारे उत्तरी यूरोप होर उत्तरी अमेरिका मंझ न्युयार्का तका रा भाग बारहों महिने कठे बर्फा के ढकी गया। तेहडा हे दक्षिणी गोलार्द्ध मंझ तस्मानिया होर न्युजीलैण्डा बी ये हे दशा हुई। भारता मंझ हिमालय रे ग्लेशियर ज्यों आजकाले दस हजार फीट ले थाल्हे किथी बी नीं हे- पोठवार (कश्मीर) मंझ दो हजार फीट (समुद्रतला ले ऊपर) तक आई गइरे थे। एस हिमयुगे सारे भूमण्डला पर आपणी अमिट छाप छाड़ी।
पैहला हिमयुग हजारां साला तक रैहा। फेरी दूज हिमयुग आया, एक लाख साल पैहले तरीजा हिमयुग होर पंजाह हजार साल पैहले चौथा हिमयुग आया। कोई एक लाख साल पैहले, आखरी हिमयुगा ले बौहत पैहले पूर्व यूरोपा मंझ एक प्रकारा रे मनुष्य री जाति रा पता लगहां जेता जो हाइडेलवर्गीय माहणु बोल्हाएं। इहां ता गोरीला होर बबूल बी डंडे या पात्थर हाकी के मारदे देखे जाहें पर हाइडेल वर्गीय माहणु जो तोड-फोड़ करी के तेज बनाइरे ऊबड़-खाबड़ पात्थरा रे हथियारा रा प्रयोग करहां था। पंजाह हजार साल पैहले चौथे हिमयुगा रे बक्त, यूरोपा मंझ नेअंडर्थल माहणु-जाति रा पता लगहां। सर्दी ज्यादा हुणे रे करूआं एजो पहाड़ा री प्राकृतिक गुफा मंझ शरण लैणी पौहाईं थी। सर्दी ले बचणे कठे आग जलाणा सीखी गइरा था। मारी रे जानवरा री खाला के शरीर ढकहां था। अझी तका बाणा रा प्रयोग नीं जाणदा था होर अजही तेसरे मना मंझ धर्म, देवता बगैरा री कल्पना नीं हुईरी थी।
जेस बक्त यूरोपा मंझ नेअंडर्थल माहणु गुफा बिच रैहां था तेस बक्त दक्षिणी भारता रे कड़पा, गुंतर, कर्नूल बगैरा री गुफा मंझ बी माहणु रैही करहां था। पर इथी री सर्दी यूरोपा रे मुकाबले सैहणे लायक थी। चाल़ी हजार साल पैहले ले 25 हजार साल पैहले तक सुले-सुले यूरोपा ले बर्फ री कठोरता कम हुंदी गई होर भारता बी तेता रे अनुसार हे परिवर्तन हुंदा गया। पच्ची हजार साल पैहले यूरोपा रे स्पेन बगैरा देशा मंझ माहणु री एक जाती बसाहीं थी जेता जो क्रोमेग्नन बोल्हाएं। जेस बक्त क्रोमेग्नन जाति दक्षिण-पश्चिमीय यूरोपा बिछ बसहाईं थे तेस बक्त रायपुर जिल्हे रे सिंगनपुर होर दूजे प्रदेशा बिच बी माहणु रैहाएं थे। बारा हजार साल पैहले माहणु मंझ एक नौवीं प्रगति सुझाहीं। एभे माहणु छिली रे पात्थरा रे हथियारा रे बजाय घिसी के चिकने कितिरे पात्थरा रे हथियारा रा प्रयोग करहां था। इधी कठे एस युगा जो नवपाषाणयुग(नियोलिथिक) बोल्हाएं। एस युगा रे सौगी भूरे रंगा री इबेरियन जाति(द्रविड़-जाति, एतारी हे शाखा मनी जाहीं) री प्रमुखता सुझाहीं। एसा जाति रा मूल स्थान भूमध्यसागरा री पिछली जमीन थी। एस जातिये यूरोप मंझ जाई के क्रोमेग्नना री जगह लेयी लिती। सुमेरियन, सिन्धु-उपत्यका (मोहन-जोदडी) रे निवासी होर प्राचीन मिस्री बी इन्हा री हे सन्ताना थी। विद्वाना रा बोलणा हा भई पैहला गांव मेसोपोटामिया मंझ बसया था होर तेबे हे तिथी खेती री शुरूआत हुई थी। ये बक्त करीब 5 हजार ई.पू. रा था।
चौथे हिमयुगा बाद ज्यों माहणु-जातियां भारता बिच रैही करहाईं थी तिन्हा बिच सभी थे पुराणी दो जातियां थी- एक हब्शी (निग्रोइड) होर दूजी प्राग्द्राविड़ीय (वेद्दा, मुण्डा बगैरा)। नवपाषाण काला (5000ई.पू. ले पैहले) बिच यों दो जातियां भारता बिच बसीरी थी। एस युगा बिच भूमध्यदेशीय भूरी जाति रा स्पेन, मिस्र, मेसोपोटामिया, ईरान होर भारता ले चीना तक आउणा-जाणा था। चिकने पाषाण रे हथियारा ले अलावा एस जातिये सूर्य-नाग-पूजा होर स्वस्तिक चिन्हा रा चारों बखौ प्रचार किता था। पाँज हजार साल पैहले ये हे जाति सिन्धु उपत्यका रे मोहन-जो-दड़ो होर हड़प्पा साहीं शैहरा बिच रैहा करहाईं थी। विद्वाना रा बोलणा हा भई ये हे से असुर-जाति थी जेता के 2000 ई.पू. भारता पर हमला करने वाल़े आर्यां रा संघर्ष हुआ था और आजकाले री द्रविड़ होर उत्तर भारता री आदि जातियाँ एसा री सन्ताना ही। आसे पैहले हे बोली बैठे भई अति पुरातन काला बिच भारता मंझ हब्शी होर दक्षिणात्य प्राग्द्राविड़ीय मुण्डा (आदि जातियाँ) वास करहाईं थी। फेरी 7,8 हजार साल पैहले अल्पसंख्यक, पर सुसभ्य भूरी द्रविड़-जाति आई। अब आर्यां रे आउणे ले एक चौथी जाति रा समागम हुआ। इन्हा बिच आर्य गौरवर्ण, दीर्घकाय, ऊंची नाका वाल़े, अभिनील नेत्र होर भूरे बाल़ा वाल़े थे। बाकि तिन्हों जातियाँ बौहत कुछ आपु बिच मिल्ही गइरी थी। स्यों कृष्णकाय, चिपटी नाका वाल़े होर खर्वदेह हुआएं थे। एतारे अलावा तिन्हां मंझ केसकी बिच अँगूठिया बाल, स्थूल होठ होर अग्गे निकलिरा मुँह- ये हब्शी-शरीर-लक्षण बी मिल्हां था। मानव तत्वा रे पण्डिते लैहदी-लैहदी जातियाँ री शरीरकृति री परीक्षा करिके तिन्हां बिच कई भेद करने वाल़े लक्षण होर अभिव्यंजन (इंडेक्स) देखिरे। इन्हा बिच जे अभिव्यंजन ज्यादा स्थिर रैहां, तेता जो व्यवस्थित अभिव्यंजन बोलहाएं होर जे नहीं, तेता जो अव्यवस्थित अभिव्यंजन। (1) लंबाई (कद), (2) कपाल-संस्थिति, होर (3) नासिका-संस्थिति, यों तीन व्यवस्थित अभिव्यंजन बोले जाहें। इन्हां मंझ पैहले ले दूजा होर दूजे ले तरीजा ज्यादा प्रामाणिक हा। अव्यवस्थित अभिव्यंजन हा-शरीर, हाखियाँ होर बाल़ा रे रंग होर हाखियाँ होर बाल़ा रे आकार-प्रकार बगैरा।
-5 फुट 7 इंचा ले ज्यादा ऊँचे माहणु जो दीर्घाकार बोलहाएं, 5 फुट 5 इंचा ले 5 फुट 7 इंचा तक मध्यमाकार, 5 फुट 3 इंचा ले 5 फुट 5 इंचा तक अनुमध्यमाकार होर 5 फुट 3 इंचा ले कम खर्बाकार।
-90 ले ज्यादा कपाल-संस्थिति वाल़ा आयत(गोल) शीर्ष, 80 ले 75 तका मध्यशीर्ष, 75 ले कम लंबशीर्ष।
-70 नासिका-संस्थिति वाला ऊँची-नाका वाल़ा, मध्यनास (द्रविड़) 70ले 85 होर आयतनास (मंगोल) 85 ले ज्यादा संस्थिति वाले हुआएं।
माहणु रे विकासा रे कुछ महत्वपूर्ण काल
पृथ्वी री उत्पत्ति- 2 अरब साल पैहले
प्राणी री उत्पत्ति- 3 करोड़ साल पैहले
विकराल सरीसृपा री उत्पत्ति- 2 करोड़ साल पैहले
सिवालिका रे जन्तु- 30 लाख साल पैहले
सिवालिका रे नर-बांदर- 4-5 लाख साल पैहले
जावा रे नर-बांदर- 4-3 लाख साल पैहले
हिमालय रे भाँगर (तराई) री उत्पत्ति- 4-3 लाख साल पैहले
हिमयुग (पैहला)- 3 लाख साल पैहले
हिमयुग (दूजा)- 2 लाख साल पैहले
हाइडल-वर्गीय माहणु- 1-1/2- 1 लाख साल पैहले
हिमयुग (तरीजा)- 1 लाख साल पैहले
हिमयुग (चौथा)- 50 हजार साल पैहले
नेअंडर्थल, कड़पा, कर्नूला रे माहणु- 50 हजार साल पैहले
चौथे हिमयुगा रा दभणा- 40-25 हजार साल पैहले
क्रोमेग्रन (दक्षिण यूरोप) माहणु- 30-25 हजार साल पैहले
सिंगनपुरा मंझ प्राग्द्राविड़ीय माहणु- 30-25 हजार साल पैहले
असली माहणु रे इतिहासा री शुरूआत,
सूर्य-नाग-पूजक होर स्वास्तिक चिन्हा वालेयां रा
यूरोप, भारत, चीन, अमेरिका आदि बिच फैलणा- 12-8 हजार ई.पू.
धनुष-बाणा रा आविष्कार- 10 हजार ई.पू.
नव-पाषाण-युग- 5000 ई.पू.
पशुपालन, कृषि, मिट्टी के बर्तना री शुरूआत- 5000 ई.पू.
गांव बसाणा होर सभ्यता री शुरूआत- 5000 ई.पू.
तांबे रा आविष्कार- 4000 ई.पू.
मोहन-जो-दड़ों री सभ्यता- 3000 ई.पू.
पीतला रा आविष्कार- 2500 ई.पू.
हिराता मंझ आर्या रा प्रवेश- 2500 ई.पू.
सुवास्तु मंझ आर्यां रा वास- 2000 ई.पू.
मित्तन्नी आर्यां रा मेसोपोटामिया मंझ पौहंचणा- 2000 ई.पू.
आर्यां रा सिंधु-उपत्यका पर अधिकार-1800 ई.पू.
आर्यां रा यूनाना पर अधिकार- 1500 ई.पू.
लोहे रा आविष्कार- 1400 ई.पू.
गौतम बुद्ध (बुद्धिवादी)- 563-473 ई.पू.
सिन्धु-प्रदेशा पर ईरानियां रा अधिकार- 530 ई.पू.
यूनानियां री भारता मंझ विजय- 323 ई.पू.
कागजा रा आविष्कार (चीन)- 200 ई.पू.
शकों, मगों रा भारता मंझ आगमन- 200-100 ई.पू.
मंगोला रा बारूदा सौगी यूरोपा मंझ प्रवेश- 1300 ई.
यूरोपा मंझ टाइपा रा छापाखाना- 1438 ई.
दूरबीन-आविष्कार- 1612 ई.
भाफा रा इंजन- 1785 ई.
पैहला स्टीमर (फोर्ट)- 1802 ई.
विकासवादा रे आचार्य डार्विन- 1803-82 ई.
साम्यवादा रे आचार्य कार्ल मार्क्स- 1810-1883 ई.
पैहली रेल लाइन (स्टाक्टन ले डार्लिंग्टना तका)- 1825 ई.
दियासलाई- 1834 ई.
स्वेज नैहर- 1867 ई.
ग्रामोफोन-1878 ई.
रेडियम- 1898 ई.
मनुष्य वाहक वायुयान- 1909 ई.
पैहला समाजवादी शासन (रूस)- 1917 ई.
पूँजीवादा री उत्पत्ति
पूँजीवाद धन कठा करने रा एक खास ढंग हा जेता मंझ एक माहणु, होर कोई प्रभुत्व नीं हुंदे हुए बी, कल्हे आपणी पूँजी री ताकता पर चीजां जो बनाणे रे बहुमुल्य साधना परा अधिकार करिके, बहुसंख्यक माहणुआं रे श्रमा रे कितने हे भागा जो मुफ्त हे आपणे निजी लाभ होर आपणी मददगार पूँजी जो बधाणे बिच उपयोग करहां। एहड़ा पूँजीवाद शिकारी अवस्था रे माहणु मंझ सम्भव नीं थी। जेबे माहणु शिकारी अवस्था ले किसानी अवस्था मंझ आया ता तेस बाल़े वैयक्तिक सम्पत्ति जमा हुंदी लगी। फेरी संपत्ति रे स्वामी, धनी सामन्त होर राजा यानिके शोषक वर्ग अस्तित्वा बिच आया। दूजी बखौ शोषका कठे काम करने वाले श्रमिक रैही गए। समाजा मंझ वर्गभेद होर आपणे-आपणे स्वार्था कठे वर्ग-संघर्ष शुरू हुआ। हालांकि यों सामन्त होर राजा बी दूजे माहणु रे श्रमा रे कुछ भागा री मजदूरी दितेरे बगैर आपणे निजी लाभ कठे इस्तेमाल करहाएं थे पर स्यों एक ता, पूँजी री ताकता पर पर नीं, बल्कि आपणी राज-शक्ति री ताकता पर एहड़ा करहाएं थे, दूजे, बिना मजदूरी के लितिरे गए तेस श्रमा के अग्गे बी श्रमा री खरीद-फरोख्त जारी रखणे कठे स्यों पूंजी नीं तैयार करदे थे। हालांकि सामन्तशाही रे जमाने मंझ खरीद-बिक्री करणे वाले बणिये होर सूदा पर धन देणे वाले महाजन हुआएं थे ज्यों दूजे रे श्रमा रे कुछ भागा जो बिना मजदूरी दिते आपणे लाभा कठे इस्तेमाल करहाएं थे पर तेबे बी स्यों पूँजीवादी नीं हुई सकदे थे, क्योंकि तिन्हें जिन्दगी कठे जरूरी चीजा जो पैदा करने रे साधन आपणे हाथा बिच नीं लितिरे थे।
पूँजीवाद ता तेबे ले शुरू हुआ जेबे दुनिया मंझ भाफा रे यंत्रा रा आविष्कार हुआ। यंत्रा रे आविष्कारा के चीजा रे पैदा करने री गति हाथा रे मुकाबले बौहत बधी गई। जिथी पैहले एक कारीगर जुलाहा आपणे हाथा रे करघे के दिना भरा बिच मुश्किला के सात-आठ गज कपड़ा बुणी सकहां था, तिथी भाफा के चलणे रे करुआं एक अनाड़ी जेह माहणु बी पँजाह-साठ गजा तक बुणी सकहां था। मशीना के बणिरे कपड़े रा सस्ता पौणा जरूरी हे था, क्योंकि चीजा री कीमत तेता जो बनाणे बिच लगीरे माहणु री मेहनता रे वक्ता रे परिमाणा पर निर्भर हुआईं। चीजा रे सस्ती हुणे पर तिन्हा रे जल्दी बिकणे मंझ आसानी हुआईं होर जितने हे थोड़े वक्ता मंझ, जितनी ज्यादा चीजां बिको, चीजा जो तैयार करने वालेयां जो , हर एक चीजा पर थोड़ा नफा रखणे परा बी कुल मिलाइके, तितना हे ज्यादा नफ़ा हुआं। ज्यादा नफ़ा हुणे परा बी मशीना री कीमत ज्यादा हुणे रे करूआं कारीगर आपु तिन्हां जो नीं खरीदी सकदा। इहां पूँजीवादा री शुरूआत भाफा री भौतिक शक्तियां के संचालित मशीना रे आविष्कारा रे सौगी हुई।
पूँजीवादा रा प्रसार
चाहे भाफा री संचालक शक्ति रा मामूली ज्ञान मिस्रा वालेयां जो दो-ढाई हजार साल पैहले ही हुई गइरी था पर व्यवसाया रे कामा बिच एतारा इस्तेमाल सभी थे पैहले यूरोपा वालेयां हे कितेया। सन 1765 ई. मंझ इंग्लैंडा रे जेम्स वॉटे भाफा रे इंजना रा पैहला आविष्कार कितेया। पैहले ता लोक एतारी उपयोगिता जो समझी नीं सके, पर ये ज्यादा दिना तक लुखीरी नीं रैही सकी। लोके समझी लितेया भई जिहां घोड़े या बैला री ताकता जो जोती के माहणु आटे री चक्की, हल होर गड्डी जो चलाई सकहां , तिहाएं तिन्हौ आग-पाणी के पैदा एस भाफा री ताकता के बी चलाई सकहां। सन 1600 ई. मंझ ईस्ट इण्डिया कम्पनी री स्थापना हुणे ले बादा ले हे मसाले बगैरा रे सौगी हिन्दुस्तानी सुन्दर कपड़ेयां री बी इंग्लैंड मंझ बौहत मांग थी। एता बिच नफ़ा बी भतेरा था। इंग्लैंडा रे औद्योगिक दिमागा मंझ ये गल्ल चक्कर काटदी लगी भई अगर एहड़ा हे चरखा होर करघा बणाया जाए जेता बिच भाफ-इंजना री ताकत जोड़ी दें, ता आसे कपड़े जो सस्ती कीमता मंझ तैयार करी सकाहें। बाद मंझ से सफल हुआ होर सन् 1785 ई. मंझ भाफा के चलणे वाली चरखे-करघे री मशीना रा पैहला कारखाना इंग्लैंडा मंझ लगया। नतीजा तेहड़ा हे हुआ, यानि कपड़ा कम लागता मंझ तैयार करी सकहाएं थे। मजदूरा जो बी ये सोचणे बिच देर नीं लगी भई एस आविष्कारा रा मतलब हा, चार माहणुआं री जगहा सिर्फ एक हे माहणु जो काम मिलणा। मशीना के नफ़ा हुंदे देखी के कितने हे होर कारखाने खुल्हे और कुछ हे साला मंझ कितने हे मजदूर बेकार हुई गए। एता पर मजदूरे आपणा गुस्सा काठदे हुए एकी मिला पर धावा बोली दितेया होर मशीना के तोड़-फोड़ करीके स्यों खराब करी दिती।
जेस बक्त भाफा रे चलणे वाल़ी मिला रे खिलाफ इंग्लैंडा रे मजदूरा मंझ एहड़ी उतेजना फैल्ही करहाईं थी, तेस हे बक्त 1802 ई. मंझ फल्टने भाफा के चलणे वाल़ा जहाज तैयार कितेया होर जॉर्ज-स्टीफेन्सन रेला रे इंजना जो बनाणे बिच हे सफल नीं हुआ, बल्कि सन् 1825 ई. मंझ तिने स्टाक्टन् होर डालिंग्टना रे बिच लोहे री लाइना पर छोटे डब्बेयां सौगी एक इंजन 12 मील प्रति घंटे री चाला के दौड़ाई बी दितेया। पूँजीपतियें देखया, ये ता तैयार माला जो बड़ी जल्दी, कम खर्चे पर, एकी जगहा ले दूजी जगहा भेजणे बिच बौहत सहायक हुई सकहां। लोहे रे जहाज बणदे लगे। अग्निबोटा रे प्रचारे कल-कारखानेयां री तरक्की जो जिथी मदद पौंहचाई, तिथी हे कुछ बक्ता कठे मजदूर भी शान्त करी दिते, क्योंकि इन्हां साधना के तैयार माल दुनिया रे दूरा-दूरा रे बाजारा मंझ पौंहचदा लगया। तेस बक्त इंग्लैंड हे कारखानेयां रा प्रधान देश था। इधी कठे दुनिया रे बाजारा मंझ तेसरे प्रतिद्वंदी नीं थे।
अज्ही तका अमीर बणने रे तरीके राज्या री नौकरी, जमींदारी, खरीद-बेच होर सूदा पर रूपया देणा था, पर ये सब कल-कारखानेयां रे नफ़े रे सामहणे कुछ नीं थे। भारी लालचा रे करूआं जिथी इंग्लैंडा मंझ बौहत सारे लोक कारखानेदार बणने री कोशीश करदे लगे, तिथी यूरोपा रे दूजे देश बी, तेसरा अनुसरण करदे लगे। फ्रांस तेस बक्त पूरब होर पश्चिमा मंझ अंग्रेजा रा प्रतिद्वंदी था। से केभे तका चुप रैहणे वाल़ा था। तिने बी कारखाने लगाणे शुरू करी देते। एता बाद ता जर्मनी, हालैण्ड, आस्ट्रिया बगैरा यूरोपा रे सभी देश पैसा कमाणे रे एस सीधे होर तेज साधना जो अपनांदे लगे।
उन्नवीं सदी रे पैहले आधे भागा तका कल-कारखाने रा प्रचार यानि पूँजीवादा रा विस्तार यूरोपा मंझ हुंदा रैहा। तिथी ज्यादा कारखाने खुलणे ले दो नतीजे निकले। एक ता बौहत ज्यादा माला कठे बाजार भतेरा नीं हुणे करूआं यूरोपा रे देशा बिच आपु मंझ प्रतिद्वंदिता बधदी लगी होर दूजे बाजारा री कमी होर दिन-पर-दिन मशीना मंझ ज्यादा सुधार हुणे ले मजदूर कामा ले वंचित हुई के बेकार पौंदे लगे।
भारता मंझ पूँजीवादा रा प्रवेश
उन्नवीं सदी रे मंझा तका, पराधीन हुई जाणे परा भारते आपणे इथी आइरे माल होर यूरोपा रे माहणुआं ले मशीन-युगा री कुछ खबर ता जरूर पाई हुंगी, पर एसरे व्यापारियां रा ध्यान कल-कारखानेयां बखौ नीं गया। शायद अझी तिन्हा जो यन्त्रा री जानकारी नीं आईरी थी। व्यावसायिक बुद्धि प्रगतिशील विचार होर यूरोपीय जातियां रे संसर्गा मंझ पैहले आउणे वाल़े हिन्दुस्तानियां मंझ पारसी लोके सभी थे पैहले भारता मंझ मिला रा काम समझेया। कावसजी मनाभाई दावरे सन 1865 ई. बिच बम्बई मंझ पैहली कपड़े री मिल खोल्ही। हालांकि भारता मंझ कपड़े री सभी थे पैहली मिल बंगाला बिच हुगली रे तटा पर बौड़या नावां री जगहा पर एक यूरोपियने सन 1857 ई. मंझ खोली थी, पर भारतीया मंझ कपड़े री पैहली मिल खोलणे वाले दावर हे थे। देखादेखी अहमदाबादा रे हिन्दू व्यापारियें भी आपणी मिला कायम किती।
हालांकि उन्नवीं सदी रे पिछले हिस्से मंझ भारता बिच मिला री स्थापना या पूँजीवादा रा प्रसार शुरू हुई गया। पर उन्नवीं सदी रे मुकणे तका एतारी चाल बौहत सुले रैही। कारण थे (1) ठीक ढंगा के संगठित होर एक सदी रा तुजुर्बा रखणे वाल़े विदेशी कारखानेयां रे माला के स्यों बाजारा बिच मुकाबला नीं करी सकदे थे, (2) मशीना रा अभ्यास तिन्हां जो बौहत कम था, (3) बैंक, बीमा बगैरा आजकाले रे व्यापार रे साधना ले स्यों तितना काम नीं लैई सकदे थे, (4) विदेशी व्यापारी, जिन्हां रा भारता मंझ भारी प्रभाव था, इथी आपणे देशा रे प्रतिद्वंदी देखणा पसन्द नीं करदे थे।
बीहवीं सदी रे पैहले 15 साला मंझ शिक्षा होर विज्ञाना रे प्रचारा के कल-कारखानेयां रे फैलाणे मंझ हालांकि ज्यादा मदद किती, तेबे बी रास्ते मंझ कितनी हे रूकावटा हुणे रे करूआं तेतारी गति तितनी तेज नीं हुई सकी। कारखानेयां रा ज्यादा प्रसार पैहले महायुद्धा ले भारता मंझ हुंदा लगेया जेबे यूरोपा री जातियां रे युद्धा बिच पई जाणे थे तिथी रे कारखानेयां रे माला रा भारत बिच आउणा रूकी गया होर इहां कुछ साला कठे मैदान साफ हुई गया। तेस बक्त युद्धा री दृष्टि ले सरकारा जो बी भारता मंझ कल-कारखानेयां री तरक्की जो उत्साहित करणा पया। जेबे एक बारी चक्कर चली पया, ता तेतारा रूकणा मुश्किल था। ये हे कारणा था भई 1914 ई. ले बाद हिन्दुस्तानियें तरह-तरह री चीजा तैयार करने कठे हजारों कारखाने बड़ी-बड़ी पूँजी लगाई के भारता मंझ खोले। आज भारता मंझ पूँजीवाद बचपना ले आपणी जवानी बखौ पैर बधाई करहां होर एतारे सौगी भारता मंझ बी आज स्यों समस्या खड़ी हुई गईरी जे पश्चिमा रे व्यवसाय-प्रधान देशा रे सामहणे पैहले थे हे पेश थी।
साम्यवाद की पैदा हुआ?
