Sunday 30 September 2012

बीमा प्रिमियम लौटाने में देरी पर रिलायंस इंश्योरेंस को हर्जाना अदा करने के आदेश


मंडी। उपभोक्ता की बीमा पालिसी का प्रिमियम देरी से लौटाने को सेवाओं में कमी करार देते हुए जिला उपभोक्ता फोरम ने बीमा कंपनी को 2000 रूपये हर्जाना राशि और 1500 रूपये शिकायत व्यय अदा करने के आदेश दिये। उपभोक्ता के पक्ष में इस राशि की अदायगी कंपनी को 30 भीतर करनी होगी। जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष राजीव भारद्वाज और सदस्यों रमा वर्मा एवं लाल सिंह ने पधर तहसील के बडाग्रांव (द्रंग) निवासी मोहिन्द्र सिंह पुत्र खेम चंद की शिकायत को उचित मानते हुए रिलायंस लाईफ इंश्योरेंस कंपनी की मंडी शाखा, इंडिया इंफोलाईन इंश्योरेंस ब्रोकरस लिमिटेड और रिलायंस महाराष्ट्र के खिलाफ फैसला सुनाते हुए उक्त आदेश दिये। अधिवक्ता आर सी चौहान के माध्यम से फोरम में दायर शिकायत के अनुसार उपभोक्ता ने रिलायंस इंश्योरेंस के एजेंट इंडिया इंफोलाईन से कंपनी की पालिसी 13 साल के लिए खरीदी थी। उपभोक्ता के प्रिमियम राशि अदा करने पर उन्हे पालिसी के दस्तावेज मुहैया करवाए गए तो उन्हे पता चला कि इन दस्तावेजों के साथ वह प्रोपोजल फार्म नहीं था जिसे उन्होने भरा हुआ था। इसके अलावा पालिसी की अवधि 13 साल से घटा कर 7 साल कर दी थी। जिसके कारण उपभोक्ता ने पालिसी कैंसिल करने की अर्जी दी थी। कंपनी ने उपभोक्ता का आश्वस्त किया था कि उनकी प्रिमियम राशि समय पर लौटा दी जाएगी। लेकिन राशि न लौटाने के कारण उपभोक्ता ने फोरम में शिकायत दर्ज करवाई थी। कंपनी की ओर से कार्यवाही में भाग ने लेने के कारण फोरम ने एकतरफा सुनवाई अमल में लाई। फोरम ने अपने फैसले में कहा कि कंपनी को प्रिमियम राशि समय पर लौटानी चाहिए थी। लेकिन इसे सात महिनों के बाद लौटाया गया। प्रिमियम लौटाने में देरी कंपनी की सेवाओं में कमी को दर्शाता है। ऐसे में फोरम ने कंपनी में कमी के कारण उपभोक्ता को पहुंची परेशानी के बदले 2000 रूपये हर्जाना और 1500 रूपये शिकायत व्यय 30 दिनों के अंदर अदा करने का फैसला सुनाया।

Thursday 27 September 2012

मोबाईल 30 दिन में ठीक करने और दो हजार रूपये हर्जाना अदा करने के आदेश


मंडी। जिला उपभोक्ता फोरम ने मोबाईल फोन विक्रेता और सर्विस सेंटर की सेवाओं में कमी आंकते हुए उपभोक्ता के पक्ष में 2000 रूपये हर्जाना और 1000 रूपये शिकायत व्यय में अदा करने के आदेश दिए। इसके अलावा उपभोक्ता का मोबाईल सेट भी 30 दिनों में ठीक करने के आदेश दिये। जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष राजीव भारदवाज और सदस्यों रमा वर्मा एवं लाल सिंह ने करसोग तहसील के चुराग गांव निवासी समृति शर्मा पत्नी अरूण कौशल की शिकायत को उचित मानते हुए सुंदरनगर की भगवान दास मार्केट में स्थित शुभम कमयुनिकेशन और नेरचौक स्थित सैमसंग मोबाईल फोन के अधिकृत सर्विस सेंटर रिया कमयुनिकेशन को उक्त आदेश दिये। अधिवक्ता अभिषेक पाल के माध्यम से फोरम में दायर शिकायत के अनुसार उपभोक्ता ने 22 जनवरी 2011 को विक्रेता से सैमसंग कंपनी का मोबाईल खरीदा था। लेकिन मोबाईल खरीदने के बाद सेट में खराबी आ गयी। उपभोक्ता ने विक्रेता के ध्यान में यह खराबी लाई। जिस पर विक्रेता ने यह सेट ठीक करने के लिए कंपनी के सर्विस सेंटर को भेज दिया। उपभोक्ता को आश्वासन दिया गया था कि मोबाईल को ठीक कर लिया जाएगा। उपभोक्ता से मोबाईल ठीक करने के लिए 2000 रूपये वसूल किये गये। लेकिन फोन की खराबी दूर नहीं हो सकी। जिसके चलते उपभोक्ता ने फोरम में शिकायत दर्ज करवाई थी। फोरम ने अपने फैसले में कहा कि विक्रेता और सर्विस सेंटर ने उपभोक्ता को ठीक प्रकार से सेवाएं मुहैया नहीं करवाई। इसके अलावा जब मोबाईल में खराबी के लिये उपभोक्ता की लापरवाही साबित नहीं होनेे पर वारंटी अवधी के दौरान मुफत सेवाएं मुहैया करवानी चाहिए थी। ऐसे में फोरम ने उपभोक्ता के मोबाईल फोन को 30 दिनों में ठीक करने के अलावा विक्रेता और सेंटर की सेवाओं में कमी के कारण हुई परेशानी के चलते उपभोक्ता के पक्ष में हर्जाना और शिकायत व्यय अदा करने का फैसला सुनाया।

Tuesday 25 September 2012

दुराचार की पीडिता के पक्ष में आरोपी एसएचओ और प्रदेश सरकार को 5 लाख हर्जाना देने के फैसला


समीर कश्यप मंडी। दुराचार की पीडिता के पक्ष में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए अदालत ने हिमाचल प्रदेश सरकार और आरोपी एसएचओ गुलजार मुहममद को 5 लाख रूपये ब्याज सहित अदा करने के आदेश दिये। अदालत ने सरकार और एसएचओ को संयुक्त रूप से यह राशि अदा करने के आदेश दिये। इसके अलावा दोनों को इस मामले की 7560 रूपये की कोर्ट फीस भी 30 दिनों में जमा करनेे के आदेश दिये। सिविल जज (वरिषठ मंडल) मदन कुमार के न्यायलय ने सदर तहसील के मझवाड गांव की पीडिता द्वारा दायर किये गये दिवानी वाद का फैसला सुनाते हुए प्रदेश सरकार और नाहन की सेंटर जेल में सजा भुगत रहे आरोपी एसएचओ जिला चंबा के हरदासपुरा मुहल्ला निवासी गुलजार मुहममद पुत्र हसन मुहममद के खिलाफ उकत फैसला सुनाया। अधिवक्ता डी सी गुलेरिया के माध्यम से अदालत में मुआवजे के लिए दायर किए गए दीवानी वाद के अनुसार पीडिता के जीजा खेम चंद की अप्राकृतिक मृत्यु हो गई थी। जिसके कारण उसकी बहन रीतु देवी ने अपने पति खेम चंद की मौत को लेकर पीडिता के पति प्रेम चंद के खिलाफ भादंसं की धारा 306 के तहत सदर पुलिस थाना में मामला दर्ज करवाया था। एसएचओ गुलजार मुहममद उस समय थाना के प्रभारी थे। इस मामले की तहकीकात के दौरान फायदा उठाते हुए एसएचओ ने पीडिता को 30 अगस्त 1994 को थाना में बुलाया। जहां से वह पीडिता को उपरी मंजिल में स्थित अपने कमरे में ले गया। एसएचओ ने पीडिता को डरा धमका कर उससे जबरन दुराचार किया। उस समय पीडिता का पति पुलिस हिरासत में था और उसको मामले में फंसाने की आशंका थी। ऐसे में पीडिता ने अपनी माता को थाना में उससे हुए दुराचार के बारे में बताया। इसके बाद उक्त एसएचओ ने पीडिता को 19 सितंबर 1994 को बयान लेने के लिए फिर से थाना में बुलाया। पीडिता जब थाना गई तो इस बार भी एसएचओ ने उसके साथ अपने कमरे में दुराचार किया। जिस पर पीडिता अपने परिजनों के साथ जिला पुलिस अधीक्षक ओ सी ठाकुर के कार्यालय में एसएचओ की शिकायत करने गई। लेकिन जिला पुलिस अधीक्षक ने प्राथमिकी दर्ज करने और मेडिकल करवाने के आदेश देने के बजाय मामला दर्ज करने में बिल्कुल असमर्थता दिखाई। पुलिस के मामला दर्ज न करने पर पीडिता को अदालत की शरण में जाना पडा। जिस पर अदालत ने पुलिस को मामला दर्ज करने और पीडिता का मेडिकल करवाने के निर्देश दिये थे। लेकिन पीडिता की मुसीबतें तब भी खत्म नहीं हुई क्योंकि अदालत के साफ आदेशों के बाद भी पुलिस ने एसएचओ के खिलाफ 16 दिनों तक मामला दर्ज नहीं किया। मामला दर्ज होने के बाद पुलिस ने सरसरे ढंग से तहकीकात करके अदालत में प्राथमिकी रद्द करने की रिर्पोट पेश कर दी। इसके बाद पीडिता ने अदालत में प्राईवेट कंपलेंट दायर की थी। जिस पर सत्र न्यायलय ने 19 अगस्त 2003 में एसएचओ को दोषी करार देते हुए भादंसं की धारा 376 के तहत 10 साल के कठोर कारावास और 20 हजार जुर्माने की सजा सुनाई थी। सजा के बाद पीडिता ने प्रदेश सरकार और आरोपी के खिलाफ अदालत में मुआवजे के लिए साल 2004 में दीवानी वाद दायर किया था। अदालत ने वादी पीडिता के वाद को डिक्री करते हुए प्रदेश सरकार और आरोपी एसएचओ को उक्त हर्जाना राशि ब्याज सहित अदा करने का फैसला सुनाया।

Saturday 22 September 2012

मोबाईल विक्रेता को उपभोक्ता के पक्ष में हर्जाना अदा करने के आदेश


मंडी। जिला उपभोक्ता फोरम ने विक्रेता को उपभोक्ता का मोबाईल फोन ठीक न करने पर 1500 रूपये हर्जाना और 1000 रूपये शिकायत व्यय अदा करने के आदेश दिये। इसके अलावा विक्रेता का खराब फोन 30 दिनों में ठीक करने के आदेश दिये। ऐसा न करने पर विक्रेता को उपभोक्ता के पक्ष में उसी मॉडल का नया मोबाईल सेट देना होगा। जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष राजीव भारद्वाज और सदस्यों रमा वर्मा एवं लाल सिंह ने उप तहसील निहरी के घलांडी (बरोहकडी) निवासी क्रांती उर्फ संतोष पत्नी अक्षय राणा की शिकायत को उचित मानते हुए इंदिरा मार्केट स्थित थापर मयुजिक बैंक और नेरचौक स्थित सैमसंग सर्विस स्टेशन रीया कमयुनिकेशन को उक्त आदेश दिये। अधिवक्ता जितेन्द्र कुमार के माध्यम से फोरम में दायर शिकायत के अनुसार उपभोक्ता ने विक्रेता से सैमसंग कंपनी के मॉडल सीएस 212 का एक मोबाईल फोन 4600 रूपये में खरीदा था। लेकिन मोबाईल खरीदने के बाद ही इसके वायस कंपोनेंट में खराबी आ गई। उपभोक्ता ने इस खराबी के बारे में विक्रेता को संपर्क किया। जिस पर उपभोक्ता को अपना सेट सर्विस सेंटर में ले जाने को कहा। उपभोक्ता ने जब इसे सर्विस सेंटर में दिखाया तो उन्हे यह बताया गया कि मोबाईल का बोर्ड बदलना पडेगा। जो उनके पास उपलब्ध नहीं है। उपभोक्ता को मोबाईल करीब एक माह के बाद लौटाया गया। लेकिन इसकी खराबी दूर नहीं हो सकी। जिसके चलते उपभोक्ता ने फोरम में शिकायत दर्ज करवाई थी। फोरम की कार्यवाही में विक्रेता और सर्विस सेंटर की ओर से भाग न लेने पर एकतरफा कार्यवाई अमल में लाई गई। फोरम ने अपने फैसले में कहा कि विक्रेता उपभोक्ता को सेवाएं मुहैया करवाने में असफल रहा। ऐसे में फोरम ने उपभोक्ता का मोबाईल 30 दिनों में ठीक करने के आदेश दिये। मोबाईल के ठीक नहीं होने पर उपभोक्ता के पक्ष में उसी मॉडल का नया मोबाईल फोन देना होगा। इसके अलावा विक्रेता की सेवाओं में कमी के चलते उपभोक्ता को पहुंची मानसिक परेशानी के बदले हर्जाना और शिकायत व्यय भी देने का फैसला सुनाया।

