Monday 3 June 2019

शहीद भगत सिंह विचार मंच ने की विचार गोष्ठी



मंडी। शहीद भगत सिंह विचार मंच की ओर से शनिवार को ‘लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे और आगे का रास्ता’ विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें हाल ही में सत्तासीन हुई भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन की विजय का विश्लेषण किया गया। विचार गोष्ठी के बाद बैठक में यह निष्कर्ष निकाला गया कि एनडीए की जीत के पीछे सबसे बड़ा कारण पूँजीपति वर्ग का उनको एकमत समर्थन था। पिछले पाँच वर्षों में भारत के सभी बड़े पूँजीवादी घरानों ने भाजपा को सर्वाधिक चन्दा दिया है। जबकि अन्य दल इस दौड़ में कहीं पीछे छूट गए। धनबल के अलावा भाजपा का सुसंगठित तंत्र, संगठन और कार्यसंस्कृति भी रहा। भाजपा का अनुशासित काडर आधारित ढाँचा उनकी सबसे बड़ी शक्ति है। जिसके कारण वह मीडिया की मदद से अपने प्रचार को धरातल तक पहुंचाने में सफल रही है। जबकि विपक्ष अपने प्रचार को काडर के अभाव में धरातल पर नहीं पहुंचा पाया। इसके अलावा मोदी का करिश्माई नेतृत्व, भाजपा द्वारा राष्ट्रवाद को प्रमुख मुद्दा बनाने और अन्य मुद्दों को दरकिनार करने में सफलता भी जीत के कारण रहे। ईवीएम के साथ छेडछाड और उसे बदलवाने की कोशिशें भी इस जीत का एक कारक रहा है। भाजपा को एक काडर-आधारित पार्टी ही निर्णायक शिकस्त दे सकती है। जिसके लिए विपक्ष को एक विकल्प खड़ा करने की जरूरत है। पिछले पाँच वर्षों में बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार के सारे कीर्तिमान धवस्त होने के बाद भी भाजपा को ऐसी जीत मिली है। शहीद भगत सिंह विचार मंच का मानना है कि फासीवाद को हराने के लिए ठोस रणनीति बनाये जाने की जरूरत है ताकि प्रतिरोध की ताकतें आने वाले पाँच सालों में इस फासीवादी उभार को परास्त करने की दूरगामी रणनीति पर कारगर तरीके से काम कर सके। वैकल्पिक संस्थाओं को विकसित करना पड़ेगा जिससे लोगों में वैज्ञानिक, तार्किक और प्रगतिशील विचारों को बढ़ावा देकर फासीवाद के खिलाफ लड़ा जा सके। बैठक में शहीद भगत सिंह विचार मंच शिमला के मनन विज, विचार मंच मंडी के पदाधिकारी समीर कश्यप, अमर चंद वर्मा, रवि सिंह राणा, विनोद कुमार, देशमित्र, बी आर जसवाल, मनीष कुमार, रूपिन्द्र सिंह, नरेन्द्र कुमार, लवण ठाकुर और सुरेन्द्र ठाकुर मौजूद रहे।
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Saturday 1 June 2019

इतिहासा री भौतिकवादी अवधारणा




मार्क्सा री सैद्धान्तिक विवेचना रा समाहार करदे बक्त इतिहासा री भौतिकवादी अवधारणा रे बारे बिच बोलणा जरूरी हा। ये सिद्धान्त मार्क्सा री शिक्षा रा सारतत्व हा।