संसारा बिच बिना कारणा के कोई काम (गल्ल) नीं हुंदा। पूँजीवाद बी तेबे पैदा हुआ था जेबे तेजो पैदा करने वाले कारण पैदा हुए थे- मतलब (1) थोड़ी मेहनत या बिना मेहनता के अमीर हुई जाणे री माहणु री स्वाभाविक इच्छा, (2) मशीना रे आविष्कारा के थोहड़ी-जेह मेहनता के बौहत सारी चीजा जो तैयार करी के सस्ती कीमता पर बेची के तेताले नफ़ा कमाणे री सुविधा, (3) मशीना के बणीरी चीजा के बाजारा मंझ मुकाबला नी करी पौणे रे करूआं स्वतन्त्र कारीगरा री प्रतियोगिता रा खत्म हुई जाणा, (4) ज्यादा जानकारी री जरूरत नीं हुणे वाल़े अनाड़ी जेह माहणु रे हाथे बी मशीना के सुन्दर चीजा बणाई सकणा। इहाएं साम्यवाद- जेताले आसारा मतलब वैज्ञानिक साम्यवादा ले हा- तेबे प्रकट हुआ जेबे तेजो पैदा करणे वाल़े कारण मौजूद हुए।
जेस चीजा मंझ माहणु री मेहनत जितनी ज्यादा लगहाईं, तेतारी कीमत तितनी हे ज्यादा हुआईं- ये समझणा मुश्किल नीं हा। खोदणे कठे बौहत भारी मेहनता ले बाद कई बार बौहत सारी खुदाई री मेहनत बर्बाद करीके हीरा कधी-कधी हे मिल्हां, यानिके एक हीरे मंझ से सारी मेहनत शामिल ही, इधी कठे एतारी कीमत इतनी ज्यादा ही। अगर एक माहणु रे आधे ध्याड़े री मेहनता के कोहनूर मिल्ही जांदे, ता तिन्हारी कीमत इतनी ज्यादा नीं हुंदी। हाथा के बणीरी चीजा री कीमत इतनी ज्यादा इधि कठे हुआईं, क्योंकि तेता मंझ माहणु री मेहनत ज्यादा लगाहीं। माहणु री मेहनत कम परिमाणा मंझ लगणे ले हे मशीना के बणीरी चीजा इतनी सस्ती हुआईं। मशीना के चीजा पैदा करने मंझ माहणु री मेहनता रा कमा ले कम इस्तेमाल हुआं। मशीना रे इस्तेमाला के तितनी हे चीजा पैदा करणे कठे तितने माहणुआं री जरूरत नीं पौंदी जितनी तिन्हा हे चीजा जो हाथा के बनाणे कठे पौहाईं। हाथा रे करघे जो हे लेई लौ। एता बिच एक आदमी आठ घण्टे रोज काम करीके मुश्किला के दस-बारा गज कपड़ा बुणी सकहां। पर तेसथे बी कम जाणकार माहणु कपड़े री मिला मंझ जाईके तितने हे बक्ता बिच साठ-सत्तर गज कपड़ा बुणी सकहां होर तेसरे बुणने री ताकत बी, मशीना मंझ जितना हे सुधार हुंदा जाणा, तितनी हे बधदी जाणी। आठ घण्टे मंझ एक आदमी रा साठ-सत्तर गज कपड़ा बुणने रा मतलब हा, छैह माहणुआं रा काम एकी माहणु करणा, एतारा दूजा मतलब हुआ भई मशीना के पाँज माहणुआं जो कामा ले वंचित रखणा।
मशीना माहणुआं ले काम छीनी लैहाईं, ये गल्ल समझणे मंझ तेस बक्त इंग्लैंडा रे अशिक्षित मजदूरा जो बी देर नीं लगी होर कुछ हे साला बाद उन्नवीं सदी री शुरूआता बिच हे, आसे इंग्लैंडा रे मजदूरा होर कारीगरा जो कई मिला जो तोड़-फोड़ करी के नष्ट करदे देखाहें। पर तेबे बी यों भाव इतने भयंकर नीं हुई सके। एतारा कारण ये था भई तेस बक्ता तक मशीना रा प्रचार एकाध मुल्का मंझ हे हुई रैहरी था होर चीजा री खपता कठे दुनिया रे सारे बजार खुले थे, यानि स्यों कारखाने अझी इतनी चीजा पैदा बी नीं करी सकदे थे जितनी बजारा री मांग थी। इधी कठे तेस शुरू रे जमाने मंझ नफ़े रे निश्चित हुणे होर घाटे रा डर नीं हुणे रे करूआँ नौवें-नौवें कारखाने खुलदे जाई करहाएं थे। हर नौंवे कारखाने रे खुलणे रा मतलब था होर ज्यादा मजदूरा जो काम मिल्हणा। एस करूआं उन्नवीं सदी रे पैहले पच्ची साला मंझ तिथि रे मजदूरा रा रूख पूँजीपतियां रे खिलाफ इतना सख्त नीं था। पर एक देशा जो कारखानेयां रा फायदा उठादें देखी के यूरोपा रे दूजे देशा ज्यादा दिना तक चुप किहां रैही सकाहें थे। दूजे मुल्खा मंझ बी कारखाने खुली जाणे ले बजारा बिच ज्यादा माल आउंदा लगया, इधी कठे पैहलके स्थापित कारखानेयां जितने मजदूर बेकार करी दिते थे, अब तितने नौवें कारखाने नीं खुलणे ले तितने बेकारा जो काम नीं दितेया जाई सकदा था। दूजी गल्ल ये थी भई मशीना मंझ रोज नौवें-नौवें सुधार हुणे ले जिथी एक पुराणी मशीना मंझ तितने कामा कठे दस माहणुआं री जरूरत थी, अब नौंवी सुधरी री मशीना मंझ तेते आधे हे माहणुआं री जरूरत पौंदी लगी। इहां विज्ञाना री उन्नति होर नौंवे-नौंवे आविष्कार बेकारा री संख्या जो होर बधाणे वाल़े साबित हुए। हां, ये जरूर था भई जिथी कुछ चीजा जो काम मंझ ल्याउणे वाल़े पैहले थोहड़े जे हे माहणु थे, अब सस्ती हुणे रे करूआं एताजो ज्यादा लोक इस्तेमाल करदे लगे। तेबे बी खरीदारा री संख्या मंझ तेस अनुपाता बिच बढौतरी नी हुई करदी थी जेस अनुपात होर परिमाणा मंझ बेकारा री संख्या बधदी जाई करहाईं थी।
अब मजदूर देखदे लगे भई एकी पासे ता तिन्हां जो कारखानेयां बिच काम नी मिल्ही करदा होर दूजी बखौ तिन्हा ले स्वतन्त्र कारीगरी या खेती रा जरिया बी छिनी लितेया गया। पेटा री भूख एक साधारण बुद्धिवाल़े माहणु जो भी कुछ सोचणे कठा मजबूर करहाईं। मजदूरे एक बखौ आपणे को बेबस देखया होर दूजी बखौ कितने हे लोका जो कुछ हे ध्याडेयां मंझ करोड़पति बणदे देखेया। ये समझणे बिच तिन्हा जो मुश्किल नीं हुई भई ये सारा धन तिन्हा री हे मेहनता के कठा हुइरा। पूँजीवादे जिथी मजदूरा कठे इतनी तकलीफा रा सामान कठे करी दितेया, तिथी हे तिन्हा कठे एक फायदा बी कितेया होर से था बड़ी-बड़ी तादाद मंझ मजदूरा रा कारखानेयां रे नेडे कट्ठा हुणा। जिथी खेती मंझ मजदूर ओरे-परे बिखरी रे हुणे करूआं आपणी तकलीफा जो चुपचाप सही लैहाएं थे, तिथी कारखानेयां रे मजदूर संगठित होर आन्दोलन करणे री ताकत रखाहें थे।
माहणु-जाति मंझ एहड़े लोक बी हुंदे आइरे ज्यों आपु आरामा बिच रैहणे परा बी दूजेयां री तकलीफा पर सोचणे होर तिन्हां जो दूर करने कठे आपणा सभ कुछ देई सकाहें। जेस बक्त पूँजीवाद नीं था और एतारी बुराईयां जो इतने भयंकर रूपा मंझ देखणा सम्भव नीं था, तेस बक्त बी एहड़े विचारक पैदा हुए ज्यों आर्थिक समानता रा प्रचार करहाएं थे। गौतम बुद्धे ढाई हजार साल पैहले आपणे भिक्षुआं मंझ जिन्दगी रे कामा री चीजा जो जरूरता देखी के बराबर बांडणे रा नियम हे नीं बनाया था, बल्कि व्यक्तिगत सम्पत्ति री सीमा बौहत छोटी करिके संघ या समुदाया री सम्पत्ति री सीमा बौहत बधाई दिती थी। ईराना रे मज्दके (पाँजवीं सदी) बी एहड़ा हे कितेया था। नौंवीं सदी रे मंझा बिच तिब्बता रे सम्राट मुनि-चन्-पोए बी तीन बारी आपणे राज्या मंझ धन-सम्पत्ति जो बराबर-बराबर बंडवाया था। एहड़े कई उदाहरण दुनिया रे दूजे हिस्सेयां मंझ बी मिली सकाहें।
पर जे पूँजीवादा रे रोगा री असली दवाई ही, से हा साम्यवाद, मतलब विज्ञाना रे लाभा जो लैंदे हुए तेतारी तरक्की रे रस्ते खुल्हे रखदे हुए, पूँजीवादा री खड़ी कितिरी विपत्तियां जो हटाणा। जिहां बिजली रे लम्पा जो ऊपरा ले फूकर देई के बुझायी नीं सकदे, तिहां हे विज्ञाना के पैदा कितिरी समस्या जो अन्धी तपस्या के हटाया नीं जाई सकदा। वैज्ञानिक साम्यवादियें ये भली भाँति समझी लितिरा भई विज्ञाना रे आविष्कार आपु मंझा बुरे नीं हे। जेबे इन्हां आविष्कारा रा इस्तेमाल वैयक्तिक नफ़े कठे करना शुरू करी दितेया, तेबे बेकारी री ये भारी समस्या पैदा हुई। इधी कठे वैज्ञानिक साम्यवादी बोल्हाएं भई विज्ञाना रे आविष्कारा जो कुछ माहणुआं रे नफ़े रे इस्तेमाला कठे नीं करी के सारे समाजा री भलाई कठे इस्तेमाल करने चहिए। अगर विज्ञान 6 माहणुआं रे कामा जो एकी आदमी रे करणे लायक करी देहां, ता 5 माहणुआं रा काम छुड़ायी के तिन्हौ जो भूखा नीं मारना चहिए, बल्कि कामा रे घंटेयां जो तिन्हां छह माहणुआं मंझ बांडी देणा चहिए। 6 माहणु जितने कपड़े जो 12 घंटे मंझ बणाई सकहाएं थे, अगर मशीना के एक माहणु हे तितने कपड़ेयां जो 12 घंटे मंझ बनाई सकहां, ता तेस 12 घंटेयां रे कामा जो आसे 6 माहणुआं मंझ दो-दो घंटा करिके बांडी सकहाएं। एसा गल्ला ले यह बी पता लगहां भई पूँजीवाद होर साम्यवादा रे ध्येय एकी-दूजे ले बिल्कुल उल्टे हे। दोन्हों हे विज्ञाना रे आविष्कारा जो कामा मंझ ल्याउणे रे पक्षा मंझ हे, पर जिथी पूँजीवाद कुछ माहणुआं रे नफ़े रे कठे सारे माहणु-समाजा रे जीवना जो नरक बनाणे कठे तैयार हा, तिथी साम्यवादा रा ध्येय हा कुछ माहणुआं रे स्वार्था रे कठे नीं, बल्कि सारे माहणु-समाजा कठे सुख-सामग्री री बढ़ौतरी करना हा। जेबे तका चीजा जो नफे रे कठे तैयार कितेया जांदा रैहणा, तेबे तका बेकारी रे हटाणे रा नुस्खा- घंटेयां जो बाँडी कने सभी लोका जो काम देणा- बर्तावा बिच नीं आउणा। जिहां साइकल तेबे तका हे खड़ी रैही सकाहीं जेबे तका से चलदी रौहो, इहाएं पूँजीवाद तेबे तका चली सकहां जेबे तका पूँजीपति जो, वैयक्तिक नफा हुंदा रौहो। नफा तेस कठे जीणे-मरणे रा सवाल हा।
आजकाले दुनिया मंझ सब जगहा लोक तकलीफा बिच सुझाहें। कारखाने वाल़े होर व्यापारी हे बजारा री मन्दी री शिकायत नीं करदे, बल्कि ग्राँवां रे किसान होर देशा मंझ काम करने वाल़े मजदूर भी एतारा ठीक ढंगा के अनुभव करी करहाएं। शैहरा रे कारखानेयां वाल़े मजदूरा री भयंकर अवस्था रे बारे बिच ता कुछ बोल्णा हे नीं हा। यूरोप होर अमेरिका रे औद्योगिक देशा मंझ एहड़े बेकारा री संख्या करोड़ों तका पौहंची गईरी। जिन्हां कठे जिन्दगी रा बौहत जरूरी सामान मिलणा बी कठण हुई गईरा। आये दिन तिथी कितने हे जनानेयां-मर्द जीवना ले तंग आई के आत्म-हत्या करी लैहाएं। माहणुआं री इतनी भारी संख्या जो इतने कष्ट मंझ रखीके, कुछ थोह्ड़े जेह माहणुआं रा सुखी रैहणा केसी बी ढंगा के अच्छा नीं बोल्या जाई सकदा।
पूँजीवादा रा दुष्परिणाम बेकारी हे नीं ही। पूँजीवाद माहणु-जाति पर एक होर भयंकर विपत्ति ल्याउणे रा कारण हुईरा, होर से हा युद्ध, संसारा री शान्ति भंग करना। केसी बक्त इंग्लैड दुनिया रे ज्यादातर बजारा रा मालिक था। फेरी जर्मनी रे कारखाने बधाणे ले तिन्हे बी आपु कठे बजार बधाणे चाहे। तेतारा परिणामा बिच पैहला महायुद्ध हुआ। अजही ये युद्ध चलिरा हे था तितनेओ मैदान खाली देखी के अमेरिका होर जपान बी बजारा जो हथियांदे लगे। तिन्हा रे कारखाने बौहत ज्यादा संख्या मंझ चीजा तैयार करदे लगे। लडाई बंद हुणे बाद हालत ये ही भई अगर अमेरिका री चीजा जो इंग्लैंड आपणे साम्राज्या रे अंदर नीं आउणे देंदा- होर आउणे देणे रा मतलब हा आपणी चीजा री खपता जो कम करना- ता अमेरिका बी मौका देखदा रैहां भई किहां आसे इंग्लैंडा रे प्रभुत्वा जो हटाईएं। तेहड़ा हे जपाना रे बारे बिच हा। असलियता मंझ गिनी-चुनी दो रोटियां ही होर तिन्हा जो खाणे कठे तैयार हे दर्जनों मुँह।
संसारा रे देश एसा अशान्ति जो भली भांति समझी करहाएं होर ये हे कारण हा जे निरस्त्रीकरणा री इतनी कोशीशा हुई करहाईं। तेबे बी जेबे तका आपणे माला री खपता कठे बजारा री छीनाझपटी रैहणी, तेबे तका संसारा रे सिरा परा लटकदी हुई युद्धा री तलवार दूर नीं हुई सकदी। अब ता पूँजीवाद हे दुनिया भरा री लडाईयां रा एकमात्र कारण हुई गईरा। बजारा रे कम हुणे रा एक होर कारण बी हा, पैहले ज्यों देश उद्योग-धन्धेयां ले रहित थे, स्यों बी बड़ी तेज चाला के आपणे कल-कारखाने बधाई करहाएं। हिन्दुस्ताना जो हे लेई लौ। जिथी लड़ाई ले पैहले से आपणी जरूरता रे कपडेयां रा पाँजवां भाग बी मुश्किला के बणाई सकहां था, तिथी एभे से लगभग सभी कपडेयां जो आपणे इथी हे तैयार करी लैहां। लालटेन, फाउन्टेनपेन, पेंसिल, ब्रुश, ब्लेड, बैटरी साहीं सैकड़ो चीजा ही ज्यों लड़ाई ले पैहले हिन्दुस्ताना मंझ तैयार नीं हुंदी थी, पर एभे इन्हारे कितने हे कारखाने खुल्ही गईरे। इन्हां चीजा रा देशा मंझ बणने रा मतलब हा, दूजे देशा ले तितने बजारा रा छिन्हीं जाणा।
मशीना रे प्रयोगा के माहणुआं रा बेकार होणा होर नौवें-नौवें आविष्कारा के बेकारी रा होर बी बधणा, फेरी बजारा री कमी रैही-सैही कसर पूरी करी देहाईं। उपराले हर दसवें साला री जनसंख्या देखणे पर पता लगहां भई जनसंख्या बधदी जाई करहाईं। पूँजीवाद कुछ लोका जो अमीर बणाई के तिन्हा कठे सुख होर विलासा री नौईं-नौईं सामग्री जुटाई सकहां। ज्यादा कीमती मोटरा, जिन्हां मंझ हाथ-पैर हिलाणे नीं पौओ, मैहल होर तिन्हा जो सजाणे री हजारों चीजा, पेरिसा ले रोज नौवें निकल़दे फैशन होर एता साहीं बौहत सारी विलासता री चीजा जो से जरूर हासिल करी सकहां, पर युद्ध होर सार्वजनिक बेकारी री समस्या रे हल हुणे री तेसले आशा रखणा दुराशा-मात्र ही। यों समस्या ता अब माहणु जाति रे जीणे-मरणे रा सवाल बणी गईरी।
पूँजीवादा रे होर बी कितने हे दुष्परिणाम गिणाये जाई सकहाएं। पूँजीवादा रा भयंकर परिणाम बौहत सारे माहणुआं जो घोर दरिद्रता मंझ रखणा बी हा। आसे एहड़े कितने हे मट्ठेयौं देखहाएं जिन्हां मंझ उत्तम प्रतिभा ही। अगर तिन्हां जो मौका मिल्हदा, ता स्यों बधिया गणितज्ञ, वैज्ञानिक, कलाकार हुई सकाहें थे, पर तिन्हारे मावा-बाबा बाले इतना धन नीं हुंदा जेता के स्यों आपणे मट्ठेयां जो तेसरी रूचि होर योग्यता रे मुताबिक आवश्यक शिक्षा दुआई सके। दूजी बखौ प्रतिभाहीन धनी सन्ताना जो पढ़ाने-लिखाणे मंझ हजारों-लाखों रूपये बर्बाद किते जाहें। बौहत सारे कारणां मंझ यों कुछ कारण हे जिन्हें संसारा बिच साम्यवादा रे विचारा जो जन्म दितेया।
क्या पीछे बखौ हटया जाई सकहां?