Friday 21 September 2012

पुलिस हिरासत में मारपीट करने पर एएसआई और कांस्टेबल अदालत में तलब


मंडी। पुलिस हिरासत में मारपीट की घटना से संबंधित एक शिकायत पर संज्ञान लेते हुए अदालत ने पुलिस के एक एएसआई और कांस्टेबल को तलब किया है। इन दोनों पुलिस कर्मियों को 5 नवंबर को अदालत के समक्ष पेश होना होगा। न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी कोर्ट नंबर दो राजेश चौहान के न्यायलय ने दरबयास गांव निवासी सोहन सिंह की शिकायत पर संज्ञान लेते हुए पुलिस हिरासत में मारपीट के एक मामले में रिवालसर चौकी के एएसआई लच्छी राम और कांस्टेबल विजय कुमार को सममन जारी करते हुए अदालत में तलब किया है। अधिवक्ता जानकी दास डोगरा के माध्यम से अदालत में दायर शिकायत के अनुसार सोहन सिंह और उसके भाई हेम राज ने संपति के विवाद को लेकर रिवालसर पुलिस चौकी में एक दूसरे पर शिकायतें दर्ज करवाई थी। विगत 27 मार्च 2011 को उक्त एएसआई और कांस्टेबल ने शिकायतकर्ता सोहन सिंह को दरबयास गांव में बुलाया और उसके भाई हेम राज द्वारा लाई गई एक कार में धक्का देकर रिवालसर पुलिस चौकी में ले आए और उसे लॉक अप में बंद करके उससे मारपीट की थी। इस मारपीट से सोहन सिंह के आंखों, टांगों और पैर पर चोटें आई थी और उपचार के लिए भी चार सौ रूपये उससे मांगे गए। उपचार की राशि उधार लेने के बाद उन्हे सामुदायिक चिकित्सा केंद्र रती में मेडिकल परीक्षण करवा कर पुलिस चौकी में वापिस लाया गया। घर न पहुंचने पर जब परिवार के सदस्य पुलिस चौकी पहुंचे तो उन्हे बताया गया कि उन्हे अगले दिन अदालत में पेश किया जाएगा। अगले दिन सोहन सिंह को उपमंडलाधिकारी के न्यायलय में पेश किया गया, जहां उनको जमानत पर रिहा कर दिया गया। सोहन सिंह को इतनी बुरी तरह से पीटा गया था कि उससे चला भी नहीं जा रहा था। शिकायतकर्ता ने हिरासत में हुई मारपीट के बारे में रिश्तेदारों और अधिवक्ता को बताया। जिस पर शिकायतकर्ता का मेडिकल चेकअप क्षेत्रीय अस्पताल में करवाया गया। जिसमें शिकायतकर्ता के शरीर पर कई चोटें पाई गई। ऐसे में शिकायतकर्ता ने अदालत में उक्त पुलिस कर्मियों के खिलाफ शिकायत दायर की थी। अदालत ने शिकायत पर संज्ञान लेते हुए अपने आदेश में कहा कि तीन गवाहों के ब्यान तथा अन्य सबूतों से कर्मियों पर भादंसं की धारा 166,341,323,504 और 506 के तहत प्रथम दृष्टया अपराध साबित होता है ऐसे में अदालत ने दोनो कर्मियों को सममन जारी करके पांच नवंबर को अदालत में तलब किया है।

Thursday 20 September 2012

जलौणी जाग में हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया

मंडी। जिला के सनोर इलाका के जला गांव में जलौणी चौथ गणेश उत्सव की जाग में कुल्लू और मंडी जिला के हजारों श्रधालुओं ने बढचढ कर भाग लिया। इस अवसर पर देवता के माध्यम से लोगों की विध्न बाधाओं को दूर किया गया। बुधवार  शाम करीब चार बजे देवता के भंडार से देवता की जलेब हजारों श्रधालुओं के साथ जला के गणेश मंदिर में पहुंची। जहां पर देवता के गुर ने देवता के माध्यम से लोगों की विध्न बाधाओं का ईलाज शुरू किया। रात करीब 11 बजे क्षेत्र के छिणी, कासणा और बागी गांव से मशालें लेकर मंदिर की ओर रवाना हुए। मंदिर परिसर में पहुंचते ही सभी गांवों से लाई गई मशालों से मैदान में आग जलाई गई। जिसके बाद देवता के गुर के माध्यम से देवता का संवाद शुरू हुआ। देवता के गुर ने लोगों की प्रश्नों का जबाब भी दिया। उल्लेखनीय है कि आज भी जिला के पहाडी क्षेत्रों में देवता ही लोगों के बीमारियों और व्याधियों का ईलाज करते हैं। देवता के कारदार लाल सिंह और बजीर हीरा लाल शर्मा ने बताया कि जिनके बच्चे नहीं होते या जिन्हे भूत-प्रेत लगे होते हैं या अन्य शारीरिक व्याधियों से कष्ट में होते हैं उनका इस अवसर पर देवता के माध्यम से ईलाज किया जाता है। ऐसे कष्टों से जुझ रहे लोगों को एक सप्ताह तक भूखे पेट रखा जाता है और सिर्फ पानी ही पीने को दिया जाता है। जाग की रात को देवता गुरों के माध्यम से इनका इलाज किया जाता है। देवता के हारियान अतुल शर्मा ने बताया कि जाग के अवसर पर कुल्लू और मंडी जिला से आए श्रधालुओं ने भारी संखया में भाग लिया। वहीं पर मंडी में चामुंडा माता और नजदीकी गांव देवधार में हुई जाग में भी भारी तादात में लोगों ने भाग लिया। 

नकली शराब बेचने पर 10 हजार हर्जाना अदा करने के आदेश


मंडी। नकली शराब बेचने को सेवाओं में कमी करार देते हुए जिला उपभोक्ता फोरम ने विक्रेता को उपभोक्ता के पक्ष में 10 हजार रूपये हर्जाना और तीन हजार रूपये शिकायत व्यय 30 दिनों में अदा करने के आदेश दिये। इसके अलावा विक्रेता को उपभोक्ता के पक्ष में शराब की बोतल की कीमत 270 रूपये अदा करनेे के आदेश दिये। जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष राजीव भारद्वाज और सदस्यों रमा वर्मा एवं लाल सिंह ने पधर तहसील के कशौण (पदवाहण) निवासी राम चन्द्र पुत्र गोलू राम की शिकायत को उचित मानते हुए शराब विक्रेता जोगिन्द्रनगर तहसील के बीड रोड में स्थित मैसर्ज मल्होत्रा वाईन शाप को उक्त आदेश दिये। अधिवक्ता बिमल शर्मा के माध्यम से फोरम में दायर शिकायत के अनुसार उपभोक्ता ने 9 दिसंबर 2010 को रॉयल स्टैग व्हीस्की की एक बोतल विक्रेता से खरीदी थी। लेकिन घर आकर जब उपभोक्ता ने अपने दोस्तों के सामने बोतल के ढक्कन को खोला तो इसमें अवांछित तत्व पाये गए। ऐसे में उपभोक्ता ने अगले दिन विक्रता को इस बारे में सूचित किया। लेकिन विक्रेता ने बोतल को वापिस लेने से इंकार कर दिया। ऐसे में उपभोक्ता ने फोरम में शिकायत दर्ज करवाई थी। फोरम ने अपने फैसले में कहा कि नकली शराब बेचने सेहत के लिए हानिकारक है। जबकि बाजार में ऐसी वस्तुओं की भरमार है और इन जोखिमों का निरिक्षण करने की जरूरत है। फोरम ने अपने फैसले में कहा कि लोग ज्यादा पैसा कमाने के लिए इस तरह के गैरकानूनी हथकंडे अपनाते हैं। अगर उपभोक्ता ने नकली शराब का सेवन कर लिया होता तो इससे उन्हे नुकसान पहुंच सकता था। ऐसे में फोरम ने नकली शराब बेचने का आरोप साबित होने पर विक्रेता को उपभोक्ता के पक्ष में 10 हजार रूपये हर्जाना, तीन हजार रूपये शिकायत व्यय और बोतल की कीमत 270 रूपये की अदायगी 30 दिनों के भीतर करने का फैसला सुनाया।

Tuesday 18 September 2012

प्रदेश सरकार कर्मियों को सेवा संबंधी लाभ नहीं देना चाहती


मंडी। हिमाचल प्रदेश सरकार कर्मचारियों की हितैषी नहीं है। प्रदेश सरकार की कर्मचारी विरोधी निती के कारण कर्मियों को भारी परेशानियों का सामना करना पड रहा है। मंडी जिला के उन्नाद निवासी जय चंद, डुमणु और गलमा निवासी रघु ने एक ब्यान में बताया कि प्रदेश प्रशासनिक ट्रिब्युनल ने अपने एक फैसले में लोक निर्माण विभाग और सिंचाई एवं जन स्वास्थय विभाग के प्रदेश भर के हजारों सेवानिवृत कर्मचारियों को राहत देते हुए कर्मियों को आधा समय वर्कचार्ज समय में मिलाकर पेंशन व अन्य लाभ देने के सरकार को आदेश दिये थे। प्रदेश सरकार ने इस फैसले का विरोध करते हुए उच्च न्यायलय में याचिका दायर कर दी थी। लेकिन प्रदेश उच्च न्यायलय ने भी ट्रिब्युनल का फैसला कायम रखते हुए सरकार की अपील खारिज कर दी थी। इस पर भी प्रदेश सरकार ने कर्मियों को सेवा संबंधी लाभ देने के बजाय उच्च न्यायलय की अपील उच्चतम न्यायलय में कर दी थी। जिस पर उच्चतम न्यायलय ने यह मामला पुर्ननिरिक्षण के लिए उच्च न्यायलय को वापिस भेज दिया था। लेकिन उच्च न्यायलय ने इस बारे कर्मचारियों के विरूध फैसला दिया है। जिससे कर्मचारियों को अपने सेवा संबंधी लाभ हासिल करना बेहद कठिन हो गया है। कर्मचारियों ने बताया कि कर्मी अपनी जमा पूंजी से इस मामले को अदालतों में लड रहे हैं। जबकि प्रदेश सरकार वकीलों को भारी फीसें देकर कर्मचारियों को यह लाभ न देने के लिए यह कानूनी लडाई लड रही है। कर्मियों के अनुसार मामले की पैरवी में आने वाले खर्चे को देखते हुए अब इस मामले में अदालतों की अगली लडाई लडना संभव नहीं लग रहा है। कर्मियों का कहना है कि प्रदेश के मुखयमंत्री प्रेम कुमार धुमल कितने कर्मचारी हितैषी हैं इसका खुलासा इस मामले में सरकार के कर्मियों को लाभ न देने की निती से साफ उजागर होता है।

Monday 17 September 2012

विक्रेता और निर्माता को खराब पंप 30 दिनों में बदलने के आदेश


मंडी। खराब पंप बेचने को निर्माता और विक्रेता की सेवाओं में कमी करार देते हुए जिला उपभोक्ता फोरम ने उपभोक्ता के पक्ष में 30 दिन में नया पंप देने के आदेश दिए। ऐसा न करने पर उपभोक्ता के पक्ष में पंप की कीमत 18907 रूपये की राशि 9 प्रतिशत ब्याज सहित लौटानी होगी। वहीं पर निर्माता और विक्रेता की सेवाओं में कमी के कारण उपभोक्ता को हुई परेशानी के बदले 2000 रूपये हर्जाना और 1500 रूपये शिकायत भी अदा करने का आदेश दिया। जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष राजीव भारद्वाज और सदस्यों रमा वर्मा एवं लाल सिंह ने करसोग तहसील के कलाशन(मरोठी) गांव निवासी रजनी रावत पत्नी वी एस रावत की शिकायत को उचित मानते हुए निर्माता करनाल(हरियाणा) स्थित ओसवाल पंपस, मनीमाजरा(चंडीगढ) स्थित अराईज मार्केटिंग और मेन बाजार करसोग स्थित विक्रेता मैसर्ज देव राज एंड सन को उक्त आदेश जारी किए। अधिवक्ता आकाश शर्मा के माध्यम से फोरम में दायर शिकायत के अनुसार उपभोक्ता ने विक्रेता से 5 हार्स पावर का एक सबमरसीबल पंप खरीदा था। लेकिन पंप में खराबी आने के कारण इसे ठीक करवाने के लिए विक्रेता के पास ले जाया गया। जिस पर निर्माता की ओर से भेजे गए मैकेनिक ने पंप की जांच की जिस पर पंप को बदल कर उपभोक्ता को नया पंप दे दिया गया। लेकिन उपभोक्ता को उस समय फिर से परेशानी का सामना करना पडा जब इस बदले हुए पंप ने भी काम करना बंद कर दिया। उपभोक्ता ने कई बार निर्माता और विक्रेता को पंप बदलने के बारे में बताया। लेकिन पंप ठीक न करने पर उन्होने फोरम में शिकायत दर्ज करवाई थी। फोरम ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद अपने फैसले में कहा कि वारंटी अवधी में खराब हुए पंप को नहीं बदलना निर्माता और विक्रेता की सेवाओं में कमी को दर्शाता है। ऐसे में फोरम ने उपभोक्ता के पक्ष में 30 दिनों के भीतर नया पंप देने या ऐसा न होने पर पंप की कीमत ब्याज सहित अदा करने के आदेश दिये। वहीं पर निर्माता और विक्रेता की सेवाओं में कमी के कारण उपभोक्ता को पहुंची परेशानी के बदले हर्जाना और शिकायत व्यय भी अदा करने के आदेश दिये।