निस्सन्देह एसा अवधारणा ले आसारा ये तात्पर्य नीं हा भई केसी बी युगा मंझ माहणु रे क्रियाकलाप तेसरे निजी भौतिक लाभ मात्रा के हे संचालित हुआएं। एता ले उल्टा एक भौतिकवादी हे सभी थे पैहले माहणु रे उत्साह, आदर्श होर आकांक्षा जो पैहचाणां। मार्क्सा री भौतिकवादी ऐतिहासिक अवधारणा जो स्वीकार करने वाल़े दार्शनिक भौतिकवादी हे आपणे आदर्शा कठे आपणे भौतिक सुखा जो त्यागणे कठे प्रस्तुत रैहाएं होर तिन्हें एहड़ा त्याग कितिरा बी हा जेतारा एक उदाहरण रूसा रे मार्क्सवादी समाजवादी हे ज्यों आपणे जीवना रे प्रियतम उद्देश्य सामाजिक क्रान्ति कठे आपणे जीवना सौगी आपणा सर्वस्व न्योछावर करी चुकीरे होर एभे बी करी करहाएं। एक भौतिकवादी री विशिष्टता ये नीं ही भई तेसरे कोई आदर्श नीं हुंदे या फेरी से दूजेयां रे आदर्शा जो मान्यता नीं देंदा बल्कि से होर भी डुग्घे मंझा जाई के इन्हां आदर्शा होर एस उत्साह से स्त्रोता री जांच करहां- भई यों विशिष्ट आदर्श, आचार-व्यवहार, होर विचार एस विशिष्ट युगा मंझ हे की उपजे।
उदाहरणा कठे एहड़ा की हा भई जिथी एकी बखौ आसे नरभक्षण, दासता होर भूदासत्वा रे विचारा तका ले कांबी जाहें तिथी हे दासता रे वर्तमान दभीरे-ढकीरे स्वरूपा पर आसौ कोई आपत्ति नीं हुंदी? जेबे समाजा री उत्पादक शक्तियां बौहत हे छोटे होर आदिम स्तरा पर थी ता केसी युद्धबन्दी या आपणी सीमा मंझ पकड़ी रे केसी घुसपैठिये री तेसरे विजेतेयां कठे भोजन बणने रे अलावा होर कोई उपयोगिता नीं हुई सकदी थी- तेजो जीवित रखणा समाजा कठे एक बोझ हे हुंदा, होर एक अकिंचन समाजा कठे ता एक असहनीय बोझ। एक नरभक्षी आपणे आपा ले एहड़े तर्क नीं करदा रैहा हुंगा, बल्कि अनजाणे मंझ हे तत्कालीन सामाजिक परिदृश्या मंझ से आपु, तेसरे विचार, तेसरी नैतिक भावना, तेसरे सम्पुर्ण मनोजगता कठे आपणे साहीं हे केसी माहणु जो खाई जाणा एक स्वाभाविक, नैतिक, कृत्य रैहिरा हुंगा। कुछ-कुछ एहड़ा हे तिन्हां पिछड़े समाजा मंझ स्त्री या अत्यन्त दुर्बल बच्चेयां री हत्या रे बारे मंझ बोल्या जाई सकहां ज्यों अन्यथा आपणे बच्चेयां रे प्रति बौहत ज्यादा दया ममता रखाहें थे। पर उत्पादक शक्तियां रे विकास होर जीवन निर्वाह रे सामाना मंझ वृद्धि रे परिणामस्वरूप अतिरिक्त माहणु बोझ नी रैही के एक वरदान बणी गए। एक नौवां आदर्श-माहणु जीवना री पवित्रता होर नरभक्षणा री वीभत्सता रा आदर्श पैहले अस्पष्ट रूपा ले होर फेरी ज्यादा सशक्त रूपा के प्रकट हुआ जिने पुराणे आदर्शा री जगहा लेई लिती। पर एस आदर्शा रे प्रकटीकरणा रे मूल़ा मंझ क्या था? नैतिक दृष्टिकोणा मंझा एस अचेतन परिवर्तना रा कारण क्या था? सीधा जेह उत्तर हा- उत्पादक शक्तियां रा विकास या उत्तरकालीन सामाजिक व्यवस्थावां मंझ उत्पादन पद्धतियां बिच परिवर्तन। आसे एभे आपणे दुर्बल बच्चेयां जो मारदे नीं हे बल्कि तिन्हौ शारीरिक होर मानसिक रूपा ले मजबूत बनाणे परा ध्यान दिते बिना हे तेसा कच्ची उम्रा मंझ हे कारखाने होर वर्कशॉपा रे दमघोंटू महौला मंझ साह लेणे