एसते पैहले आसे पूँजीवाद होर साम्यवादा री उत्पत्ति परा लिखेया। पूँजीवादा ले पैदा कठिनाइयां जो देखदे हुए आसे लिखेया भई एतारी दवा साम्यवाद ही। आसे ये बी लिखी चुके भई पूँजीपतियां रे वैयक्तिक नफे कठे यन्त्रा रा ज्यादा प्रचार, तेन्हारा ज्यादा सुधार होर वृद्धि के संसारा मंझ भयंकर बेकारी समेत कई समस्या पैदा हुई गई। इन्हां समस्या रा सामना आसारे देशा मंझ दो प्रकारा रे माहणु करहाएं-एक ता स्यों जे धन-दौलता री बदौलत आरामा री जिन्दगी जिहाएं, होर साम्यवादा रे हौवे जिन्हारी अक्ल दिन-रात परेशान कितिरी। हां, एक दूजी श्रेणी रे लोक हे, स्यों परिस्थिति री भीषणता जो समझाहें होर चाहें भई इधी कठे कुछ कितेया जाए। इन्हां मंझ बी दो तरहा रे लोक हे एक ता यों हे साम्यवादी, जिन्हारे नजरिये के ये कताब लिखी गईरी, होर दूजे स्यों हे ज्यों बोल्हाएं- कि नी आसे एसा शैतानी खुराफाती यंत्रवादा जो हे छाड़ी के तेस पुराणे युगा मंझ चलियें जिथी इन्हां यंत्रा रा नावं निशाण नी था। जेस बक्त हर एक गाँव एक पूरा संसार था, जिथी बढ़ई, लोहार, जुलाहा, किसान होर स्वतन्त्रापूर्वक हरे-हरे खेता होर ठण्डे उद्याना के घिरी रे, प्रकृति री गोदा मंझ क्रीड़ा करदे शांति होर सन्तोषा रा जीवन बिताहें थे, जेबे तिन्हारे पड़ोसा रे तपोवना मंझ ऋषियां होर महात्मेयां रे शान्त आश्रम आपणे आध्यात्मिक आनन्द होर प्रेमा के माहणु होर पशु-पक्षियां तका जो आप्लावित करहाएं थे। जिन्हां यन्त्रा करूआं आसारी से सोने री दुनिया-वन सतयुग-छिन्ही गया, आसे भी तिथिजो चली चल्हाएं। तुसारा तर्क थोड़ी देरा कठे मनोरंजना री सामग्री हुई सकहां। अगर तुसे एता जो रस्किन या गांधी रे मोहक शब्दा होर शक्ला रे सौगी पेश कराहें।
यन्त्रा रा बौहत भारी इस्तेमाल सभी देशा री सरकारा करहाईं। रेल, विमान, जहाज, तोप, तारपीडो, बेतार तिन्हां कठे जीणे-मरणे रा प्रश्न हा। जेबे तका पड़ोसी बाले यों चीजा रैंहगी, तेबे तका कोई सरकार इन्हौ छाड़ी किहां सकहाईं। चंगेजखाँ री सेना प्रशांत महासागरा मंझ डेन्यूब तटा तका की विजयी हुई? क्योंकि तिन्हारे हथियारा मंझ बारूद शामिल हुई गइरा था। भारता मंझ बाबरा री विजय मंझ बी एक प्रधान कारण स्यों बारूदा री तोफा थी ज्यों तेस बक्त पैहली बारी भारता मंझ इस्तेमाल किती गई। ढाई हजार साल पैहले भारता मंझ लकड़ी री दीवारा रे किले रक्षा कठे भतेरे थे। फेरी जिहां-जिहां हथियारा री ताकत बधदी गई तिहां-तिहां हे ईंट, पात्थर बगैरा री बौहत मोटी दीवारा वाल़े किले बणदे लगे। तोफा रे बौहत शक्तिशाली हुणे रे करूआं फौलादी किलेयां री जरूरत पई, पर ऐण्टवर्पा साहीं अभेद्य सुदृढ़ फौलादी किले भी जर्मन तोफे 24 घण्टे मंझ उड़ाई दिते थे। आजकाले विमाना रे युगा मंझ ता स्यों किले बी बेकार जेह हुई गईरे। एस बक्त जेबे कि हर सरकार आविष्कृत हथियारा के आपु जो सुसज्जित करना चाहीं, तुसारी गल्ल कुण सुणने कठे तैयार हुंगा?
मनी लौ, केसी देशा री अकला रा दिवाला निकल़ी गईरा होर से तैयार हुई जाओ सारे यन्त्रा रा बायकाट करने जो, ता तेसरी गति क्या हुणी? तेहड़ी हे जे कांगो रे हब्शियां री ही। तेस केसकी बलशाली शक्ति रा हमेशा कट्ठे गुलाम बणी जाणा। संभव हा, से शक्ति तुसा साहीं सौ-पँजाह आदर्शवादियां जो आत्मशुद्धि कठे जंगला मंझ तप होर उपवास करने री सुविधा देई दो, पर देशा रे लोका जो ता सुख होर आशा रे जीवना जो सदा कठे भुलाणा पौणा, क्योंकि मुक्ति अगर कधी हुई सकाहीं, ता से विज्ञाना री हे सहायता के, पर तुसे स्यों तेताले वंचित करी दिते। पीछे बखौ हटणे री गल्ला मंझ असंभव जेह कठिनाई ही। एतारे अलावा बी कितनी हे गल्ला दसी जाई सकहाईं। तेहड़ा करने कठे ज्ञाना रे प्रसार मंझ आजकाले अत्यन्त सहायक प्रेस, अखबार होर दूजे यन्त्रा ले जितनी मदद मिल्हाईं, से बी छाड़णी पौणी। होर फेरी ताड़ा रे पातर, लकड़ी रे तख्ते होर चमड़े पर लिखाई-पढ़ाई करनी पौणी। कताबा रे अभावा बिच पैहले साहीं विद्या जो बौहत कुछ कंठस्था करीके रखणा पौणा। पैहले ता लाचार हुई के एहड़ा करना पौहां था, होर एभे सुगम साधना जो आपणी हाखियां सामहणे देखी के तेहड़ा करना तितना आसान नीं हा। यंत्रवादा जो मनणे वाले साम्यवादी एतारी बखा ले चिंतित नीं हुई सकदे, पर पीछे बखौ हटणे वाल़े सतयुगवादी एता जो हल नीं करी सकदे। हां, तुसे बोली सकाहें- कुछ आसा करना, होर कुछ भगवाना भी ता आसारी मदद करनी? नईं जनाब। तुसे आपु कुछ मत करा, भगवाना पर हे सभी जो छाड़ी देया। इतना लिखणे ले ये पता लगया भई पीछे बखौ भगणा आसा कठे असंभव हा, आसौ समस्या रा सामना अग्गे बधी के करना पौणा।
रज्जी रे पेटा होर फुर्सता वाल़े लोका रे हाथा मंझ जेबे कलम हुआईं, तो स्यों भारता जो भूस्वर्ग चित्रित करना चाहें। अगर भारता ले मतलब कुछ सौ राजा-महाराजेयां होर अमीर होर जमींनदारा ले हा तेबे ता स्यों कुछ हदा तका ठीक हुई सकाहें। भारता जो आपणी हाखियां के नी देखणे वाल़े बौहत सारे यूरोपा रे मर्द-जनाने बी आसारे देशा रे राजेयां जो देखी के, तेहड़ा समझणे री गल्ती करहाएं। पर, क्या असली अवस्था एहड़ी हे ही? भूस्वर्ग ता दूर, भारता रे बहुसंख्यक माहणु जेहड़ी दरिद्रता मंझ हे, तेतारा बाहरा वालेयां जो अनुमान बी नीं हुई सकदा। यूरोपा रे लोक जिन्दगी जो केसी तरहा काटी लैणे होर भूखे मरने ले आपु जो बचाई रखणे जो “रोटी मक्खना पर दिन काटणे” रा नावं देहाएं। आसारे इथी रे गरीबा कठे ता से सुपने री गल्ल ही। इधी ता स्यों फसल काटणे रे बक्त बी पेट भर रूखा-सूखा हे खाई सकहाएं। बाकी बक्ता मंझ किहां गुजारा करहाएं, एता जो समझणा मुश्किल हा। बिहार होर युक्त-प्रान्ता रे देहाता के गरीबा जो देखा। चैतरा मंझ फसल काटदे बक्त तिन्हारा पेट जरूर भरी जाहां, पर आधे बसाखा ले हे अवस्था बिगड़दी लगहाईं। हाढ़ पौंहचदे-पौंहचदे तिन्हारा चौतरा रा हरा शरीर सूक्की जाहां होर फेरी बरसाती रे शुरू हुणे रे सौगी चकवँड़, करमी बगैरा रे उबल़ीरे साग तिन्हारे जीवन-यापना रे प्रधान आश्रय बणी जाहें। हाँ, अगर तेस साल अम्बा री फसल हो, ता तेतारी गुठलियां री रोटी बी तिन्हा जो मिल्ही जाहीं। तिन्हारी गरीबी रा “बारहमासा” अगर बणाया जाये, ता साला रे दो-तीन महिनेयां जो छाड़ी के ये करूण कहाणी साल भर चलदी रैहाईं, एहड़े माहणु शैहरा होर स्टेशना पर आसानी के मिल्ही जाहें ज्यों तुसा रे हाक्की रे जूठे टुकडेयां जो कुत्ते रे मुँहां ले खुराटी के खाई देहाएं। तुसे तिन्हां जो तेबे तका काम नीं करने रा तान्हा नीं मारी सकदे जेबे तका देशा रे करोड़ों बेकारा जो काम दुआणे रा प्रबन्ध नीं करी देंदे। आसारा देश सौभाग्यवान हा जे इतनी सर्दी नीं हुंदी, नीं ता लोक कपड़ा खरीदणे मंझ जिहां असमर्थ हे, तेताके ता हर साल लाखों माहणुआं जो जाड़ा हे चकुआं लेई जांदा। लाखों माहणु कोपीट, एक फटीरी धोती, या बौहत हुआ ता धोती-अंगोछी रे सौगी क्या खुशी के रैहाएं? अगर तिन्हौ शरीर ढकणे कठे पूरे कपड़े मिल्हौ, ता क्या तिन्हां स्यों हाक्की देणे? कितने हे आसारे शिक्षित भाई तिन्हारे मैले कपडेयां पर नाक-भौं सिकोड़ाहाएं। जिने मुश्किला के पेट काटी के दस आने पैसे जमा करीके धोती खरीदीरी, से हर आठवें रोज एक पैसा साबणा कठे किथी ले ल्याहुंघा? होर बीमारी?- से ता इन्हां लोका कठे मौता रा परवाना लेई के आवाहीं। माहणु बणने कठे शिक्षा री जरूरत हुआईं। सरकार ग्रांवां-ग्रांवां मंझ स्कूल नीं खोल्ही सकदी, बोल्हाईं- खजाने मंझ रूपया नीं हा। क्या तेतारा बी कारण लोका री गरीबी नीं हा? अगर सभी जगहा स्कूल खोल्ही बी दिते जाए, ता क्या सब लोक आपणे मट्ठे-मट्ठियौं पढ़ने कठे भेजी सकाहें? छैह-छैह, सात-सात साला रे मट्ठे-मट्ठियौं जो बी गाय-बैल चराई के या बच्चा खलहाई के आपणा पेट भरना पौहां। फेरी स्कूला मंझ जाणे परा तिन्हां जो खाणा-कपड़ा किथी ले मिल्हणा?
गरीबी रे कठे लोक सारी गल्ला रा दोष विदेशी शासना रे मत्थे मढ़ी के छुट्टी पाणा चाहें। स्यों समझाएं, स्वराज्य हुंदे ही आसारे सब संकट दूर हुई जाणे। क्या स्वराज्य-प्राप्त देशा मंझ गरीबी ले तंग आईके हर साल हजारों माहणु आत्म-हत्या नीं करदे? अगर विदेशा शासन होर व्यापारा कठे देशा ले बाहर जाणे वाल़े पैसे जो भारता रे पैंती करोड़ आदमियां मंझ बाँड़ी कने देखो, ता पता लगणा भई एहड़ा करने ले बी लोका री आमदनी मंझ तेतनी बढौतरी नी हुणी जेता के से साधारण माहणु-जीवना जो व्यतीत करी सके।
आसारे देशा री गरीबी एहड़ी नीं ही जेतारा इलाज नीं हो। सब साधऩ हुंदे हुए बी आसे बेबस हे, क्योंकि आसे तिन्हां साधना रा इस्तेमाल नीं करी सकदे। माहणु रा श्रम हे ता धन हा। भारता रे पैंती करोड़ माहणुआं मंझ अठारा करोड़ माहणु ता जरूर काम करी सकाहें। आजकाले तिन्हां मंझ थोहड़े ता अमीर हुणे रे करूआं काम करने मंझ आपणी बेज्जती समझाहें। इतना हे नीं, तिन्हां जो आपणे शरीरा री देख-भाल, सेवा-टैहला कठे भी दर्जनों माहणु चहिए। स्यों आपु बी काहिल हे होर दूजे रे कामा रे बी चोर हे। पर ज्यों लोक काम करी सकाहें, क्या तिन्हां सभी जो काम मिल्हां? केसी पूँजीवादी देशा मंझ सभी जो काम मिल्ही हे नीं सकदा। मिल-मालिका होर जमींदारा जो एक निश्चित संख्या मंझ मजदूर चहिए। राजा-महाराजेयां, सेठ-साहूकारा रे खिदमतगारा रा काम आवश्यक श्रम नीं हा, क्योंकि तिन्हारे कामा ले माहणु-जीवना रे कठे जरूरी कोई चीज पैदा नीं की जाई सकदी। आखिर श्रम होर वेतन एकी-दूजे पर आश्रित चीजा ही। जेबे श्रम खाणे-पैहनने, रैहणे री चीजा जो पैदा करहां, ता श्रमिका जो यों चीजा रूपये-पैसे रे संकेता के वेतना रे रूपा बिच मिल्हाईं। जितनी हे जीवना कठे उपयोगी चीजा ज्यादा परिमाणा मंझ पैदा हुणी, तितनी हे वेतना मंझ बढ़ौतरी हुणी, पर पूँजीवाद ता सभी कामा जो करहां नफे जो ध्याना मंझ रखी के। नफे रे रस्ते री कितनी हे रूकावटा री आसे पैहले गल्ल करी लितिरी जेता करूआं पूँजीवाद राष्ट्रा मंझ सभी रे श्रमा रा इस्तेमाल नीं करी सकदा। ये हे वजह ही जे पूँजीवादा मंझ श्रमा रा अपव्यय होर नाश बौहत भारी पैमाने मंझ हुआँ।
आसे इथी एक उदाहरण देहाएँ। जनवरी 1934 मंझ बिहारा मंझ भयंकर भूकम्प आया। शैहर-देहाता रे लाखों घर, आउणे-जाणे री सड़का होर पुल्ह टूटी गए। तिन्हारा भी कने बणना अब एक पीढ़ी रा काम समझेया जाई करहां। ये की? क्या बिहारा पात्थर, ईंट, कंकड़, लकडी या लोहे री कमी ही? क्या काम करने वाल़ेयां री कमी ही? नी, कल्हे तेस पीड़ित इलाके मंझ हे एक करोड़ माहणु बसाहें, जिन्हा मंझ आधे कोई नीं कोई काम जरूर करी सकाहें। मुंगेरा रे पात्थरा रे पहाड़, तराई रा साखुआं रा जंगल, झरिया री कोयला खाना, टाटा रा लोहे रा कारखाना, सब कुछ हा इथी। तेबे क्या गल्ल ही जे उजडी रे बिहारा जो बसाणे कठे एक पीढ़ी तका इंतजार करना पौणा। अगर आज बिहारा मंझ साम्यवादी शासन हुंदा, ता क्या हुंदा? तेस शासना भूकम्पा रे दूजे हफ्ते काम करने लायक पँजाह लाख माहणुआं जो पुनर्निर्माणा रे काम मंझ लाई देणा। अगर एक-एक माहणु पँजाह-पँजाह टोकरी माट्टी सड़का पर रखी, या खेता ले हटाई जाई सकहाईँ थी। फेरी ज्यों पाणी रे रस्ते बालू के भरी गइरे थे, तिन्हौ साफ करने मंझ कितना बक्त लगदा? बरसात खत्म हुंदे हे अगर पँजाह लाख माहणु मकाना होर तिन्हां कठे उपयोगी सामान बनाणे मंझ लगी जाओ ता उजड़िरे बिहारा जो पैहले ले बी सुन्दर, स्वास्थयप्रद घरा, सड़का होर पुल्हा जो सुसज्जित करने मंझ क्या एक-डेढ़ साला ले ज्यादा लगणा? वेतना रा सवाल? जीवना री सभ आवश्यकता री चीजा ता बिहारा मंझ हे तैयार हुआईं, फेरी तेतारा विनिमय कोई मुश्किल नीं था। साम्यवादी सरकार एक आदमी जो एक रूपैये रा नोट हर रोज देंदी जे तेसरे काम रा प्रमाण बी हुंदा होर सौगी-सौगी तेताके से जरूरी चीजा खरीदी सकदा। ज्यादा ले ज्यादा ये हे हुंदा भई एकी साला कठे खाणे-पैहनने री चीजा बाहरले प्रान्ता ले मुंगवाणी पौंदी। अगर पड़ोसी प्रान्त साम्यवादी न हुंदे ता एता के तिन्हारे बजारा री बन्दी हे कुछ कम हुंदी। बादा मंझ ता बिहार आपु स्वावलम्बी हुई जांदा होर सहायका री जरूरत पौणे पर तिन्हाए इमदाद करदा।
साम्यवादा रा ध्येय हा, सारे देश या दुनिया जो एक सम्मिलित परिवार बणाई देणा होर देशा री सारी सम्पत्ति जो तेस परिवारा री सम्पत्ति करार करी देणा। भारता साहीं देशा मंझ जिथि जीवना री सभी आवश्यकता री चीजा उत्पन्न किती जाई सकहाईं- काम हा, वार्षिक आवश्यकता रा अंदाजा लगाई के तेतारे उत्पादना रे कठे सारे परिवारा रे माहणुआँ मंझ काम बाँड़ी देणा। होर फेरी उत्पन्न चीजा जो बी आवश्यकतानुसार देई देणा। स्वस्थ माहणु जो खाणा-कपड़ा, स्वच्छ मकान, बीमारा कठे दवा होर इलाज होर मट्ठे-मट्ठियां री शिक्षा रा बी प्रबन्ध हुई गया, बस काम खत्म। नफा ता दूजे री मेहनता री चोरी रा प्रतिष्ठित नावं हा। इधी कठे साम्यवादा मंझ जगह नीं ही। इहां आसौ पता लगहां भई आसारी भयंकर दरिद्रता रा अन्त साम्यवाद हे करी सकहां, क्योंकि से हे सदुपयोगा रे सौगी सभी लोका जो काम देई सकहां।
आसारे सामाजिक रोग होर साम्यवाद
आसे पैहले दसी बैठे भई किहां भारता मंझ प्राग्द्रविड़ीय, हब्शी, द्रविड़ होर आर्य- इन्हां चार जातियां रा सम्मिश्रण हुआ। किहां आर्या रे आउणे परा आजा ले साढ़े तीन हजार साल पैहले काल़े-गोरे या शुद्र-आर्य रा प्रश्न उठेया। आर्य विजेता थे। स्यों आपणी सभी गल्ला पर अभिमान करहाएं थे। स्यों साम्यवादी ता थे नीं जे विजेता होर विजिता मंझ भेद भुलायी देंदे। तिन्हारे शरीरा रा रंग-रूप बी विजित लोका ले भिन्न था। स्यों नीं चाहदें थे भई काले, नाटे, चिपटी नाका वाल़े अनार्यां रे संसर्गा के तिन्हारा गोरा रंग, लम्बी नाक, ऊच्चा कद बिगड़ी जाओ। इन्हें भावे बक्ता-बक्ता पर उग्र रूप धारण कितेया हुंघा होर एतारे करूआं तेस निहारे अतीता मंझ अमेरिका साहीं कई बार एसा धरती पर लिंचिंगा री होल़ी जरूर खेली गई हुणी। अपमान होर भेद-भावा रे बर्तावा जो मिटाणे कठे अगर एसा बीहवीं सदी रे मंझा बिच बी जेबे इतने आन्दोलना री जरूरत ही, होर से बी घोर विरोध होर कटुता के खाली नीं हा, ता तेस बक्ता री अवस्था केहड़ी भयंकर रैहिरी हुणी, एतारा अनुमान आरामा के लगी सकहां। होर एतारी कुछ सूचना ता आर्यां रे आपणे पुराणे ग्रन्थ बी देई सकाहें।
हाँ, ता आर्यां रे एस सारे अभिमाना रा कारण तिन्हारा गोरा रंग होर विजेता हुणा था। भारता मंझ ये रंग या वर्णा रा प्रश्न साढ़े तीन हजार साल पुराणा हा। सामाजिक बाहिष्कारा रे काठे हुणे पर बी रोज के सहवासा के आखिर रक्त सम्मिश्रण हुआ हे। वर्णाश्रम धर्मा रे कट्टर पक्षपाती आजकाले रे मद्रासी ब्राह्मणा मंझ ज्यादातरा रा रंग एहडा हा भई तिन्हौं देखदे हे सप्त सिन्धु रे आर्य कवषऐलूषा साहीं शुद्र बोली के काढ़ही देंदे। आज ता आर्या री केसी बी उपजाति जो लेई लौ, तिन्हारे बौहत सारे माहणुआं मंझ अनार्या रा रंग-रूप जरूर मिल्हणा। सौगी हे अनार्य जातियां मंझ बहुसंख्यक स्त्री-पुरूष एहडे मिल्हणे ज्यों रंग-रूपा मंझ आजकाले रे अच्छे रंग-रूपा वाल़े आर्य-सन्ताना रे समान हे। एस करूआं आजकाले वर्णा (रंगा) री संकरता (सम्मिश्रण) इतनी हुई गईरी भई वर्ण भेदा रा पुराणा कारण एभे हया हे नीं हा। आज पराजित हुणे परा पुराणे विजेता हुणे रा अभियान बी हास्यास्पद हा। इतना हुणे परा बी स्यों भाव अझी तका तेहड़े हे चलिरे।
आर्य-अनार्य रा भेद चलिरा हे था, पीछे ले होर कई हजार जातियां रे स्थापित हुणे परा ता अवस्था होर बुरी हुई गई। केसी बक्त यों अलग-अलग जातियां व्यवसाया रे करूआं बणीरी थी। तेस बक्त कम ते कम आर्यां मंझ पारस्परिक ब्याह होर दूजे सम्बधा हुआएं थे जेता करूआं इन्हां जातियां रा बिलगाव इतनी नीं था, पर आज ता सभी जातियां रा आपणा बिल्कुल स्वतन्त्र संसार हा। तिन्हारा शादी-ब्याह, मरण-जीण आपणी जाति तका हे सीमित रैहां, फेरी दूजी जाति री अपेक्षा आपणी जाति मंझ अपनापन ज्यादा की नी हो? ता बी पैहले जातीयता रा भाव इतना नीं था। पर पिछली शताब्दी रे मुकदे तिन्हें आपणे-आपणे अलग-अलग जातीय संगठन करीके, दूजी जातियां ले अलग रैहणे री गैहरी खाई खोदी दिती। आज एतारे फलस्वरूप सार्वजनिक जीवना मंझ बड़ी घृणित गुटबंदी आई गईरी। प्रान्ता ले लेई के जिलेयां तका मंझ जातियां री दलबन्द देखी जाहीं। जिथी सुणो, तिथी ब्राह्मण पार्टी (इन्हां मंझ बी मालवी, काश्मीरी, मैथिल, कान्यकुब्ज आदि), कायस्थ पार्टी (तिन्हा बिच बी माथुर, श्रीवास्तव बगैरा), राजपूत पार्टी, भूमिहार पार्टी साहीं नावं सुणने मंझ आउंदे हे नीं है , बल्कि जाति रे नावां पर तिन्हौ सफेदा जो स्याह होर स्याह जो सफेद करदे देखया जाहां। सभी गल्ला बिच एक योग्य माहणु प्रोफेसरी या डिप्टी कलेक्टरी नीं पाई सकदा होर तेसले बिल्कुल अयोग्य माहणु एता बिच कामयाब हुई जाहां। वजह ही- अयोग्य माहणु तेसा जाति रा हा जेता मंझ सिफारश करणे वाल़े कठे रसूखदार या उच्चपदस्थ माहणु मौजूद हा। राजकीय नौकरियां हे मंझ नीं, कई जगहा ता शिक्षण-संस्थाना तका मंझ ये भयंकर रोग चली आईरा होर परीक्षक मट्ठे-मट्ठियां जो अच्छी श्रेणी मंझ पास करवाणे मंझ जाति रा ख्याल देखाएं।