Sunday 16 September 2012

नप ने करवाई डिभा बावडी परिसर की लाईटें ठीक, स्थानिय लोगों को मिली राहत


मंडी। छोटी काशी मंडी के भगवान मुहल्ला में स्थित प्राचीन डिभा बावडी परिसर में स्ट्रीट लाईट ठीक हो जाने से स्थानिय वासियों ने राहत की सांस ली है। स्थानिय वासियों ने इन लाईट प्वाईंटों को ठीक करने के लिए नगर परिषद की कार्यकारी अधिकारी ऊर्वशी वालिया का आभार जताया है। उल्लेखनीय है कि बावडी परिसर में लगाई गई स्ट्रीट लाईटें पिछले करीब दो महीनों से खराब हो गई थी। जिससे बावडी में आने वाले सैंकडों स्थानिय वासियों को अंधेरे में बावडी परिसर से पानी लाना पड रहा था। जिससे लोगों को भारी परेशानियां उठानी पड रही थी। ऐसे में स्थानिय वासियों ने नगर परिषद की कार्यकारी अधिकारी को ज्ञापन सौंप कर कार्यवाही की मांग की थी। जिस पर नगर परिषद ने अब बावडी परिसर के सारे लाईट प्वाईंटस ठीक कर दिये हैं। स्थानिय निवासी धन देव भारद्वाज, धर्म चंद, खेम चंद, हेम राज, नरपत भारद्वाज, भारत भूषण, तिलक राज, मुरारी लाल, योगेश, आकाश कश्यप, यशकांत कश्यप, कुलदीप, धीरज, योगेश शर्मा, कमल, सुशांत, पंकज, यतीन भारद्वाज और समीर कश्यप ने बावडी परिसर की लाईटें बहाल करने पर नगर परिषद की कार्यकारी अधिकारी का धन्यावाद किया है। इधर, नगर परिषद की कार्यकारी अधिकारी ऊर्वशी वालिया ने डिभा बावडी परिसर की लाईटें ठीक करवाने की पुष्टि की है।

Thursday 13 September 2012

हिन्दी को उच्च न्यायलय में मान्यता दिलाने के लिए सरकार आगे आएः नरेन्द्र शर्मा


मंडी। भले ही हिन्दी भाषा विश्व की तीसरी सबसे बडी भाषा बन गई है। लेकिन प्रदेश में हिन्दी की हालत का यह आलम है कि अभी तक प्रदेश सरकार ने उच्च न्यायलय में हिन्दी को मान्यता देने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। हिन्दी को उच्च न्यायलय में मान्यता दिलाने के लिए प्रदेश सरकार को राष्ट्रपति की मंजुरी लेने के लिए आगे आना चाहिए। जिससे प्रदेश में हिन्दी का उत्थान हो सके। हिन्दी भाषा दिवस पर यह कहना है जिला एवं सत्र न्यायलय में हिंदी में वकालत करने वाले अकेले अधिवक्ता नरेन्द्र शर्मा का। अधिवकता नरेन्द्र शर्मा विगत 1999 से जिला न्यायलय में देवनागरी हिन्दी में विधि व्यवसाय में कार्यरत हैं। श्रमिक न्यायलय शिमला में कार्यरत पीठासीन अधिकारी डी एस खेनाल के सुंदरनगर में उपमंडलीय न्यायिक दंडाधिकारी के रूप कार्यकाल के दौरान नरेन्द्र शर्मा को हिन्दी में कार्य करने के प्रेरणा मिली जो उनके लिए बहुमुल्य साबित हुई। नरेन्द्र अकेले ऐसे अधिवक्ता हैं जो अदालतो ं में सारा कार्य मसलन वाद, प्रतिवाद, पुर्ननिरिक्षण याचिकाओं को बनाने और अन्य कार्यवाहियों को हिन्दी में ही अंजाम देते हैं। उनका कहना है कि हालांकि हिन्दी में कार्य करने के कारण कई बार अडचनें भी सामने आई हैं लेकिन इन पर पार पा जाने के बाद अब सारा कार्य सहजता से हो जाता है। हिन्दी भाषा के प्रशासनिक पहलुओं के बारे में नरेन्द्र बताते हैं कि अंग्रेजी शासन में पंजाब सरकार ने 18 जनवरी 1906 की अधिसूचना संखया 316 जारी करके हिन्दी भाषी क्षेत्र की जिला न्यायलय की भाषा हिन्दी होने को मान्यता दी थी। जिसकी झलक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 345 में देखी जा सकती है। साल 1976 में सीपीसी में जिला न्यायलय की भाषा हिन्दी घोषित की गई है। प्रदेश उच्च न्यायलय के न्यायमुर्ति एम आर वर्मा ने साल 2000 में एक अपील के फैसले में जिला न्यायलय की भाषा हिन्दी घोषित की है। नरेन्द्र के अनुसार पंजाब भू राजस्व नियम 44 के तहत एसडीएम, तहसीलदार को हिन्दी में निर्णय करने का निर्देश है। भारतीय संविधान व राजभाषा अधिनियम की धारा 7 के तहत हिन्दी भाषी क्षेत्र के राज्य उतर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान की सरकारों ने उच्च न्यायलय में हिन्दी को राष्ट्रपति की मंजुरी से मान्य करवाया है। लेकिन हिन्दी भाषी राज्य हिमाचल प्रदेश की सरकार ने प्रदेश उच्च न्यायलय में हिन्दी को मान्य करने के लिए आज तक कोई पहल नहीं की है और न ही केन्द्रीय सरकार को राष्ट्रपति से मंजुरी लेने के लिए कोई अनुरोध किया है। अधिवक्ता नरेन्द्र शर्मा का कहना है कि प्रदेश सरकार को राष्ट्रपति से मंजुरी के लिए आवेदन करना चाहिए जिससे प्रदेश उच्च न्यायलय में भी हिन्दी को मान्यता मिल सके।

आत्महत्या को प्रेरित करने के मामले के सबूतों से छेडछाड का आरोप


मंडी। विवाहिता को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के मामले में महिला के पति ने सबूतों से छेडछाड करने का आरोप लगाया है। इस बारे में मृतका के पति ने जिला पुलिस अधीक्षक को आवश्यक कार्यवाही करने की गुहार लगाई है। बल्ह क्षेत्र के बगला (बडसु) निवासी मुन्नी लाल पुुत्र सेवक राम के अनुसार आरोपी दुनी चंद पिछले काफी समय से उनकी पत्नी जमना देवी को प्रताडित कर रहा था। इस प्रताडना से दुखी होकर जमना ने विगत 5 सितंबर को जहरीले पदार्थ का सेवन करके अपनी ईहलीला समाप्त कर ली थी। जिसके चलते मुन्नी लाल ने बल्ह पुलिस थाना में भादंसं की धारा 306 के तहत मामला दर्ज करके तहकीकात शुरू की थी। लेकिन आरोपी गिरफतार होने से पहले ही उच्च न्यायलय तक पहुंचने में सफल हो गया। जहां से आरोपी ने अग्रिम जमानत याचिका दायर करके अंतरिम जमानत हासिल कर ली है। मुन्नी लाल के अनुसार आरोपी दुनी चंद जमानत हो जाने के बाद इस मामले के सबूतों और गवाहों से छेडछाड करने लगा है। मुन्नी लाल ने जिला पुलिस अधीक्षक को अर्जी देकर आरोपी की उच्च न्यायलय में दायर जमानत याचिका का विरोध करने और इसे नियमित न होने के लिए गुहार लगाई है। मुन्नी लाल के अनुसार जमानत नियमित हो जाने से आरोपी इस मामले के सबूतों से छेडछाड कर सकता है। इधर, जिला पुलिस अधीक्षक ने अर्जी मिलने की पुष्टि की है।

Monday 10 September 2012

जिला कांग्रेस अनुसूचित जाति विभाग के अध्यक्ष बनने पर राजेन्द्र मोहन सम्मानित


मंडी। जिला कांग्रेस कमेटी अनुसूचित जाति विभाग का जिलाध्यक्ष राजेन्द्र मोहन को नियुक्त किए जाने पर रविवार को गुरू रविदास पंचायत, श्री वाल्मिकी सभा, कबीर सभा व अन्य संगठनों ने उन्हे सम्मानित किया। अंबेदकर भवन में आयोजित सममान समारोह के अवसर पर राजेन्द्र मोहन ने कहा कि वह संगठन को मजबूत करने के लिए सभी विधानसभा क्षेत्रों का भ्रमण करेंगे। उन्होने कहा कि ज्यादा से ज्यादा युवाओं और महिलाओं को संगठन के साथ जोडने के लिए विशेष अभियान शुरू करेंगे। जिसमें केन्द्र सरकार द्वारा चलाई जा रही दलित और पिछडे वर्गों के लिए चलाई जा रही योजनाओं का लाभ उन्हे मिल सके। इस अवसर पर गुरू रविदास पंचायत के प्रधान व पूर्व पार्षद महेन्द्र कुमार, वर्तमान पार्षद विमला देवी, वाल्मिकी सभा के प्रधान मनीष कुमार, कबीर सभा की ओर से विनोद कुमार, पूर्व पार्षद तारू राम, व्यास देव, गोपाल, किशन, पुन्नी देवी, मदन, शहरी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हितेश मल्होत्रा, महामंत्री मंजुल राणा, संजय आजाद, नीरज टंडन, युवा कांग्रेस अध्यक्ष रविन्द्र सिल्ही, हितेश्वर, पूर्व पार्षद अन्नू शर्मा, शहरी कांग्रेस कमेटी मीडिया प्रभारी यश कांत कश्यप ने राजेन्द्र मोहन को जिलाध्यक्ष बनाने पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष वीरभद्र सिंह का आभार व्यक्त किया है। उन्होने आशा जताई है कि राजेन्द्र मोहन की अगुवाई में कांग्रेस पार्टी और संगठन में मजबूती आएगी और विस्तार होगा।

Sunday 9 September 2012

उपभोक्ता की मृत गाय का मुआवजा अदा करने के आदेश


मंडी। उपभोक्ता के पक्ष में मृत गाय का मुआवजा अदा न करने को सेवाओं में कमी मानते हुए उपभोक्ता फोरम ने बीमा कंपनी को 10,000 रूपये की मुआवजा राशि ब्याज सहित अदा करने के आदेश दिए। इसके अलावा कंपनी को उपभोक्ता के पक्ष में 2500 रूपये हर्जाना और 1500 रूपये शिकायत व्यय भी अदा करना होगा। जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष राजीव भारद्वाज और सदस्यों रमा वर्मा एवं लाल सिंह ने सदर उपमंडल के मराड (बग्गी) निवासी मीरा देवी पत्नी साधु राम की शिकायत को उचित मानते हुए आईसीआईसीआई लोंबार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी को उपभोक्ता के पक्ष में उक्त राशि 9 प्रतिशत ब्याज दर सहित अदा करने के आदेश दिये। अधिवक्ता नूर अहमद के माध्यम से फोरम में दायर शिकायत के अनुसार उपभोक्ता ने अपनी बोवाईन टी एक्स गाय को कंपनी के पास बीमाकृत करवाया था। बीमा अवधी में ही उपभोक्ता की गाय की मौत हो गई। जिस पर उपभोक्ता ने गाय को पोस्टमार्टम करवा कर इसकी सूचना बीमा कंपनी को दी थी। उपभोक्ता ने इस बारे में तमाम दस्तावेज कंपनी को मुहैया करवा कर मुआवजे की मांग की थी लेकिन कंपनी ने इस आधार पर मुआवजा खारिज कर दिया था कि गाय के कान में टैग लगा हुआ नहीं पाया गया। फोरम ने अपने फैसले में कहा कि गाय के पोस्टमार्टम के दौरान चिकित्सक ने गाय की पहचान को साबित किया है। इसके अलावा कंपनी के सर्वेयर की रिर्पोट में भी इस बात को कोई जिक्र नहीं किया गया है कि गाय के कान से टैग नहीं लगा हुआ था। ऐसे में फोरम ने बीमा कंपनी के तर्कों को अस्वीकारते हुए मुआवजा खारिज करने को सेवाओं में कमी करार दिया। जिसके चलते फोरम ने कंपनी को उक्त मुआवजा राशि ब्याज सहित अदा करने के अलावा हर्जाना और शिकायत व्यय भी देने का फैसला सुनाया।

डिभा बावडी परिसर में पिछले दो महीनों से स्ट्रीट लाईट न होने से लोगों को परेशानी

डिभा बावडी परिसर में पिछले दो महीनों से स्ट्रीट लाईट न होने से लोगों को परेशानी
मंडी। शहर के भगवाहन मुहल्ला में स्थित प्राचीन डिभा बावडी परिसर में पिछले दो माह से स्ट्रीट लाईट नहीं है। जिसके कारण स्थानिय निवासियों को भारी असुविधाओं का सामना करना पड रहा है। इस प्राचीन बावडी के उचित रखरखाव और परिसर की लाईटें ठीक करने के लिए स्थानिय निवासियों ने नगर परिषद की कार्यकारी अधिकारी को ज्ञापन दिया है। स्थानिय निवासियों धन देव भारद्वाज, धर्म चंद, खेम चंद, हेम राज, नरपत भारद्वाज, भारत भूषण, तिलक राज, मुरारी लाल, योगेश, अनुपम कश्यप, प्रदीप भारद्वाज, आकाश कश्यप, यश कांत कश्यप, कुलदीप, धीरज, योगेश शर्मा, कमल, सुशांत, पंकज, यतीन भारद्वाज और समीर कश्यप के अनुसार पिछले करीब दो महीनों से प्राचीन धरोहर डिभा बावडी परिसर में सारी स्ट्रीट लाईटें खराब पडी हुई है। बावडी में हर रोज सैंकडों स्थानिय वासी पानी लेने के लिए आते हैं। लेकिन बावडी परिसर में घुप्प अंधेरा होने के कारण लोगों को भारी असुविधाओं का सामना करना पड रहा है। स्थानिय वासियों के अनुसार बरसात का मौसम होने के कारण आए दिन अनहोनी का सामना करना पड रहा है। उन्होने बताया कि कुछ समय पहले बावडी के आसपास के क्षेत्र में गल्त तरीके से निर्माण होने से इसका पानी प्रदुषित हो गया था। जिसके कारण मुहल्ला वासियों को लंबे समय तक बावडी के पानी से वंचित रहना पड़ा था। उस समय भी स्थानिय निवासियों ने पहल करके आईपीएच विभाग से बावडी के उपर की ओर बना दिये गए सीवरेज के टैंक को हटवा कर इसे प्रदुषित होने से बचाया था। स्थानिय वासियों ने मांग की है कि इस धरोहर बावडी का उचित रखरखाव किया जाए और बावडी में परिसर में खराब हो गए लाईट प्वाईंटों को जल्द से जल्द ठीक करवाया जाए। इधर, नगर परिषद की कार्यकारी अधिकारी ऊर्वशी वालिया ने ज्ञापन मिलने की पुष्टि करते हुए बताया कि परिसर के लाईट प्वाईंटस को जल्द ठीक करवाया जाएगा।

