Friday 28 February 2014

आदेशों की अवहेलना करने पर अवमानना याचिका दायर


मंडी। प्रदेश उच्च न्यायलय के आदेशों की अवहेलना करके पंचायत सचिव को सेवा से बरखास्त करने के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायलय में अवमानना याचिका दायर की गई है। उच्च न्यायलय ने उपायुक्त मंडी को नोटिस जारी करते हुए इस मामले की सुनवाई 25 मार्च को निश्चित करते हुए जवाब तलब किया है। जिला के धर्मपुर विकास खंड में तैनात पंचायत सचिव हेत राम को एक जांच के तहत 20 जून 2011 को तत्कालीन उपायुक्त मंडी ने सेवा से बर्खास्त कर दिया था। पंचायत सचिव ने इस बर्खास्तगी आदेशों को प्रदेश उच्च न्यायलय में चुनौती दी थी। क्योंकि उपायुक्त ने इन आदेशों को पारित करने से पहले पंचायत सचिव के प्रतिवेदन पर संज्ञान नहीं लिया था। उच्च न्यायलय ने इसी आधार पर बर्खास्तगी आदेशों को निरस्त करते हुए उपायुक्त मंडी को निर्देश दिये थे कि याचिकाकर्ता के प्रतिवेदन पर संज्ञान लेने के बाद याचिकाकर्ता की सुनवाई के बाद फिर से आदेश करने को कहा था। याचिकाकर्ता का कहना है कि उपायुक्त मंडी ने उच्च न्यायलय के निर्देशों की अवहेलना करते हुए उसके प्रतिवेदन पर संज्ञान न लेते हुए पुन: सरकारी सेवा से बर्खास्त कर दिया है। इन आदेशों से आहत होकर याचिकाकर्ता ने अब प्रदेश उच्च न्यायलय में अवमानना याचिका दायर की है। उच्च न्यायलय ने याचिका की सुनवाई के लिए उपायुक्त मंडी को नोटिस जारी करके याचिका का जवाब प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। इधर, पंचायत सचिव ने पुलिस उप अधीक्षक सरकाघाट को ज्ञापन प्रेषित करके विकास खंड अधिकारी धर्मपुर के खिलाफ क्रास केस दर्ज करने की गुहार लगाई है। पंचायत सचिव का कहना है कि उनके खिलाफ दर्ज किया गया केस तथ्यों से विपरीत और निराधार है। उनका कहना है कि उच्च अधिकारियों के दवाब में आकर उसे मानसिक रूप से प्रताडित किया जा रहा है।

नियमितिकरण सरल और कम शुल्क पर करने की मांग


मंडी। मकान नियमितिकरण संघर्ष समिति (मंडी) ने प्रदेश के मुखयमंत्री से नियमितीकरण की प्रक्रिया सरल व कम शुल्क पर करने का आग्रह किया है। इस बारे में समिति ने मुखयमंत्री और प्रवर समिति के अध्यक्ष सुधीर शर्मा को ज्ञापन प्रेषित किया है। समिति ने सरकार की मकान नियमित करने की पहल का स्वागत करते हुए मंाग की है कि हजारों की संखया में लोगों के पुराने मकान जो जमाबंदी में दर्शाये गए हैं उन्हे बिना शुल्क के नियमित किया जाए। जिससे लोगों को वास्तुकार व अन्य खर्चों से राहत मिल सके। इन लोगों को मूलभूत सुविधाओं बिजली-पानी के अनापती प्रमाण पत्र के लिए परेशानियों से जूझना ना पडे। समिति के संयोजक उत्तम चंद सैनी ने कहा कि पिछले दस सालों से नये बनाए गए मकानों को जिनके नक्शे पास नहीं हैं या जिनके पास हुए नकशों के मकान में कुछ बदलाव किया है उनको कम से कम शुल्क में बिना जुर्माने तथा सरल प्रक्रिया से नियमित किये जाएं। समिति के अध्यक्ष अमर चंद वर्मा ने कहा कि हाल ही में हरियाणा सरकार ने भी नियमितिकरण की प्रक्रिया शुरू की। जिसके तहत एक जनवरी 2014 तक जो भी अनियमित मकान या कलौनी बनी हैं उन्हे इस प्रक्रिया के तहत 20 रूपये प्रति वर्ग फुट के हिसाब से एक ही स्लैब के तहत नियमित किया जा रहा है। जबकि हमारे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में जहां जमीन छोटे-2 रकबों में है और पहाडीदार है। लेकिन प्रदेश में मकान नियमित करने का शुल्क एक हजार प्रति वर्ग मीटर से शुरू होकर चार हजार रूपये प्रतिवर्ग मीटर 70 फीसदी बदलाव के लिए पांच स्लैबों में निर्धारित किया गया है जो उचित नहीं है। आम आदमी और मध्यमवर्गी नागरिकों ने जीवन भर की पूंजी लगाकर अपना मकान तो तामिर कर लिया है लेकिन नगर परिषद और टीसीपी कानूनों की कडी प्रक्रिया और भारी शुल्क से मकानों को नियमित करवाना उसके बस से बाहर है। जिससे सरकार की एक गल्त छवि जनता के समक्ष सामने आ सकती है। समिति के प्रैस सचिव समीर कश्यप ने कहा कि गांवों और कस्बों में भी नगर निकाय और नगर नियोजन के प्रावधान लागू करना सुनिश्चित किया जा रहा है। जिससे गांववासी भी इन कानूनों के बारे आशंकित हो गए हैं। समिति का यह मानना है कि पुरानी टाउनशीप वाले क्षेत्रों पर मूलभूत सुविधाओं से नागरिकों को वंचित करने वाले इन कानूनी प्रावधानों को लागू नहीं किया जाए। अपितु इन नियमों को नयी कलौनियों, सरकारी या हिमुडा कलौनी या सरकारी भवनों पर ही लागू किया जाए। समिति ने मांग की है कि मकानों को नियमित करने की प्रक्रिया को लागू करने के लिए सरल और हरियाणा से भी कम शुल्क तय किये जाएं। जिससे प्रदेशवासियों को अपने आशियाने नियमित करने की एक बडी राहत मिल सके।

Tuesday 25 February 2014

दांपत्य जीवन का दशक पूरा




आज ही के दिन सन 2004 में शिवरात्री के समापन पर सुबह जब देवता चौहट्टा जातर में शामिल होने के लिए के लिए कूच कर रहे थे। उसी समय भोले नाथ के इस गण की बारात का काफिला सुंदरनगर के शीतला मंदिर की ओर रवाना हो रहा था। शिवरात्री के प्रसाद के रूप में मुझे सोनाली कश्यप जैसा जीवनसाथी मिला। आज इस खुबसूरत संयोग का एक दशक पूरा हो चुका है। इस बीच चिन्मया और मितुल ने हमारे दांपत्य जीवन को खुशियां और गंभीरता प्रदान की है। सोनाली को यह श्रेय देना चाहता हुं कि उसने मुझे समझते हुए इस कठिन जीवनयात्रा को बेहद सुगम और सरल बना दिया है।