जातियां रे साहीं प्रादेशिकता रा भेद बी भारता मंझ कम कौड़ा रूप नीं धारण करी करदा। इथी बी से हे कुत्सित पक्षपात देखया जाहां। केसी जगह एक माहणु पुजी गया, बस योग्य-अयोग्य रा ख्याल नीं करीके आपणे प्रान्तवासियां जो भरने री कोशिश करहां। एक विश्वविद्यालय रे अध्यापका रे बारे मंझ बोल्या जाहां भई स्यों कधी बी दूजे प्रान्तीय जो अच्छे नंबरा के पास नीं करदा। दूजे कठे बोल्या जाहां भई तिने आपणे प्रान्त भाई री नियुक्ति कठे तेसरे नावां ले निबन्ध तका लिखी दितेया। स्यों एहड़ा करने कठे मजबूर की हे? राष्ट्रा रे एहडे दूषित विभाजना करूआं। कौंसिला, डिस्ट्रिक्ट-बोर्डा होर म्युनिसिपैलिटियां रे चुनावा रे बक्त इन्हां जाति, प्रान्ता बगैरा रे भेदा करूआं कितनी गंदगी फैल्हाईं, ये बोलणे री जरूरत नीं ही।
साम्यवादा जो छाड़ी के इन्हां जो दूर करने रा क्या कोई उपाय हा? नीं, क्योंकि आर्थिक लाभा होर प्रभुता री जगहा जो प्राप्त करने री सभी जो चाह ही। एसा चाह री पूर्ती कठे जो बी काम हो, माहणु करने कठे तैयार हुई जाहां। ब्याह बगैरा रे करूआं सम्बन्धा रे घनिष्ठ हुणे ले जाति होर प्रान्ता री दुहाई तेसरे आपणे फायदे मंझ ज्यादा सहायक मालूम हुआईं होर तेते से फायदा लैणा चाहां। ये एहड़ा फायदा हा जेता मंझ बड़े-बड़े सिद्धान्तवादी तका फिसली जाहें।
इन्हां सामाजिक रोगा री दवा बी आसौ साम्यवादा ले हे मिलणी, क्योंकि ये वैयक्तिक आर्थिक लाभा री जड़ा पर हे कुल्हाड़ा मारहां। जातीय बन्धन होर रूढ़ियां रे प्रधान समर्थक कुण हुआएं? स्यों जिन्हां बाले धन हुआं। धना रे करूआं स्यों दूजेयां री सम्पत्ति पर आपणा प्रभाव पाहें। साम्यवाद तेस धना जो हे तिन्हा रे हाथा बिच नीं रैहणे देंदा, फेरी सेठ पूनमचंद होर मँगतू बणिया या महाराजा चौपटनाथ होर जगुआ राजपूता री राय रे प्रभावा री न्यूनाधिकता तेबे हे हुणी जेबे तेता पीछे माहणु री निजी योग्यता हुंघी। ये सब जाणहाएं भई जात-बिरादरी मंझ ज्यादा चलणे रे करूआं विद्या, बुद्धि या सज्जनता तितनी जरूरी नीं ही जितना के धन। जाति पंचा रे हाथा ले धन छीनी लैणे रा मतलब हा, तिन्हारे प्रभावा जो नष्ट करी देणा। तेते बाद फेरी बुद्धि होर विद्या री गल्ल निष्पक्षता के सुणी जाणी होर फेरी छोटी-छोटी जातियां जो तोड़ी के एक विशाल जाति रे बनाणे रा अवसर मिल्हणा। तेबे समान भाव रखणे वाल़े कायस्थ तरूणा होर ब्राह्मण तरूणी रे ब्याह जो कोई नीं रोकी सकघा होर ना असमान भावा वाल़े ब्राह्मण तरूण-तरूणी जो ब्याह करने कठे कोई मजबूर करी सकघा। दरअसल गौरा के देखणे पर पता लगहां भई इन्हां सामाजिक भेद-भावा जो दृढ़ता प्रदान करने वाल़े हे तिन्हारे भीतरा रे आर्थिक स्वार्थ। एकी बारी इन्हा आर्थिक स्वार्था जो हटाई देयो, फेरी एसा सारी विशाल इमारता जो पौंदे देर नीं लगणी। दूजे सभी सुधार-अन्दोलन रोगा री जड़ा को नीं काटी के पत्तेयां जो नोचणे साहीं हे। चिरकाला तक हुंदे रैहणे परा बी तिन्हारा असर तैहा तक नीं पहुँचणा होर ना हे तिन्हां आपणा चिरस्थायी प्रभाव छाड़णा।
साम्यवाद होर धर्म होर ईश्वर
धर्म या मजहबा रा असली रूप क्या हा? माहणु-जाति रे शैशवा री मानसिक दुर्बलता होर तेता ले पैदा मिथ्या-विश्वासा रा समूह हे धर्म हा। अगर एता मंझ होर बी कुछ हा, ता से हा पुरोहिता होर सत्ताधारियां रे धोखे-फरेब, जेताके से आपणी भेड़ां जो आपणे गल्ले ले बाहर नीं जाणे देणा चाहंदे। माहणु रे मानसिक विकासा रे सौगी-सौगी हालांकि कितने हे अंशा मंझ धर्मे बी परिवर्तन कितिरा, कितने हे नावं बी तिने बदलीरे, तेबे बी तेताके तिन्हारा आन्तरिक रूपा बिच परिवर्तन नीं हुईरी। स्यों आज बी तेहड़े हे हजारों मूढ़ विश्वासा रे पोषक होर माहणु री मानसिक दासता रे समर्थक, जेहड़े पाँज हजार साल पैहले थे। सुत्र स्यों हे, सिर्फ भाष्य बधलदे गईरे। स्यों हे भूत-प्रेत, ओझा-गुणी हे जिन्हां जो देखी के शिक्षित-वर्ग नाक-भौं सिकड़हां- कुछ गौड़ा री गल्ल छाड़ी देया, तेहड़े कदरदान शिक्षिता मंझ आजकाले दुर्लभ हे। अगर तुसे मजहबा रे इतिहास, तिन्हारे भूत होर वर्तमान नेतेयां री जीवनियां जो ध्याना के नजदीका ले पढ़ो, ता तुसौ पता लगणा भई मजहब मंझ पैहले नम्बरा पर पक्के धूर्त या पागल हे पौहंची सकीरे। भारता मंझ एहड़े सिद्ध होर पौंहचे हुए महापुरूष बौहत सारे हे होर पैहले बी हुईरे जिन्हारे आचरणा जो भीतरा ले देखणे परा स्यों रसपुटिना रे छोटे-बड़े संस्करण सिद्ध हुणे। एकी पवित्र नगरा मंझ कुछ बक्त पैहले एक परमत्यागी महात्मा रैहाएं थे। तिन्हारे जियुंदे-जियुवे हे लोक तिन्हौ सिद्ध, जीवन्मुक्त मनी के पूजा करहाएं थे, पीछे री ता गल्ल हे क्या? स्थानीय जानकार लोक तिन्हारी रखैला रे दो मठेयौं बखौ उंगली चकी के बोल्हाएं थे- महात्मे रा कितना हे चढावा आपणी इन्हां सन्ताना जो अमीर बनाणे मंझ लगेया। एक दूजे पवित्र नगरा रे एक सिद्ध महात्मा थे जिन्हा जो मरी गईरे बौहत बक्त नीं गुजरिरा होर तिन्हाजो तिन्हारे भक्त भगवाना रा अवतार समझाहें थे। बाहरले कितने हे अन्धे भक्त तिन्हारे विचित्र रैहण-सैहण, वेश-भूषा, आकार-प्रकारा ले प्रभावित हुई के गदगद हुई जाहें थे। पर एस सिद्धा रा भीतरी जीवन केहड़ा था? पैहले से जेस जगहा रैहाएं थे, तिथी एक नौकराणी रे सौगी तेसरे अनुचित सम्बन्ध देखी के लोक मार-पीटा कठे उतारू हुई गए। जेतारे मारे से भग्गी के आपणे हे साहीं एकी दूजे सिद्ध पुरूषा रे स्थाना जो चली गया। व्यक्तिगत अनुभवा के एहड़े पँजाह उदाहरण गिणाए जाई सकहाएं। इन्हां उदाहरणा जो देखी के माहणु री बुद्धि पर तरस आवहां, तिन्हा धूर्ता कठे नी, तिन्हारा ता मत हे हा-रोटी खावा घी शक्करा के, दुनिया ठगा मक्करा के। अगर केसी सिद्धा मंझ एसा धोखा-धड़ी ले कुछ ज्यादा हा, ता से हा हेप्नाटिज्म या त्राटका री कुछ मानसिक शक्तियां, जिन्हा री ताकता पर स्यों होर तिन्हारे अनुयायी हजारों झूठा रा प्रचार करहाएं होर भरसक ये बी कोशीश करहाएं भई विद्वान तिन्हारा वैज्ञानिक विश्लेषण नीं करी सको।
धर्म होर ईश्वरा रा अटूट सम्बन्ध हा। अच्छा ता ईश्वर क्या हा? ये बी माहणु रे शैशव-काला रे भयभीत अंतःकरणा री सृष्टि रा एक विकसित रूप हा। माहणु रा वन्य अवस्था मंझ- जेबे बुद्धि रा विकास साधारण बच्चे रे हे साहीं था-निहारे, अपरिचित जगह होर चीजा ले डरहां था। बिजली, आगा साहीं शक्तिशाली पदार्थ ता तेसरे कठे होर बी भया रा कारण हुआएं थे होर तिने तिन्हां मंझ देवतेयां री कल्पना किती। तेसरे आपणे बक्ता रे बली होर वीर पुरूष बी मरणे बाद सुले-सुले एसा देवमण्डली मंझ शामिल हुई गए। हरेक जाति मंझ एहड़े बौहत सारे देव-समुदाय थे जिन्हारे प्रभाव होर बडप्पना कठे तिन्हांरी आपसी प्रतिद्वन्दिता रैहाईं थी। आपणी जाति रे भीतरा रे देवतेयां मंझ बी बड़े-छोटे रा ख्याल कितेया जाहां था। बादा बिच माहणु-समाजा रे सामन्ता होर महासामन्ता जो देखी के कुण बड़ा, कुण बड़ा री तलाशे संसार-निर्माता एक ईश्वरा री सृष्टि किती, होर मानसिक विकासा रे सौगी-सौगी तेसजो कितने हे होर बी उत्तम गुण प्रदान किते गए। ये हुई ईश्वरा री उत्पत्ति। वस्तुतः ईश्वरा माहणु रा मानसपुत्र हा।
आसे एताले इन्कार नीं करदे भई ईश्वरा रा अस्तित्व-चाहे कल्पना रे संसारा मंझ हो, तेबे बी अतीत काला मंझ एस विचारा के कितने हे लोका जो संतोष होर सहारा मिल्या हुंघा। पर सौगी हे एतारे करूआं माहणु जो लाखों यातनाएं बी सैहणी पई। एक ईश्वरा जो मनणे वाल़े धर्मा री आपेक्षा बौहत देवते मनणे वाल़े धर्म हजार गुणा उदार रैहीरे। तिन्हारे ईश्वरा री संख्या अपरिमित हुणे ले तिथी होरियां रा समावेश आसानी के हुई सकहां था। पर एक ईश्वरवादी एहड़ा करीके आपणे कल्हे ईश्वरा री हस्ती जो खतरे मंझ नीं पाई सकदे। तुसे दुनिया रे एक ईश्वरवादी धर्मा रे पिछले दो हजार साला रे इतिहासा जो चकी के देखी लौ, पता लगणा भई स्यों सभ्यता, कला, विद्या, विचार-स्वातन्त्रय होर माहणु रे प्राणा रे बी सभी थे बड़े शत्रु थे। तिन्हें हजारों बडे-बडे पुस्तकालय होर करोड़ों कताबा आगा मंझ सटी दिती। सौन्दर्य होर कोमल भावा रे साकार रूप, कितने हे कलाकारा री सुन्दर मुर्तियां, चित्र होर इमारता नष्ट करी दिती। हजारों विद्या व्यसनियों होर विद्वाना रे जीवना जो खत्म करीके स्वतन्त्र विचारा रा गला घोटेया। माहणु री प्रगति जो कम ते कम एक हजार साला कठे तिन्हें ना केवल रोकी हे रखेया, बल्कि पैहले ले प्राप्त सफलता रे प्रभावा जो बी बौहत-कुछ नष्ट करी दितेया। होर करोड़ों निर्दोष मर्द-जनानेयां होर बच्चेयां री हत्या? ये ता तिन्हारे आपणे धर्म-प्रचारा रा एक प्रधान साधन थी। स्यों जेस-जेस देशा मंझ गए, आग होर तलवारा लेई के गए। पैहले ता इन्हारे फन्दे मंझ फसीरी जातियां अफीमा रे नशे मंझ थी, तिन्हौ एतारा ख्याल हे नी हुई करदा था भई तिन्हारी संस्कृति, चिरसन्चित जातीय निधी नष्ट किती जाई करहाईं। बादा बिच जेबे नशा टुटेया, ता देखेया भई पूर्वजा री सभी उत्तम कृतियां नष्ट करी दिती गईरी। जर्मन जाति मंझ ईसाइयां रा एक ईश्वरवाद तलवारा री ताकत पर हे फैलाया गया। तेस बक्त पुराणे धर्मा रे सौगी-सौगी जर्मन जाति रा व्यक्तित्व भी मिटाई देणा जरूरी समझेया गया। तिन्हारी लिपि जो धता दसया गया। तिन्हारा साहित्य तोपी-तोपी के फुकेया गया। तिन्हारे मन्दर हे बर्बाद नीं किते गए, बल्कि ये सोचुआं भई किथकी यों लोक आपणे ओक-वृक्षा री पूजा करीके धर्म-भ्रष्ट नीं हुई जाऔ, लाखों विशाल ओक-वृक्ष काटी दिते गए। एक ईश्वरवादी रे एहड़े कारनामे एशिया मंझ हे नीं, अमेरिका री माया होर अजेतक-साहीं सभ्यता रे संहारा रे करूआं हुए। आपणे नावां पर सैंकड़ों साला तक एस तरहा रे भयंकर अत्याचार करदे, खूना री नदी बहांदे देखी के बी, अगर ईश्वर रोकणे कठे नीं आया, ता एताले बधी के तेसरे नीं हुणे रा होर दूजा प्रमाण क्या चहिए?
बोल्या जाई सकहां, एभे धर्म होर ईश्वर इतनी खतरनाक चीज नीं हे, पर क्या एहड़ी हे गल्ल ही? क्या धर्मा रे विषा वाल़े दाँद तोड़ी दितीरे? कम-ते-कम भारत ता एस बक्त बी एतारे मारे परेशान हा। बराबर धर्मान्ध लोक खून-खराबा करदे जाई करहाएं। तुसा बोल्णा-ये धर्मा रा दोष नीं, ये ता प्रभुता होर धना कठे हुई करहां। ये बिल्कुल ठीक हा। एक ईश्वरवादियां रे बड़े-बड़े युद्धा रे भीतर बी प्रभुता होर धना रा लोभ हे काम करी करहां था। प्रभुता होर धना रे लोभा री वस्तुतः स्यों उपज हए बी हे, तेबे बी साधारण जनता रे साम्हणे तिन्हौ बड़े सौम्य होर मोहक रूपा मंझ रखया जाहां। चाहे तुसे कितना हे परिष्कृत करना चाहो, शुद्धा-ले-शुद्ध बणाई देयो, धर्म पुराणे रा पूजक होर भविष्य री प्रगति रा विरोधी रैहणा हे। से ता श्रद्धा होर भक्ति रे नावां पर आसारे गल़े मंझ मुर्दा बाँनहणे री हे कोशिश करघा। ये संसार जे प्रतिक्षण परिवर्तित हुई करहां, होर परिवर्तन बी एहड़ा भई एतारा अतीत हमेशा अतीत हे रैहणा, वर्तमान रूप नीं धारण करणा। एहड़ी स्थिती हुणे परा स्थिरतावादी धर्म आसारे कधी सहायक नीं हुई सकदे। संसारा री गति रे सौगी आसौ बी सरपट दौड़ना चहिए, पर धर्म आसौ खींची के पीछे रखणा चाहें। क्या आसारे पिछड़ने ले संसार-चक्र आसारी प्रतिक्षा कठे खड़ा हुई जांघा? सामाजिक विषमता रा नाश, निकम्मी होर अनपेक्षित सन्ताना रा निरोध, आर्थिक समस्या रे नौवें हल-सभी गल्ला मंझ ये मजहब प्राणपना ले आसारा विरोध करहाएं, आसारी समस्या जो होर ज्यादा उलझाणा होर प्रगति-विरोधियां रा साथ देणा हे एक मात्र इन्हारा कर्तव्य रैही गईरा।
तुसा बोल्णा-तुसे पिछली सदी री गल्ल करी करहाएं, जेबे बड़े-बड़े वैज्ञानिक अक्सर अधार्मिक हुआएँ थे, अब ता कितने हे चोटी रे बड़े वैज्ञानिक सीधे रस्ते परा आई करहाएं, होर ईश्वर होर धर्मा रे पोषक बणी करहाएं। हाँ, अगर भीतरी रहस्य नीं जाणी के नावां पर जांघे, ता तुसा जो जरूर एहड़ा भ्रम हुणा। पर विज्ञान बचारे रा एता बिच कोई दोष नीं हा। आजकले ता सारा संसार, बिना अपवादा के, दो पक्षा मंझ बँड़ही गईरा- एकी बखौ स्यों लोक हे ज्यों माहणुआं रे आर्थिक स्वार्था जो अक्षुण्ण रखणा चाहें, यानि ज्यों जाणे या अनजाणे, प्रकट या अप्रकट रूपा के पूँजीवादा रे पोषक हे, दूजी बखौ स्यों हे ज्यों समाजा रा कल्याण चाहें होर इधी कठे साम्यवादा रा समर्थन करहाएं। पिछली सदी मंझ बी एहड़े वैज्ञानिक रैहे हुंघे, जिन्हारा माहणु रे आर्थिक स्वार्था जो अक्षुण्ण रखणा अभीष्ट था, पर तेबे बी स्यों धर्मा रे विरूद्ध क्या आपणी सपष्ट सहमति देई सकदे? कारण? तेस बक्त साम्यवाद हवा री गल्ल थी। तेतारी सफलता रा तिन्हौ विश्वास नीं था। पर, अब साम्यवाद जमीना री ठोस चीज ही। अब से विकृत मस्तिष्का री बलबलाहट नीं रैही गया। इधी कठे पूँजीवादी जिथी साम्यवादा रे खिलाफ षड्यन्त्र रची करहाएं, तिथी हे भय होर प्रलोभना के कितने हे ढिलमिल यकीन वैज्ञानिका ले बी आपणे पक्षा मंझ सम्मति लैहाएं। लेखका जो इंग्लैंडा मंझ रैंहदे हुए एक प्रमाणिक पुरूषे नोबुल-पुरूस्कार प्राप्त एकी वैज्ञानिका रे बारे बिच दसया था- पता हा, फलाणा सज्जन धर्म होर मिथ्या-विश्वासा रे प्रचार मंझ इतनी सरगर्मी की दसहां? इन्हारा वैज्ञानिक दमाग खत्म हुई चुकीरा। जेस विश्वविद्यालय मंझ यों अध्यापक हे, से एकी प्रकारा के फलाणे करोड़पति रे परिवारा री निजी चीज-जे ही होर ये वैज्ञानिक महाशय केसी रूपा मंझ कृतज्ञता दसणा आपणा फर्ज समझाएं। आसे नीं बोल्दे भई धर्मा रा पक्ष लैणे वाल़े सभ वैज्ञानिक एसा श्रेणी रे हे। कितने ता आपु पूँजीपति हे, इधी कठे पूँजीवादा री रक्षा रे महान अस्त्र-धर्मा रा पक्ष ग्रहण करना चाहें। कितने हे, श्रमजीवियां रे जीवना री कठिनाइयां जो जाणहाएं होर तेसा श्रेणी मंझ सम्मलित हुणे ले डरहाएं। होर, कुछ तेसा उम्रा जो पौहंची गईरे जेबे अतीता री अत्यन्त आसक्ति मना जो नौवें विचारा जो ग्रहण करने मंझ असमर्थ करी देहाईं। माहणु री आयु रे पैहले चाल़ी-पंताल़ी साल हे एहडे हे, जेबे से स्वच्छतापूर्वक चिन्तन होर विचार-विनिमय करी सकहां, पीछे गोधूली रे धुँधलेपना मंझ तेजो अतीता री स्मृति रे सहारे पुराणी गल्ला हे सुझाईं। संसारा मंझ एस नियमा रे अपवाद बौहत हे कम हुआएं।
इहां सारी दुनिया रे विचार पक्ष होर विपक्षा मंझ बँडही रे, एहड़ी अवस्था मंझ केसी री सम्मति जो पकड़ी के चलणा ठीक नीं हा। तुसौ आपणी बुद्धि स्वतन्त्र ऱखणी पौणी होर तेता जो अन्तिम निर्णायक मनणा पौणा।
ईश्वरा री उत्पत्ति रे बारे बिच आसे बोली बैठे। इथी तेसरे अस्तित्वा रे बारे बिच आसे नीरस बैहस (इधी कठे देखा,’वैज्ञानिक भौतिकवाद’) करना नीं चाहंदे, पर इतना जरूर बोल्णा चाहें भई ईश्वरा रा मनणा एसा गल्ला जो मनणे कठे प्रेरित करहां भई संसारा रे मालिक तेस ईश्वरा साहीं, इथी बी एक राजा या कर्ता-धर्ता हुणा चहिए। सहस्त्राब्दियां तका राजा लोक ईश्वरा रे प्रतिनिधि रे रूपा मंझ शासन करदे रैहे। साम्यवाद सारी शक्तियां रा जनता बिच तिहाएं समावेश चाहां जिहां से संसारा री सारी शक्तियां जो केसी ख्याली ईश्वरा रे हाथा मंझ मनी के, प्रकृति मंझ समाविष्ट समझां। ईश्वरा रा विचार आसारे सभी कामा मंझ कठिनाई पैदा करहां। ईश्वरा रा ख्याल हे ये सिखाहां भई आसे आपणे मालिक नीं हे। कितने हे धर्म इधी कठे सन्तान-निरोधा रे विरोधी हे भई माहणु जो ईश्वरा रे कामा मंझ दखल देणे रा अधिकार नीं हा। पिचले साल आसे कश्मीर-राज्य रे बाल्तिस्तान प्रदेशा मंझ थे। ये तृण-वनस्पति-शुन्य पहाड़ी जगहा ही। तिथी इच्छानुसार पाणी री नैहरा होर खेत बनाणे री सुभीता इतनी नीं ही। आसे लोक जांदे बक्त रस्ते मंझ एकी ग्राँवां बिच ठैहरे थे। ग्राँवां वाल़ेयां री गरीबी वर्णनातीत थी। पूछणे पर पता लगेया, आधी सदी पैहले एस ग्राँवां मंझ सिर्फ पाँज घर थे, होर एभे बीह हे। लोक कुछ शताब्दियां पैहले बौद्ध थे होर आपणे धर्म भाई तिब्बतवासियां साहीं बहुपतित्व रे मनणे वाल़े थे। तिब्बता मंझ सभी भाईयां री एक लाड़ी रे हुणे रा कारण था जनवृद्धि री भीषणता जो रोकणा, पर जेबे यों लोक मुसलमाण हुई गए, तेबे खुदा रे भरोसे परा लगे बच्चे पैदा करदे। आसारे जर्मन मित्रे तिन्हाले पूछेया-जेबे तुसारे इथी खेता री एडी कठिनाई ही होर जीवन निर्वाह बौहत हे मुश्किल हा, ता इतने बच्चे पैदा की करहाएं? उत्तर मिलेया- जे बच्चेयां जो देहां (यानि खुदा) क्या से तिन्हौ नीं संभाल़गा? आसारे मित्रे बोलेया-हाँ, से नीं सँभाल़गा ता हैजा-चेचक, भूख-अकाल ता जरूर सँभाल़ी लैंघे। ल्हासा मंझ एकी मुसलमान सज्जने आपणा विश्वास इहां प्रकट कितेया-आसारे धर्मा रे अनुसार अगर माँव-बाबा जो भतेरी सन्ताना हुई जाओ, ता तिन्हां कठे हज करना जरूरी नीं रैही जांदा। हिन्दू बी ता “अपुत्रस्य गतिनींस्ति” बोल्हाएं। इहां तुसे जितना हे सोचघे, पता लगणा, ईश्वरा रा ख्याल आसारी सभी तरहा री प्रगतियां रा बाधक हा। मानसिक दासता री ये सभी थे जबर्दस्त बेड़ी ही। शोषका रा ये जबर्दस्त अस्त्र हा, क्योंकि तेतारे सहारे स्यों बोल्हाएं-“अमीर-गरीब तेसरे बणाईरे हे, से जे करहां, सब ठीक करहां, तेसरी मर्जी पर आपु जो छाड़ी देया, क्या पता इन्हा चन्द साला रे कष्टा कठे मरणे ले बाद तिने क्या-क्या नन्द तुसा कठे तैयार करी के रखीरी? से यंत्रचालका साहीं सभी प्राणियां जो चलाई करहां, माहणु तेसरे हाथा री कठपुतली ही। यों ख्याल क्या आसौ आपणे भविष्य रा मालिक बणाई देंघे?