बाईक निर्माता और विक्रेता को उपभोक्ता के पक्ष में 10,000 हर्जाना अदा करने के आदेश


मंडी। जिला उपभोक्ता फोरम ने मोटरसाईकिल निर्माता और विक्रेता को उपभोक्ता के पक्ष में 10 हजार रूपये और 3000 रूपये शिकायत व्यय अदा करने के आदेश दिए। इसके अलावा उपभोक्ता के मोटर साईकिल के सैल्फ स्टार्टर को बिना कीमत वसूले तीन दिन में बदलने के आदेश दिए। जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष राजीव भारद्वाज और सदस्यों रमा वर्मा एवं लाल सिंह ने जेल रोड मंडी निवासी जितेन्द्र कुमार पुत्र रवि कांत की शिकायत को उचित मानते हुए विक्रेता गुटकर स्थित शिवम आटोमोबाईल और निर्माता हरियाणा के पंचकुला में स्थित रॉयल इनफील्ड को उक्त आदेश दिये। अधिवक्ता प्रशांत शर्मा के माध्यम से फोरम में दायर शिकायत के अनुसार उपभोक्ता ने रॉयल इनफील्ड क्लासिक 350 सीसी की मोटरसाईकिल विक्रेता से एक लाख सात हजार रूपये में खरीदी थी। लेकिन मोटरसाईकिल खरीदने के बाद से ही इसके सैल्फ सटार्टर ने ठीक ढंग से कार्य नहीं किया। जिस पर उपभोक्ता ने इस बारे में विक्रेता को संपर्क किया। विक्रेता ने मोटरसाईकिल की बैटरी को चार्ज करके इसे वापिस लौटा दिया। लेकिन स्टार्टर की समस्या ठीक नहीं हो सकी। ऐसे में उपभोक्ता मोटरसाईकिल को फिर से विक्रेता के पास ले गया। इस बार खराबी का कारण मैगनेटो का काम नहीं करना बताया गया। जिस पर मोटरसाईकिल का मैगनेटो बदल दिया गया लेकिन खराबी दूर नहीं हो सकी। ऐसे में उपभोक्ता ने निर्माण संबंधी खराबी होने के कारण सेवाओं की कमी के चलते फोरम में शिकायत दर्ज करवाई थी। फोरम ने अपने फैसले में कहा कि उपभोक्ता को विक्रेता और निर्माता की ओर से अच्छी तरह सेवा मुहैया नहीं की गई। जिसके कारण उपभोक्ता को कमी तरह की हानियों को सहन करना पडा। ऐसे में फोरम ने निर्माता और विक्रेता को उपभोक्ता के पक्ष में हर्जाना और शिकायत व्यय अदा करने के अलावा मोटरसाईकिल का सैल्फ सटार्टर तीन दिन में बदल कर इसे चलाने योगय बनाने का फैसला सुनाया।

Thursday 6 September 2012

परिवहन निगम को तीन रूपये के बदले उपभोक्ता के पक्ष में तीन हजार रूपये अदा करने के आदेश


मंडी। हिमाचल परिवहन निगम को यात्री से तीन रूपये ज्यादा वसुलना उस समय महंगा पड गया जब जिला उपभोक्ता फोरम ने निगम को उपभोक्ता के पक्ष में 2000 रूपये हर्जाना और एक हजार रूपये शिकायत व्यय अदा करने का फैसला सुनाया। इसके अलावा निगम को अधिक वसूले गए तीन रूपये 15 दिनों के भीतर लौटाने के भी आदेश दिये हैं। जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष राजीव भारद्वाज और सदस्यों रमा वर्मा एवं लाल सिंह ने जिला एवं सत्र न्यायलय मंडी में कार्यरत अधिवक्ता सरकाघाट तहसील के खेडी (कमलाह) निवासी भूपिन्द्र सिंह भरमौरिया की शिकायत को उचित मानते हुए हिमाचल परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक और निगम के बरछवाड (सरकाघाट) स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के प्रबंधक को उक्त आदेश दिये। अधिवक्ता दिनेश शर्मा के माध्यम से फोरम में दायर शिकायत के अनुसार उपभोक्ता भूपिन्द्र सिंह भरमौरिया मंडी न्यायलय में बतौर अधिवक्ता कार्यरत हैं। अधिवक्ता परिवहन निगम की बस चंबनौण से धर्मपुर (बाया बनवार) बस पर चढे। निगम के परिचालक ने उपभोक्ता से इस यात्रा के लिए 22 रूपये किराया वसूला। उपभोक्ता के अनुसार चंबनौण से धर्मपुर की दूरी 16 किमी की है और प्रदेश की अधिसूचना के मुताबिक प्रतिकिमी का किराया 1.11 रूपये है। इस अधिसूचना के मुताबिक धर्मपुर तक की दूरी का किराया 19 रूपये बनता था। जबकि यात्रियों से तीन रूपये अतिरिक्त वसूले जा रहे थे। इस बारे में परिचालक को कई बार सूचित करके ठीक किराया वसुलने के लिए कहा गया था। लेकिन कोई कार्यवाही न होने के कारण उन्होने फोरम में शिकायत दर्ज करवाई थी। फोरम ने अपने फैसले में कहा कि यह साबित हुआ है कि अधिसूचना का उल्लंघन करके ज्यादा किराया वसुला गया है जो निगम की सेवाओं में कमी को दर्शाता है। ऐसे में फोरम ने निगम को अधिक वसुली राशि वापिस लौटाने के अलावा सेवाओं में कमी के कारण उपभोक्ता को हुई परेशानी के बदले हर्जाना और शिकायत व्यय भी अदा करने का फैसला सुनाया।

जिला और बल्ह में विकास का श्रेय धुमल कोः देशबन्धु


मंडी। जिला मंडी और बल्ह क्षेत्र में विकास का श्रेय प्रो. प्रेम कुमार धुमल को जाता है। जिला और विशेषकर बल्ह विधानसभा क्षेत्र की जनता मिशन रिपिट को कामयाब करके मुखयमंत्री को इस विकास के लिए धन्यावाद देगी। भाजपा के प्रदेश परिषद के सदस्य और अनुसूचित जाति मोर्चा के जिला अध्यक्ष लाल सिंह देशबन्धु ने कहा कि बल्ह विधानसभा क्षेत्र में साढे सालों को छोड कर कांग्रेस का ही विधायक रहा है जिसके कारण बल्ह विकास में पिछडा ही रहा। कांग्रेस ने बल्ह की अनदेखी ही की है। बल्ह के विधायक प्रकाश चौधरी ने हमेशा विकास में रोडे अटकाने का काम किया है। अगर बल्ह से भाजपा का विधायक होता तो इस क्षेत्र में भी कहीं ज्यादा विकास होता। प्रदेश में जब-2 भी भाजपा की सरकार बनी तभी बल्ह में सडक, पानी, शिक्षा व स्वास्थय के क्षेत्र में रिकार्ड विकास हुआ है। स्थानिय कांग्रेसी विधायक प्रकाश चौधरी की प्राथमिकता में न होने के बावजूद भी घासणु, बगला व मैरामसीत स्कूलों का दर्जा बढाकर 10 जमा दो किया गया। रिवालसर में सरकारी डिग्री कालेज का तोहफा देकर बल्ह की जनता को लाभांवित किया है। देशबन्धू ने कहा कि नेरचौक में बन रहा मैडिकल कालेज चिकित्सा के क्षेत्र में जिला मंडी और बल्ह के लिए वरदान साबित होगा। अब मंडी के लोगों को इलाज के लिए आईजीएमसी शिमला और पीजीआई चंडीगढ के चक्कर नहीं लगाने पडेंगे।

वाहन निर्माता और विक्रेता फोरम में तलब


मंडी। नये मॉडल की राशि वसूल करके पुराने मॉडल का वाहन मुहैया करने पर एक उपभोक्ता ने वाहन विक्रेता और निर्माता की शिकायत जिला उपभोक्ता फोरम में दर्ज की है। जिला उपभोक्ता फोरम ने शिकायत पर संज्ञान लेते हुए वाहन विक्रेता और निर्माता को नोटिस जारी करके फोरम में तलब किया। जानकारी के अनुसार सुंदरनगर के बीबीएमबी कलौनी में राज्य विद्युत बोर्ड के पी एंड टी डिविजन कार्यालय में कार्यरत तारा चंद शर्मा पुत्र शंकर दास टाटा इंडिगो कार खरीदने के लिए वाहन विक्रेता के शो रूम में गए। वाहन की डिलीवरी देते समय उपभोक्ता को वाहन की केवल इंश्योरेंस और गेट पास ही जारी किया गया। जिसमें वाहन का मॉडल 2012 बताया गया था। उपभोक्ता को कहा गया कि वाहन के अन्य दस्तावेज उन्हे जल्दी ही मुहैया करवा दिए जाएंगे। करीब एक सप्ताह बाद जब उपभोक्ता को वाहन के अन्य दस्तावेज सौंपे गए तो वह उस समय हैरान रह गए जब उन्हे यह पता चला कि कार का मॉडल सेल सर्टिफिकेट में फरवरी 2011 बनाया गया। हालांकि उपभोक्ता ने नये मॉडल की कार के लिए राशि अदा की थी। उपभोक्ता ने इस बारे में जब विक्रेता को संपर्क किया और पुराने मॉडल की कार बेचने के बारे में बताया और कार बदल कर नये मॉडल की कार देने की मांग की। लेकिन नयी कार सौंपने के लिए आनाकानी की गई। उपभोक्ता के मुताबिक 2011 की कार के मॉडल की कीमत 2012 के मॉडल की कीमत से 70,000 रूपये कम थी। लेकिन उपभोक्ता से अधिक राशि वसूल कर ली गई। नये मॉडल की कार की कीमत के बदले पुराने मॉडल की कार सौंपने को सेवाओं में कमी मानते हुए उपभोक्ता ने अधिवक्ता महेश चंद्र शर्मा के माध्यम से जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज करवाई है। जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष राजीव भारदवाज और सदस्यों ने शिकायत पर संज्ञान लेते हुए निर्माता और विक्रेता को नोटिस जारी करके तलब किया है।

