Sunday 2 September 2012

मनरेगा में मंडी जिला रहा प्रदेश भर में अग्रणी


भारतीय संसद द्वारा २ फरवरी, २००६ को राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, २००५ योजना ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार शुरु करने के लिए प्रारम्भ की गई । यह अधिनियम विश्व में अपनी तरह का पहला अधिनियम है जिसके तहत अभूतपूर्व तौर पर रोजगार की गारंटी दी जाती है। इसका मकसद है ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढाना। इसके तहत हर घर के एक वयस्क सदस्य को एक वित्त वर्ष में कम से कम 100 दिनों का रोजगार दिए जाने की गारंटी है। इसका अधिनियम का लक्ष्य यह है कि इसके तहत टिकाऊ परिसम्पत्तियों का सृजन किया जाए और ग्रामीण निर्धनों की आजीविका के आधार को मजबूत बनाया जाए। इस अधिनियम का मकसद सूखे, जंगलों के कटान, भूमि कटाव जैसे कारणों से पैदा होने वाली निर्धनता की समस्या से भी निपटना है ताकि रोजगार के अवसर लगातार पैदा होते रहें। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) को तैयार करना और उसे कार्यान्वित करना एक महत्त्वपूर्ण कदम के तौर पर देखा गया है। इसका आधार अधिकार और माँग को बनाया गया है जिसके कारण यह पूर्व के इसी तरह के कार्यक्रमों से भिन्न हो गया है। अधिनियम के बेजोड़ पहलुओं में समयबध्द रोजगार गारंटी और 15 दिन के भीतर मजदूरी का भुगतान आदि शामिल हैं। इसके अंतर्गत राज्य सरकारों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे रोजगार प्रदान करने में कोताही न बरतें क्योंकि रोजगार प्रदान करने के खर्च का 90 प्रतिशत हिस्सा केन्द्र वहन करता है। इसके अलावा इस बात पर भी जोर दिया जाता है कि रोजगार शारीरिक श्रम आधारित हो जिसमें ठेकेदारों और मशीनों का कोई दखल हो। अधिनियम में महिलाओं की 33 प्रतिशत श्रम भागीदारी को भी सुनिश्चित किया गया है। श्रम मद पर ६० प्रतिशत और सामग्री मद में ४० प्रतिशत व्यय किये जाने की अधिकतम सीमा निश्चित की गयी है। नरेगा दो फरवरी, 2006 को लागू हो गया था। पहले चरण में इसे देश के 200 सबसे पिछड़े जिलों में लागू किया गया था। दूसरे चरण में वर्ष 2007-08 में इसमें और 130 जिलों को शामिल किया गया था। शुरुआती लक्ष्य के अनुरूप नरेगा को पूरे देश में पांच सालों में फैला देना था। बहरहाल, पूरे देश को इसके दायरे में लाने और माँग को दृष्टि में रखते हुए योजना को एक अप्रैल 2008 से सभी शेष ग्रामीण जिलों तक विस्तार दे दिया गया है। अब इसका नया नाम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना है. राज्य सरकारें प्रत्येक वित्तीय वर्ष में प्रत्येक परिवार को जिसके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम करना चाहें, कम से लम १०० दिन का गारंटीशुदा वेतन सोज़गार मुहेया करवाएगी । हिमाचल प्रदेश में बीते तीन सालों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत 268582 जॉब कार्ड बनाए जा चुके हैं। ये जानकारी ग्रामीण विकास व पंचायती राज मंत्री जयराम ठाकुर ने प्रदेश विधानसभा में कौल सिंह के एक सवाल के लिखित उत्तर में दी। उन्होंने ये भी बताया कि 31 मार्च, 2008 से अब तक प्रदेश में 176270 परिवारों को सौ दिन का रोजगार उपलब्ध करवाया गया है। उन्होंने कहा कि बीते एक वर्ष में प्रदेश में मनरेगा के तहत 646.59 करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई है। गत वित्त वर्ष में मंडी जिला भी 20 सूत्री कार्यक्रम तथा मनरेगा योजना के बेहतर क्रियान्वयन में प्रदेश में अग्रणी रहा है, जिसका श्रेय अधिकारियों व कर्मचारियों को जाता है। इस वर्ष जुलाई माह के अंत तक मनरेगा के माध्यम से मंडी जिला में दो लाख नौ हजार 740 जॉब कार्ड लोगों को रोजगार देने के लिए जारी किए गए तथा 25 करोड़ 42 लाख रुपए व्यय कर 19 लाख 55 हजार कार्य दिवसों का सृजन किया गया। मनरेगा में कामगारों के लिए क्या प्रावधान है ? मनरेगा में दुर्घटना की स्थिति में - यदि कोई कामगार कार्यस्थल पर कार्य के दौरान घायल होता है तो राज्य सरकार की ओर से वह निःशुल्क चिकित्सा सुविधा पाने का हकदार होगा। मनरेगा में घायल मज़दूर के अस्पताल में भर्ती करवाने पर - संबंधित राज्य सरकार द्वारा संपूर्ण चिकित्सा सुविधा, दवा, अस्पताल में निःशुल्क बेड उपलब्ध कराया जाएगा। साथ ही, घायल व्यक्ति प्रतिदिन कुल मजदूरी राशि का 50 प्रतिशत पाने का भी हकदार होगा मनरेगा में कार्यस्थल पर दुर्घटना के कारण पंजीकृत