कठे भेजी देहाएं जेसा उम्रा मंझ तिन्हौ स्कूला या फेरी खुल्ही हवा मंझ हुणा चहिए। आसे उबाऊ श्रमा के तेसरे शरीर, मन होर आत्मा जो कुचल़ी देहाएं। दयालु, ईमानदार होर कोमल हृदय हुंदे हुए बी आसे माहणुजाति रे बहुमता जो तिन्हां सभी चीजा ले वंचित करी देहाएं ज्यों जीवना जो जीणे लायक बणाहीं- आसारी नैतिकता, आसारा धर्म एतारी अनुमति देहां। की? क्योंकि आसारी उत्पादन पद्धित कठे सस्ते श्रमा री भरपूर आपूर्ति जरूरी ही, व्यक्तिगत रूपा ले श्रमिका पर चाहे जे भी बीतो। आसे निजी सम्पत्ति होर चोरी रे बारे मंझ कानूना जो बणाहें होर पालन करहांएः आसे कुछ एक निश्चित आचार संहितावां रा पालन करहाएं, होर इन्हा कानूना होर नैतिक मूल्या जो अपरिवर्तनीय मन्हाएं, होर फेरी बी आसे एकी अल्पसंख्यक वर्गा जोे बहुसंख्यक वर्गा रे श्रमा रे उत्पादना जो हथियाई लैणे रे अनुमति देहाएं होर एता जो एक वैध, ईमानदार, होर न्यायसंगत काम मनहाएं। की? क्योंकि जेहड़ा जे मार्क्से सपष्ट कितीरा, आसारे अनजाणे मंझ हे शासक वर्गा रे आचार होर कानून पूरे समाजा पर हे अभिरोपित हुई जाहें होर तेस हे माहौला मंझ पलणे-बढ़णे करूआं आसे तिन्हा जो सहज-स्वाभाविक मनी लैहाएं जबकि असलियता मंझ स्यों आर्थिक औद्योगिक परिस्थितियां रे एकी विशिष्ट स्वरूपा ले हे उपजाहें।
पर आसा मंझा ले कई लोक एसा व्यवस्था ले विद्रोह करी देहाएं। आसारा बोलणा हा भई आसे कुछ सिद्धान्ता जो मात्र इधी कठे नैतिक नीं मनी सकदे क्योंकि स्यों परम्परावां के पवित्र ठैहराई दिते गइरे या फेरी स्यों शासक वर्गा कठे सुविधानजक हे। आसे एक एहड़ी नौवीं सामाजिक व्यवस्था कठे आपणा सर्वस्व बलिदान करने जो तत्पर हे जेता बिच वर्तमान व्यवस्था रे भयावह पक्ष सदा-सर्वदा कठे दफ़न करी दिते जाणे। एहड़े विचार होर आदर्श किहां आसारे मना मंझ जगहा बणाई लैहाएं होर से क्या हा जे तिन्हौ समाजवादा री माँग उठाणे वाल़ा वर्तमान स्वरूप प्रदान करहां। क्योंकि पूँजीवादा रा बक्त तेजी सौगी बीती करहां। जेहड़ा मार्क्से सपष्ट कितिरा होर जेहड़ा आसे ऊपर बोली आए भई समाजा रा वर्तमान पूँजीवादी स्वरूप औद्योगिक क्षेत्रा मंझ हुईरी वृहत्काय प्रगति रे सौगी तालमेल बिठाई पाणे मंझ उत्तरोत्तर अक्षम हुंदा जाई करहां। सौगी हे, पूँजीवादी समाजा ले उदभूत जीवना रा सम्पूर्ण ढांचा, शैहरा मंझ लोका रे विशाल समूहा रा एकत्रीकरण, कारखानेयां मंझ मजदूरा री विशाल संख्या रा एकी-दूजे रे सम्पर्क बिच आउणा, उत्पादना रे उत्तरोत्तर ज्यादा केन्द्रीयकृत होर सामूहिक स्वरूपा ले हुईरी औद्योगिक प्रगति, सम्पतिविहिन वर्गा री अवर्णनीय निर्धनता होर यातना री तुलना मंझ सम्पत्तिशाली वर्गा री अभूतपूर्व सम्पत्ति होर वैभव- ये सभ होर इन्हारे अतिरिक्त होर बी कई गल्ला मंझ, जिन्हारी चर्चा करने रा इथी बक्त नीं हा, आसौ नौवें आदर्श, नौवीं आशा, होर नौवां उत्साह