Sunday 2 September 2012

रिवालसर के नैणा माता में विधिक शिविर आयोजित


मंडी जिला के सदर उपमंडल की ग्राम पंचायत लोअर रिवालसर के नैणादेवी तथा गोहर उपमंडल की ग्राम पंचायत थाची में विधिक शिविरों का आयोजन किया गया । सदर उपमंडल की ग्राम पंचायत लोअर रिवालस के नैणीदेवी में आयेाजित विधिकि साक्षरता शिविर की अध्यक्षता जिला एवं सत्र न्यायधीश मंडी वीरेन्द्र सिंह ने की । इस अवसर पर उपस्थिति लोगों को सम्बाेिधत करते हुए उन्होंने कहा कि गरीब व असहाय व्यक्ति अन्याय का शिकार होता है। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों के लिए विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा मुफत कानूनी सहायता प्रदान की जा रही है । उन्होंने कहा कि प्रत्येक नागरिक जिसकी समस्त स्त्रोंतो से आय प्रति वर्ष एक लाख रूपये हो, वह नि:शुल्क विधिक सेवा प्राप्त कर सकता है । उन्होंने कहा कि महिलाओं, बच्चों तथा अनुसूचित जाति के लोगों के लिए आय की कोई सीमा नही हैं । उन्होंने कहा कि निशुल्क कानूनी सहायता के लिए एक सादे कागज पर उपमण्डल, जिला या राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास प्रार्थना पत्र दिया जा सकता है जिसमें प्रार्थी को अपने साथ हुए अन्याय का संक्षिप्त विवरण,नाम, आय की सीमा इत्यादि का हवाला देना होता है । उन्होनें लोगों से आहवान किया कि वह छोटे-मोटे झगडे पंचायत स्तर पर ही निपटाने का प्रयास करें । अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायधीश डा$ बलदेव ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में इन शिविरों के माध्यम से लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जा रहा है ताकि वह अपने साथ हुए अन्याय का शिकार न हो सके । उन्होंने पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधियों को भी इस बारे लोगों को जागरूक करने पर बल दिया । उन्होंने लोगों से आहवान किया कि वह अपने भूमि संबंधी विवादों को तकसीम करवा निपटाएं । इस अवसर पर मुख्य न्याययिक दंडाधिकारी मदन कुमार ने भी लोगों को विभिन्न कानूनी पहलुओं के बारे में जागरूक किया । शिविर में अधिवक्ता एवं सचिव बार एसोसियेशन लोकेन्द्र कुटलेहरिया ने गिरफतार किए गए व्यक्ति के अधिकारों, अधिवक्ता लाल सिंह देश बंधू ने उपभोक्ता संरक्षण मामले, अधिवक्ता पूनम ने हिन्दू विवाह अधिनियम, समीर कश्यप ने सूचना का अधिकार अधिनियम तथा गायत्री देवी ने गुजारा भत्ता अधिनियम के बारे में लोगों को विस्तृत जानकारी प्रदान की । फास्टटैक कोर्ट के पीठासीन अधिकारी आरके शर्मा भी इस अवसर पर मौजूद थे। स्थानीय ग्राम पंचायत के प्रधान तेज सिंह ठाकुर ने शिविर के आयोजन के लिए धन्यवाद किया । इस अवसर पर जिला परिषद सदस्य घनश्याम ठाकुर भी मौजूद थे । गोहर उपमण्डल की ग्रंाम पंचायत थाची में आज विधिक सेवा समिति गोहर द्वारा विधिक साक्षरता शिविर का आयोजन किया गया । शिविर की अध्यक्षता सिविल जज एवं विधिक सेवा समिति गोहर के अध्यक्ष मोहित वंसल ने की । अपने सम्बोन्धन में उन्होंन कहा कि विधिक सेवा प्राधिकरण का मुख्य उदेश्य आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों को न्याय प्रदान करना है । उन्होंने कहा कि गरीब व असहाय व्यक्ति अपने अधिकारों की रक्षा करने तथा न्यायलय पहुंचने में असमर्थ रहता है तथा अन्याय का शिकार होता है । ऐसे लोगों के लिए विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा मुफत कानूनी सहायता प्रदान की जाती है । उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि वे विधिक सेवा समिति द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही कानूनी सहायता का लाभ उठाएं । अधिवक्ता एनके शर्मा ने इस अवसर पर महिलाओं के अधिकार तथा उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम, अधिवक्ता पंकज बस्ती ने पंचायती राज एक्ट तथा पंचायत इंसपैक्टर खैंम सिंह ठाकुर ने मनरेगा एक्ट के बारे में लोगों को जानकारी दी ।

मनरेगा में मंडी जिला रहा प्रदेश भर में अग्रणी


भारतीय संसद द्वारा २ फरवरी, २००६ को राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, २००५ योजना ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार शुरु करने के लिए प्रारम्भ की गई । यह अधिनियम विश्व में अपनी तरह का पहला अधिनियम है जिसके तहत अभूतपूर्व तौर पर रोजगार की गारंटी दी जाती है। इसका मकसद है ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढाना। इसके तहत हर घर के एक वयस्क सदस्य को एक वित्त वर्ष में कम से कम 100 दिनों का रोजगार दिए जाने की गारंटी है। इसका अधिनियम का लक्ष्य यह है कि इसके तहत टिकाऊ परिसम्पत्तियों का सृजन किया जाए और ग्रामीण निर्धनों की आजीविका के आधार को मजबूत बनाया जाए। इस अधिनियम का मकसद सूखे, जंगलों के कटान, भूमि कटाव जैसे कारणों से पैदा होने वाली निर्धनता की समस्या से भी निपटना है ताकि रोजगार के अवसर लगातार पैदा होते रहें। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) को तैयार करना और उसे कार्यान्वित करना एक महत्त्वपूर्ण कदम के तौर पर देखा गया है। इसका आधार अधिकार और माँग को बनाया गया है जिसके कारण यह पूर्व के इसी तरह के कार्यक्रमों से भिन्न हो गया है। अधिनियम के बेजोड़ पहलुओं में समयबध्द रोजगार गारंटी और 15 दिन के भीतर मजदूरी का भुगतान आदि शामिल हैं। इसके अंतर्गत राज्य सरकारों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे रोजगार प्रदान करने में कोताही न बरतें क्योंकि रोजगार प्रदान करने के खर्च का 90 प्रतिशत हिस्सा केन्द्र वहन करता है। इसके अलावा इस बात पर भी जोर दिया जाता है कि रोजगार शारीरिक श्रम आधारित हो जिसमें ठेकेदारों और मशीनों का कोई दखल हो। अधिनियम में महिलाओं की 33 प्रतिशत श्रम भागीदारी को भी सुनिश्चित किया गया है। श्रम मद पर ६० प्रतिशत और सामग्री मद में ४० प्रतिशत व्यय किये जाने की अधिकतम सीमा निश्चित की गयी है। नरेगा दो फरवरी, 2006 को लागू हो गया था। पहले चरण में इसे देश के 200 सबसे पिछड़े जिलों में लागू किया गया था। दूसरे चरण में वर्ष 2007-08 में इसमें और 130 जिलों को शामिल किया गया था। शुरुआती लक्ष्य के अनुरूप नरेगा को पूरे देश में पांच सालों में फैला देना था। बहरहाल, पूरे देश को इसके दायरे में लाने और माँग को दृष्टि में रखते हुए योजना को एक अप्रैल 2008 से सभी शेष ग्रामीण जिलों तक विस्तार दे दिया गया है। अब इसका नया नाम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना है. राज्य सरकारें प्रत्येक वित्तीय वर्ष में प्रत्येक परिवार को जिसके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम करना चाहें, कम से लम १०० दिन का गारंटीशुदा वेतन सोज़गार मुहेया करवाएगी । हिमाचल प्रदेश में बीते तीन सालों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत 268582 जॉब कार्ड बनाए जा चुके हैं। ये जानकारी ग्रामीण विकास व पंचायती राज मंत्री जयराम ठाकुर ने प्रदेश विधानसभा में कौल सिंह के एक सवाल के लिखित उत्तर में दी। उन्होंने ये भी बताया कि 31 मार्च, 2008 से अब तक प्रदेश में 176270 परिवारों को सौ दिन का रोजगार उपलब्ध करवाया गया है। उन्होंने कहा कि बीते एक वर्ष में प्रदेश में मनरेगा के तहत 646.59 करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई है। गत वित्त वर्ष में मंडी जिला भी 20 सूत्री कार्यक्रम तथा मनरेगा योजना के बेहतर क्रियान्वयन में प्रदेश में अग्रणी रहा है, जिसका श्रेय अधिकारियों व कर्मचारियों को जाता है। इस वर्ष जुलाई माह के अंत तक मनरेगा के माध्यम से मंडी जिला में दो लाख नौ हजार 740 जॉब कार्ड लोगों को रोजगार देने के लिए जारी किए गए तथा 25 करोड़ 42 लाख रुपए व्यय कर 19 लाख 55 हजार कार्य दिवसों का सृजन किया गया। मनरेगा में कामगारों के लिए क्या प्रावधान है ? मनरेगा में दुर्घटना की स्थिति में - यदि कोई कामगार कार्यस्थल पर कार्य के दौरान घायल होता है तो राज्य सरकार की ओर से वह निःशुल्क चिकित्सा सुविधा पाने का हकदार होगा। मनरेगा में घायल मज़दूर के अस्पताल में भर्ती करवाने पर - संबंधित राज्य सरकार द्वारा संपूर्ण चिकित्सा सुविधा, दवा, अस्पताल में निःशुल्क बेड उपलब्ध कराया जाएगा। साथ ही, घायल व्यक्ति प्रतिदिन कुल मजदूरी राशि का 50 प्रतिशत पाने का भी हकदार होगा मनरेगा में कार्यस्थल पर दुर्घटना के कारण पंजीकृत मजदूर की स्थायी विकलांगता या मृत्यृ हो जाने की स्थिति में – मृत्यृ या पूर्ण विकलाँगता की स्थिति में केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचित राशि या 25 हज़ार रुपये पीड़ित व्यक्ति के परिवार को दी जाएगी। महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी एक्ट (मनरेगा) के 6 साल पूरे हो गए हैं। ग्रामीण इलाकों में हमारे गरीब भाइयों और बहनों को राहत देने में यह एक कारगर उपाय है। और इसीलिए आर्थिक परेशानियों के बावजूद हम इस योजना के लिए हर साल लगभग 40 हजार करोड़ रुपये की राशि आवंटित कर रहे हैं। यह किसी भी दूसरी स्कीम के आवंटन से ज्यादा है। साल 2010-11 में मनरेगा के तहत साढ़े 5 करोड़ परिवारों के लिए रोज़गार पैदा किया गया। 25,600 करोड़ रूपये की मजदूरी लोगों को दी गई। गरीब लोगों की आमदनी बढ़ी है। साथ-साथ यह स्कीम community assets बनाने, सिंचाई और खेती को बढ़ावा देने और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा करने की क्षमता भी रखती है। छोटे किसानों और गरीब परिवारों को ख़ास तौर पर इस स्कीम का फायदा मिले। इसीलिए हाल ही में, हमने यह फैसला लिया है कि अनुसूचित जातियों, जनजातियों या बी.पी.एल. लोगों की जमीनों पर मनरेगा के तहत सिंचाई, बागवानी और भूमि विकास से जुड़े कार्य किए जा सकते हैं। इस योजना की वजह से कई जगहों पर जमीन के नीचे पानी का स्तर बढ़ा है और खेती पहले से अच्छी होने लगी है। मनरेगा के द्वारा जमीन के विकास और सिंचाई की सुविधाएं देकर हम एक दूसरी हरित क्रांति लाने में मदद कर सकते हैं। जिन क्षेत्रों में मनरेगा कृषि को बढ़ावा देने में सफल होता है, वहां लोगों को मनरेगा पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। राजस्थान में पिछले दो सालों में अच्छी फसल होने के कारण मनरेगा के तहत काम की मांग में कमी आई है। इसका मतलब यह है कि वहां पर लोगों को खेती-बाड़ी के काम में ही रोज़गार मिल रहा है। हाल ही में यह फैसला लिया है कि इन जिलों में बच्चों के खेलने के लिए मैदान भी मनरेगा के तहत बन सकते हैं। पिछले 6 सालों में हमने मनरेगा के अमल में काफी कामयाबियां हासिल की हैं। लेकिन अभी भी कई चुनौतियां हमारे सामने हैं। सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि मजदूरों को वक्त पर पैसा मिले। इसके लिए देश के गांवों में डाकघरों और बैंकों को अपनी पहुंच बढ़ानी होगी। हमारी कोशिश होगी कि 15 दिनों के भीतर मजदूरों को उनकी मजदूरी मिल सके। इसमें देरी होने से उन्हें मंहगा कर्ज़ लेकर अपना काम चलाना पड़ता है। मज़दूरी का भुगतान करने से पहले कुछ कार्रवाई पूरी करनी पड़ती है। इसमें मस्टर रोल और कार्य-स्थल पर कार्यों का verification करना शामिल है। हमने पाया है कि पर्याप्त स्टाफ न होने की वजह से इन कार्यों को निपटाने में अक्सर देरी होती है। राज्य सरकारों से मेरा अनुरोध है कि वे इस मसले को हल करें। हमें मनरेगा कामगारों को यह बताना होगा कि इस अधिनियम के तहत उनके क्या कानूनी अधिकार हैं और रोज़गार पाने के लिए उन्हें क्या करने की जरूरत है। मनरेगा की विशेषता यह है कि अगर अर्जी देने के 15 दिनों के भीतर किसी eligible व्यक्ति को काम नहीं दिया जाता तो उसे बेराजगारी भत्ता दिया जाएगा। राज्यों को चाहिए कि वे खुद ही ऐसे आसान तरीके अपनाएं, जिनसे काम के लिए ज्यादा से ज्यादा अर्जियां प्राप्त हों। गांवों के चौतरफा विकास के लिए मनरेगा की अहम भूमिका हो सकती है। लेकिन इसके लिए ग्रामीण विकास की दूसरी योजनाओं के साथ मनरेगा का तालमेल बिठाने की जरुरत होगी। मुझे इस बात की खुशी है कि मनरेगा के तहत अब घरों, स्कूलों और आंगनवाड़ी केन्द्रों में Toilets बनाए जा सकते हैं। हाल में लिए गए इस फैसले से देश में लागू किए जा रहे संपूर्ण सफाई अभियान को काफी बढ़ावा मिलेगा। अंत में मैं यह कहना चाहता हुं कि हमें ग्रामीण भारत में क्रांति लाने के लिए मिलकर काम करना होगा। सही मायने में भारत का विकास तब तक नहीं हो सकता, जब तक कि विकास का फायदा हर गांव तक नहीं पहुंचता। मनरेगा का जो बुनियादी मक़सद है और इसमें जो potential है, उनका फायदा अभी तक पूरी तरह नहीं उठाया गया है। इस योजना को जनता का अच्छा समर्थन मिला है। यदि मनरेगा योजना को ठीक से चलाया जाए, और जमीनी स्तर पर उसका बेहतर अमल किया जाए तो यह एक मॉडल ग्रामीण विकास योजना बन सकती है।

सूचना का अधिकार क्या है...