Monday 24 February 2014

लापता बेटी की तलाश को लगाई पिता ने गुहार


मंडी। लगभग दो सप्ताह से गायब हो गयी बेटी की तलाश के लिए पिता ने जिला पुलिस अधीक्षक से गुहार लगाई है। सदर उपमंडल के भडयाल (टिक्कर) गांव निवासी हरी सिंह पुत्र निहालू ने अपनी बेटी के गायब हो जाने की जांच करने के लिए जिला पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन सौंपा है। हरी सिंह के अनुसार उनकी बेटी निर्मला देवी की शादी करीब 14 साल पहले हुई है। लेकिन उसका पति पिछले कुछ सालों से उसे मारपीट करने लग गया था और निर्मला को कई बार उसने अपने घर से भी निकाला था। निर्मला की दो बेटियां और एक बेटा है। उन्होने बताया कि विगत 16 फरवरी से वह अपने ससुराल से गायब हो गई है। हालांकि हरी सिंह ने उसकी तलाश सभी परिजनों के पास भी कर ली लेकिन निर्मला का कोई पता नहीं चल रहा है। उन्होने संदेह जाहिर किया कि उसके पति ने निर्मला को प्रताडित करके घर से निकाल दिया है या उसकी साथ किसी घटना को अंजाम दिया गया है। उन्होने कहा कि इस बारे में उन्होने बल्ह थाना में भी रिर्पोट दर्ज करवाई है। लेकिन अभी तक कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। हरी सिंह ने जिला पुलिस अधीक्षक को इस मामले में जांच करवा कर निर्मला की तलाश करने और दोषियों को दंडित करने की गुहार लगाई है।

मिडिएशन पर जागरूकता शिविर आयोजित


मंडी। जिला विधिक प्राधिकरण की ओर से सोमवार को मिडिएशन (मध्यस्थता) की जानकारी देने के लिए जागरूकता शिविर आयोजित किया गया। जिला न्यायलय परिसर के बार रूम में आयोजित शिविर की अध्यक्षता जिला एवं सत्र न्यायधीश एस सी कैंथला ने की। इस अवसर पर संबोधित करते हुए उन्होने शिविर में मौजूद अधिवक्ताओं और याचिकाकर्ताओं से बढ़चढ़ कर मिडिएशन के माध्यम से मामले सुलझाने का आहवान किया। उन्होने कहा कि मिडिएशन के माध्यम से लंबित मामलों का निस्तारण तेजी से और दोनों पक्षों की शर्तों के मुताबिक हमेशा-हमेशा के लिए हो जाता है। उन्होने बताया कि राज्य विधिक प्राधिकरण के निर्देशों के तहत इस तरह के जागरूकता शिविरों के माध्यम से लोगों को अपने मामले सुलझाने के बारे में जानकारी दी जाती है। न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी कोर्ट नंबर एक विवेक खेनाल ने कहा कि मिडिएशन के माध्यम से मामलों को सुलझाने से लोगों के समय, ऊर्जा और पैसे की बचत होती है वहीं पर उन्हे अदालतों की लंबी प्रक्रिया से भी राहत मिलती है। उन्होने कहा कि लंबित मामलों के शीघ्र निस्तारण के लिए दिवानी प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत मिडिएशन का अधिक से अधिक प्रयोग किया जा रहा है। शिविर में प्रशिक्षित मिडिएटर ललित कपूर, प्रेम सिंह ठाकुर, दुनी चंद शर्मा, अमर चंद वर्मा और समीर कश्यप ने भी लोगों को मिडिएशन की प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी। शिविर में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायधीश पदम सिंह ठाकुर, मुखय न्यायिक दंडाधिकारी अजय मेहता, न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी कोर्ट नंबर दो रमणीक शर्मा, कोर्ट नंबर तीन उपासना शर्मा, कोर्ट नंबर चार गीतिका कपिला, विशेष न्यायिक दंडाधिकारी रघुवीर सिंह, प्रशिक्षित मिडिएटर, जिला बार एसोसिएशन के सदस्य और न्यायलय में सुनवाई के लिए आए लोग मौजूद थे।

Sunday 23 February 2014

मकान नियमितिकरण संघर्ष समिति की बैठक आयोजित


मंडी। मकान नियमितीकरण संघर्ष समिति (मण्डी) की बैठक रविवार को इंदिरा मार्केट की गोल पौडी में आयोजित की गई। बैठक में नगरपरिषद और टीसीपी कानूनों के कारण शहरवासियों को हो रही परेशानी के बारे में चर्चा की गई। बैठक की अध्यक्षता समिति के अध्यक्ष अमर चंद वर्मा ने की। समिति के संयोजक उतम चंद सैनी ने कहा कि शहरवासियों को नगरपरिषद और टीसीपी कानूनों की आड़ में मूलभूत सुविधाओं से वंचित कर देना संविधान प्रदत मूल अधिकारों व मानवाधिकारियों का उल्लंघन है। उस पर इन आशियानों को नियमित करने की बेहद कठिन प्रक्रिया भी महंगी दरों पर घोषित की जा रही है जो सहुलियत की बजाय दंडात्मक अधिक है। हरियाणा में जहां मकानों को नियमित करने के लिए सरकार एक वर्ग फुट के 20 रूपये वसूल कर रही है। वहीं पर प्रदेश सरकार ने मकानों को एक हजार रूपये प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से नियमित करने का फैसला लिया है। उन्होने कहा कि मंडी शहर 1526 ई. में बस गया था। इस ऐतिहासिक शहर में नगर परिषद और टीसीपी कानूनों के तहत मकान बनाना असंभव कार्य है। ऐसे में पुरानी टाउनशीप में इन कानूनों को लागू नहीं किया जाना चाहिए और इनका अमल हिमुडा, हाउसिंह बोर्ड की कलोनियों, नये शहर या सरकारी इमारतों पर लागू किया जाना चाहिए। समिति के अध्यक्ष अमर चंद वर्मा ने कहा कि रोटी, कपडा और मकान हरेक नागरिक की मूल जरूरतें होती हैं। जिन्हे मुहैया करवाना सरकार की जिममेवारी होती है। लोग मेहनत मजदूरी करके रोटी-कपडा तो कमा लेते हैं लेकिन मकान के लिए उन्हे भारी संघर्ष से गुजरना पडता है। ऐसे में सरकार को लोगों को आशियाने मुहैया करवाने और उन मकानों में मूलभूत सुविधा बिजली पानी की व्यवस्था प्रदान करने का भी दायित्व होता है। सरकार को शहरों में रहने वाले नागरिकों के आशियाने संवारने चाहिए जबकि इन कठोर कानूनों की आड में उनके आशियाने उजाडे जा रहे है और उन्हे मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है। समिति के प्रेस सचिव समीर कश्यप ने बताया कि समिति ने मकानों को नियमित करने के लिए प्रदेश सरकार को ज्ञापन प्रेषित किया है। इसके अलावा समिति इन कानूनों से प्रभावित लोगों से संपर्क करके संघर्ष की रणनिति तय करेगी। जिसके लिए आगामी 15 मार्च को समिति की बैठक निर्धारित की गई है। बैठक में रमेश वालिया, आर पी शर्मा, सुरिन्द्र, हेम राज पठानिया, लाल चंद, राकेश कुमार, पंकज वालिया, हरमीत सिंह बिट्टू, मुरारी लाल शर्मा, चेत राम और प्रदीप परमार भी मौजूद रहे।