प्रदान कितीरा। पुराणे रे बीचा ले हे नौवें बीज प्रस्फुटित हुंदे जाहें होर सुले-सुले नौवें आदर्श पुराणे री जगहा लैंदे जाई करहाएं। जेबे आसे बोल्हाएं भई पूँजीवादा रा बिखराव होर समाजवादा री स्थापना अपरिहार्य ही ता एतारा मतलब ये बिल्कुल नीं हा भई अगर आसे हाथा पर हाथ रखी के बैठी रैहाएं ता तेबे बी समाजवादा रा फल आसारी गोदा बिच टिरी जाणा। नीं, जरूरी ये हा भई हर पूँजीवादी देशा री जनसंख्या रे लगातार बधदे हिस्से विद्रोहा कठे उठी जाओ होर तेसा व्यवस्था रे वास्तविक स्वरूपा जो समझदे लगी जाओ जेता बिच आसे रैहाएं। जरूरी ये हा भई उत्पादना रे क्षेत्रा मंझ नित्यप्रति उभरदा सामूहिकीकरण उत्पादना मंझ लगीरे मज़दूरा रे संगठना मंझ परिणित हुई जाओ, पैहले ता अपेक्षतया छोटे आर्थिक लाभा कठे, होर उत्तरोत्तर अग्रसर राजनीतिक उद्देश्या कठे, उत्पादन प्रक्रिया रा दास बणीरे रैहणे री जगहा पर तेसा प्रक्रिया रा स्वामी बनाणे रे उद्देश्या कठे। संक्षेपा मंझ समाजवादा कठे आर्थिक परिस्थितियां रे परिपक्व हुणे रे सौगी-सौगी हे मजदूरा री पूँजीवादी मानसिकता रा बी समाजवादी मानसिकता मंझ परिवर्तित हुणा जरूरी हा। एस परिवर्तना री जरूरत होर अनिवार्यता जो आसे जितना ज्यादा समझगे, जितने उत्साह के आसे इन्हां आदर्शा कठे काम करघे जिन्हां जो आसे समाजा रे ऐतिहासिक विकासा रे अनुकूल समझाएं, तितनी हे जल्दी के ये परिवर्तन हुणा।
एक भौतिकवादी होर कुछ बी हो, पर से भाग्यवादी नीं हुंदा। से मात्र तार्किक होर व्यवहारिक हुआं। मात्र सहानूभूति ले प्रेरित मनमोहक योजनावां बनाणे री जगहा पर (उदाहरणा कठे जेहड़ा जे आदर्शवादी समाजवादी बोल्हाएं थे) जिन्हां जो व्यवहारा बिच लयाउणा सम्भव हुई बी सकहां होर नीं बी, से जाणहां भई केसा दिशा मंझ काम करने ले प्रयास फलीभूत हुणे होर तेसा दिशा मंझ आपणे प्रयास केन्द्रित करहां। सौगी हे आपणे तरीकेयां रा चुनाव करने मंझ बी से आर्थिक होर ऐतिहासिक परिस्थितियां रा जायज़ा लैहां। इथी से पाहां भई पूँजीपति कोई बी समतुल्य भुगतान किते बगैर मजदूरा रे उत्पादित अतिरिक्त मूल्य रा अधिग्रहण हे आसारे पूँजीवादी समाजा जो एतारा विशिष्ट स्वरूप देहां। इधी रा परिणाम हा भई पूँजीपतियां होर मज़दूरा रे बीच भरा एक मूलभूत अन्तर्विरोध हुआं। पूँजी री दासता ले मुक्ति मंझ सभी ले डुग्घी दिलचस्पी मज़दूर वर्गा री हुआईं। होर ये हे कारण हा भई एक वैज्ञानिक समाजवादी री अपील मुख्यतया मज़दूरा जो हे सम्बोधित हुआईं। होर फेरी आज की परिस्थितियां रे अध्ययना ले बी ये गल्ल समझ मंझ आवहाईं भई समाजवादा मज़दूर वर्ग हे सभी ले ज्यादा आकर्षित करना। एक फैक्टरी मज़दूर, आपणे छोटे जेह जमीना रे टुकडे परा खेती करने वाल़े एक किसान, एक छोटे व्यापारी या दुकानदारा री मानसिकता पर तिन्हारी जीवन दशावां रे प्रभावा री तुलना करूआं देखा। किसान अलग-थलग जीवन