तुसे ये तर्क नीं बघाड़ी सकदे- अगर ईश्वर नीं हा ता संसारा जो बणाहां कुण हा? क्या हर एकी चीजा कठे बनाणे वाल़ा बौहत जरूरी हा? अगर हया, ता ईश्वरा जो बनाणे वाल़ा कुण हा? अगर से स्वयंभू हा, ता से हे गल्ल प्रकृति रे बारे बिच बी की नीं मनी लैंदे?
तुसाजो ये ध्यान रखणा चहिए भई ईश्वर पूँजीवादियां रे बड़े कामा री चीज ही। अगर ईश्वरा रा ख्याल पैहले ले नीं हुंदा ता आज स्यों तेतारा आविष्कार करदे। ये हे वजह ही जे थकीरी दमागा वाल़े, शोषका रे पोषक कितने हे वैज्ञानिक धर्म होर ईश्वरा रे समर्थक देखे जाहें।
अगर भारता री दृष्टि ले देखया जाए, ता जेबे तका धर्मा हा, तेबे तका तेजो शान्ति होर स्वतन्त्रता रा सुपणा छाड़ी देणा चहिए।
साम्यवाद होर अच्छी सन्तान
आसारी सभ्य सरकारा आपणे देशवासियां रे स्वास्थय पर ध्यान देहाईं। तिन्हें एता कठे हजारों डाक्टर नियुक्त कितीरे। एस ख्याला ले शैहरा मंझ म्युनिसिपैलिटियां हीं ज्यों सडक-सफाई, रोशनी, पाणी रा प्रबंध करहाईं, पर से ता अधूरा साम्यवाद हा। ठेकेदारा जो ठेका देणे रा ये काम बी नफे रा सौदा हुई जाहां। ज्यों लोक बोल्हाएं, साम्यवाद कामा जो सुचारू रूपा के होर सुव्यवस्थित तरीके के नीं करी सकदा, तिन्हां कठे संसारा री लन्दन, पेरिसा साहीं बड़ी-बड़ी म्युनिसिपैलिटियां उत्तर ही। हालांकि इन्हां बिच सड़का, पाणी, रोशनी साहीं कुछ चीज़ा रा हे अधूरे तौरा पर राष्ट्रीयकरण कितेया गईरा। चिकित्सा, सफाई बगैरा पर जे इतना खर्च कितेया जाहां, से इधी कठे भई माहणु स्वस्थ रैहे, भयंकर बीमारियां ले छूटे। पर सभी थे भयंकर बीमारियां ता पैतृक हुआईं जेतारे नाशा कठे बेहतर सन्ताना रा उत्पादन हे उपाय हुई सकहां। तुसे कोढ़ा साहीं घृणित रोगा जो लेई लौ, जे एक हे माहणु कठे भयंकर नीं हुंदे, बल्कि कई अगली पीढ़ियां तका बधदे हे जाहें। कुष्ठ कितना भयंकर रोग हा? से माहणु जो लोका री नजरा ले घृणित बणाई के तेजो घोलुआं-धोलुआं मारहां। ये हे नीं, बल्कि शुरूआती अवस्था मंझ से आपणे आस-पासा रे लोका मंझ कुष्ठा रे लाखों कीटाणुआं जो बाँडणे रा काम करहां होर कईयां जो आपणे हे साहीं बनाणे वाल़ा हुआं। होर एहड़े कोढ़ी री जे सन्ताना हुआईं, स्यों ता निश्चित हे कोढ़ी हुआईं। अगर केसी कारणा ले दूजी पीढ़ी बिच असर नीं सुझो, ता तरीजी पीढ़ी मंझा जरूर आवहां। अगर तुसे कुष्ठ सम्बन्धी कताबा जो देखगे ता तुसौ पता लगणा भई दुनिया मंझ ये रोग खत्म हुणे री बजाय बधदा लगीरा। भरतपुरा रे बाँकुड़ा जिल्हे साहीं जगहा मंझ ता एतारी वृद्धि बड़ी जोरा के हुई। चम्पारना रे एकी ग्राँवां मंझ पैहले चार-छैह कोढ़ी हुए, पीछे ले बधदे-बधदे सारा ग्राँव कोढ़ियां रा हुई गया।
कोढ़ा जो रोकणे रा तरीका आज कितने हे साला ले बड़े-बड़े डाक्टर सोची करहाएं। अगर माहणु जाति जो एस रागसा रे पंजे ले छुड़ाणे रा उपाय सुझहां बी हा, ता से तेतारा प्रयोग नीं करी सकदी, क्योंकि पूँजीवाद नावां कठे ता आपु जो अराजकता होर अव्यवस्था रा विरोधी प्रकट करहां, पर व्यक्तिगत सम्पत्ति होर एतारे दुरूपयोगा रा खुला अधिकार देई के, वस्तुतः से एतारा पोषण करहां। कम ते कम राष्ट्रा री नजरा ले ता कोढ़ लाईलाज बीमारी नीं ही। अगर कोढ़ियां री बस्ती अलग बसाई दिती जाए होर तिन्हां ले सन्तान पैदा करने री स्वतन्त्रता छीनी लिती जाए, ता कोढ़ ना आसपासा रे लोका मंझ फैल्हणा, होर ना अगली पीढ़ियां तक जाई सकहां। पर एस कामा जो साम्यवाद हे कड़ाई के करी सकहां, ये आसा एभे दसणा। कारण तोपणे पर पता लगहां भई पैतृक हुणे ले बाद कोढ़ा रा सभी थे बडा कारण वेश्यालय हे। वेश्यालय क्या कायम रैही सकहाएं, अगर धना रा स्वामित्व माहणु ले छीनी लितेया जाए? एक माहणु वेश्या बाले गुप्त या प्रकट रीति के तेबे हे जाहां, जेबे तेसा जो देणे कठे तेस बाले भतेरा धन हुआं। वेश्या जो बी वेश्या-वृति करने कठे कामुकता ले ज्यादा धना रा लोभ प्रेरक हुआं, बल्कि तेसौ इन्हां कोढ़ होर आतशका साहीं जुगुप्सित रोगा री जननी बनाणे बिच ये हे धना रा लोभ कारण हा। साम्यवादा मंझ न व्यक्तिगत सम्पत्ति रा स्थान हा, ना तेतारे दुरूपयोगा रा हे। इहां से वेश्यालयां रा परम शत्रु हा होर इहां से तिन्हां ले फैल्हदी कोढ़ा साहीं बीमारियां जो रोकणे रा सर्वोतम उपाय हा।
हालांकि धर्मा वाल़े वेश्यालयां रा विरोध करहाएं, तेबे बी तिन्हारा विरोध लीपापोती मात्र ही। इन्हां मंझा ले कितने हे पूजा-स्थाना मंझ वेश्यां जो रखणा जरूरी समझाएं होर कितनेयां रे स्वर्ग वेश्या रे बिना सजाए नीं जाई सकदे। हूरा-अप्सरा-देवदासियां री जरूरत मनणे वाल़े भला केभे वेश्यां रा उन्मूलन करी सकाहें?
पूँजीवाद होर व्यक्तिगत सम्पत्ति राष्ट्रा कठे बौहत ज्यादा हानिकर होर घृणित एस वेश्यावृति रे व्यवसाय रा कितना पोषण करहाएं, एता कठे जरा तुसे आपणे देशा रे राजा-महाराजेयां होर धनिका बखौ नजर दौड़ावा। तिन्हा कठे ता खाणे-पीणे री चीजा साहीं वेश्या बी जीवना री एक जरूरी वस्तु हुई गईरी। तिन्हारे इथी दरबारी वेश्या जो नियमा पर वेतन मिल्हां। चाहे दूजे राज-कर्मचारियां रा वेतन छैह-छैह महीनेयां रा बाकी पईरा रौहो, पर दरबारा री वेश्या रे वेतना मंझ तितनी सुस्ती नीं कीती जाई सकदी। दरबारा ले मिलणे वाल़ा वेतन एक तरहा के तेसा वेश्या कठी नीं हा, बल्कि सीधा कुष्ठ, आशतका रे प्रचारा रे कठे मिली करहां।
ये सपष्ट हा भई कुष्ठा री ये भयंकर समस्या जेता के सारी माहणु जाति विकृत हुंदी जाई करहाईं, साम्यवादा द्वारा हे हल हुई सकाहीं। धना रे उपयोग होर सन्ताना री अबोध उत्पत्ति-इन्हां दो गल्ला मंझ माहणुआं जो बेरोक-टोक स्वतन्त्रता देणा हे जाति मंझ चिररोग, राजरोग होर घृणित रोगा रे बधाणे रा कारण हा। आजकाले अगर कोई पूँजीवादी सरकार इन्हां रोगा ले रोकथामा कठे कानून बी बनाहीं, ता तेतारा प्रयोग गरीबा पर हे हुई सकहां। धनी आपणे धना रे बला पर काफी समया तक बचीरे रैही सकाहें या कानूना रे पंजे मंझ कधी आउंदे हे नीं हे। कुष्ठा री पैहली अवस्था हे भयंकर कीटाणुआं जो फैलाहीं, पर तेस बक्त रोगा रे अस्पष्ट होर ज्यादा वीभत्स नीं हुणे ले धनिक कोढ़ी आपणे जो कानूना रे चंगुला ले बचाई सकाहें। होर आखरी बक्ता तक स्यों बेरोक-टोक सभा-समाजा सभी जगहा घूमदे देखे जाहें। आसे एहड़ा नीं बोलदे भई एहड़े माहणु जो घृणा रा पात्र बणाया जाए, से आसारी सहानुभूति रा सभी थे ज्यादा पात्र हे नीं हा, बल्कि तेसरी यंत्रणा होर निराशापूर्ण जीवना जो देखी के, तेजो जिथी तका हुई सको, सुखी रखणा बी समाजा रा कर्तव्य हा, पर तेजो आपणे साहीं हजारों पैदा करने रा मौका देई के ता आसे तेसरे सौगी सच्ची सहानुभूति नीं प्रदर्शित करी सकदे।
कुष्ठा रे अलावा संसारा मंझ होर बी कितने हे रोग हे, जिन्हा जो दूर करने रा उपाय चाहे आसारे हाथा मंझ अधूरा हे आईरा हो, पर संतति-निरोध होर पृथक्करणा के आसे तेसरे प्रचारा जो बिल्कुल रोकी सकाहें। यक्ष्मा या तपेदिका रे रोगा जो हे लेई लौ, जे घरा मंझा एकी जो हुणे परा सारा घर साफ करदा देखया गईरा, से बी संसर्ग होर सन्ताना के फैलहां। वर्तमान प्रणाली मंझ यह सब जाणदे, देखदे हुए बी आसे कुछ नीं करी सकदे, क्योंकि आसारे कठे व्यक्तिगत स्वतन्त्रता हर हालता मंझ पवित्र चीज ही। चाहे एकी घरा मंझ आग लगणे ले सारा ग्राँवं साफ़ हुई जाओ, पर तेबे बी आसे आपणे पड़ोसी जो घर फूकुआं होली खेलणे ले नीं बाज रखी सकदे।
शारीरिक विकारा रे अलावा मानसिक विकारा रे सम्बधा मंझ डाक्टरा री राय ही भई यों रोग ज्यादातर पिता-माता ले आवहाएं। अगर आर्थिक विषमता होर पैतृक रोगा रे प्रभावा जो हटाई दितेया जाए, ता आसारे कैदखाने खाली हुई जाणे। अपराधियां मंझ 90 प्रतिशत आर्थिक मजबूरी के चोरी या मारपीट करहाएं होर बाकी 10 प्रतिशता मंझ दीमागी कमजोरी या क्षणिक पागलपना रे करूआं-ज्यों दोन्हों हे मौरूसी चीजा ही-अपराध करहाएं। आजकाले इंग्लैंडा साहीं कुछ सरकारा एहड़े माहणुआं रे कठे सन्तति-निरोधा रा कानून बनाणा चाही करहाईं, पर क्या तुसे आशा रखी सकाहें भई अमीर लोका पर एतारा प्रयोग ठीक हुई सकघा? मानसिक रोगा ले ज्यादा ग्रस्त ता ज्यादातर ये हे समुदाय देखेया जाहां।
पशुआं री बेहतर सन्तान पैदा करने कठे पिछली एक शताब्दी मंझ बौहत प्रयत्न किते गए। स्वस्थ, बलिष्ठ जोड़ेयां रे चुनावा के वैज्ञानिक लोक अच्छी जाति री गाईयां, घोड़े होर दूजे जानवरा जो पैदा करने मंझ सफल हुईरे। तिन्हारा ये प्रयोग ता एहड़ी अवस्था जो पूजी गईरा भई स्यों पैदा हुणे वाले बाछु रे रंगा बगैरा रे बारे मंझ पैहले हे दृढ़ता के दसी सकहाएं। पर एसा हे पिछली शताब्दी मंझ माहणु जाति री क्या दशा हुई? तेसरी शारीरिक, मानसिक अवस्था ध्याड़ पर ध्याड़ बिगड़दी हे जाई करहाईं, ये गल्ल साफ हुई जाणी, अगर तुसे स्वास्थय होर अपराध सम्बन्धी रिपोर्टा जो पढो।
पर एतारे सम्बन्धा मंझ कुछ थोहड़े जे हे चिकित्सालय होर कैदखानेयां री संख्या कुछ होर बधाई देणे रे अलावा तिन्हें क्या कितेया? इन्हा के रोगा रा असली कारण थोड़े दूर हुई सकदा? माहणु रे कठे सभी ले जरूरी हा बेहतर सन्ताना रा पैदा करणा होर एतारे बाजही रूकावटा रा प्रयोग करना। पर आजा के समाजा रे नेता पूँजीवादी होर तिन्हा रे क्रीत दास होर धर्मा रे ठेकेदार प्रयोग ता क्या, कधी इन्हां परा स्वतन्त्रापूर्वक विचार बी करना देंघे? स्यों ता एताजो ये हे बोली के टाल़ी देणा चांहघे-ये सब ईश्वरा रा काम हा। जनाने-मर्धा रा सम्बन्ध धर्मा रा एक अंग हा, एता बिच केसी जो दखल देणे रा हक नीं हा। माहणु पशु नीं हा जे तेजो सन्तान-उत्पादना रे प्रयोगा रा विषय बणाया जाए। जनाने-मर्धा रे एस कोमल सम्बन्धा जो इहां नांगा करी देणे ते लज्जा होर शरमा री जगहा किथी रैही जाणी? इन्हां हे शब्दा तका स्यों चुप रैहणे वाल़े नीं हे, स्यों ता एतारे विरोधा मंझ आपणी सारी ताकत लगाई देणे वाल़े हे। पर तिन्हारे एस अन्धे बर्तावा के क्या परिस्थिति री भयंकरता कुछ कम हुई जांघी? भयंकरता ता ध्याड़ पर ध्याड़ बधदी हे जाई करहाईं होर तेबे तका बधदी जाणी जेबे तका जे तेसारे प्रतिकारा कठे माहणु-समाज आपु कमर कसुआं तैयार नीं हुई जांघा, धोरे के समझी नीं लैंघा भई जनाने-मर्धा रे संयोगा मंझ दो गल्ला ही: पैहली कामा री तृप्ति, दूजी सन्ताना री उत्पत्ति। पैहली गल्ला जो तुसे खुशी के निजी काम बणाई लौ, पर दूजी गल्ल सारे माहणु-समाज-मौजूद होर आउणे वाल़े दोन्हों-ले सम्बन्ध रखाहीं, एता जो निजी काम नीं बणाया जाई सकदा तिहां हे जिहां चोरी होर मार-पीटा जो निजी काम नीं बणाया जाई सकदा। होर आजकाले विज्ञाने ता एहड़े उपाय दसी दितीरे जेता के इन्द्रिय-तृप्ति री योग्यता जो रखदे हुए सन्तान-उत्पादना री योग्यता दूर किती जाई सकहाईं। शरीर होर मना ले निर्बलतायुक्त सन्तान हे पैदा करने वाल़े माहणु सन्तान-उत्पत्ति कठे जिद करने रा क्या अधिकार रखहाएं? होर एहड़ी जिदा जो समाज की मनी लौ? अगर एसा जिदा रे कारणा पर बी तुसे विचार करो, ता तेतारे पीछे माता-पिता रा मतलब हा-बीमारी होर बुढ़ापे कठे सहारा तोपणा होर आपणी सम्पत्ति रा उत्तराधिकारी छाड़णा। साम्यवादा मंझ बुढ़ापे होर बीमारी मंझ भरण-पोषणा री जिम्मेवारी राष्ट्र लैहां होर व्यक्तिगत सम्पत्ति रा तिथी स्थान हे नीं हा, इधी कठे तिथी सन्तान-उत्पत्ति रे दुराग्रहा रे यों दो प्रधान कारण असम्भव हे।
साम्यवाद होर स्त्रियां री परतन्त्रता
इहां ता ज्यादातर पुरूष बी प्राचीन काला ले अझी तका पराधीनता रा हे जीवन बितांदे आईरे, पर स्त्रियां री अवस्था ता एस विषय मंझ होर बी बुरी रैहीरी। “ढोल गँवार शुद्र पशु नारी। ये सब ताड़न के अधिकारी”-एक सर्वमान्य कहावत बणी गईरी। “स्त्री स्वतन्त्रता रे लायक नीं ही” (पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने। पुत्रो रक्षति वार्धक्ये न स्त्री स्वातन्त्रमर्हति) एता के ता बुझां तेसाजो दासता रा पट्टा हे मिल्ही गईरा। यूरोपा रे ईसाई पुरोहित कुछ शताब्दियां पैहले तका, “स्त्री मंझ आत्मा नीं ही”, एसा गल्ला पर गंभीरतापूर्वक व्याख्यान देहाएं थे। हिन्दुएं बी स्त्री पति री अर्धांगिनी मनीरी होर पति रे मरणे पर तेसरा आधा अंग पत्नी बी मरी जाहीं, एता जो साबित करने कठे अझी पिछली शताब्दी तका हर साल भारता मंझ हजारों विध्वा स्त्रियां पति री लाह्शा रे सौगी फूकी दिती जाहीं थी। पर एस अर्धान्गा रे नियमा जो पति कठे कधी स्वीकार नीं कितेया गया। असलियता मंझ सभ देशा मंझ पुरूषा कठे स्त्रियां रे अलग कानून होर व्यवस्था रैहीरी। हिन्दुआं रे पतिव्रत धर्मा रा गल़ा फाड़ी-फाडीके, मौके-बे-मौके उपदेश, ढोंग होर वंचना री पराकाष्ठा रा बडा उदाहरण हा।
हजारां साला ले स्त्रियां रे खिलाफ पक्षपाता रा भारी वायु-मण्डल तैयार कितेया गईरा। धर्म-आचार-समाज सम्बन्धी गल्ला मंझ तिन्हां कठे पुरूषा ले बिल्कुल हे अलग कसौटी बणाई गईरी। ठीक नीं सोची सकणे होर मतिभ्रम पैदा करने कठे लड़कपना ले कान भरी-भरी के तेसा बिच सभी थे ज्यादा धार्मिक कट्टरता पैदा किती गईरी, होर अझी तका, होर केसी-केसी मुल्का मंझ ता आजा तका तिन्हां जो विद्या ले बी वंचित रखया गईरा। पर्दे-साहीं असहनीय रस्मा तिन्हा कठे खास तौर ले गढ़ी गई होरा धर्मे आपणे मान्य ग्रन्था रे ईश्वरीय आदेश ठहराई के स्यों पुष्ट कीतिरी। सभी थे भारी गुलामी री जंजीर, जे तिन्हारे पैरा मंझ पाई दितीरी से ही तिन्हारी आर्थिक परतन्त्रता।
पश्चिमा मंझ बी स्त्रियां री स्वतन्त्रता रा आन्दोलन अझी पिछली शताब्दी ले हे हा होर भारता मंझ ता तेतारी एभे-एभे शुरूआत हुई करहाईं। तेबे बी जेस ढंगा के लोक स्त्रियां जो स्वतंत्रता दुआणा चाहें, क्या तेता के स्त्रियां स्वतन्त्र हुई सकहाईं? स्वतन्त्रता, स्वतन्त्रता चिंगणा बनावट होर एक फालतु री गल्ला ले बधी के नीं हा जेबे तका से आर्थिक तौरा ले स्वतन्त्र नीं ही, जेबे तका ब्याह तिन्हा कठे जीवन निर्वाह रा पेशा बणीरा। आर्थिक स्वतन्त्रता ले मतलब हा, स्त्री आपणी जीविका कठे केसी दूजे री मुहताज नीं हो। भारता मंझ ता सामाजिक पक्षपात होर अत्याचारे इच्छा हुणे रे बावजूद होर अवसर मिल्हणे परा बी तेहड़ा करने री स्वतन्त्रता नीं रैहणे दितीरी। पाश्चात्य देशा मंझ बी से तितनी आजाद नीं ही। फासिस्ट जर्मनीए ता कानून बणाई के विवाहित स्त्री नौकरी करने ले रोकी दितीरी। तेसरे ख्याला ले ब्याह रा पेशा ता तेसा जो मिल्ही हे गईरा, फेरी से दो-दो पेशे किहां हथियाई सकहाईं।
अगर स्त्रियां आपणी रोजी आपु कमांदी लगो, भोजन, वस्त्र, मकान, सैर-तफरी कठे तिन्हौ पुरूषा रे सामहणे हाथ नीं पसारना पौणा, प्रसवकाल, बीमारी होर बुढ़ापे मंझ तिन्हौ पति होर पुत्रा रे हे भरोसे पर नीं रैहणा पौणा, तेबे हे से वस्तुतः स्वत्रन्त हुई सकाहीं। पर, क्या पूँजीवादा मंझ ये सब संभव हा? एता बिच शक नीं हा, पूँजीवाद आपणे कारखानेयां मंझ स्त्रियां होर बच्चेयां जो काम इधी कठे देहाएं भई एहड़ा करने थे तिन्हा जो मजदूरी कम देणी पौहाईं। केसी कामा कठे यूरोपा मंझ अगर पुरूषा जो तीन रूपये रोज की मजदूरी मिल्हाईं, ता स्त्री जो डेढ़ हे रूपये मिल्हाईं। इहां स्त्रियां री भर्ती के हजारों पुरूष बेकार बणाई दिते जाहें। आसे पैहले हे बोली आईरे, किहां पूँजीवादियां रा स्वार्थ करोड़ों माहणुआं जो बेकार करने रा कारण बणी करहां। कुछ स्त्रियां जो कामा पर लगाणे ले तिन्हारा मतलब ये हा भई स्यों मजदूरा रे श्रमा रा होर ज्यादा भाग आसानी के लूटी सको।
साम्यवाद होर स्त्रियां री परतन्त्रता