सूचना का अधिकार सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information Act) भारत के संसद द्वारा पारित एक कानून है जो 12 अक्तूबर, 2005 को लागू हुआ (15 जून, 2005 को इसके कानून बनने के 120 वें दिन)। भारत में भ्रटाचार को रोकने और समाप्त करने के लिये इसे बहुत ही प्रभावी कदम बताया जाता है। इस नियम के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को सरकारी रेकार्डों और प्रपत्रों में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है। सूचना का अधिकार क्या है? 1976 में सर्वोच्च न्यायालय ने "राज नारायण विरुद्ध उत्तर प्रदेश सरकार" मामले में कहा है कि लोग कह और अभिव्यक्त नहीं कर सकते जब तक कि वो न जानें. इसी कारण सूचना का अधिकार अनुच्छेद 19 में छुपा है. इसी मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि भारत एक लोकतंत्र है. लोग मालिक हैं. इसलिए लोगों को यह जानने का अधिकार है कि सरकारें जो उनकी सेवा के लिए हैं, क्या कर रहीं हैं? व प्रत्येक नागरिक कर/ टैक्स देता है. यहाँ तक कि एक गली में भीख मांगने वाला भिखारी भी टैक्स देता है जब वो बाज़ार से साबुन खरीदता है.(बिक्री कर, उत्पाद शुल्क आदि के रूप में). नागरिकों के पास इस प्रकार यह जानने का अधिकार है कि उनका धन किस प्रकार खर्च हो रहा है. इन तीन सिद्धांतों को सर्वोच्च न्यायालय ने रखा कि सूचना का अधिकार हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा हैं. यदि आरटीआई एक मौलिक अधिकार है, तो हमें यह अधिकार देने के लिए एक कानून की आवश्यकता क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि यदि आप किसी सरकारी विभाग में जाकर किसी अधिकारी से कहते हैं, "आरटीआई मेरा मौलिक अधिकार है, और मैं इस देश का मालिक हूँ. इसलिए मुझे आप कृपया अपनी फाइलें दिखायिए", वह ऐसा नहीं करेगा. व संभवतः वह आपको अपने कमरे से निकाल देगा. इसलिए हमें एक ऐसे तंत्र या प्रक्रिया की आवश्यकता है जिसके तहत हम अपने इस अधिकार का प्रयोग कर सकें. सूचना का अधिकार 2005, जो 13 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ हमें वह तंत्र प्रदान करता है. इस प्रकार सूचना का अधिकार हमें कोई नया अधिकार नहीं देता. यह केवल उस प्रक्रिया का उल्लेख करता है कि हम कैसे सूचना मांगें, कहाँ से मांगे, कितना शुल्क दें आदि. सूचना का अधिकार कब लागू हुआ? केंद्रीय सूचना का अधिकार 12 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ. हालांकि 9 राज्य सरकारें पहले ही राज्य कानून पारित कर चुकीं थीं. ये थीं: जम्मू कश्मीर, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, असम और गोवा. सूचना के अधिकार के अर्न्तगत कौन से अधिकार आते हैं? सूचना का अधिकार 2005 प्रत्येक नागरिक को शक्ति प्रदान करता है कि वो: सरकार से कुछ भी पूछे या कोई भी सूचना मांगे. किसी भी सरकारी निर्णय की प्रति ले. किसी भी सरकारी दस्तावेज का निरीक्षण करे. किसी भी सरकारी कार्य का निरीक्षण करे. किसी भी सरकारी कार्य के पदार्थों के नमूने ले. सूचना के अधिकार के अर्न्तगत कौन से अधिकार आते हैं? सभी इकाइयां जो संविधान, या अन्य कानून या किसी सरकारी अधिसूचना के अधीन बनी हैं या सभी इकाइयां जिनमें गैर सरकारी संगठन शामिल हैं जो सरकार के हों, सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्त- पोषित किये जाते हों. "वित्त पोषित" क्या है? इसकी परिभाषा न ही सूचना का अधिकार कानून और न ही किसी अन्य कानून में दी गयी है. इसलिए यह मुद्दा समय के साथ शायद किसी न्यायालय के आदेश द्वारा ही सुलझ जायेगा. क्या निजी इकाइयां सूचना के अधिकार के अर्न्तगत आती हैं? सभी निजी इकाइयां, जोकि सरकार की हैं, सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्त- पोषित की जाती हैं सीधे ही इसके अर्न्तगत आती हैं. अन्य अप्रत्यक्ष रूप से इसके अर्न्तगत आती हैं. अर्थात, यदि कोई सरकारी विभाग किसी निजी इकाई से किसी अन्य कानून के तहत सूचना ले सकता हो तो वह सूचना कोई नागरिक सूचना के अधिकार के अर्न्तगत उस सरकारी विभाग से ले सकता है. क्या सरकारी दस्तावेज गोपनीयता कानून 1923 सूचना के अधिकार में बाधा नहीं है? नहीं, सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अनुच्छेद 22 के अनुसार सूचना का अधिकार कानून सभी मौजूदा कानूनों का स्थान ले लेगा. क्या पीआईओ सूचना देने से मना कर सकता है? एक पीआईओ सूचना देने से मना उन 11 विषयों के लिए कर सकता है जो सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 8 में दिए गए हैं. इनमें विदेशी सरकारों से प्राप्त गोपनीय सूचना, देश की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों की दृष्टि से हानिकारक सूचना, विधायिका के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने वाली सूचनाएं आदि. सूचना का अधिकार अधिनियम की दूसरी अनुसूची में उन 18 अभिकरणों की सूची दी गयी है जिन पर ये लागू नहीं होता. हालांकि उन्हें भी वो सूचनाएं देनी होंगी जो भ्रष्टाचार के आरोपों व मानवाधिकारों के उल्लंघन से सम्बंधित हों. क्या अधिनियम विभक्त सूचना के लिए कहता है? हाँ, सूचना का अधिकार अधिनियम के दसवें अनुभाग के अंतर्गत दस्तावेज के उस भाग तक पहुँच बनायीं जा सकती है जिनमें वे सूचनाएं नहीं होतीं जो इस अधिनियम के तहत भेद प्रकाशन से अलग रखी गयीं हैं.क्या फाइलों की टिप्पणियों तक पहुँच से मना किया जा सकता है? नहीं, फाइलों की टिप्पणियां सरकारी फाइल का अभिन्न अंग हैं व इस अधिनियम के तहत भेद प्रकाशन की विषय वस्तु हैं. ऐसा केंद्रीय सूचना आयोग ने 31 जनवरी 2006 के अपने एक आदेश में स्पष्ट कर दिया है. मुझे सूचना कौन देगा? एक या अधिक अधिकारियों को प्रत्येक सरकारी विभाग में जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) का पद दिया गया है. ये जन सूचना अधिकारी प्रधान अधिकारियों के रूप में कार्य करते हैं. आपको अपनी अर्जी इनके पास दाखिल करनी होती है. यह उनका उत्तरदायित्व होता है कि वे उस विभाग के विभिन्न भागों से आपके द्वारा मांगी गयी जानकारी इकठ्ठा करें व आपको प्रदान करें. इसके अलावा, कई अधिकारियों को सहायक जन सूचना अधिकारी के पद पर सेवायोजित किया गया है. उनका कार्य केवल जनता से अर्जियां स्वीकारना व उचित पीआईओ के पास भेजना है. अपनी अर्जी मैं कहाँ जमा करुँ? आप ऐसा पीआईओ या एपीआईओ के पास कर सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में, 629 डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है. अर्थात् आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई पटल पर अपनी अर्जी व फीस जमा करा सकते हैं. वे आपको एक रसीद व आभार जारी करेंगे और यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वो उसे उचित पीआईओ के पास भेजे. क्या इसके लिए कोई फीस है? मैं इसे कैसे जमा करुँ? हाँ, एक अर्ज़ी फीस होती है. केंद्र सरकार के विभागों के लिए यह 10रु. है. हालांकि विभिन्न राज्यों ने भिन्न फीसें रखीं हैं. सूचना पाने के लिए, आपको 2रु. प्रति सूचना पृष्ठ केंद्र सरकार के विभागों के लिए देना होता है. यह विभिन्न राज्यों के लिए अलग- अलग है. इसी प्रकार दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए भी फीस का प्रावधान है. निरीक्षण के पहले घंटे की कोई फीस नहीं है लेकिन उसके पश्चात् प्रत्येक घंटे या उसके भाग की 5रु. प्रतिघंटा फीस होगी. यह केन्द्रीय कानून के अनुसार है. प्रत्येक राज्य के लिए, सम्बंधित राज्य के नियम देखें. आप फीस नकद में, डीडी या बैंकर चैक या पोस्टल आर्डर जो उस जन प्राधिकरण के पक्ष में देय हो द्वारा जमा कर सकते हैं. कुछ राज्यों में, आप कोर्ट फीस टिकटें खरीद सकते हैं व अपनी अर्ज़ी पर चिपका सकते हैं. ऐसा करने पर आपकी फीस जमा मानी जायेगी. आप तब अपनी अर्ज़ी स्वयं या डाक से जमा करा सकते हैं. मुझे क्या करना चाहिए यदि पीआईओ या सम्बंधित विभाग मेरी अर्ज़ी स्वीकार न करे? आप इसे डाक द्वारा भेज सकते हैं. आप इसकी औपचारिक शिकायत सम्बंधित सूचना आयोग को भी अनुच्छेद 18 के तहत करें. सूचना आयुक्त को उस अधिकारी पर 25000रु. का दंड लगाने का अधिकार है जिसने आपकी अर्ज़ी स्वीकार करने से मना किया था. क्या सूचना पाने के लिए अर्ज़ी का कोई प्रारूप है? केंद्र सरकार के विभागों के लिए, कोई प्रारूप नहीं है. आपको एक सादा कागज़ पर एक सामान्य अर्ज़ी की तरह ही अर्ज़ी देनी चाहिए. हालांकि कुछ राज्यों और कुछ मंत्रालयों व विभागों ने प्रारूप निर्धारित किये हैं. आपको इन प्रारूपों पर ही अर्ज़ी देनी चाहिए. कृपया जानने के लिए सम्बंधित राज्य के नियम पढें. मैं सूचना के लिए कैसे अर्ज़ी दूं? एक साधारण कागज़ पर अपनी अर्ज़ी बनाएं और इसे पीआईओ के पास स्वयं या डाक द्वारा जमा करें. (अपनी अर्ज़ी की एक प्रति अपने पास निजी सन्दर्भ के लिए अवश्य रखें) मैं अपनी अर्ज़ी की फीस कैसे दे सकता हूँ? प्रत्येक राज्य का अर्ज़ी फीस जमा करने का अलग तरीका है. साधारणतया, आप अपनी अर्ज़ी की फीस ऐसे दे सकते हैं: स्वयं नकद भुगतान द्वारा (अपनी रसीद लेना न भूलें) डाक द्वारा: डिमांड ड्राफ्ट से भारतीय पोस्टल आर्डर से मनी आर्डर से [केवल कुछ राज्यों में] कोर्ट फीस टिकट से [केवल कुछ राज्यों में] बैंकर चैक से कुछ राज्य सरकारों ने कुछ खाते निर्धारित किये हैं. आपको अपनी फीस इन खातों में जमा करानी होती है. इसके लिए, आप एसबीआई की किसी शाखा में जा सकते हैं और राशि उस खाते में जमा करा सकते हैं और जमा रसीद अपनी आरटीआई अर्ज़ी के साथ लगा सकते हैं. या आप अपनी आरटीआई अर्ज़ी के साथ उस विभाग के पक्ष में देय डीडी या एक पोस्टल आर्डर भी लगा सकते हैं. क्या मैं अपनी अर्जी केवल पीआईओ के पास ही जमा कर सकता हूँ? नहीं, पीआईओ के उपलब्ध न होने की स्थिति में आप अपनी अर्जी एपीआईओ या अन्य किसी अर्जी लेने के लिए नियुक्त अधिकारी के पास अर्जी जमा कर सकते हैं. क्या करूँ यदि मैं अपने पीआईओ या एपीआईओ का पता न लगा पाऊँ? यदि आपको पीआईओ या एपीआईओ का पता लगाने में कठिनाई होती है तो आप अपनी अर्जी पीआईओ c/o विभागाध्यक्ष को प्रेषित कर उस सम्बंधित जन प्राधिकरण को भेज सकते हैं. विभागाध्यक्ष को वह अर्जी सम्बंधित पीआईओ के पास भेजनी होगी. क्या मुझे अर्जी देने स्वयं जाना होगा? आपके राज्य के फीस जमा करने के नियमानुसार आप अपनी अर्जी सम्बंधित राज्य के विभाग में अर्जी के साथ डीडी, मनी आर्डर, पोस्टल आर्डर या कोर्ट फीस टिकट संलग्न करके डाक द्वारा भेज सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में, 629 डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है. अर्थात् आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई पटल पर अपनी अर्जी व फीस जमा करा सकते हैं. वे आपको एक रसीद व आभार जारी करेंगे और यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वो उसे उचित पीआईओ के पास भेजे. क्या सूचना प्राप्ति की कोई समय सीमा है? हाँ, यदि आपने अपनी अर्जी पीआईओ को दी है, आपको 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए. यदि आपने अपनी अर्जी सहायक पीआईओ को दी है तो सूचना 35 दिनों के भीतर दी जानी चाहिए. उन मामलों में जहाँ सूचना किसी एकल के जीवन और स्वतंत्रता को प्रभावित करती हो, सूचना 48 घंटों के भीतर उपलब्ध हो जानी चाहिए. क्या मुझे कारण बताना होगा कि मुझे फलां सूचना क्यों चाहिए? बिलकुल नहीं, आपको कोई कारण या अन्य सूचना केवल अपने संपर्क विवरण (जो हैं नाम, पता, फोन न.) के अतिरिक्त देने की आवश्यकता नहीं है. अनुच्छेद 6(2) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से संपर्क विवरण के अतिरिक्त कुछ नहीं पूछा जायेगा. क्या पीआईओ मेरी आरटीआई अर्जी लेने से मना कर सकता है? नहीं, पीआईओ आपकी आरटीआई अर्जी लेने से किसी भी परिस्थिति में मना नहीं कर सकता. चाहें वह सूचना उसके विभाग/ कार्यक्षेत्र में न आती हो, उसे वह स्वीकार करनी होगी. यदि अर्जी उस पीआईओ से सम्बंधित न हो, उसे वह उपयुक्त पीआईओ के पास 5 दिनों के भीतर अनुच्छेद 6(2) के तहत भेजनी होगी. इस देश में कई अच्छे कानून हैं लेकिन उनमें से कोई कानून कुछ नहीं कर सका. आप कैसे सोचते हैं कि ये कानून करेगा? यह कानून पहले ही कर रहा है. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार कोई कानून किसी अधिकारी की अकर्मण्यता के प्रति जवाबदेही निर्धारित करता है. यदि सम्बंधित अधिकारी समय पर सूचना उपलब्ध नहीं कराता है, उस पर 250रु. प्रतिदिन के हिसाब से सूचना आयुक्त द्वारा जुर्माना लगाया जा सकता है. यदि दी गयी सूचना गलत है तो अधिकतम 25000रु. तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. जुर्माना आपकी अर्जी गलत कारणों से नकारने या गलत सूचना देने पर भी लगाया जा सकता है. यह जुर्माना उस अधिकारी के निजी वेतन से काटा जाता है. क्या अब तक कोई जुमाना लगाया गया है? हाँ, कुछ अधिकारियों पर केन्द्रीय व राज्यीय सूचना आयुक्तों द्वारा जुर्माना लगाया गया है. क्या पीआईओ पर लगे जुर्माने की राशि प्रार्थी को दी जाती है? नहीं, जुर्माने की राशि सरकारी खजाने में जमा हो जाती है. हांलांकि अनुच्छेद 19 के तहत, प्रार्थी मुआवजा मांग सकता है. मैं क्या कर सकता हूँ यदि मुझे सूचना न मिले? यदि आपको सूचना न मिले या आप प्राप्त सूचना से संतुष्ट न हों, आप अपीलीय अधिकारी के पास सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 19(1) के तहत एक अपील दायर कर सकते हैं. पहला अपीलीय अधिकारी कौन होता है? प्रत्येक जन प्राधिकरण को एक पहला अपीलीय अधिकारी बनाना होता है. यह बनाया गया अधिकारी पीआईओ से वरिष्ठ रैंक का होता है. क्या प्रथम अपील का कोई प्रारूप होता है? नहीं, प्रथम अपील का कोई प्रारूप नहीं होता (लेकिन कुछ राज्य सरकारों ने प्रारूप जारी किये हैं). एक सादा पन्ने पर प्रथम अपीली अधिकारी को संबोधित करते हुए अपनी अपीली अर्जी बनाएं. इस अर्जी के साथ अपनी मूल अर्जी व पीआईओ से प्राप्त जैसे भी उत्तर (यदि प्राप्त हुआ हो) की प्रतियाँ लगाना न भूलें. क्या मुझे प्रथम अपील की कोई फीस देनी होगी? नहीं, आपको प्रथम अपील की कोई फीस नहीं देनी होगी, कुछ राज्य सरकारों ने फीस का प्रावधान किया है. कितने दिनों में मैं अपनी प्रथम अपील दायर कर सकता हूँ? आप अपनी प्रथम अपील सूचना प्राप्ति के 30 दिनों व आरटीआई अर्जी दाखिल करने के 60 दिनों के भीतर दायर कर सकते हैं. क्या करें यदि प्रथम अपीली प्रक्रिया के बाद मुझे सूचना न मिले? यदि आपको प्रथम अपील के बाद भी सूचना न मिले तो आप द्वितीय अपीली चरण तक अपना मामला ले जा सकते हैं. आप प्रथम अपील सूचना मिलने के 30 दिनों के भीतर व आरटीआई अर्जी के 60 दिनों के भीतर (यदि कोई सूचना न मिली हो) दायर कर सकते हैं. द्वितीय अपील क्या है? द्वितीय अपील आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करने का अंतिम विकल्प है. आप द्वितीय अपील सूचना आयोग के पास दायर कर सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के विरुद्ध आपके पास केद्रीय सूचना आयोग है. प्रत्येक राज्य सरकार के लिए, राज्य सूचना आयोग हैं. क्या द्वितीय अपील के लिए कोई प्रारूप है? नहीं, द्वितीय अपील के लिए कोई प्रारूप नहीं है (लेकिन राज्य सरकारों ने द्वितीय अपील के लिए भी प्रारूप निर्धारित किए हैं). एक सादा पन्ने पर केद्रीय या राज्य सूचना आयोग को संबोधित करते हुए अपनी अपीली अर्जी बनाएं. द्वितीय अपील दायर करने से पूर्व अपीली नियम ध्यानपूर्वक पढ लें. आपकी द्वितीय अपील निरस्त की जा सकती है यदि वह अपीली नियमों को पूरा नहीं करती है. क्या मुझे द्वितीय अपील के लिए फीस देनी होगी? नहीं, आपको द्वितीय अपील के लिए कोई फीस नहीं देनी होगी. हांलांकि कुछ राज्यों ने इसके लिए फीस निर्धारित की है. मैं कितने दिनों में द्वितीय अपील दायर कर सकता हूँ? आप प्रथम अपील के निष्पादन के 90 दिनों के भीतर या उस तारीख के 90 दिनों के भीतर कि जब तक आपकी प्रथम अपील निष्पादित होनी थी, द्वितीय अपील दायर कर सकते हैं. यह कानून कैसे मेरे कार्य पूरे होने में मेरी सहायता करता है? यह कानून कैसे रुके हुए कार्य पूरे होने में सहायता करता है अर्थात् वह अधिकारी क्यों अब वह आपका रुका कार्य करता है जो वह पहले नहीं कर रहा था? एक उदाहरण आइए नन्नू का मामला लेते हैं. उसे राशन कार्ड नहीं दिया जा रहा था. लेकिन जब उसने आरटीआई के तहत अर्जी दी, उसे एक सप्ताह के भीतर राशन कार्ड दे दिया गया. नन्नू ने क्या पूछा? उसने निम्न प्रश्न पूछे: 1. मैंने एक डुप्लीकेट राशन कार्ड के लिए 27 फरवरी 2004 को अर्जी दी. कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं अर्थात् मेरी अर्जी किस अधिकारी पर कब पहुंची, उस अधिकारी पर यह कितने समय रही और उसने उतने समय क्या किया? 