बिताहां। आपणे साहीं होरी लोका के तेसरा संवाद बौहत सीमित हुआं तेसरी सोच बी संकीर्ण हुआईं तेजो बाहरली विशाल दुनिया रे बारे बिच ना ता जानकारी हुआईं होर ना हे परवाह। से प्राकृतिक शक्तियां रा दास हुआं, तिन्हा पर निर्भर हुआं तिन्हा रे हे डरा रे साये मंझ जीहां होर इहां से अलौकिक शक्तियां मंझ विश्वास करने कठे सर्वाधिक उपयुक्त माहणु हुआं। तेसरी जीविका जमीना रे छोटे जेह निजी टुकड़े पर तेसरे आपणे श्रमा के चलहाईं आपणे साहीं होरी किसाना रे सौगी एकजुट हुणे री गल्ल तेसरे मना मंझ बौहत मुश्किला के हे आई सकहाईं। समष्टिवाद, साझा मिल्कियता री गल्ला ले हे तेसरे मना मंझ आपणा सर्वस्व, आपणा से छोटा जेह जमीना रा टुकड़ा छिन्ही जाणे रा भय पैदा हुई जाहां जेता पर तेसरा पूरा जीवन निर्भर हा। ये स्वाभाविक हे हा भई से आपणा सर्वस्व केसी एहड़ी चीजा कठे दावा पर नीं लगांघा जे तेसरे विचारा ले एक दिवास्वप्न मात्र हा। साफ हा भई समाजवादी विचारा रे प्रचार-प्रसारा कठे से की उपयुक्त पात्र नीं हुई सकदा। (हां, तिन्हां बडे-बडे फार्मा पर मजदूरी पर रखीरे किसाना री गल्ल होर ही जिथी जमीना पर पूँजीवाद पद्धति के काम करवाया जाई करहां।)
एभे गल्ल करहाएं छोटे दुकानदारा री। किसाना री अपेक्षा तेसरे जीवना रा सामाजिक दायरा कुछ ज्यादा व्यापक हुणे रे करूआं हालांकि तेसरी सोच बी कुछ ज्यादा विस्तृत हुआईं पर फेरी बी समाजवादियां री नजरा ले से बी उपयुक्त पात्र नीं हा। तेसरी छोटी जेह निजी सम्पत्ति तेजो वर्तमान व्यवस्था मंझ आपणा बी एक हिस्सा हुणे री अनुभूति कराहीं। से हर ध्याड़े एस डरा मंझ जीहां भई किथकी तेजो बी मज़दूरा री कतारा मंझ नीं धकेली दितेया जाए पर तिथी हे तेजो ये आस बी बणीरी रैहाईं भई आपणी सम्पत्ति बधाई कने से समाजा रे उच्चतर वर्गा मंझ सम्मिलित हुई सकहां। ये ठीक हा भई से बडे पूँजीपति ले घृणा करहां पर तेसरी भावनावां मंझ अविश्वास घट होर ईर्ष्या ज्यादा हुआईं। से बडे पूँजीपति रे खिलाफ बी खड़ा हुई सकहां पर मात्र एक प्रतिक्रियावादी उद्देशया ले- मतलब अग्गे सामाजिक विकासा जो अवरूद्ध करने कठे होर एता मंझ बी से बौहत अग्गे तका नीं जांदा भई किथकी काठे हाथा वाल़े मज़दूर आपणे गन्दे हाथ तेसरी सम्पत्ति पर नी पाई दो। ये हे कारण हा भई एकी वर्गा रे रूपा बिच निम्न मध्यम वर्ग सदा हे मज़दूर वर्गा रा अविश्वसनीय साथी हे साबित हुईरा। एतारा ये मतलब बिल्कुल नीं हा भई एस वर्ग या एताले उच्चतर वर्गा रे माहणु मज़दूरा री मुक्ति रे संघर्षा मंझ सम्मिलित हुई हे नीं सकदे, होर आपणे बेहतर अवसरा होर ज्ञाना रे माध्यमा के आन्दोलना री बड़ी सेवा करी हे नीं सकदे शर्त बस ये ही भई बौद्धिक रूपा के स्यों आपु जो आपणी वर्गीय सीमा ले मुक्त करी चुकीरे हो, यानि वर्ग चेतन मज़दूरा रे आदर्शा जो पूरा तरहा अपनाई चुकीरे हो।