स्त्रियां जो स्वतन्त्रता साम्यवाद हे दुआई सकहां, क्योंकि साम्यवाद जीवना रे सभी क्षेत्रा मंझ तिन्हौ बराबर स्थान हे नीं दुआणा चाहंदा, बल्कि तिन्हां जो आर्थिक तौरा ले बी स्वतन्त्र देखणा चाहां। से हरेक स्त्री जो आपणी रोजी आपु कमाणे रा समर्थक हा होर इहां तेसा जो पुरूषा रे समकक्ष हुणे रा मौका देहां। साम्यवाद यन्त्रा रा सहारा नफे कठे नी लैंदा, बल्कि माहणुआं रे जीवना री उपयोगी चीजा जो जल्दी होर पूर्णरूपेण मुहैया करने होर सांस्कृतिक कामा होर जीवना रे सुख लैणे कठे ज्यादा अवकाश देणे कठे करहां, से कल-कारखानेयौं, दफ्तरौ, सेना सभी जगहा स्त्रियां रा अबाध प्रवेश इधी कठे नीं चाहंदा भई तिन्हारे श्रमा जो लूटेया जाए, या पुरूषा जो बेकार बणाया जाए। से ता एस कामा जो सिर्फ स्त्री-जाति री पूर्ण स्वतंत्रता होर विकासा कठे करहां। साम्यवादी देश (आज बी जेबे कि आदर्शा तक पौंहचणे कठे बौहत चलणा पौणा) एसा गल्ला रे जीवित उदाहरण हे। तिथी स्त्रियां जो पुरूषा रे साहीं काम करने होर वेतन पाणे रा अवसर दितेया गईरा। प्रसवा ले पैहले होर बादा री दुर्बलवस्था मंझ तीन महीने रे अवकाशा सौगी तिन्हौ पूरा वेतन मिल्हां। तेहड़ा हे बीमारी होर असमर्थता रे बक्त बी राष्ट्र तिन्हारे भरण-पोषणा रा भार आपणे ऊपर लैहां। ये काम पूँजीवादा रे बसा ले बाहर हा, बल्कि ये ता थोह्ड़े जेह बक्ता बिच तेसरा दीवाल़ा काडही सकहां। तेजो काम नीं करी सकणे पर बी पूरा वेतन-ये सोचणे मंझ हे तेसरे दिमागा मंझ मूर्छा आईरे बगैर नीं रैहणी।
कितने लोक बोली उठाहें- एहड़ी आर्थिक स्वतन्त्रता अगर स्त्रियां जो मिल्ही जाए, ता पारिवारिक सुख संसारा ले उठी जाणा। पति-पत्नी रा मधुर सम्बन्ध नीं रैहणा। माव-बाब होर सन्ताना रा से पवित्र पैतृक स्नेह अतीता री गल्ल हुई जाणी। स्त्री-पुरूषा रे सदाचारा मंझ भयंकर क्रान्ति हुई जाणी होर माहणु-जीवन पशु-जीवना मंझ परिणत हुई जाणा।
यो सारी गल्ला स्यों करहाएं जिन्हा कठे स्त्री रा व्यक्तित्व कोई चीज नीं ही। बल्कि ज्यों इन्हां आडंबरपूर्ण सारहीन गल्ला कठे, या फेरी पुरूषा री सीमातिक्रान्ति करने वाल़ी स्वतन्त्रता कठे बकरे साहीं स्त्रियां री बलि देणा आपणा कर्तव्य समझाहें, या फेरी संसारा रे सदाचारियां री अंदरली गन्दगी पर जाहणुआं-बूझुआं हाखियां मूँदणा चाहें। साम्यवादी माहणु-जीवन होर पशु-जीवना रे शब्दा ले डरी जाणे वाल़े नीं हे, क्योंकि स्यों जाणहाएं भई पशु-जीवन जितना पूँजीवादा मंझ हा, तेतारा शतांश बी साम्यवादा मंझ नीं हा। धना रे बला पर क्या धनी लोक संसारा मंझ रोज लाखों स्त्रियां जो आपणी काम-वासना री तृप्ति कठे मजबूर नीं करी करदे? क्या धर्मधुरंधर, सदाचारा रा ढिंढोरा पीटणे वाल़े राजा-महाराजेयां, बादशाहा रे रनिवास होर हरम तेस पशु-जीवना रे सभी थे बडे अड्डे नीं हे? सदाचारा रा ढोल पीटणे वालेयां रा आपणे तेस सदाचारा री-जेतारी अंदरली गन्दगी तेस गैहरे रोमांचकारी सण्डासा-साहीं ही, जेतारा मुँह एकी पतली सफेद चद्दरा के ढकी दिति गईरा हो-डींग मारना निर्लज्जता री पराकाष्ठा ही। तिन्हारे एस ढोंगा जो इन्कार करने थे नकटे पंथा मंझ शामिल लोक, या खरीदीरे दास हे हिचकिचांघे। साम्यवादी जरूर चाहें भई स्त्री-पुरूष, क्या सारी दुनिया एकी-दूजे जो धोखा नीं दे, वंचना होर प्रतिज्ञा-भंग नीं करे। पर स्यों ये बी चाहाएं भई प्रेम एक पक्षा जो पंगु बनाई के या रूपयां ले खरीदी के, या केसी एकी पक्षा री इच्छा-विरूद्ध समाज या व्यक्ति रा भय दसी के, नीं कायम कितेया जाई सकदा। वास्तविक प्रेमा री जगहा साम्यवादा मंझ हे ही, क्योंकि इधी प्रलोभन होर बलात्कारा री गुंजाइश नीं ही।
इहां स्त्रियां री स्वतन्त्रता साम्यवादा मंझ हे सम्भव ही, क्योंकि से तिन्हौ सभी स्वतन्त्रता री जननी, आर्थिक स्वतन्त्रता प्रदान करहां। से एसा स्वतन्त्रता रे बाधक धर्म, ईश्वर, समाज केसी रे डरा री परवाह नीं करदा। से ब्याह जो स्त्रियां कठे जीवन-निर्वाहा रा पेशा नीं बणने देंदा। से समझां भई स्त्रियां पुरूषा ले कम योग्यता नीं रखदी। से “सच्ची माता”, “स्त्रियां रा पवित्र कर्तव्य”, “पतिव्रत धर्म”-स्त्रियां कठे इन्हां अत्यन्त घातक शब्दा रे फेरा मंझ नीं पौंदा।
साम्यवाद होर मुसोलिनी होर हिटलरा रे ढंग
यन्त्रा रे करूआं उपस्थित हुईरी माहणु री वर्तमान समस्यावां पर आसे पैहले विचार करी चुकीरे होर ये दसी चुकीरे भई तिन्हारा हल साम्यवाद हा। पूँजीवाद एभे तका साम्यवादा जो एक काल्पनिक सुपना समझां था, इधी कठे तेजो से हासी री गल्ल समझदा रैहा होर तिने एतारे बखौ गम्भीरता के ध्यान नीं दिता। पर जेबे तिने संसारा री अतिसम्पन्न षष्ठांश भूमि परा साम्यवादा रा प्रभुत्व जमदे देखेया, ता तेसरा रूख बधली गया होर आत्मरक्षा कठे तिने नौवें रूप धारण किते। इटली मंझ मुसोलिनी रा फासिज्म होर जर्मनी मंझ हिटलरा रा नात्सीज्म यों तेस हे पुराणे पूँजीवादा रे नौवें रूप हे। होर समय बीतणे रे सौगी ये सपष्ट हुंदा जाई करहां भई सभी देशा मंझ साम्यवादा जो रोकणे कठे पूँजीवादा जो एहड़ा कुछ जरूर करना पौणा। गल्ल ये ही भई पिछली शताब्दी मंझ पूँजीवादा रा नावं इतना बदनाम हुई गईरा भई पूँजीवादी बी एस नावां रे व्यवहारा ले हिचकचाहें। इधी कठे मुसोलिनी बोल्हां- फासिज्म पूँजीवादा रा दास नीं हा। हिटलरे ता आपणे दला रा नावं हे नात्सी या राष्ट्रीय समाजवादी रखीरा। इधी कठे इन्हां वादा रे पक्षपाती आग्रहपूर्वक बोल्हाएं-आसारे वादा जो तुसे पूँजीवाद नीं बोली सकदे। वर्तमान कठनाइयां रे हला कठे जे दावा साम्यवाद करहां, तिहां हे आसे बी एक हल पेश करी करहाएं।
अच्छा ता आवा आसे देखाहें, यन्त्र होर पूँजीवादा ले उत्पन्न आसारी कठनाइयां जो यों किथी तका हल करहाएं? आसे तिन्हां कठनाइयां जो दो भागा मंझ बाड़हाएं, एक ता देशा रे भीतर बेकारी-जनवृद्धि री समस्या होर दूजी संसारा रे सिरा पर लटकदी भीषण युद्धा री तलवार। फासिज्म होर नात्सीज्म दोन्हो हे युद्धा रे परम भक्त हे। स्यों एताजो माहणु जाति री भलाई कठे अत्यन्त जरूरी होर पवित्र साधन मनहाएं। मुसोलिनी रा फासीवाद राष्ट्रवादी हा। इन्हां कठे इतालियन जाति होर तेसारा स्वार्थ सर्वोपरि हा। केसी बक्त मुसोलिनी जर्मनी रे नात्सीज्मा रा भारी प्रोत्साहक था होर नात्सीज्मा जो फासिज्मा रा हे जर्मन-संस्करण मनया जाहां था, पर जेबे नात्सीज्म जर्मनी मंझ अधिकारारूढ़ हुआ होर एकी जाति एकी भाषा रे नाते आस्ट्रिया जो हड़पणा चाहेया, ता मुसोलिनी रे कान खडे हुई गए होर इतालियन पत्र नात्सीज्मा रे विरूद्ध लगे जैहर उगल़दे। जेबे आस्ट्रिया रे चान्सलर डोप्लसा री नात्सियें हत्या करी दिती, तेबे ता मुसोलिनी रा विरोध होर सपष्ट हुई गया। ये जरूरी बी था, क्योंकि फासिज्म होर नात्सीज्म राष्ट्रीयता जो सर्वोपरि ही नीं मनदे, बल्कि दूजी जातियां रे नाश या दासता के जिहां हो तिहां आपणे राष्ट्रा रे विस्तार होर प्रभुत्वा जो स्थापित करना चाहें। फासिज्मा रे सामहणे इटली री जनसंख्या जो खूब तेजी के बधाणा, काल़ी जातियां रे हे नीं, हुई सके ता पास-पडोसा री युगोस्लावा-साहीं जातियां रे अस्तित्वा जो मिटाई के आपणे राष्ट्रा जो फैलाणा प्रधान लक्ष्य था। तिन्हां री इच्छा तेबे हे पूरी हुई सकहाईं थी जेबे दुनिया री सारी जातियां इतालियन जाति रे कठे एस भूमण्डला जो खाली करी दे होर ये सपष्ट ही हा भई युद्धा जो अमर बनाई रखणे रा ये सर्वोत्म प्रयास हा। युद्ध एभे पैहले साहीं शौका री चीज नीं ही, अब ता विज्ञाने ये इतना भयंकर बणाई दितिरा भई एता के सारी जाति उच्छिन्न हुई सकहाईं।
वैदेशिक नीति होर विश्वा मंझ अशांति रे संबंधा मंझ नात्सीज्मा रा रूख ता फासिज्मा ले बी ज्यादा सपष्ट हा। हिटलरे आपणी कताब “मेरा युद्ध” मंझ लिखिरा- सच गल्ल ता ये ही भई शांति रा आदर्श तेस ध्याड़े सभी थे उत्तम रीति के कामा मंझ आई सकहां, जेबे माहणु संसार मंझ एस हदा तका विजय प्राप्त करी लौ भई से तेतारा एकमात्र स्वामी हुई जाओ। राष्ट्रा रा आन्तरिक उद्देश्य ये हुणा चहिए भई से चमकदार, तेज तलवार ढाल़ी सके होर एसा गल्ला रा पूरा प्रबन्ध करे भई ये तलवार खूब अच्छी तरहा के ढाल़ी जाए। जे सन्धि या मित्रता युद्धा रे ख्याला के नीं किती जांदी, से बेकार ही।
नात्सीज्म राष्ट्रीयता मंझ एक कदम होर बी अग्गे बधी कने हा। तिथी इधी कठे शुद्ध आर्य-जिन्हां कठे माव-बाबा री कई पीढियां तका होरी जाति रा रक्त-सम्मिश्रण नीं हुणा जरूरी हा-हुणा अनिवार्य हा। तेसरी परिभाषा ले जर्मनी छाड़ी के संसारा मंझ किथी बी-यूरोपा रे देशा मंझ बी-शुद्ध आर्य नीं हे। से दूजी जातियां के ब्याह बगैरा सम्बन्ध हे विच्छिन्न नीं करना चाहंदा, बल्कि तिने शताब्दियां ले देशा मंझ बसी रे जर्मन यहूदियां रा-जिन्हारी जे वेश-भूषा सभ जर्मन ही-रे देश-निकाल़े री व्यवस्था करीके, आपणे उक्त भावा रा परिचय दितीरा। नात्सीज्म बी जर्मन जाति री जनसंख्या बधाणा आपणा कर्तव्य समझां। तिने ब्याह करने वालेयां जो सरकारी खजाने ले सैंकड़ों रूपयां रे इनामा रा प्रलोभन देई रखीरा। यों दोन्हो हे वाद होर कुछ बी हुई सकाहें, पर जिथी तका विश्व-शांति रा सम्बन्ध हा, यों तेतारे सभी थे भारी शत्रु हे।
आपणे-आपणे राष्ट्रा रे भीतर इन्हां दोन्हो वादा रा क्या रूप हा, अब जरा एता पर नजर पाइएं। यों दोन्हो हे वाद शोषक होर शोषित, लुटेरे होर लुटणे वाल़े-मतलब पूँजीपति होर श्रमजीवी इन्हां दोन्हों वर्गा जो कायम रखणा चाहें। मुसोलिनी होर हिटलरा जो सफल बनाणे कठे साम्यवादा रे हौवे ले भयभीत पूँजीपतियें हे ता आपणी थैलियां खोल्ही थी। पूँजीपतियां रे धना ले पोषित, श्रमजीवियां री स्वतन्त्र संस्थावां री चिता री राखा पर स्थापित फासिज्म पूँजीवाद छाड़ी के दूजा क्या हुई सकहां?
आसे पैहले गलाई चुके भई पूँजीवादा मंझ व्यक्तिगत नफ़े रे कठे यन्त्रा रा उपयोग हुआं होर राष्ट्रा री जरूरता कठे साम्यवादा मंझ इन्हारा उपयोग हुआं। नात्सीज्म शोषक होर शोषित वर्गा रे भेदा जो मिटाणा क्या, से ता एतौ होर दृढ़ करना चाहां। साम्यवादा बखौ ज्यादा बधदे देखी के हे ता 1934 मंझा हिटलरे आपणे दो सौ सहायका रा कत्लेआम कितेया। नात्सीज्मे स्त्रियां कठे ब्याह जो पेशा मनी के तिन्हा ले आर्थिक स्वतन्त्रता होर स्वतन्त्र जीविकोपार्जना जो जबर्दस्ती छीनी के बेकारी रे सवाला जो हल करना चाहेया। तिने घोषित कितेया- स्त्रियां री जगहा कारखानेयां होर दफ्तरा मंझ नीं ही, तिन्हारी जगहा घरा मंझ ही, गृहिणी होर मावा रे तौरा पर। कितनी हे कठिनाइयां, जद्दोजहदा रे सौगी पिछली एक शताब्दी मंझ स्त्रियें जे स्वत्व हासिल कितिरा, तेता जो तिने आपणी विजया रे मदा मंझ एकी कलमा के छीनी लैणा चाहिरा।
हर प्रगति-विरोधी दला कठे धर्म होर ईश्वरा री दुहाई बड़ी लाभदायक चीज ही, से हे गल्ल आसे इन्हां दोन्हो वादा रे बारे बिच पाहें। हिटलरा रे शासना मंझ विद्यार्थी ये प्रार्थना करने पर मजबूर किते जाहें- महे सर्वशक्तिमान् परमेश्वर। आसारे शस्त्रा जो विजय प्रदान कर। न्याय कर, जेहड़ा जे तू हमेशा करदा आईरा। आसा लोका जो आशिर्वाद दे होर आसौ दस भई क्या आसे स्वतन्त्रता रे अधिकारी हे। हे ईश्वर। आसारे शस्त्रा जो विजय प्रदान कर।
पोपा रे हुकुमनामेयां साहीं हिटलरे बी हुक्म निकाल़ी के कार्ल-मार्क्स हे नीं, डार्विना रे विकासवादा जो बी विश्वविद्यालय मंझ पढ़णा वर्जित करी दितिरा।
इहां फासिज्म होर नात्सीजम दोन्हो हे देशा रे भीतर प्रगति विरोधी, पीछे खींचणे वाल़े, स्त्रियां, श्रमजीवियां होर पिछड़ी जातियां री स्वतन्त्रता रे कट्टर दुश्मण होर देशा ले बाहर युद्धा री अग्नि जो सदा उत्तेजित करने वाल़े हे। इथी यन्त्रा रे प्रयोगा मंझ नफे रा सवाल होर शोषक वर्गा रे ज्यों का त्यों रैहणे ले बेकारी री समस्या इन्हा ले हल नीं हुई सकदी।
आज एस दूजे विश्वयुद्धा रे चार साला रे तुजुर्बे फासिज्म होर नात्सीज्मा रे काल़े-कारनामे खूब दसी दितिरे। इंग्लैण्डा रे स्वार्थान्ध पूँजीपतियें पैहले इन्हा जो प्रोत्साहन दितेया जेबे स्यों साम्यवादी रूसा के लड़ी पए, पर स्यों पैहली इन्हा रे ऊपर पये होर 20 साला री सारी योजना होर कुचक्र जो भूली के बादा बिच पूँजीवादी देशा मंझ सभी ले शक्तिशाली इंग्लैण्ड होर अमेरिका जो आपणी जान बचाणे कठे रूसा रे सोवियत संघा के सौगी हुणा पया। इटली रा फासीवादी लकड़बग्घा खत्म हुई चुकीरा, हिटलरा रा पतना मंझ बी साला नी, महिनेयां री देर ही।
साम्यवाद होर व्यक्तिगत स्वतन्त्रता
साम्यवाद क्या चाहां?-(1) शोषक होर शोषिता रे भेदा जो मिटाई के उपजा रे साधन (मशीन, भूमि, कच्चा माल) होर उत्पादित वस्तुआं रा स्वामी माहणु जो नीं समाजा जो बनाणा, (2) सभी माहणुआं ले योग्यतानुसार काम करवाणा, (3) जीवना कठे जरूरी चीजा, यन्त्रा रे उपयोगा ले मिलणे वाल़े अवकाश होर मानसिक विकासा रे अवसरा जो आपेक्षानुसार सभी जो समान रूपा के बाँडणा। बिन्दु (1) होर (2) जो देखी कने कितने हे लोक बोली उठाहें-(क) तेबे ता साम्यवाद व्यक्तिगत स्वतन्त्रता रा महान् शत्रु हा। तेस कठे व्यक्ति यन्त्रा रे पुर्जे ले बधीके नीं हा, इधी कठे से समाजा रे हाथा री कठपुतली-मात्र हा। (ख) मानसिक विकासा री योग्यता सभी मंझ बराबर नीं ही। इधी कठे एकी सोठे के हाँकणे ले ता विशेष प्रतिभावां री हत्या हुणी होर माहणु-समाज तिन्हारी सेवा ले वंचित रैही जाणा। (ग) (3) ले बी ता छोटे-बडे सभी श्रमा रा पारितोषिक समान “सभ धान बाई पंसेरी”, “अंधेर नगरी चौपट राजा। टके सेर भाजी टके सेर खाजा।“ हुणे पर कोई की ज्यादा मूल्यवान श्रम होर योग्यता कठे कोशिश करघा? जंगला मंझ सभ दरख्त एकी साहीं नीं हुंदे-कोई दयारा साहीं सौ-सौ फुटा रे, कोई भोजपात्रा साहीं छोटे-छोटे होर कोई घाह साहीं बौहत हे छोटे हुआएं। अगर प्रकृति सभी जो एक बराबर खाद देयो, एक समान हवा-पाणी-धूप देयो, ता क्या देवदारा साहीं बधी सकाहें। तेबे ता गमले मंझ रखीरे चीनी देवदारा साहीं तिन्हौ दो-तीन फुटा तका आपणी वृद्धि रोकी देणी चहिए। साम्यवादा रा सिद्धान्त बी जरूर प्रतिभा होर योग्यता रे कठे एहड़ा हे घातक हा। (घ) ये सम्भव नीं हा भई माहणु अचेतन वस्तुआं साहीं एकी तंग दायरे मंझ बंधिरा रौहो। चेतना रा मतलब हे हा, स्वतन्त्र विचार होर कामा रा मार्ग ग्रहण करना। एसा स्वतन्त्रता ले हे ता माहणु कोमल कला, सुन्दर साहित्य होर विशाल विज्ञाना रे निर्माणा मंझ सफल हुआ। (च) साम्यवादियां जो माहणु प्रकृति रा ज्ञान रत्ती भर बी नीं हा, नीं ता यों एहड़ा हवाई किला बान्हणे री कधी कोशीश नीं करदे। माहणुआं मंझ केसी-केसी जो अगुवा बनाणे, हुकम चलाणे री नैसर्गिक योग्यता हुआईं होर दूजे बहुसंख्यक तेहड़ी योग्यता मंझ सिफर सिर्फ अनुगामी बणने, हुकम बजाणे री योग्यता रखहाएं। साम्यवाद कोई एहड़ा झू-मन्तर नीं हा जे माहणु री नैसर्गिक प्रवृति जो बदली दे। (छ) माहणुआं रे साहीं भूमण्डला री जातियां बी अलग जलवायु अलग मानसिक-शारीरिक विकासा रे करूआं समान योग्यता नीं रखदी, तिन्हां मंझ कितनी हे शासित हुणे रे लायक ही होर शासक बणने री योग्यता बिल्कुल नीं रखदी। बाघ होर बकरी जो एकी-साहीं बनाणा क्या पागलपन नीं हा? (ज) पूँजीपति शोषक नीं हे, बल्कि चीजा रे उत्पादना मंझ स्यों बी तेहड़ा हे श्रम करहाएं, जेहड़ा जे श्रमिक। अगर श्रमिक हाथा के काम करहाएं, ता पूँजीपति संगठन, निगरानी होर एकत्रीकरण-वितरणा के तेहड़े हे महत्वपूर्ण कामा जो करहाएं। (झ) संस्कृति होर कला रे संरक्षण होर विज्ञाना रे प्रचार मंझ क्या पूँजीपतियां होर राजा-महाराजेयां रा हे प्रधान हाथ नीं रैहीरा? फेरी तेस वर्गा रा अस्तित्व मिटाणा क्या समाज कठे हानिकारक नीं सिद्ध हुणा?