Friday 21 February 2014

रिहायशों का नियमितीकरण सरल और कम दरों पर किया जाए


 मंडी। मकान नियमितीकरण संघर्ष समिति(मण्डी)ने रिहायशी मकानों के नियमितीकरण को सरल करने के लिए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को ज्ञापन प्रेषित किया है। समिति ने हरियाणा सरकार की तर्ज पर कम से कम शुल्क लगाकर बिना जुर्माने के सरल प्रक्रिया द्वारा सारे रिहायशी अनियमित मकानों को नियमित करने की मांग की है। वहीं पर इस समस्या पर मंथन के लिए रविवार को आपात बैठक बुलाकर प्रभावित लोगों से इसमें बढ़चढ़ कर भाग लेने का आहवान किया है। समिति के संयोजक उत्तम चंद सैनी ने बताया कि विगत 13 फरवरी को मकानों के नियमितीकरण का सरलीकरण करके आम आदमी को राहत पहुंचाने हेतु ज्ञापन प्रेषित किया गया था। इसी बीच प्रदेश सरकार ने नियमितीकरण की निति निर्धारित की है। सरकार की निति के मुताबिक नियमितीकरण की जो दरें दर्शायी जा रही हैं वह हिमाचल प्रदेश जैसे पहाडी राज्य जहां जमीनों के कब्जाधारक छोटी भूमियों पर काबिज हैं उन पर यह दरें लागू करना उनकी क्षमता से बाहर है जिसका फायदा आम लोगों को नहीं हो पाएगा। उन्होने कहा कि हाल ही में हरियाणा की कांग्रेस सरकार ने भी मकानों के नियमितीकरण के लिए निती बनाई है। हरियाणा जैसे राज्य जहां पर जमीनों की कीमत बहुत ज्यादा है लेकिन यहां रिहायशी मकान नियमितीकरण की एक ही दर 20 रूपये प्रति वर्ग फुट निर्धारित की है। जबकि हमारे प्रदेश में जहां भूमी मालिकों के पास बहुत ही छोटे-2 दो या तीन बिस्वे के ही रकबे हैं वहां पर एक हजार रूपये प्रति वर्ग मीटर के दर से नियमितीकरण किया जाना आम गरीब लोगों की पहुंच से बाहर है। इसके अलावा लोगों को वास्तुकार से नक्शे बनवाना, नगर परिषद और टीसीपी विभाग से इन्हे पास करवाना, नक्शों के लिए भारी भरकम फीस की अदायगी करना और अधिकारियों व कर्मचारियों से काम करवाने की प्रक्रिया बेहद जटिल होने की वजह से भ्रष्टाचार को बढावा मिलने की संभावना अधिक रहती है और आम लोग इस प्रक्रिया में बुरी तरह से पिसता जाता है। समिति के अध्यक्ष अमर चंद वर्मा ने बताया कि मकान नियमितीकरण को लेकर सरकार की पहल का समिती स्वागत करती है। सरकार ने इस दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया है जो आम लोगों के लिए राहत भरा कदम है। सरकार शहरों के साथ लगते गांवों को भी नगर परिषद और टीसीपी एरिया के तहत लाना तो चाहती है। लेकिन यहां सवाल ये खड़ा होता है कि शहरवासी अपनी मूलभूत सुविधाएं मकान, बिजली और पानी के लिए जदोजहद करने व अपनी क्षमता से ज्यादा राशि इन मूलभूत सुविधाओं को हासिल करने के लिए बाध्य हैं और वह परेशानियों और भ्रष्टाचार के आगे विवश हैं। आम लोग जो इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बन पाते वह सालों से इन मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। ऐसे में गांववासी क्यों कर नगर परिषद व टीसीपी क्षेत्र के तहत आना चाहेंगे। समिति ने मांग की है कि हरियाणा सरकार की तर्ज पर कम से कम शुल्क लगाकर बिना जुर्माने के सरल प्रक्रिया द्वारा सारे रिहायशी अनियमित मकानों को नियमित किया जाए। संघर्ष समिति के प्रेस सचिव समीर कश्यप ने बताया कि 23 फरवरी रविवार को समिति की आपात बैठक तीन बजे इंदिरा मार्केट में बुलाई गई है। समिति ने प्रभावित शहरवासियों से बैठक में बढ़चढ़ कर भाग लेने का आहवान किया है। जिससे नियमितिकरण को लेकर विचार विमर्श किया जाए और सभी की राय लेकर भविष्य की रणनिति तय की जा सके। 