मजदूर की स्थायी विकलांगता या मृत्यृ हो जाने की स्थिति में – मृत्यृ या पूर्ण विकलाँगता की स्थिति में केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचित राशि या 25 हज़ार रुपये पीड़ित व्यक्ति के परिवार को दी जाएगी। महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी एक्ट (मनरेगा) के 6 साल पूरे हो गए हैं। ग्रामीण इलाकों में हमारे गरीब भाइयों और बहनों को राहत देने में यह एक कारगर उपाय है। और इसीलिए आर्थिक परेशानियों के बावजूद हम इस योजना के लिए हर साल लगभग 40 हजार करोड़ रुपये की राशि आवंटित कर रहे हैं। यह किसी भी दूसरी स्कीम के आवंटन से ज्यादा है। साल 2010-11 में मनरेगा के तहत साढ़े 5 करोड़ परिवारों के लिए रोज़गार पैदा किया गया। 25,600 करोड़ रूपये की मजदूरी लोगों को दी गई। गरीब लोगों की आमदनी बढ़ी है। साथ-साथ यह स्कीम community assets बनाने, सिंचाई और खेती को बढ़ावा देने और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा करने की क्षमता भी रखती है। छोटे किसानों और गरीब परिवारों को ख़ास तौर पर इस स्कीम का फायदा मिले। इसीलिए हाल ही में, हमने यह फैसला लिया है कि अनुसूचित जातियों, जनजातियों या बी.पी.एल. लोगों की जमीनों पर मनरेगा के तहत सिंचाई, बागवानी और भूमि विकास से जुड़े कार्य किए जा सकते हैं। इस योजना की वजह से कई जगहों पर जमीन के नीचे पानी का स्तर बढ़ा है और खेती पहले से अच्छी होने लगी है। मनरेगा के द्वारा जमीन के विकास और सिंचाई की सुविधाएं देकर हम एक दूसरी हरित क्रांति लाने में मदद कर सकते हैं। जिन क्षेत्रों में मनरेगा कृषि को बढ़ावा देने में सफल होता है, वहां लोगों को मनरेगा पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। राजस्थान में पिछले दो सालों में अच्छी फसल होने के कारण मनरेगा के तहत काम की मांग में कमी आई है। इसका मतलब यह है कि वहां पर लोगों को खेती-बाड़ी के काम में ही रोज़गार मिल रहा है। हाल ही में यह फैसला लिया है कि इन जिलों में बच्चों के खेलने के लिए मैदान भी मनरेगा के तहत बन सकते हैं। पिछले 6 सालों में हमने मनरेगा के अमल में काफी कामयाबियां हासिल की हैं। लेकिन अभी भी कई चुनौतियां हमारे सामने हैं। सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि मजदूरों को वक्त पर पैसा मिले। इसके लिए देश के गांवों में डाकघरों और बैंकों को अपनी पहुंच बढ़ानी होगी। हमारी कोशिश होगी कि 15 दिनों के भीतर मजदूरों को उनकी मजदूरी मिल सके। इसमें देरी होने से उन्हें मंहगा कर्ज़ लेकर अपना काम चलाना पड़ता है। मज़दूरी का भुगतान करने से पहले कुछ कार्रवाई पूरी करनी पड़ती है। इसमें मस्टर रोल और कार्य-स्थल पर कार्यों का verification करना शामिल है। हमने पाया है कि पर्याप्त स्टाफ न होने की वजह से इन कार्यों को निपटाने में अक्सर देरी होती है। राज्य सरकारों से मेरा अनुरोध है कि वे इस मसले को हल करें। हमें मनरेगा कामगारों को यह बताना होगा कि इस अधिनियम के तहत उनके क्या कानूनी अधिकार हैं और रोज़गार पाने के लिए उन्हें क्या करने की जरूरत है। मनरेगा की विशेषता यह है कि अगर अर्जी देने के 15 दिनों के भीतर किसी eligible व्यक्ति को काम नहीं दिया जाता तो उसे बेराजगारी भत्ता दिया जाएगा। राज्यों को चाहिए कि वे खुद ही ऐसे आसान तरीके अपनाएं, जिनसे काम के लिए ज्यादा से ज्यादा अर्जियां प्राप्त हों। गांवों के चौतरफा विकास के लिए मनरेगा की अहम भूमिका हो सकती है। लेकिन इसके लिए ग्रामीण विकास की दूसरी योजनाओं के साथ मनरेगा का तालमेल बिठाने की जरुरत होगी। मुझे इस बात की खुशी है कि मनरेगा के तहत अब घरों, स्कूलों और आंगनवाड़ी केन्द्रों में Toilets बनाए जा सकते हैं। हाल में लिए गए इस फैसले से देश में लागू किए जा रहे संपूर्ण सफाई अभियान को काफी बढ़ावा मिलेगा। अंत में मैं यह कहना चाहता हुं कि हमें ग्रामीण भारत में क्रांति लाने के लिए मिलकर काम करना होगा। सही मायने में भारत का विकास तब तक नहीं हो सकता, जब तक कि विकास का फायदा हर गांव तक नहीं पहुंचता। मनरेगा का जो बुनियादी मक़सद है और इसमें जो potential है, उनका फायदा अभी तक पूरी तरह नहीं उठाया गया है। इस योजना को जनता का अच्छा समर्थन मिला है। यदि मनरेगा योजना को ठीक से चलाया जाए, और जमीनी स्तर पर उसका बेहतर अमल किया जाए तो यह एक मॉडल ग्रामीण विकास योजना बन सकती है।

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