2. नियमों के अनुसार, मेरा कार्ड 10 दिनों के भीतर बन जाना चाहिए था. हांलांकि अब तीन माह से अधिक का समय हो गया है. कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया? 3. इन अधिकारियों के विरुद्ध अपना कार्य न करने व जनता के शोषण के लिए क्या कार्रवाई की जायेगी? वह कार्रवाई कब तक की जायेगी? 4. अब मुझे कब तक अपना कार्ड मिल जायेगा? साधारण परिस्थितियों में, ऐसी एक अर्जी कूड़ेदान में फेंक दी जाती. लेकिन यह कानून कहता है कि सरकार को 30 दिनों में जवाब देना होगा. यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, उनके वेतन में कटौती की जा सकती है. अब ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना आसान नहीं होगा. पहला प्रश्न है- कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं. कोई उन्नति हुई ही नहीं है. लेकिन सरकारी अधिकारी यह इन शब्दों में लिख ही नहीं सकते कि उन्होंने कई महीनों से कोई कार्रवाई नहीं की है. वरन यह कागज़ पर गलती स्वीकारने जैसा होगा. अगला प्रश्न है- कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया. यदि सरकार उन अधिकारियों के नाम व पद बताती है, उनका उत्तरदायित्व निर्धारित हो जाता है. एक अधिकारी अपने विरुद्ध इस प्रकार कोई उत्तरदायित्व निर्धारित होने के प्रति काफी सतर्क होता है. इस प्रकार, जब कोई इस तरह अपनी अर्जी देता है, उसका रुका कार्य संपन्न हो जाता है. मुझे सूचना प्राप्ति के पश्चात् क्या करना चाहिए? इसके लिए कोई एक उत्तर नहीं है. यह आप पर निर्भर करता है कि आपने वह सूचना क्यों मांगी व यह किस प्रकार की सूचना है. प्राय: सूचना पूछने भर से ही कई वस्तुएं रास्ते में आने लगतीं हैं. उदाहरण के लिए, केवल अपनी अर्जी की स्थिति पूछने भर से आपको अपना पासपोर्ट या राशन कार्ड मिल जाता है. कई मामलों में, सड़कों की मरम्मत हो जाती है जैसे ही पिछली कुछ मरम्मतों पर खर्च हुई राशि के बारे में पूछा जाता है. इस तरह, सरकार से सूचना मांगना व प्रश्न पूछना एक महत्वपूर्ण चरण है, जो अपने आप में कई मामलों में पूर्ण है. लेकिन मानिये यदि आपने आरटीआई से किसी भ्रष्टाचार या गलत कार्य का पर्दाफ़ाश किया है, आप सतर्कता एजेंसियों, सीबीआई को शिकायत कर सकते हैं या एफ़आईआर भी करा सकते हैं. लेकिन देखा गया है कि सरकार दोषी के विरुद्ध बारम्बार शिकायतों के बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं करती. यद्यपि कोई भी सतर्कता एजेंसियों पर शिकायत की स्थिति आरटीआई के तहत पूछकर दवाब अवश्य बना सकता है. हांलांकि गलत कार्यों का पर्दाफाश मीडिया के जरिए भी किया जा सकता है. हांलांकि दोषियों को दंड देने का अनुभव अधिक उत्साहजनक है. लेकिन एक बात पक्की है कि इस प्रकार सूचनाएं मांगना और गलत कामों का पर्दाफाश करना भविष्य को संवारता है. अधिकारियों को स्पष्ट सन्देश मिलता है कि उस क्षेत्र के लोग अधिक सावधान हो गए हैं और भविष्य में इस प्रकार की कोई गलती पूर्व की भांति छुपी नहीं रहेगी. इसलिए उनके पकडे जाने का जोखिम बढ जाता है. क्या लोगों को निशाना बनाया गया है जिन्होंने आरटीआई का प्रयोग किया व भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया? हाँ, ऐसे कुछ उदाहरण हैं जिनमें लोगों को शारीरिक हानि पहुंचाई गयी जब उन्होंने भ्रष्टाचार का बड़े पैमाने पर पर्दाफाश किया. लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रार्थी को हमेशा ऐसा भय झेलना होगा. अपनी शिकायत की स्थिति या अन्य समरूपी मामलों की जानकारी लेने के लिए अर्जी लगाने का अर्थ प्रतिकार निमंत्रित करना नहीं है. ऐसा तभी होता है जब सूचना नौकरशाह- ठेकेदार गठजोड़ या किसी प्रकार के माफ़िया का पर्दाफाश कर सकती हो कि प्रतिकार की सम्भावना हो. तब मैं आरटीआई का प्रयोग क्यों करुँ? पूरा तंत्र इतना सड- गल चुका है कि यदि हम सभी अकेले या मिलकर अपना प्रयत्न नहीं करेंगे, यह कभी नहीं सुधरेगा. यदि हम ऐसा नहीं करेंगे, तो कौन करेगा? हमें करना है. लेकिन हमें ऐसा रणनीति से व जोखिम को कम करके करना होगा. व अनुभव से, कुछ रणनीतियां व सुरक्षाएं उपलब्ध हैं. ये रणनीतियां क्या हैं? कृपया आगे बढें और किसी भी मुद्दे के लिए आरटीआई अर्जी दाखिल करें. साधारणतया, कोई आपके ऊपर एकदम हमला नहीं करेगा. पहले वे आपकी खुशामद करेंगे या आपको जीतेंगे. तो आप जैसे ही कोई असुविधाजनक अर्जी दाखिल करते हैं, कोई आपके पास बड़ी विनम्रता के साथ उस अर्जी को वापिस लेने की विनती करने आएगा. आपको उस व्यक्ति की गंभीरता और स्थिति का अंदाजा लगा लेना चाहिए. यदि आप इसे काफी गंभीर मानते हैं, अपने 15 मित्रों को भी तुंरत उसी जन प्राधिकरण में उसी सुचना के लिए अर्जी देने के लिए कहें. बेहतर होगा यदि ये 15 मित्र भारत के विभिन्न भागों से हों. अब, आपके देश भर के 15 मित्रों को डराना किसी के लिए भी मुश्किल होगा. यदि वे 15 में से किसी एक को भी डराते हैं, तो और लोगों से भी अर्जियां दाखिल कराएं. आपके मित्र भारत के अन्य हिस्सों से अर्जियां डाक से भेज सकते हैं. इसे मीडिया में व्यापक प्रचार दिलाने की कोशिश करें. इससे यह सुनिश्चित होगा कि आपको वांछित जानकारी मिलेगी व आप जोखिमों को कम कर सकेंगे. क्या लोग जन सेवकों का भयादोहन नहीं करेंगे? आईए हम स्वयं से पूछें- आरटीआई क्या करता है? यह केवल जनता में सच लेकर आता है. यह कोई सूचना उत्पन्न नहीं करता. यह केवल परदे हटाता है व सच जनता के सामने लाता है. क्या वह गलत है? इसका दुरूपयोग कब किया जा सकता है? केवल यदि किसी अधिकारी ने कुछ गलत किया हो और यदि यह सूचना जनता में बाहर आ जाये. क्या यह गलत है यदि सरकार में की जाने वाली गलतियाँ जनता में आ जाएं व कागजों में छिपाने की बजाय इनका पर्दाफाश हो सके. हाँ, एक बार ऐसी सूचना किसी को मिल जाए तो वह जा सकता है व अधिकारी को ब्लैकमेल कर सकता है. लेकिन हम गलत अधिकारियों को क्यों बचाना चाहते है? यदि किसी अन्य को ब्लैकमेल किया जाता है, उसके पास भारतीय दंड संहिता के तहत ब्लैकमेलर के विरुद्ध एफ़आईआर दर्ज करने के विकल्प मौजूद हैं. उस अधिकारी को वह करने दीजिये. हांलांकि हम किसी अधिकारी को किसी ब्लैकमेलर द्वारा ब्लैकमेल किये जाने की संभावनाओं को सभी मांगी गयी सूचनाओं को वेबसाइट पर डालकर कम कर सकते हैं. एक ब्लैकमेलर किसी अधिकारी को तभी ब्लैकमेल कर पायेगा जब केवल वही उस सूचना को ले पायेगा व उसे सार्वजनिक करने की धमकी देगा. लेकिन यदि उसके द्वारा मांगी गयी सूचना वेबसाइट पर डाल दी जाये तो ब्लैकमेल करने की सम्भावना कम हो जाती है. क्या सरकार के पास आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आ जायेगी और यह सरकारी तंत्र को जाम नहीं कर देगी? ये डर काल्पनिक हैं. 65 से अधिक देशों में आरटीआई कानून हैं. संसद में पारित किए जाने से पूर्व भारत में भी 9 राज्यों में आरटीआई कानून थे. इन में से किसी सरकार में आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आई. ऐसे डर इस कल्पना से बनते हैं कि लोगों के पास करने को कुछ नहीं है व वे बिलकुल खाली हैं. आरटीआई अर्ज़ी डालने व ध्यान रखने में समय लगता है, मेहनत व संसाधन लगते हैं. आईये कुछ आंकडे लें. दिल्ली में, 60 से अधिक महीनों में 120 विभागों में 14000 अर्जियां दाखिल हुईं. इसका अर्थ हुआ कि 2 से कम अर्जियां प्रति विभाग प्रति माह. क्या हम कह सकते हैं कि दिल्ली सरकार में आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आ गई? तेज रोशनी में, यूएस सरकार को 2003- 04 के दौरान आरटीआई अधिनियम के तहत 3.2 मिलियन अर्जियां प्राप्त हुईं. यह उस तथ्य के बावजूद है कि भारत से उलट, यूएस सरकार की अधिकतर सूचनाएं नेट पर उपलब्ध हैं और लोगों को अर्जियां दाखिल करने की कम आवश्यकता होनी चाहिए. लेकिन यूएस सरकार आरटीआई अधिनियम को समाप्त करने का विचार नहीं कर रही. इसके उलट वे अधिकाधिक संसाधनों को इसे लागू करने में जुटा रहे हैं. इसी वर्ष, उन्होंने 32 मिलियन यूएस डॉलर इसके क्रियान्वयन में खर्च किये. क्या आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन में अत्यधिक संसाधन खर्च नहीं होंगे? आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन में खर्च किये गए संसाधन सही खर्च होंगे. यूएस जैसे अधिकांश देशों ने यह पाया है व वे अपनी सरकारों को पारदर्शी बनाने पर अत्यधिक संसाधन खर्च कर रहे हैं. पहला, आरटीआई पर खर्च लागत उसी वर्ष पुनः उस धन से प्राप्त हो जाती है जो सरकार भ्रष्टाचार व गलत कार्यों में कमी से बचा लेती है. उदहारण के लिए, इस बात के ठोस प्रमाण हैं कि कैसे आरटीआई के वृहद् प्रयोग से राजस्थान के सूखा राहत कार्यक्रम और दिल्ली की जन वितरण प्रणाली की अनियमितताएं कम हो पायीं. दूसरा, आरटीआई लोकतंत्र के लिए बहुत जरुरी है. यह हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा है. जनता की सरकार में भागीदारी से पहले जरुरी है कि वे पहले जानें कि क्या हो रहा है. इसलिए, जिस प्रकार हम संसद के चलने पर होने वाले खर्च को आवश्यक मानते हैं, आरटीआई पर होने वाले खर्च को भी जरुरी माना जाये. लेकिन प्राय लोग निजी मामले सुलझाने के लिए अर्जियां देते हैं? जैसा कि ऊपर दिया गया है, यह केवल जनता में सच लेकर आता है. यह कोई सूचना उत्पन्न नहीं करता. सच छुपाने या उस पर पर्दा डालने का कोई प्रयास समाज के उत्तम हित में नहीं हो सकता. किसी लाभदायक उद्देश्य की प्राप्ति से अधिक, गोपनीयता को बढावा देना भ्रष्टाचार और गलत कामों को बढावा देगा. इसलिए, हमारे सभी प्रयास सरकार को पूर्णतः पारदर्शी बनाने के होने चाहिए. हांलांकि, यदि कोई किसी को आगे ब्लैकमेल करता है, कानून में इससे निपटने के प्रचुर प्रावधान हैं. दूसरा, आरटीआई अधिनियम के अनुच्छेद 8 के तहत कई बचाव भी हैं. यह कहता है, कि कोई सूचना जो किसी के निजी मामलों से सम्बंधित है व इसका जनहित से कोई लेना- देना नहीं है को प्रकट नहीं किया जायेगा. इसलिए, मौजूदा कानूनों में लोगों के वास्तविक उद्देश्यों से निपटने के पर्याप्त प्रावधान हैं. लोगों को ओछी/ तुच्छ अर्जियां दाखिल करने से कैसे बचाया जाए? कोई अर्ज़ी ओछी/ तुच्छ नहीं होती. ओछा/ तुच्छ क्या है? मेरा पानी का रुका हुआ कनेक्शन मेरे लिए सबसे संकटपूर्ण हो सकता है, लेकिन एक नौकरशाह के लिए यह ओछा/ तुच्छ हो सकता है. नौकरशाही में निहित कुछ स्वार्थों ने इस ओछी/ तुच्छ अर्जियों के दलदल को बढाया है. वर्तमान में, आरटीआई अधिनियम किसी भी अर्ज़ी को इस आधार पर निरस्त करने की इजाज़त नहीं देता कि वो ओछी/ तुच्छ थी. यदि ऐसा हो, प्रत्येक पीआईओ हर दूसरी अर्ज़ी को ओछी/ तुच्छ बताकर निरस्त कर देगा. यह आरटीआई के लिए मृत समाधि के समान होगा. फाइल टिप्पणियां सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए क्योंकि यह ईमानदार अधिकारियों को ईमानदार सलाह देने से रोकेगा? यह गलत है. इसके उलट, हर अधिकारी को अब यह पता होगा कि जो कुछ भी वो लिखता है वह जन- समीक्षा का विषय हो सकता है. यह उस पर उत्तम जनहित में लिखने का दवाब बनाएगा. कुछ ईमानदार नौकरशाहों ने अलग से स्वीकारा है कि आरटीआई ने उनकी राजनीतिक व अन्य प्रभावों को दरकिनार करने में बहुत सहायता की है. अब अधिकारी सीधे तौर पर कहते हैं कि यदि उन्होंने कुछ गलत किया तो उनका पर्दाफाश हो जायेगा यदि किसी ने उसी सूचना के बारे में पूछ लिया. इसलिए, अधिकारियों ने इस बात पर जोर देना शुरू कर दिया है कि वरिष्ठ अधिकारी लिखित में निर्देश दें. सरकार ने भी इस पर मनन करना प्रारंभ कर दिया है कि फाइल टिप्पणियां आरटीआई अधिनियम की सीमा से हटा दी जाएँ. उपरोक्त कारणों से, यह नितांत आवश्यक है कि फाइल टिप्पणियां आरटीआई अधिनियम की सीमा में रहें. जन सेवक को निर्णय कई दवाबों में लेने होते हैं व जनता इसे नहीं समझेगी? जैसा ऊपर बताया गया है, इसके उलट, इससे कई अवैध दवाबों को कम किया जा सकता है. सरकारी रेकॉर्ड्स सही आकार में नहीं हैं. आरटीआई को कैसे लागू किया जाए? आरटीआई तंत्र को अब रेकॉर्ड्स सही आकार में रखने का दवाब डालेगा. वरन अधिकारी को अधिनियम के तहत दंड भुगतना होगा. विशाल जानकारी मांगने वाली अर्जियां रद्द कर देनी चाहिए? यदि मैं कुछ जानकारी चाहता हूँ, जो एक लाख पृष्ठों में आती है, मैं ऐसा तभी करूँगा जब मुझे इसकी आवश्यकता होगी क्योंकि मुझे उसके लिए 2 लाख रुपयों का भुगतान करना होगा. यह एक स्वतः ही हतोत्साह करने वाला उपाय है. यदि अर्ज़ी इस आधार पर रद्द कर दी गयी, तो प्रार्थी इसे तोड़कर प्रत्येक अर्ज़ी में 100 पृष्ठ मांगते हुए 1000 अर्जियां बना लेगा, जिससे किसी का भी लाभ नहीं होगा. इसलिए, इस कारण अर्जियां रद्द नहीं होनी चाहिए कि: "लोगों को केवल अपने बारे में सूचना मांगने दी जानी चाहिए. उन्हें सरकार के अन्य मामलों के बारे में प्रश्न पूछने की छूट नहीं दी जानी चाहिए", पूर्णतः इससे असंबंधित है: आरटीआई अधिनियम का अनुच्छेद 6(2) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से यह नहीं पूछा जा सकता कि क्यों वह कोई जानकारी मांग रहा है. किसी भी मामले में, आरटीआई इस तथ्य से उद्धृत होता है कि लोग टैक्स/ कर देते हैं, यह उनका पैसा है और इसीलिए उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उनका पैसा कैसे खर्च हो रहा है व कैसे उनकी सरकार चल रही है. इसलिए लोगों को सरकार के प्रत्येक कार्य की प्रत्येक बात जानने का अधिकार है. वे उस मामले से सीधे तौर पर जुड़े हों या न हों. इसलिए, दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति कोई भी सूचना मांग सकता है चाहे वह तमिलनाडु की हो. आरटीआई अधिनियम का अनुच्छेद 6(2) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से यह नहीं पूछा जा सकता कि क्यों वह कोई जानकारी मांग रहा है. किसी भी मामले में, आरटीआई इस तथ्य से उद्धृत होता है कि लोग टैक्स/ कर देते हैं, यह उनका पैसा है और इसीलिए उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उनका पैसा कैसे खर्च हो रहा है व कैसे उनकी सरकार चल रही है. इसलिए लोगों को सरकार के प्रत्येक कार्य की प्रत्येक बात जानने का अधिकार है. वे उस मामले से सीधे तौर पर जुड़े हों या न हों. इसलिए, दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति कोई भी सूचना मांग सकता है चाहे वह तमिलनाडु की हो