Thursday 20 February 2014

चैक बाउंस के आरोपी को एक साल कैद 1,85,500 हर्जाना


मंडी। चैक बाउंस का अभियोग साबित होने पर अदालत ने एक आरोपी को एक वर्ष के साधारण कारावास और 1,85,500 रूपये हर्जाना अदा करने का फैसला सुनाया है। विशेष न्यायिक दंडाधिकारी रघुबीर सिंह के न्यायलय ने मंडी के स्कूल बाजार निवासी बेली राम पुत्र शेर सिंह की शिकायत को उचित मानते हुए पैलेस कलौनी स्थित फैशन एमब्रोयडरी शॉप के कुलदीप सिंह पुत्र लाल सिंह को उक्त सजा और जुर्माने की सजा सुनाई। अधिवक्ता एम एल शर्मा के माध्यम से न्यायलय में दायर शिकायत के अनुसार आरोपी और शिकायतकर्ता के आपस में दोस्ताना संबंध थे। जिसके कारण आरोपी ने सितंबर 2006 में शिकायतकर्ता को संपर्क करके उनसे 1,85,500 रूपये की राशि उधार ली थी। आरोपी ने यह राशि तीन माह में वापिस लौटानी थी। लेकिन इस अवधि में राशि वापिस न लौटाने पाने पर आरोपी ने शिकायतकर्ता को एक चैक जारी किया था। शिकायतकर्ता ने जब चैक को भुगतान के लिए बैंक में प्रस्तुत किया तो आरोपी काखाता बंद हो जाने के कारण यह चैक बाउंस हो गया था। ऐसे में शिकायतकर्ता ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से आरोपी को कानूनी नोटिस जारी करके राशि का भुगतान करने को कहा था। लेकिन आरोपी ने न तो कानूनी नोटिस का जवाब दिया और न ही उधार ली गई राशि वापिस लौटाई। निस्तारण के दौरान ही शिकायतकर्ता का देहांत हो जाने के कारण उनके बेटे रमेश कुमार के माध्यम से मामले की सुनवाई की गई। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आरोपी के खिलाफ निगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट अधिनियम की धारा 138 के तहत चैक बाउंस का अभियोग संदेह की छाया से दूर साबित हुआ है। जिसके चलते अदालत ने आरोपी को उक्त कारावास और हर्जाने की सजा का फैसला सुनाया है।

डीपीई संघ की बैठक आयोजित


मंडी। जिला डीपीई संघ की बैठक प्रधान अनिल पठानिया की अध्यक्षता में मंडी में आयोजित की गई। बैठक में ग्रेड पे के संबंध में विचार विमर्श किया गया। डीपीई संघ के मुताबिक शिक्षा विभाग में लगभग सभी श्रेणियों को संशोधित ग्रेड पे दे दिया गया है लेकिन डीपीई पद पर कार्यरत कर्मचारियों को पुरानी तर्ज पर ही ग्रेड पे दिया जा रहा है। संघ का मानना है कि यह दुर्भागयपुर्ण है कि इस वक्त शिक्षा विभाग में पीईटी अध्यापकों को 4400 रूपये ग्रेड पे प्रतिमाह दिया जा रहा है। लेकिन पीईटी से पदोन्नत होने के बाद डीपीई बने शिक्षकों से भेदभाव करके मात्र पुराने तर्ज पर ही 3600 रूपये ग्रेड पे दिया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश डीपीई संघ का एक प्रतिनिधिमंडल शीतकालीन सत्र तथा बजट सत्र में मुखयमंत्री वीरभद्र सिंह से भी इस संबंध में मिला है। लेकिन आश्वासन के बावजूद अभी तक इस बारे में अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है। संघ का कहना है कि जो वेतन और भत्ते डीपीई को टीजीटी के बराबर रूटीन में मिलते थे उनके लिए भी मुखयमंत्री से पांच बार मिल चुके हैं। वहीं पर प्रदेश के अन्य सभी मंत्रियों को भी इन मांगों के बारे में अवगत करवाया जा चुका है। लेकिन सरकार और विभाग की ओर से अभी तक कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई गई है। संघ का कहना है कि अगर समय रहते उनकी मांगों पर विचार नहीं किया गया तो वह न्यायलय में जाने को बाध्य हो जाएंगे। बैठक में महासचिव रमेश ठाकुर, वरिष्ठ उपप्रधान रूप सिंह, प्रधान संतोष कुमार, मीडिया प्रभारी प्रदीप भारद्वाज तथा डीपीई संघ के अन्य सदस्य भी मौजूद थे।

Wednesday 19 February 2014

चरस तस्कर को चार साल कठोर सजा 30,000 रूपये जुर्माना


मंडी। चरस तस्करी के आरोपी को अदालत ने चार साल के कठोर कारावास और तीस हजार रूपये जुर्माने की सजा सुनाई है। आरोपी के निश्चित अवधि में जुर्माना राशि अदा न करने पर उसे एक वर्ष के अतिरिक्त कारावास की सजा भुगतनी होगी। जिला एवं सत्र न्यायधीश एस सी कैंथला की विशेष अदालत ने हरियाणा के जींद जिला की सफीदों तहसील के करकहना गांव निवासी दिलबाग पुत्र तुलसी राम के खिलाफ मादक एवं नशीले पदार्थ अधिनियम की धारा 20 के तहत अभियोग साबित होने पर उसे उक्त कारावास और जुर्माने की सजा का फैसला सुनाया। अभियोजन पक्ष के अनुसार बीएसएल कलौनी पुलिस थाना सुंदरनगर का दल मुखय आरक्षी सत्य प्रकाश की अगुवाई में बलवाहण लिंक रोड पर सेगली के पास गश्त पर तैनात था। इसी दौरान आरोपी दायें कंधे पर बैग उठाए हुए वहां आया। आरोपी ने पुलिस दल को देखकर भागने की कोशीश की। जिस पर पुलिस दल ने आरोपी को संदेह के आधार पर काबू करके उसके बैग की तलाशी ली। पुलिस को आरोपी के बैग में से 400 ग्राम चरस बरामद हुई थी। पुलिस ने आरोपी को हिरासत में लेकर अदालत में अभियोग चलाया था। अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी करते हुए जिला न्यायवादी जे के लखनपाल ने 8 गवाहों के बयान कलमबंद करके मामले को साबित किया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों से आरोपी के खिलाफ चरस बरामदगी का अभियोग संदेह की छाया से दूर साबित हुआ है। सजा की अवधि पर हुई सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष का कहना था कि यह आरोपी का पहला अपराध है ऐसे में उसके प्रति नरम रूख अपनाया जाए। जबकि अभियोजन पक्ष का कहना था कि इस तरह के मामलों में चेतावनीपुर्ण ढंग से बढौतरी हो रही है। जिसके चलते आरोपी को कडी सजा दी जानी चाहिए। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि ऐसे मामलों में बढौतरी से समाज पर पडने वाले प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और इन अपराधों के प्रति सखती से निपटा जाना चाहिए। अदालत ने आरोपी से बरामद चरस व्यवसायिक मात्रा से कम और लघु मात्रा से अधिक होने के कारण उक्त अवधि के कारावास और जुर्माने की सजा का फैसला सुनाया।