इन्हारे जबाबा मंझ साम्यवादी बोलघा---
(क) साम्यवाद पूँजीवादा री अपेक्षा ज्यादा व्यक्तिगत स्वतन्त्रता देहां, ये दसणे रे कठे आसा देखणा भई पूँजीवाद जेस व्यक्तिगत स्वतन्त्रता रा ढोल पीटहाएं, तेतारा रूप क्या हा होर से समाजा मंझ कितनेयां जो नसीब ही? आसे पिचले अध्याया मंझ दसी आइरे भई सारी स्वतन्त्रता री जणनी ही आर्थिक स्वतन्त्रता। से आर्थिक स्वतन्त्रता कितनेयां जो प्राप्त ही? सिर्फ तिन्हां जो हे ना जिन्हां बाले धन हा, यानि के ज्यों पूँजीपति हे? से हजारों मजदूरा जो खरीदी सकहां, हां दासा साहीं नीं, बल्कि तेता ले बी बुरी तरहा के। दासा कठे हर हालता मंझ मालिक खाणा-कपड़ा देणे कठे मजबूर था, क्योंकि एहड़ा नीं करने ले तेजो तेता मंझ लगीरी पूँजी रे डूबी जाणे रा डर था। पर मजदूरा कठे? जेबे तका से स्वस्थ हा, काम करी सकहां, जेबे तका तेसले काम लैणे मंझ नफा हा, तेबे तका तेसरे श्रमा री आधी-तिहाई मजदूरी देई के तेसले काम लैहां। अगर बजार मन्दा हो होर मजदूरी घाटे रा सौदा हा, ता बस कारखाने रे दरवाजे मंझ ताल़ा, अब हजारों मजदूर-जिन्हाले तिन्हारा घरबार छुड़ाया गईरा, जिन्हाले तिन्हारे हाथा रा हुनर छीनी लिती गईरा स्यों बला के भूखे मरो। अगर मजदूर बीमार पई जाओ या बूढ़ा हुई जाओ ता बी स्वस्थ अवस्था री एक-एक बूँद खूना जो चूसी लैणे वाल़ा मालिक तेस मजदूरा जो बेरंग जवाब देई देणे कठे बिल्कुल स्वतन्त्र हा। हजारों मजदूर होर तिन्हारा परिवार, ये केहड़ी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता रा स्वर्गीय आनन्द लूटी करहां। शायद तुसे तिन्हौ इधी कठे स्वतन्त्र बोल्हाएं, क्योंकि हाख बचाई के स्यों आत्महत्या रा करी हे सकहाएं। मजदूरा जो छाड़ी के होर बी कितने हे माहणु तोपणे पर एहड़ी हे व्यक्तिगत स्वतन्त्रता रा उपयोग करदे पाये जाहें।
क्या तुसे दसी सकहाएं, संसारा मंझ कुछ जेह साधन या माहणु पूँजीपतियां रे खरीदिरे नीं हे? क्या समाचार-पत्र जनता रे सामहणे स्वतन्त्र विचार रखाहें? क्या इंग्लैण्ड होर दूजे मुल्का रे करोड़पति पत्र-मालिक पत्रकार-कला जो आपणे हाथा री कठपुतली नीं बनाई बैठिरे? पत्रा जो केसी पैहलके बक्त चाहे कुछ थोहड़ी-बौहत स्वतंत्रता रैहीरी हो, पर आजकाले ता स्यों पूँजीपतियां रे गुलाम हे। भारता मंझ बी जिन्हे पत्रे स्वतन्त्रता होर क्रान्तिकारी विचारा रा वकील बणी के आपणी नींव पक्की किती, तिन्हौ बी सफलता मिल्हदे ही पैंतरा बदलदे देर नीं लगी। होर से बक्त दूर नीं हा, जेबे इथी रे पत्रा बी दूजे देशा साहीं पूँजीपतियां रे हाथा मंझ जाईके, तिन्हारी भलाई री गल्ल करना आपणा कर्तव्य समझणा। आसारे इथी अजही तका अगर पूँजीपतियां रा बौहत कम ध्यान गईरा, ता एतारा कारण था-लाभा री कम संभावना होर पूँजी रे डूबणे रा डर। जिन्हां समाचार-पत्रा री ज्यादातर आमदनी पूँजीपतियां रे विज्ञापना के हुआईं, स्यों किथी तका आपणी स्वतन्त्रता कायम रखी सकाहें? एभे भारतीय पूँजीपति सामाचार-पत्रा होर प्रेसा पर अधिकार जमाणे मंझ काफी दूरा तक अग्रसर हुई चुकीरे।
क्या लेखक होर कवियां जो पूँजीपतियें नीं खरीदी रखीरा? दुनिया मंझ एहड़ेयां री संख्या बौहत कम ही जिन्हें आपणी कलम होर प्रतिभा बेची नी खाधिरी हो। ज्यों कुछ इने-गिने स्वतन्त्र कलमा रे धनी संसारा मंझ पाए जाहें, स्यों तिन्हां सैकड़ों माहणुआं रे जीवन भरा री स्वतन्त्रता रे संग्रामा रे अवशेष मात्र हे ज्यों असफल रैहीके, गुमनाम हे संसारा ले चली बसे।
होर राजनितिज्ञ? राजनीति ता होर बी पूँजीपतियां री दासी ही। संसारा रे राजनीतिज्ञां पर नजर दौड़ावा, तुसा जो ये साफ पता लगी जाणा। सभ देशा रे मन्त्रिमण्डला मंझ कारखाने वाल़ेयां, बैंका, प्रेसा रे मालका री हे ता भरमार ही। राजनीति ता शक्ति रा स्त्रोत हा, इधी कठे एता जो पूरे तौरा पर हथयाणा पूँजीपति लोक अत्यन्त जरूरी कर्तन्य समझाएं। पूँजीवादी देशा री पार्लियामेंटा मंझ चुनाव ता सिर्फ रुपयां रे हे भरोसे लड़े जाहें। जिथी सम्मतिदाता जो रूपयां रे रूपा बिच रिश्वत नीं दिती जांदी-होर एहड़ी जगहा बौहत कम ही-तिथी बी जबान होर प्रेसा जो खरीदी लितेया जाहां, यातायाता रे साधना-मोटरा, हवाई जहाजा, रेला पर रूपया पाणी साहीं बहाया जाहां। क्या जिन्हां बाले रूपया नीं हा, सिर्फ आपणी योग्यता, त्याग होर सेवा रे भरोसे चुनावा मंझ कधी सफलता प्राप्त करी सकहां? ग्राँवां रा अपढ़-अज्ञान माहणु बी जाणहां भई चाँदी रे टुकड़ेयां री बरखा किते बगैर कोई चुनावा मंझ सफल नीं हुई सकदा। प्रजातंत्रीय संस्थावां कठे ये सम्मतिदान हे ता व्यक्तिगत स्वतन्त्रता रा उदाहरण दसया जाहां। जेबे तका एक माहणु रे हाथ मंझा अपार धनराशि ही होर हजारों गरीब, आश्रयहीन हे, तेबे तका सम्मति री खरीद-बेच हुए बिना नी रैही सकदी।
क्या पण्डित, मौलवी, पादरी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता रे मालिक हे? तिन्हारा ता अस्तित्व हे पूँजीपतियां री कृपा पर हा। तिन्हारे बड़े-बड़े मन्दिर, मकान, लम्बी धोतियां होर चोगे सभ पूँजीपतियां री देन ही। जिथी सभी थे कम स्वतन्त्रता री आशा हुई सकाहीं, से हे यों धर्मा रे ठेकेदार होर तिन्हारी संस्था।
देशी राजेयां री प्रजा कठे ता व्यक्तिगत स्वतन्त्रता रा शब्द बी प्रयुक्त नीं हुई सकदा। तिन्हारा ता जान-माल, इज्जत-पाणी सभ अन्नदाता री मुट्ठी मंझ हा।
तुसे तेज मशाल लैई के संसारा रे कुणे-कुणे जो तोपी आवा। तुसा जो व्यक्तिगत स्वतन्त्रता रा केसी पूँजीवादी देशा मंझ पता न मिल्हणा, ये एक व्यर्था रा शब्द मालूण हुणा। या फेरी से किथी सार्थक हुंघी, ता सिर्फ मुट्ठी भर धनिका रे कठे। स्यों हे इन्हां लम्बे-चौड़े शब्दा के लोका जो बैहकाणा-डराणा चाहें होर भोल़े-भाल़े माहणु ”काव कान लेई जाई करहां”- बोल्णे परा काना जो बिना टटोल़िरे हे कावा पीछे दौड़दे लगाहें। तिन्हां जो समझणा चहिए भई जेबे दुनिया री सभी थे बड़ी शक्ति धन, सिर्फ चन्द माहणुआं रे हाथा री चीज ही होर से तेता के छोटे-बडे सभी तरहा रे माहणुआं जो खरीदी सकहां, ता खरीधीरा माहणु कधी स्वतन्त्र नीं हुई सकदा?
हाँ, ता पता लगेया, तुसारी “व्यक्तिगत स्वतन्त्रता” धोखे री टट्टी ही। साम्यवाद चूँकि धना जो व्यक्ति रे हाथा मंझ नीं रैहणे देंदा होर आर्थिक दृष्टि के सभी जो एकी तला पर लेई आवहां, इधी कठे से व्यक्तिगत स्वतन्त्रता रा भारी सहायक हा।
(ख) साम्यवाद सभी तरहा री योग्यता जो विकसित होर सफल करने रा पूरा अवसर देहां। तुसारा दसीरा दोष ता पूँजीवादा मंझ हे हा, जिन्हारे इथी दरिद्र बाबा रे प्रतिभाशाली बच्चे जो ऊसरा रे बीज साहीं अंकुरित बी हुणे नीं दितेया जांदा।
(ग) साम्यवाद सभी तरहा रे श्रमा जो समाजा कठे एक बराबर जरूरी मनहां। योग्यता, प्रतिभा होर समाजा कठे कितीरी बड़ी सेवा रा मूल्य धना के नीं करना चहिए। प्रतिभा आपु एता जो चिरकाला ले तुच्छ समझदी आईरी। हाँ, स्यों ज्यादा श्रद्धा-सम्माना के तिन्हां जो पुरस्कृत करने रे विरोधी नीं हे। एहड़ी प्रतिभा ता आपणे कामा री सफलता होर सुखमय परिणामा के हे आपु जो कृतकृत्य समझाहें। दुनिया रे बड़े-बड़े वैज्ञानिका रे आविष्कारा ले ता सिर्फ पूँजीपतियां जो फायदा हा। ये हुंदे हुए बी विज्ञाना री खोजा मंझ प्रसन्नतापूर्वक आपणे प्राणा री आहुती देणे वाल़े केस पारितोषिका री इच्छा के एहड़ा करहाएं? वस्तुतः पैहली श्रेणी री प्रतिभा बिना केसी पारितोषिका रे लोभा ले हे माहणु-जाति री सेवा कठे तैयार रैहाईं। दूजी होर तरीजी श्रेणी री प्रतिभा जो कामा मंझ सहायता होर श्रद्धा-सम्माना के प्रोत्साहित कितेया जाई सकहां।
(घ) साम्यवाद माहणुआं जो अचेतन वस्तु रे तंग दायरे मंझ बंद नीं रखणा चाहंदा, बल्कि पूँजीवादा रे जेलखाने मंझ जन्मा ले मरणा तक बंद रखे जाणे वाल़े असंख्य माहणुआं जो तिन्हारी आर्थिक बेड़ी काटी कने मुक्त करना चाहां। कोल्हू रे बैला साहीं जीवन भर पेटा रे पीछे घूमणेवाल़ेयां जो बी ‘कोमल कला, सुन्दर साहित्य, विज्ञाना रे निर्माणा कठे’ से हजार गुणा ज्यादा मौके देहां।
(च) अगर अगुवापन होर अनुगामीपन माहणु मंझ मावा रे दूधा ले आवहां, ता साम्यवादी तेता पीछे सोठा लेईके किथी फिरदे रैहें? स्यों ता सिर्फ एहड़ा चाहें भई से अगुवापना माहणु री योग्यता होर प्रतिभा रे बला पर स्थापित हो। रूपये री रिश्वत देईके अगुवापन कायम करने रे हे ता से विरूद्धा हा। रूपये के खरीदे अगुवापना जो तुसे बी स्वाभाविक नीं बोल्घे।
(छ) भूमण्डला री जातियां मंझ जन्मसिद्ध शासन होर शासिता मंझ भेद करना ता तेहड़ा हे हा, जिहां कोई लुटेरा बोले-“न्यायधीश बड़ा मूर्ख होर माहणु रे स्वभावा ले बिल्कुल अनभिज्ञ माहणु हा। तेजो पता हुणा चहिए भई कुछ माहणु जन्मा ले हे लूटणे कठे बनाये गईरे होर कुछ लुटह्णे कठे। बाघ-बकरी साहीं दोनों प्रकार रे माहणुआं जो एकी-साहीं बनाणा बिल्कुल अनुचित हा।“ लुटेरेयां री ये गल्ह ही, इहां हे साम्राज्यवादी पूँजीपतियां रा उक्त बोल्णा बी तिन्हारी स्वार्थपरायणता रा नमूना हा, सच्च रा नीं। जिन्हां युक्तियां रे आधारा पर स्यों संसारा री जातियां जो इन्हां दो भागा मंझ बाँडहाएं, तेता रे हे बला पर ता तिन्हारी आपणी जाति जो बी दो हिस्सेयां बिच बाँडया जाई सकहां। होर दरअसल पूँजीवादियें स्यों तेहड़े हे बाँडी बी रखीरे।
(ज) बड़े-बड़े कारखानेयां रे हजारों भागीदार ज्यों कारखानेयां रे बारे मंझ सिर्फ इतना हे जाणहाएं भई तिन्हौ एस साल 15 प्रति सैंकड़ा मुनाफा मिल्हिरा, क्या श्रमिक बोले जाई सकहाएं? आपणी जमींदारी-तालुकदारी ले जिन्हौ गुलछर्रे उड़ाणे कठे रूपये मिल्ही जाणे भरा रा सम्बन्ध हा, क्या स्यों श्रमिक हे? पराई कमाई, पराये परिश्रमा जो हड़पणे वाल़े माहणु शोषक नीं ता क्या हे? ज्यों पूँजीपति आपणे कारोबारा री सीधी देखभाल करहाएं, तिन्हौ बी आपणे मजदूरा री अपेक्षा हजारगुणा ज्यादा पारिश्रमिक लेणे रा क्या हक हा? होर जेबे तका स्यों एहड़ा करघे, तेबे तका स्यों शोषक-हड़पक हे रैहणे।
(झ) भूतकाला मंझ कला, विज्ञाना री संरक्षकता धनियां जो हमेशा कठे पट्टा नीं देई देंदी भई स्यों हमेशा लोका लो लूटदे रौहो। अगर तिन्हें समाजा री कोई तेहड़ी भलाई-जे स्वार्थशुन्य ता कधी बीं रैही, किती, ता तेतारा कई गुणा फायदा स्यों लेई चुकीरे। अब एस वर्गा के नीं रैहणे पर कला होर विज्ञाना री प्रगति मंझ कोई हानी नीं हुणी, क्योंकि तेता कठे साम्यवाद राष्ट्रा रे अपार साधन, अपरिमित अवकाश होर असंख्य प्रतिभावां जो लगाई देणे रे कठे तैयार हा।
साम्यवाद स्वतन्त्रता होर स्वैरिता मंझ भेद करहां। समाजा रे सभी माहणुआं री स्वतन्त्रता रा ख्याल जेता मंझ रखेया जाए, से हे स्वतन्त्रता ही। एस तरहा के स्वतन्त्रता री बी सीमा होर मर्यादा ही। कर्तव्या रा बंधन बी एक बंधन हे सही, तेबे बी तेतारे अनुकरणा जो आसे स्वतन्त्रता रा बाधक नीं बोली सकदे। अगर से परतन्त्रता बी ही, ता से शिरोधार्य करनी हे पौणी, क्योंकि तेता बाजही समाजा रा कल्याण नीं हुई सकदा। समाजा रा कल्याण क्या हा? ये हे भई तेसरे सभी माहणुआं रा समानरूपेण कल्याण। समाज बोलणे ले से कल्याण माहणुआं ले बाहरला नीं हुई जांदा। सभ माहणुआं री सम्मिलित भलाई-बुराई हे समाजा रे नावां ले बोली जाहीं। देशा रे सैंकड़ों तरहा रे कानूना जो ता तुसे स्वतन्त्रता रा बाधक नीं समझदे हुंघे? साम्यवादा मंझ ता इन्हां कानूना मंझा ले तीन-चौथाई री जरूरत हे नीं हुणी, क्योंकि तेता बिच ज्यादातर ता व्यक्तिगत सम्पत्ति, तेतारे टैक्स होर रक्षा रे बारे बिच बणीरे। ज्यों सिद्धान्त तीन-चौथाई कानूनां जो अनावश्यक करी दे, से ज्यादा व्यक्तिगत स्वतन्त्रता देहां, या से ज्यों चौगुने री आवश्यकता जो जरूरी समझां?
पूँजीपतियां होर सत्ताधारियां री जेस स्वतन्त्रता रा तुसा जो ख्याल हा, से स्वतन्त्रता नीं स्वैरिता ही। तेतारी नींव असंख्य माहणुआं री स्वतन्त्रता रे सत्यानाशा पर रखी गईरी। जेहड़ा सम्बन्ध सारी घड़ी के सौगी तेतारे पुर्जे रा हा, एहड़ा हे सम्बन्ध माहणु रा समाजा के सौगी हा। माहणु कठे स्वतन्त्रता चहिए, पर से स्वतन्त्रता दूजे माहणुआं री स्वतन्त्रता मंझ बाधा पौंहचाणे वाल़ी नीं हुणी चहिए।
सभी बखा ले देखणे ले पता लगहां भई जिन्हारी स्वतन्त्रता बहुसंख्यक माहणुआं री स्वतन्त्रता री बाधक ही, तिन्हौं छाड़ी के बाकी सभ लोका कठे साम्यवाद बौहत ज्यादा स्वतन्त्रता देहां।
साम्यवादा मंझ यंत्रा ले प्राप्त अवकाशा रा उपयोग
वैज्ञानिक साम्यवाद जीवना री सभ सामग्रियां पैदा करने कठे यंत्रा रा पूरे तौरा पर उपयोग करने रा पक्षपाती हा। ये बी चाहां भई यन्त्रा मंझ ध्याड़-पर-ध्याड़ ज्यादा ले ज्यादा सुधार हुंदा जाए जेतारा मतलब हा भई चीजा रे पैदा करने मंझा कमा-ले-कम बक्त लगो। हुई सकहां भई एहड़ा बक्त बी आए जेबे संसारा कठे सभ काम करने लायक माहणुआं रा एक घंटे रा श्रम हे तिन्हारे जीवना री सभ उपयोगी चीजा-खाणा, कपड़ा, मकान, बाग, सड़क, विद्यालय, नाट्य-मंच बगैरा कठे पर्याप्त हो। एहड़ी दशा मंझ आठ घण्टा सोणे कठे बी रखी लैणे पर, बाकी पन्द्रा घण्टे मंझ माहणु क्या करघा? क्या काम नीं हुणे पर बेकार माहणु तरहा-तरहा रे झगड़े-फसादा मंझ नीं लगी जांघा? क्या तेता के भविष्या री शांति होर सुखा रा सुपना झूठा नीं हुई जाणा?