वीरभद्र सिंह सांसद निधि खर्चने में देश भर में अव्वल


मंडी। वीरभद्र सिंह देश में ऐसे अकेले सांसद हैं जो अब तक अपनी पूरी संासद विकास निधि को विकास कार्यों में खर्च कर चुके हैं। एक गैरसरकारी संस्था मास फॉर अवेयरनेस की वोट फॉर इंडिया रिपोर्ट के मुताबिक वीरभद्र सिंह ने 9.83 करोड़ रुपए की सांसद निधि खर्च करके देशभर में अव्वल रहे हैं। ऐसा करके उन्होंने साबित किया है कि वह जनता के नेता हैं। हिमाचल की जनता उन्हें एक बार फिर से प्रदेश के मुखयमंत्री के रूप में देखना चाहती है। यह शब्द कांग्रेस प्रचार एवं प्रकाशन समिति के सदस्य तरुण पाठक ने प्रेस बयान में कहे। प्रदेशाध्यक्ष बनने और देश भर के अव्वल सांसद बनने पर मुबारकबाद देते हुए उन्होंने कहा कि वीरभद्र सिंह ने प्रदेश के मुखयमंत्री के रूप में प्रदेश का एक समान विकास किया है। उनके समय में बनी योजनाएं आज भी लोंगो को लाभान्वित कर रही हैं और सांसद विकास निधि का पूरा इस्तेमाल करके उन्होने मंडी संसदीय क्षेत्र का नाम देशभर रौशन किया है। तरुण पाठक ने कहा कि प्रदेश की जनता वीरभद्र सिंह को अगले मुखयमंत्री के तौर पर देख रही है।

मंडी में बनाया जाए आधुनिक पुस्तकालयः शहीद भगत सिंह विचार मंच

मंडी। प्रदेश की सांस्कृतिक और बौद्धिक राजधानी मंडी में आधुनिक और बेहतरीन पुस्तकालय के निर्माण की मांग की गई है। इस संदर्भ में शहर की संस्...