Tuesday 18 February 2014

बिना परमिट शराब ले जाने पर छह माह कैद पांच हजार जुर्माना


मंडी। परमिट के बगैर देशी शराब सहित पकडे जाने का अभियोग साबित होने पर अदालत ने एक आरोपी को छह माह के साधारण कारावास और पांच हजार रूपये जुर्माने की सजा का फैसला सुनाया। आरोपी के जुर्माना राशि निश्चित समय में अदा न करने पर उसे एक माह का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा। मुखय न्यायिक दंडाधिकारी अजय मैहता के न्यायलय ने सदर तहसील के नालसन (साईगलू) निवासी सुरेश कुमार ठाकुर पुत्र इन्द्र सिंह के खिलाफ आबकारी अधिनियम की धारा 61(1)(ए) के तहत अभियोग साबित होने पर उक्त सजा का फैसला सुनाया। अभियोजन पक्ष के अनुसार 28 सितंबर 2009 को सदर पुलिस थाना का दल निरिक्षक रंजीत सिंह की अगुवाई में तल्याहड मार्ग पर गश्त पर तैनात था। इसी दौरान दो अंब के पास पुलिस दल ने मंडी से तल्याहड की ओर जा रहे वाहन को रोका। पुलिस दल ने वाहन की तलाशी ली तो इसमें देशी शराब ऊना नंबर वन के 200 कार्टन बॉक्स ले जाए जा रहे थे। पुलिस ने चालक से शराब ले जाने के परमिट की मांग की तो चालक वैध परमिट नहीं दिखा पाया। जिसके चलते पुलिस ने वाहन और शराब को अपने कब्जे में लेकर आरोपी को आबकारी अधिनियम के तहत हिरासत में लिया था। अभियोजन पक्ष की ओर से आरोपी के खिलाफ अदालत में अभियोग चलाया गया था। अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी करते हुए सहायक लोक अभियोजक अजय ठाकुर ने 6 गवाहों के बयान कलमबंद करवा कर मामले को साबित किया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आरोपी के खिलाफ बिना परमिट के देशी शराब ऊना नंबर वन के 200 कार्टन बॉक्स ले जाने का अभियोग संदेह की छाया से दूर साबित हुआ है। जिसके चलते अदालत ने आरोपी को उक्त कारावास और जुर्माने की सजा का फैसला सुनाया है।

Saturday 15 February 2014

दो शिकायतों के आरोपी को तीन-तीन माह कारावास 60 हजार हर्जाना


मंडी। चैक बाउंस को दो विभिन्न शिकायतों पर चलाए गए अभियोगों के साबित होने पर अदालत ने एक आरोपी को तीन-तीन माह के साधारण कारावास और 60 हजार रूपये हर्जाना अदा करने के फैसले सुनाए। विशेष न्यायिक दंडाधिकारी रघुबीर सिंह के न्यायलय ने मंडी के मोती बाजार निवासी मोहिन्द्र पाल पुत्र स्वर्ण सिंह की दो शिकायतों पर चलाए गए अभियोगों के साबित होने पर सैण मुहल्ला निवासी जगपाल पुत्र शोभा राम को तीन-तीन माह के साधारण कारावास और क्रमश: 40 हजार व 20 हजार रूपये हर्जाना अदा करने के आदेश दिये। अधिवक्ता प्रदीप परमार के माध्यम से अदालत में दायर शिकायतों के अनुसार आरोपी जगपाल ने शिकायतकर्ता से 60 हजार रूपये की राशि उधार ली थी। इस राशि को चुकाने के लिए आरोपी ने शिकायतकर्ता को चैक जारी किये थे। शिकायतकर्ता ने जब यह चैक भुगतान के लिए अपने बैंक में लगाए तो आरोपी के खाते में पर्याप्त राशि न होने के कारण यह बाउंस हो गये। ऐसे में शिकायतकर्ता ने अधिवक्ता के माध्यम से आरोपी को 15 दिनों का कानूनी नोटिस जारी किया था। लेकिन इसके बावजूद भी न तो आरोपी ने राशि की अदायगी की और न ही नोटिस का जवाब दिया। जिसके चलते शिकायकर्ता ने अदालत में निगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट की धारा 138 के तहत शिकायतें दायर करके अभियोग चलाए थे। अदालत ने इस शिकायतों पर फैसले सुनाते हुए कहा कि शिकायतकर्ता की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों से आरोपी के खिलाफ संदेह की छाया से दूर अभियोग साबित हुए हैं। ऐसे में अदालत ने आरोपी को उक्त अवधि के कारावास और हर्जाने की सजा के फैसले सुनाए।

Friday 14 February 2014

चैक बाउंस के आरोपी को तीन माह कारावास 50,000 हर्जाना


मंडी। चैक बाउंस का अभियोग साबित होने पर अदालत ने एक आरोपी को तीन माह के साधारण कारावास और 50,000 हर्जाने की सजा का फैसला सुनाया। विशेष न्यायिक दंडाधिकारी रघुबीर सिंह के न्यायलय ने मंडी के मोती बाजार निवासी मैसर्ज एम पी जवैलर्स के मोहिन्द्र पाल सिंह पुत्र सरवण सिंह की शिकायत पर चलाए गए अभियोग के साबित होने पर सैण मुहल्ला निवासी सुख राम पुत्र शोभा राम को उक्त कारावास और हर्जाने की सजा सुनाई है। अधिवक्ता राजेश शर्मा के माध्यम से अदालत में दायर शिकायत के अनुसार शिकायतकर्ता आभूषणों का कारोबार करते हैं और आरोपी उनका ग्राहक था। आरोपी ने शिकायतकर्ता से घर में निर्माण कार्य करवाने के लिए 50,000 रूपये की राशि दो माह में लौटाने की बात कह कर उधार ली थी। जिसे लौटाने के लिए आरोपी ने उन्हे बीस-बीस हजार के दो और दस हजार का एक चैक जारी किया था। इन चैकों को भुगतान के लिए जब बैंक में प्रस्तुत किया गया तो आरोपी के बैंक ने उसके खाते में पर्याप्त राशि न होने के कारण लौटा दिया था। चैक बाउंस हो जाने पर शिकायतकर्ता ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से कानूनी नोटिस जारी किया था। लेकिन आरोपी ने न तो नोटिस का जवाब दिया और न ही राशि की अदायगी की। ऐसे में शिकायतकर्ता ने अदालत में निगोशिएबल इन्सट्रुमेंट अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायत दायर करके आरोपी के खिलाफ अभियोग चलाया था। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि शिकायतकर्ता की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों से आरोपी के खिलाफ संदेह की छाया से दूर अभियोग साबित हुआ है। जिसके चलते अदालत ने आरोपी को उक्त कारावास और हर्जाना अदा करने का फैसला सुनाया।