आसौ एहड़े प्रश्न चकणे वाल़ेयां पर आश्चर्य हुआं। ज्यों लोक खुद उपदेश करहाएं थे-माहणु रा जीवन पेट पालणे मंझ लगी रे रैहणे कठे नीं हा, से ता पशु बी करी लैहें। जिन्हारे स्वर्गा री कल्पना हे हई भई तिथी माहणु जो सभ माँगा सुलभ ही, होर काम बिल्कुल नीं करना पौंदा, स्यों हे लोक अब एहड़ी दलीला चकहाएं। संभव हा, तिन्हारा ये ख्याल हो भई साम्यवादी ता धार्मिक पूजा-पाठा जो बी नीं मनदे, फेरी तिन्हां बाले बेकार समय जो काटणे रा क्या उपाय हुई सकहां? नीं जनाब। धार्मिक पूजा-पाठा जो नी मनदे हुए बी साम्यवादी बौहत सारे काम दसी सकाहें। यों माहणु रे करने लायक कामा जो दो हिस्सेयां मंझ बाँडाहें-एक से जे सभी कठे अनिवार्य हे, होर दूजे से जिन्हा रे करने मंझ माहणु री स्वतन्त्रता ही। माहणु होर समाजा रे जीवन-धारणा रे कठे ज्यों चीजा बौहत जरूरी ही, तिन्हारे पैदा करने रा काम मानसिक होर शारीरिक योग्यता रे मुताबिक हर एक माहणु जो करना जरूरी हा। यन्त्रा रे उपयोगा के कामा रे बक्ता जो घटाई के एक घन्टा करी देणे रा मतलब हा, अनिवार्य कामा कठे सिर्फ एकी घण्टे रा रैही जाणा। व्यक्तिगत स्वतन्त्रता रे प्रेमियां जो ता एता ले खुश हुणा चहिए, बाकि पंदरा घंटे रे कामा कठे तुसा जो चिंतित नी हुणा पौणा, तेस बक्त आपणी-आपणी रूचि रे मुताबिक माहणु साहित्य, संगीत होर कला रा निर्माण करी सकहां, या एतारा रसास्वादन करी सकहां, स्वास्थय होर साहसा रे खेल होर यात्रा करी सकहां। आकाश, भूमि होर समुद्रा री यात्रा क्या माहणु कठे मनोरंजक होर ज्ञानवर्धक नीं हुणी? माहणु, पशु, पक्षी, होर छोटे-बडे जन्तुआं रे मनोविज्ञाना रा अनुसन्धान या अध्ययन करी सकहां, दर्शन होर विज्ञान सम्बन्धी खोजा मंझ लगी सकहां। चिकित्सा-सम्बन्धी हल नीं हुई सकीरी कितनी हे समस्यावां जो हल करी सकहां। यात्रा, क्रीड़ा होर नाट्य एहड़ी चीजा ही जिन्हां बिच माहणु जितना चाहे तितना बक्त देई सकहां। फेरी क्या तुसे विश्वास दुआहें भई तेस बक्त प्राकृतिक उपद्रव, भूकम्प, अवर्षण, अतिवर्षण बगैरा नीं हुंघे? तिन्हारे हुणे परा पुननिर्माणा कठे माहणु जो सारी शक्ति रे सौगी बराबर तैयार रैहणा पौणा। सूचना मिल्हदे हे एकी जगहा रे माहणुआं जो दूजी जगहा मददा कठे दौड़ना पौणा, क्योंकि तेस बक्त वस्तुतः सारा माहणु समाज एक हे परिवार हुई गईरा हुणा।
जरा ख्याल ता करा, आजकाले जेबे ज्यादातर माहणु हर बक्त कामा री चक्की मंझ पिसी के कला होर साहित्या रे सृजन या अवलोकना रे आनन्दा कठे बक्त नीं निकाल़ी सकदे होर जिन्हा थोहडे जेह लोका जो तेहड़ा अवसर मिल्हां बी हा, स्यों बी धनी लोका जो सन्तुष्ट करने कठे तेतारा एहड़ी चीजा रे निर्माणा मंझ उपयोग करहाएं जेता के दूजे माहणुआं रे शरीर होर मन विकृत हुआएं, अवकाश होर प्रतिभा रे उपयोगा रा द्वार माहणु-मात्रा कठे खुल्ही जाणे पर तेस बक्त माहणु पृथ्वी रे कुणे-कुणे जो सुन्दर बणाई सकहां। जेसा कला रा आनन्द आजकाले इने-गिने लोका रे भाग्य री चीज ही, से तेस बक्त सार्वजनिक हुई जाणा। माहणु री विद्या होर संस्कृति रा तल तेस बक्त आजा ले बौहत ऊच्चा हुई जाणा। आजकाले माहणु रा कितना बक्त बेकार जाई करहां? प्रतिभा सुतिरी रैहाईं। इन्हां सारे बेकार जाणे वाल़े श्रम, बक्त होर प्रतिभावां रा जेबे माहणु स्वतन्त्रतापूर्वक अच्छी तरहा के उपयोग करघा, ता संसार तेस झूठे स्वर्गा ले किथी ज्यादा सुन्दर, सुखमय होर तृप्तिकर हुणा जेतारी कल्पना जो सामह्णे रखी के धर्मा रे पुरोहित आपणे भोल़े-भाल़े अनुयायियां जो फँसाहें।
तुसे आसारे एस कथना जो कल्पना रे संसारा बिच विचरना बोलघे, पर सच दसा क्या तुसारा प्रश्न बी एहड़ा हे नीं हा?
साम्यवादी झण्डे रे थाल्हे आईके राष्ट्रा री सुतिरी ताकता जागृत हुई के क्या-क्या करी सकहाईं, ये तुसा जो संसारा रे साम्यवादी देशा बखौ एक नजर पाणे ले पता लगी जाणा। एभे तेसरे भीतरी विरोध नष्ट हुई गईरे, पर बाहर ता तेसरे खिलाफ जबर्दस्त षडयन्त्रा रा बजार गर्म हा। पर इतना हुंदे हुए बी केसी बक्त उद्योग-धन्धे मंझा अत्यन्त पिछड़ीरा देश आज मिट्टी रे तेल होर लोहे रे उत्पादना मंझ सर्वप्रथम हा, बिजली रे उत्पादना मंझ बी जल्दी हे से तेहड़ा हे हुणे वाल़ा हा, बल्कि विज्ञाना री खोजा मंझ बी तिने बौहत तरक्की कितीरी। तेजो मनोविज्ञाना री खोजा मंझ पावलोवा री खोजा रा श्रेय प्राप्त हा। पावलोव बर्ट्रर्ण्ड रसला रे मता मंझ संसारा रे सात प्रतिभास्तम्भा बिच एक हा। चिकित्सा विज्ञाना मंझ हृदय री गति रे बन्द हुणे ले मरीरे लोका जो पुनर्जीवित करने रा आविष्कार बी तिथी हुई चुकीरा। दूजे विज्ञाना रे क्षेत्रा मंझ बी से देश अग्गे बधदा जाई करहां। साहित्य होर नाट्यकला मंझा ता आज संसारा मंझ तेसरा प्राधान्य हा। जिहां तिथी हरेक बच्चे री शिक्षा अनिवार्य हे नीं ही, बल्कि मानसिक झुकाव देखी के शिक्षा देणे रा उत्तम प्रबंध हा होर जिहां प्रतिभावां कठे देशा रे कुणे-कुणे ले तोपी के विशेष शिक्षा रा प्रबन्ध कितेया जाई करहां, तेता ले ये उम्मीद रखणी चहिए भई कुछ हे बक्ता मंझ विज्ञान होर तेतारे आविष्कारा री सहायता के साम्यवादी देश बौहत अग्गे बधी जाणा।
इहां यन्त्रा रे अत्यधिक उपयोगा ले प्राप्त हुणे वाल़ा अवकाश कोई एहड़ी समस्या नीं ही जेता ले भयभीत हुई के आसे आपणे ध्येया जो छाड़ी बैठियें। आपणी गल्ल आसे उठणे वाल़ी काल्पनिक शंका रे समाधाना कठे गलाई। साम्यवाद परिस्थितियां रे मुताबिक बुद्धि रे स्वतन्त्रतापूर्वक उपयोगा रा एभे बी पक्षपाती हा होर अग्गे बी रैहणा। लाखा साला बाद आउणे वाल़ी समस्या रा क्या रूप हुणा, ये ता आसौ पता नीं हा, इधी कठे अझी ले तिन्हा पर माथापच्ची करने री आसौ क्या जरूरत? हां, बुद्धि-स्वातन्त्रय के जेस संसारा री से एस बक्त नींव पाई करहां, तेतारे दमा पर आपणे विशाल ज्ञान होर चिरकाला रे तजर्बेयां रे भरोसे तेस बक्ता रे लोक आपणे आप तेतारा हल सोची लैंघे।
साम्यवादा रा भविष्य होर तेसरे दुश्मण-मित्र
आसे माहणु-जाति री विकट समस्यावां पर भतेरा लिखी चुके होर ये बी दसी चुके भई इन्हाले बचणे रा एक मात्र उपाय साम्यवाद हा। सवाल हुआं-क्या साम्यवाद संसारा मंझ जरूर हे हुई के रैहणा? ये एहड़ा प्रश्न हा जेतारा उत्तर एकदम हाँ या नाँह बिच नीं दितेया जाई सकदा।–(1) संसारा रे इतने भारी जन-समुदाया रा बेकार होर भूखे मरना, (2) हर दसवें, बारहवें साल बजारा रा मन्दा पई जाणा होर तेतारे करूआं एकी बखौ लोका रा भूखा मरना होर दूजी बखौ लाखों मण खाद्य होर दूजे पदार्था मंझ आग लगाया जाणा, (3) संसारा पर सदा भयंकर आधुनिक प्रकारा रे युद्धा री नांगी तलवारा रा लटकदे रैहणा, (4) पैतृक रोग होर मानसिक दुर्बलता जो हटाई के बेहतर माहणु-सन्तान पैदा करने रे रस्ते मंझ पगा-पगा पर बाधा हुणा, (5) धनी-गरीब सभी रा हे भविष्या री अनिश्चित अवस्था ले चिन्तित रैहणा- ये होर दूजी बी एहड़ी कितनी हे गल्ला ही जिन्हां जो साम्यवाद हे हल करी सकहां। शताब्दियां ले सुरक्षित आपणे स्वार्था री रक्षा कठे हालांकि बलवान् शक्तियां बी एतारा विरोध करी करहाईं, तेबे बी उपर्युक्त समस्यावां मनगढ़ंत नीं ही। इन्हारी तीव्र वेदना हरेक माहणु जो बक्ता-बक्ता पर बिच्छू रे डंगा साहीं चुभदी रैहीरी। इधी कठे माहणु जो साम्यवादा रा स्मरण बार-बार आउणा अनिवार्य हा होर एता ले हे पता लगहां भई साम्यवाद संसारा मंझ फैल्ही के रैहणा।
तेबे बी पूँजीपतियां बाले धना री अपार शक्ति ही, विद्य़ा-बुद्धि ही, धर्म होर ईश्वरा रा जाल हा। स्यों चुपचाप आपणे स्वार्था ले दस्त-बरदार नीं हुणे। एतारा प्राणपणा के विरोध करघे-बुद्धि के बी, शस्त्रा के बी। पर तिन्हारा मतलब तेबे हे पूरा हुई सकहां अगर स्यों (1) कुछ देशा जो हमेशा कठे गुलाम बनाई सको होर इहां एक स्थायी बजार तिन्हारे हाथा मंझ हो, (2) अगर परतन्त्र देशा कठे पूँजीपति देशा मंझ एहड़ा समझौता हुई जाओ भई तिन्हा कठे परस्पर युद्ध नीं करियें जेता के परतन्त्र देशा जो कधी स्वतन्त्र हुणे रा मौका हे नी मिलो, होर ना तिन्हौ वैज्ञानिक युद्धा रे करूआं आपणा सत्यानाश करी लैणा पौवो, (3) अगर जनवृद्धि होर यन्त्रा रे करूआं बेकार हुणे वाल़े लोका जो स्यों युद्ध या कत्लेआम के नष्ट करी सको, (4) अगर माहणु री ज्ञान-पिपासा होर मनन-अन्वेषणा री प्रवृत्ति भूतकाला री गल्ल हो होर स्वार्थी प्रभुआं रे शासना रे अन्त करने वाल़े वैज्ञानिक होर विचारक फेरी पैदा ही नीं हुई सको, (5) अगर माहणु जाति मंझा आदर्शा रे कठे प्राणा री बाजी लगाणे वाल़े सत्पुरूषा रा पैदा हुणा हमेशा कठे बन्द हुई जाओ, ता आसे बोली सकाहें भई साम्यवाद संसारा मंझ नीं फैल्ही सकघा?
आसे पक्ष होर विपक्ष दोन्हो तरहा रे कारण रखी दिते। इन्हा जो देखणे ले पता लगहां भई साम्यवादा रे विरोधी कारण, पक्षावालेयां ले किथी ज्यादा असंभव हे होर इधी कठे साम्यवाद जल्दी या देरा मंझ सफल हुणा। पूँजीवादियां रा सिद्धान्त आदर्शवादी नीं, स्वार्था रा वाद हा, इधी कठे तिन्हां ये प्रयत्न ता करना भई साम्यवाद कधी नीं आए, पर तिन्हा एतारा बी सन्तोष करना, अगर ये तिन्हारी जिन्दगी भरा कठे टल़ी जाए। दुनिया री उथल-पुथला बिच स्यों देखाहें भई कितने हे अमीरा रे बच्चेयां जो मजदूरी करनी पौहाईं, तेबे बी स्यों आपणी सन्ताना री परवाह नीं करदे। तिन्हा कठे आपणी जिन्दगी रा सुखा के कटी जाणा प्रथम ध्येय हा। पर साम्यवादी आपणे सामहणे एक आदर्श रखाहें होर एहड़ा आदर्श जेता के स्यों समझाहें भई सिर्फ एकी देशा जो हे नीं, सारी माहणु जाति जो चिरस्थायी शान्ति प्राप्त हुणी। इधी कठे हालांकि देर हुणे परा बी स्यों आपणे कामा जो छाड़ी नीं सकदे, तेबे बी तेसा देरा रा हुणा नीं हुणा ज्यादातर तिन्हारे हे उद्योगा या सुस्ती पर निर्भर हा। बिना प्रयत्न, बिना स्वार्थ-त्याग, बिना एकता के साम्यवाद आपणे आप संसार मंझ फैल्ही जाणा, एहड़ी आशा रखणा साम्यवादा रे कर्मण्यतापूर्ण सिद्धान्ता रे बिल्कुल विरूद्ध हा।
साम्यवादा री सफलता चाहणे वालेयां जो ये बी जाणना चहिए भई साम्यवादा रे कुण शत्रु होर कुण सहायक हे। होरियां साहीं साम्यवादा रे बी दो प्रकारा रे शत्रु हे, एक स्यों जे जाहणी-बूझीके आपणे स्वार्था कठे एतारा विरोध करहाएं, दूजे स्यों जे भ्रमपूर्ण धारणा होर अज्ञाना रे करूआं शत्रुवत आचरण करहाएं। पैहली श्रेणी मंझ-(1) पूँजीपति सर्वप्रथम हे, (2) फेरी तिन्हारे क्रीतदास, नौकर-चाकर होर धर्मा रे पुरोहिता रा नम्बर आवहां, पूँजीपतियां रे सहायक धर्म होर ईश्वर साम्यवादा रे विरोधा कठे भयंकर अस्त्र हे, (3) बूढ़े होर नौवें विचारा पर सोच-विचार करने री शक्ति खोई चुकीरे दमाग बी तेहड़े हे विरोधी हे।
दूजी श्रेणी रे शत्रुआं मंझ-(1) अन्धी भक्ति होर श्रद्धा-तपस्या रे प्रचारका रा नम्बर पैहले आवहां, क्योंकि स्यों माहणु री स्वतन्त्र विचार करने री शक्ति जो बेकार करी देहाएं। (2) अन्धी राष्ट्रीयता बी साम्यवादा रे आन्तरिक शत्रुआं मंझ ही, क्योंकि से संसारा रे सभ श्रमजीवियां री एकता मंझ बाधा हे नीं पांदी, बल्कि तिन्हौ आपु बिच शत्रुआं होर बन्धु-हत्या कठे तैयार करहाईं। राष्ट्रीयता रा समर्थक हुंदे हुए बी समाजवाद अन्तर्राष्ट्रीय हा। स्वदेशी समाजवादा रा नारा सिर्फ दूजेयां री हाखियां मंझ धूल झोंकणे होर आपणी नेतागीरी जो कायम रखणे कठे हा। (3) पुराणी गल्ला रा बेसुरा राग अलापणा भविष्य री ध्याड़-पर-ध्याड़ हुणे वाल़ी सार्वत्रिक प्रगति जो भूतकाला बिच तोपणा या भूतकाला री अपेक्षा तेता जो निकृष्ट समझणा, गल्ला-गल्ला मंझ पुराणी कताबा होर गल्ला री दुहाई देणा-ये मानसिक दासता बी साम्यवादा रे सूक्ष्म पर बलिष्ठ शत्रुआं मंझ ही।
शत्रुआं रे बारे मंझ बोली के अब इथी साम्यवादा रे असली संस्थापका होर सहायका रे विषय बिच बी बोली देणा। साम्यवाद शब्दा मंझ एस बक्त बौहत आकर्षण हा, इधी कठे कच्चे-पक्के सभ तरहा रे माहणु एता मंझ आउणा चाहें। साम्यवादी आन्दोलना रे पिछले सौ साला रे इतिहासा जो देखणे ले पता लगहां भई एताजो शत्रुआँ री अपेक्षा कच्चे अनुयायियां ले बौहत ज्यादा हानि पहुँचीरी। पिछले युद्धा ले बाद ता एहड़े लोगा रे करूआं कुछ देशा मंझ साम्यवादा री निश्चित सफलता पीढ़ियां कठे हटी गई। इधी कठे आसौ साम्यवादा रे कच्चे होर पक्के अनुयायियां जो बझयानणा चहिए।
साम्यवादा रे शब्दा ले आकृष्ट हुई के आउणे वाल़े लोका री कितने हे तरूण सन्ताना बी ही जिन्हारी जवानी री निष्पक्ष विचार शक्ति दूजे बन्धना रे ढीला हुणे करूआं तिथी जो खीची लयौहाईं। ता बी तेस बक्त तेसरा निश्चय कच्चा हुआं होर इन्हां मंझा ले कितने ता (1) फैशना कठे एता बखौ झुकाहें, (2) कुछा रे मना मंझ झटपट नेता बणने रा लोभ बी प्रेरक हुआं, (3) कुछा कठे ये बौद्धिक व्यायामा रा काम देहां होर इहां असली गल्ल तिन्हारे मना रे भीतरा तका बैठी नीं पांदी। एहड़े लोक क्रियात्मक तौरा ले साम्यवादा मंझ तितना योग नीं देई सकदे, क्योंकि (4) आपणे धनी सम्बन्धियां होर बन्धुआं रा ख्याल या मुलाहिजा तिन्हारे सरगर्मी के काम करने मंझ बाधक हुआं। (5) आपणी भारी आर्थिक हानि तिन्हौ बराबर अग्गे बधणे ले रोकाहाईं, (6) शब्दा रे पीछे झगड़णे री तिन्हारी स्वाभाविक प्रवृत्ति हुआईं, क्योंकि जिन्दगी री असली कठनाइयां रा तिन्हौ बौहत कम अनुभव हुआं, (7) आपु तेहड़ा मौका नीं पौणे ले गरीबा रे दुखा रा ख्याल तिन्हौ कधी-कधी हे होर से बी थोह्ड़े बक्ता कठे आवहां, (8) तिन्हां मंझा ले बौहता जो साम्यवाद ऊपर चढ़णे कठे सीढ़ी रा काम देहां, होर जिहां हे तिन्हारा मतलब पूरा हुआं तिहां हे स्यों एता जो धता दसीके अलग हुई जाहें।
धनिका री तरूण सन्ताना साहीं ता नीं, तेबे बी बुद्धिजीवी तरूण साम्यवादा रे पक्के सहायक हुणे री योग्यता नीं रखदे, क्योंकि साधारण श्रेणी मंझ पैदा हुणे परा बी तिन्हौ बडा बणने रा पूरा अवसर रैहां होर बडा बणी जाणे पर स्यों आसानी के आपणे पुराणे आदर्श होर सहकर्मियां के सौगी विश्वासघात या कृतध्नता रा बर्ताव करने ले नीं चूकी सकदे।
साम्यवादा रे असली संस्थापक होर समर्थक श्रमजीवी-मजदूर होर किसान हे हुई सकाहें क्योंकि (1) क्योंकि तिन्हारी हीन दशा, असह्य गरीबी तिन्हा भीतर बार-बार तेसा पीड़ा जो जगांदी रैहाईं। (2) स्यों एस युद्धा बिच निर्भयतापूर्वक पई सकाहें, क्योंकि तिन्हा बाले हरने कठे कुछ हया हे नीं हा। जीतणे पर तिन्हौ हमेशा री स्वतन्त्रता मिल्हणी होर हरने परा बी ता अग्गे युद्ध जारी करने रा हमेशा कठे अवसर तिन्हारे हाथा ले छिन्ही नीं जाणा, (3) संख्या या कामा रे ख्याला ले बी संसारा रे श्रमजीवी एक विशाल शक्ति हे जेतारा बोध हुंदे ही स्यों पीछे हटणे रा नावं नीं लैई सकदे। (4) धनी पूँजीपति श्रमिका रे बनाइरे हे, आपणी शक्ति होर समता रा उपयोग करीके स्यों तिन्हौ बिगाड़ी बी सकहाएं।
एहड़ा हुणे परा बी ये मतलब नीं हा भई कच्चे अनुयायियां रा बाहिष्कार करना चहिए। बुद्धिजीवियां रे सम्बन्धा मंझ उपयुक्त ख्याल मना मंझ रखणा हे तिन्हारी हानिकारकता जो हटाणे कठे भतेरा हा। बुद्धिजीवी एक बक्त सच्चे भावा के सौगी आवहाएं होर कितने हे हमेशा कठे रैही बी जाहें। सौगी हे साम्यवादा कठे तिन्हारी सेवा बी अनमोल ही। तेबे बी बक्ता-बक्ता पर कितीरे गईरे विश्वासघाता जो देखदे हुए साम्यवादी आन्दोलना रा असली आधार बुद्धिजीवियां जो नीं बनाणा हे अच्छा हा। एतारा असली आधार श्रमिक वर्ग हे हुई सकहां। दूजी श्रेणी रे लोका मंझ कितने हे बक्ता पर निकल़दे होर आउंदे रैंघे, होर कार्यकर्तावां ले समाज खाली नीं हुणा होर इहां साम्यवादा रा युद्धा तेबे तका जारी रैहणा जेबे तका संसारा मंझ धनी-गरीब, शोषक-शोषिता रा भेद मिटी नीं जांघा। जेबे वर्ग-भेद-रहित माहणु-समाज कायम हुई जाणा, तेस बक्त वर्तमाना री कठनाइयां हे दूर नीं हुई जाणी, बल्कि तेसरी कई प्रकारा री चिन्ता होर अव्यवस्था रे दूर हुई जाणे ले माहणु-जीवन ज्यादा शांतिमय, सुखमय होर सन्तोषमय हुणा होर प्राकृतिक आपदावां रे आउणे परा ज्यादा तैयारी-मुस्तैदी, संयम होर धैर्य रे सौगी तेतारा मुकाबला कितेया जाई सकणा। माहणु रा माहणु रे सौगी बर्ताव बी तेस बक्त ज्यादा प्रेम, सहानुभूति होर समानतापूर्ण होर दिखावट शुन्य हुणा।
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मंडी में बनाया जाए आधुनिक पुस्तकालयः शहीद भगत सिंह विचार मंच

मंडी। प्रदेश की सांस्कृतिक और बौद्धिक राजधानी मंडी में आधुनिक और बेहतरीन पुस्तकालय के निर्माण की मांग की गई है। इस संदर्भ में शहर की संस्...