होर अब आखिरा बिच फैक्टरी मज़दूरा री गल्ल कराहें। तिन्हा बाले कोई निजी सम्पत्ति नीं हुंदी, होर इधी कठे निजी सम्पत्ति रे प्रति तिन्हारा मोह बी अपेक्षतया कम हुआं। हां, ये सच हा भई निजी सम्पत्ति मंझ तेसरी आस्था हुआईं होर से तेतारे प्रति विस्मय होर डरा रा भाव रखहां होर आपणे कठे बी तेतारा कुछ हिस्सा पाणे री लालसा तेस बिच हुआईं, बगैरा, बगैरा पर निजी सम्पत्ति कठे तेसरा लगाव व्यक्तिगत नीं हुंदा। एक निजी सम्पत्ति विहीन समाजा रा विचार तेजो इतना भयभीत नीं करदा जितना होरियां जो। तेस बाले खोणे कठे कोई निजी सम्पत्ति नीं हुंदी, इधी कठे से समाजा रे एक एहड़े स्वरूपा री सम्भावना जो स्वीकार करने कठे बी होरियां री अपेक्षा ज्यादा तत्पर रैहां जेता बिच केसी बाले कोई निजी सम्पत्ति नीं हुणी। से आपणे सहकर्मियां रे सौगी लगातार सम्पर्का मंझ रैहां तेसरी सोच बी ज्यादा विकसित हुआईं। से चीजा री उत्पादन प्रक्रिया बिच आपणे सहकर्मियां के सौगी जुडीरा हुआं होर चीजा रे सामुहिक उत्पादना रा विचार तेस कठे सहज-स्वाभाविक हुआं जेतारा अगला हे कदम हुआं इन्हा चीजा रे सामुहिक स्वामित्व रा विचार। तेसरे मालिक आपणे साझे हिता कठे संगठित हुआएं- ता मज़दूर आपणे साझे हिता कठे संगठित की नी हो- होर स्यों संगठित हुई जाहें। कारखाने होर शैहरा मंझ हर रोज तेसरा सामना अदभुत मानवीय उपलब्धियां के हुआं, होर से देखहां भई किहां माहणुए प्रकृति री शक्तियां पर विजय प्राप्त कीतीरी। परिणामस्वरूप तेसरे मना ले अलौकिक शक्तियां रा भय बी केसी सीमा तक कम हुई जाहां होर से आपणे प्रयासा पर भरोसा करना सीखहां। इहां, कामा रे दौरान पौणे वाल़े होरी सभी प्रभावा रे सौगी हे, शिक्षा रे प्रसार, बगैरा कारणा ले समाजवादी उद्देश्य होर आदर्शा रा जेबे मज़दूर वर्गा मंझ प्रचार कितेया जाहां ता तेतारे बीज बौहत हे उपजाऊ धरती पर पौहाएं। होर ये हे कारण हा भई वैज्ञानिक समाजवादी ये बोल्हाएं भई औद्योगिक मज़दूरा रे समूहा रा देर-सबेर समाजवादा जो अपनाणा अपरिहार्य हा, होर मज़दूरा रे बीच आपणा प्रचार करदे हुए स्यों एस परिवर्तना री गति जो जितना सम्भव हो तितना तीव्र करने रा प्रयास करहाएं। अगर इतिहासा री भौतिकवादी अवधारणा कठे एस संक्षिप्त विवेचना ले आसे कुछ भ्रान्तियां रे निराकरण होर एस विषया मंझ होर ज्यादा अध्ययन-मनना कठे प्रेरित करने मंझ सफल हुए हो ता बोल्या जाई सकहां आसारा बक्त व्यर्थ नष्ट नीं हुआ।
---ज़ेल्डा काहन-कोटस लिखित कताब “कार्ल मार्क्स-जीवन और शिक्षाएं” रे मण्डयाल़ी नोट्स। ये कताब राहुल फाउण्डेशन, लखनऊ ले छपीरी।
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मंडी में बनाया जाए आधुनिक पुस्तकालयः शहीद भगत सिंह विचार मंच

मंडी। प्रदेश की सांस्कृतिक और बौद्धिक राजधानी मंडी में आधुनिक और बेहतरीन पुस्तकालय के निर्माण की मांग की गई है। इस संदर्भ में शहर की संस्...