गाडा गुसैणी में कालेज खुलने पर सराज कांग्रेस ने आभार जताया


मंडी। मुखयमंत्री वीरभद्र सिंह के गाडा गुसैणी में कालेज खोलने के ऐलान का सराज कांग्रेस ने स्वागत किया है। सराज ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के विशेष आमंत्रित सदस्य विजय पाल सिंह, उपाध्यक्ष लक्ष्मी चंद ठाकुर, महासचिव मदन ठाकुर, कार्यकारिणी सदस्य जगदीश ठाकुर, पंचायत प्रधान व महासचिव गीता ठाकुर तथा पुर्व प्रधान दया राम ठाकुर ने मुखयमंत्री वीरभद्र सिंह, सांसद प्रतिभा सिंह व प्रदेशाध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खु का धन्यावाद किया है। कांग्रेस कमेटी ने आशा व्यक्त की है कि इसके अलावा सराज विधानसभा क्षेत्र की उपतहसील बालीचौकी की अन्य लंबित मांगों पर भी सरकार त्वरित कार्यवाही करेगी। इन मांगों में बालीचौकी-गाडागुसैणी सडक मार्ग बाया थाटा धन्यार का निर्माण, थाटा धन्यार में प्राथमिक स्वास्थय केन्द्र, गाडागुसैणी विश्राम गृह का विस्तार एवं मुरममत कार्य, बंजार-गाडागुसैणी मार्ग को पक्का करने के लिए धनराशि उपलब्ध करवाा जाना है। कांग्रेस पदाधिकारियों ने कहा कि इन विकास कार्यों से आने वाले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिभा सिंह को बंजार व सराज विधानसभा क्षेत्र से अपार जनसहयोग एवं चुनावी बढ़त मिलेगी। उन्होने कहा कि यह विकास कार्य इस दुर्गम क्षेत्र में मील का पत्थर और भाजपा के शासन काल में हुई इलाके की दुर्गती का करारा जवाब साबित होंगे।

Thursday 13 February 2014

संगीत छात्र कल्याण संगठन की बैठक आयोजित


मंडी। जिला संगीत छात्र कल्याण संगठन की बैठक प्रदेशाध्यक्ष राजेश चौहान की अध्यक्षता में आयोजित की गई। जिसमें संगीत क्षेत्र से जुडे करीब 60 कलाविदों और छात्रों ने भाग लिया। जिला भर के संगीत छात्रों को संबोधित करते हुए राजेश चौहान ने उनसे संगीत के प्रचार प्रसार को बढावा देने का आहवान किया। उन्होने कहा कि प्रत्येक स्कूल में संगीत को छठी कक्षा से अनिवार्य विषय के रूप में पढाया जाना चाहिए। जबकि संगीत अध्यापकों के पद सृजित करके छात्रों को इन पाठशालाओं में नियुक्ति दी जानी चाहिए। इसके बारे में प्रदेश सरकार से मांग उठाई जाएगी। बैठक मेें जिला संगीत छात्र संगठन के नये पदाधिकारियों का भी मनोनयन किया गया। जिसमें ईशा को महासचिव, भीमसेन को कोषाध्यक्ष और पंकज शर्मा को सहसचिव मनोनीत किया गया है। बैठक में संगठन के प्रदेश सचिव रमेश ठाकुर और जिला के अध्यक्ष उमेश भारद्वाज ने भी संगीत के प्रचार प्रसार को लेकर विचार रखे। बैठक में जिला उपाध्यक्ष लतेश कश्यप, प्रेस सचिव समीर कश्यप, प्रसिध लोकगायिका कृष्णा ठाकुर, बी के शर्मा, सर्वज्ञ, अनुराधा, संजय, भीष्म, चमन, डा.निधी, संतोष कौैर, रश्मि पराशर, प्रवीण, अनुपम कश्यप, निशु चौहान, नंदनी और विनय कुमार ने भी चर्चा में भाग लिया। बैठक में संगीत से जुडे हुए करीब 60 कलाविद और संगीत छात्र मौजूद थे।

आशियानों के नियमितिकरण के लिए संघर्ष समिति गठित


मंडी। मंडी शहरवासियों के आशियानों का नियमितीकरण करके उन्हे बिजली पानी मुहैया करवाने के लिए संघर्ष समिती का गठन किया गया है। संघर्ष समिती ने मुखयमंत्री, संबंधित मंत्रियों और विधायकों को इस बारे में ज्ञापन प्रेषित किया है। मकान नियमितीकरण संघर्ष समिति का गठन अधिवक्ता अमर चंद वर्मा की अगुवाई में किया गया। जिसमें उतम चंद सैनी को समिति का संयोजक, अधिवक्ता अमर चंद वर्मा को अध्यक्ष, मुरारी लाल शर्मा को सचिव, सुमन को सहसचिव, समीर कश्यप को प्रेस सचिव, डा. एम. आर. सैनी को उपप्रधान, रमेश वालिया को कोषाध्यक्ष और डा. संतोष कश्यप व हरमीत सिंह (बिट्टू) को सलाहकार मनोनीत किया गया है। समिति के संयोजक उत्तम चंद सैनी ने बताया कि शहरवासी इन दिनों बिजली-पानी की मूलभूत सुविधाओं का कुनेक्शन प्राप्त करने के लिए भारी परेशानी का सामना कर रहे हैं। नगर निकाय व टाउन प्लानिंग विभाग से नये व पुराने मकानों के नक्शे पास न होने या नक्शा में बदलाव करके निर्माण करने वाले लोगों को अनापति प्रमाण पत्र जारी नहीं किये जा रहे हैं। टीसीपी कानून के तहत बिना नक्शा पास कराये बिजली-पानी की सुविधा नहीं दी जा सकती। नक्शा पास कराने के लिए मकान के आगे तीन मीटर और पीछे व साइड की ओर दो-दो मीटर जगह छोडकर मकान बनाने की बाध्यता है। जिन लोगों के पास मात्र दो-तीन विश्वा भूमि है वह इन नियमों के तहत मकान बनाने की सोच भी नहीं सकता। अगर मकान का निर्माण कर भी ले तो वह बिजली-पानी के कुनेक्शन से वंचित हो जाता है। समिति का कहना है कि टीसीपी एक्ट को हिमुडा, हाउसिंह बोर्ड की कलोनियों, नये शहर या सरकारी इमारतों पर लागू की जानी चाहिए। जबकि इन कायदे कानूनों की आड़ में शहर के आम नागरिक आशियानों तथा मूलभूत सुविधाओं से वंचित हो गए हैं और उनके परिवारों को सिर ढांपने के लिए छत जुटाने को संघर्ष करना पड रहा है। लोगों के पास जमीन ही नहीं है तो मकान बनाने के लिए वह जगह कहां से छोडें। करीब एक दशक पहले ऐसे कानूनों की शहरवासियों के लिए कोई बाध्यता नहीं थी और उन्हे मूलभूत सुविधाएं मुहैया हो जाती थी। समिति ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि शहरवासियों की कठिनाइयों को देखते हुए नगर परिषद और टीसीपी के नियमों में सरलीकरण किया जाए और बिजली-पानी के कुनैक्शन लेने के लिए अनापति प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया को आसान बनाया जाए।

Tuesday 11 February 2014

शिवरात्री में हॉकी प्रतियोगिता करवाने की मांग


मंडी। अंतर्राष्ट्रिय शिवरात्री महोत्सव की खेल स्पर्धाओं में राष्ट्रिय खेल हॉकी की प्रतियोगिता करवाने की मांग की गई है। इस बारे में खिलाडियों ने मेला समिती के अध्यक्ष देवेश कुमार को ज्ञापन सौंपा है। मांडव्य हॉकी क्लब व हॉकी खिलाडी के कमलदीप, नरेश, पवन, नितेश, पुष्पराज, देविन्द्र सिंह, सचिन, निशांत, निशा और दक्षा के प्रतिनिधिमंडल ने मंगलवार को उपायुक्त मंडी को ज्ञापन सौंप कर शिवरात्री महोत्सव के दौरान हॉकी प्रतियोगिता का आयोजन करने की मांग उठाई है। क्लब के सदस्यों और हॉकी के जूनियर व सब जूनियर खिलाडियों का कहना है कि पिछले 12 सालों से शिवरात्री में आयोजित होने वाली स्पर्धाओं में राष्ट्रिय खेल हॉकी को शामिल नहीं किया जा रहा है। हालांकि इससे पुर्व 1984 से 2002 तक हॉकी स्पर्धा का आयोजन नियमित रूप से होता था। खिलाडियों के अनुसार हॉकी महोत्सव में आयोजित स्पर्धाओं का अभिन्न अंग रहा है। ऐसे में उनका कहना है कि इस वर्ष आयोजित होने वाली शिवरात्री स्पर्धाओं के दौरान हॉकी प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाए। जिससे खिलाडियों को स्थानीय स्तर पर एक टुर्नामेंट खेलने का अवसर मिल सके।

डीएवी आर्यसमाज में फैंसी ड्रैस आयोजित


मंडी। डीएवी आर्यसमाज की प्राइमरी शाखा में फैंसी ड्रैस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमें नर्सरी और केजी कक्षा के छात्रों ने भाग लिया। पाठशाला की मुखयध्यापिका रचना ने बताया कि बच्चों ने भिन्न-2 पोशाकें पहन कर कार्यक्रम में रंग भर दिये। अभिभावकों ने बडे उत्साह के साथ इस प्रतियोगिता के बच्चों को तैयार किया हुआ था। फैंसी ड्रैस प्रतियोगिता में पहले स्थान पर हिमाचली वेशभूषा पहने शौर्य, दूसरे स्थान पर अकबर बने आयुष्मान और तीसरे स्थान पर मीरा के वेश में वंशिका रही। जबकि दुल्हे के परिधान में हर्ष को संत्वना पुरूष्कार से नवाजा गया है।

दिव्या दुग्गल को सम्मानित करेगी खलवाहण पंचायत


मंडी। हाल ही में कर्नाटक के बेल्लेरी में राष्ट्रीय पाईका बैडमिंटन प्रतियोगिता के फाइनल में पहुंच कर हिमाचल प्रदेश के लिए रजत पदक जीतने वाली दिव्या दुगगल को बालीचौकी क्षेत्र की ग्राम पंचायत पंचायत खलवाहण की ओर से सम्मानित किया जाएगा। वहीं पर उच्च पाठशाला सुधराणी की ओर से दिव्या का अभिनंदन किया जाएगा। खलवाहण पंचायत के प्रधान भूमे राम और पाठशाला के मुखयध्यापक यज्ञदत शर्मा ने बताया कि दिव्या ने इससे पहले भी पंचायत और पाठशाला को विभिन्न प्रतियोगिताओं में कई ट्राफियां अर्जित की हैं। उन्होने बताया कि दिव्या के राष्ट्रीय पाईका बैडमिंटन प्रतियोगिता में प्रदेश की टीम की कप्तानी करके रजत पदक जीतने से खेल प्रेमियों व क्षेत्रवासियों में खुशी की लहर है। उन्होने बताया कि पंचायत और पाठशाला की ओर से सममानित किये जाने के अलावा दिव्या को नगद राशि देकर भी पुरूस्कृत किया जाएगा। जबकि कुल्लू जिला के भुंतर निवासी ए क्लास ठेकेदार सतीश शर्मा ने दिव्या की प्रतिभा को प्रोत्साहित करने के लिए 5100 रूपये की राशि दी है। उल्लेखनीय है कि बालीचौकी की दुर्गम पंचायत खलवाहण की दिव्या दुगगल प्रदेश के बैडमिंटन खेल में सितारा बन कर उभरी है। गरीब घर से संबंध रखने वाली दिव्या ने अपनी मेहनत के बूते राष्ट्रिय प्रतियोगिता में रजत पदक हासिल करने की उपलब्धि अपने नाम की है। दिव्या के पिता संतराम ने बताया कि बैडमिंटन एक महंगा खेल है। प्रदेश में कोई बैडमिंटन अकादमी और स्पोर्टस होस्टल न होने के कारण गरीब घरों के प्रतिभावान खिलाडियों को भारी कठिनाईयों से गुजरना पड रहा है। उन्होने कहा कि दिव्या की प्रतिभा को निखारने के लिए बेहतर कोचिंग और डाइट की आवश्यकता है। जिसके लिए प्रदेश सरकार, खेल विभाग और जिला प्रशासन से मदद की दरकार है। अगर दिव्या को यह सुविधाएं मुहैया हो जाती हैं तो वह अपनी प्रतिभा के बल पर अच्छे परिणाम देकर प्रदेश का नाम अंतर्रराष्ट्रिय और राष्ट्रिय स्तर पर गौरवान्वित कर सकने में सक्षम होगी।

Sunday 9 February 2014

संगीत छात्र संगठन की बैठक मंगलवार को


मंडी। जिला संगीत छात्र कल्याण संगठन की बैठक मंगलवार को भगवान मुहल्ला के साईं भवन स्थित संगीत सदन में आयोजित की जाएगी। जिसमें संगठन की गतिविधियों के बारे में चर्चा की जाएगी। जिला संगीत छात्र कल्याण संगठन के अध्यक्ष उमेश भारद्वाज ने बताया कि बैठक में संगठन के प्रदेश अध्यक्ष राजेश चौहान और महासचिव रमेश ठाकुर विशेष रूप से मौजूद रहेंगे। उन्होने बताया कि संगीत छात्रों की समस्याओं को लेकर इस बैठक में विचार विमर्श किया जाएगा और भविष्य की रणनिती तय की जाएगी। प्रेस सचिव समीर कश्यप के माध्यम से जारी विज्ञप्ति में संगठन ने संगीत कला से जुडे हुए जिला भर के सभी संगठनों, कलाविदों और छात्रों से मंगलवार को होने वाली इस बैठक में बढ़चढ़ कर भाग लेने का आहवान किया है। जिससे संगीत के क्षेत्र में सामने आने वाली समस्याओं और इसके प्रचार-प्रसार के बारे में मंथन किया जा सके।

Friday 7 February 2014

वाहन की मरम्मत राशि ब्याज सहित अदा करने के आदेश


मंडी। जिला उपभोक्ता फोरम ने विक्रेता को वाहन की मुरम्मत पर व्यय 54,388 रूपये की राशि उपभोक्ता के पक्ष में ब्याज सहित अदा करने का फैसला सुनाया। इसके अलावा विक्रेता की सेवाओं में कमी के कारण उपभोक्ता को हुई परेशानी के बदले 10,000 रूपये हर्जाना और 3000 रूपये शिकायत व्यय भी अदा करने के आदेश दिये। जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष जे एन यादव और सदस्य रमा वर्मा ने जिला हमीरपुर की नदौन तहसील के खोराड (गलोरी) गांव निवासी रीता देवी पत्नी सुरजीत सिंह की शिकायत को उचित मानते हुए गुटकर स्थित वाहन विक्रेता कंपीटेंट आटोमोबाइल को उपभोक्ता के पक्ष में उक्त राशि 9 प्रतिशत बयाज दर सहित अदा करने के आदेश दिये। अधिवक्ता भानु प्रताप के माध्यम से फोरम में दायर शिकायत के अनुसार उपभोक्ता ने अपनी मारूती सविफट कार को विक्रेता के पास सर्विस के लिए भिजवाया था। जिसके बाद यह वाहन उपभोक्ता को यह कह सौंप दिया गया था कि इसकी आवश्यक रिपेयर कर दी गई है। लेकिन सर्विस के कुछ ही दिन बाद वाहन की पिकअप में समस्या आ गई। जिस पर वाहन को फिर से विक्रेता के पास ले जाया गया। उपभोक्ता को बताया गया कि वाहन के फयुल इंजैक्टर पंप खराब हो गया है और इसे बदलना होगा। जिस पर उपभोक्ता का कहना था कि वाहन 19 अक्तुबर 2014 तक एकसटेंडेड वारंटी अवधि में है ऐसे में इंजैक्टर को बिना राशी वसूले बदला जाए। लेकिन विक्रेता ने ऐसा करने से मना कर दिया। जिसके चलते उपभोक्ता ने फोरम में शिकायत दर्ज करवाई थी। फोरम ने अपने फैसले में कहा कि उपभोक्ता को मुहैया करवाई गई वारंटी पालिसी की शर्तों में यह कहीं नहीं दर्शाया गया है कि फयुल इंजैक्टर पंप इसमें कवर नहीं होता है। फोरम ने विक्रेता के वारंटी अवधि में पंप बदलने के लिए राशि वसूलने को सेवाओं में कमी करार दिया। फोरम ने विक्रेता को उपभोक्ता द्वारा मुरममत पर खर्च की गई राशि बयाज सहित अदा करने के अलावा सेवाओं में कमी के कारण उपभोक्ता को हुई परेशानी और असुविधा के बदले हर्जाना और शिकायत व्यय भी अदा करने का फैसला सुनाया।

Worse Working Conditions of Domestic Workers

Domestic work has become an important sector of female employment the world over, though it remains the least regulated globally. Estimates of the number of paid domestic workers in India have shown a huge increase over the last decade with a clear trend towards feminization. These estimates have been highly contested. The NSSO data for 2004- 05 showed a dramatic increase in the number of women engaged in domestic service, but in the context of reported anomalies in this round, it could be faulty. However, even if the comparison is made between 1999-2000 and 2009-10, it is clear that, especially in urban India, domestic work accounts for a growing and increasingly significant share of total female employment. The number of women employed in the sub categories of the industrial category ‘private households with employed persons’ as per the’2009- 1 0 employment data, (which itself is a huge under representation due to definitional ambiguities and invisibility issues), is 1.83 million. This shows more than four-fold increase over the 10-year period from 1999-2000. The share of female workers in this category has also remained as high at 68 per cent. Unlike many other countries, this upsurge has been driven by a;l increase in ‘part time’ workers in India, though the number (and demand) for full time workers is also on th~ rise. Most urban middle class households prefer part- timers due to a variety of reasons; the most important being the possibility of engaging cheap labour with no responsibility, easy hire and fire. This system frees the employer from the responsibility of boarding and lodging. It enables the employer to keep an array of workers if required to carry out different tasks, which are fragmented. The workers undertake diverse tasks, including housecleaning, laundry, cooking, dishwashing, care of children and the elderly, shopping, fetching and dropping children from/to school, and other activities associated with the regular and smooth functioning of a family-household. The part time system allows employers to hire according to their budget and to employ suitable workers for each task, where caste and other demogra characteristics are also considerations. Thus, often workers from lower castes are employed in cleaning tasks, while workers from upper castes are hired for cooking. Because of the limited data sets that are available for intense enquiry and due to the highly informal nature of employment relations, it is difficult to arrive at a definite macro profile of workers in the sector. However, the available data provides broad contours, which offer useful insights into the emerging social and demographic characteristics of these workers. While the increase in the number of domestic workers across all sub- categories — housemaid/ servant, cook, and governess/babysitter -is noteworthy, it is the all encompassing housemaid/ servant that shows the maximum increase, accounting for 92 per cent of all female domestic workers. This reflects the nature of tasks often assigned to these \\’orkers such as sweeping, mopping and other cleaning tasks. Child care and assistance in cooking and other odd chores are often subsidiary tasks which are expected from every domestic worker when demanded. Such tasks never form part of the negotiation, though multi-tasking is expected from every worker to meet any contingency. The assumption that all house work tasks flow naturally from any women governs these generalisations to a great extent. The current terminology —’maid’ —has thus come to denote an omnipresent all- in-all entity, who is expected to possess all the ‘natural’ skills including high levels of social competence. An Overview of Workers and Work Relations The macro data for 2009-10 shows that a large proportion of domestic workers are between the ages of 31-40 (33.3 per cent) and 41-50 (22.6 per cent). The share of those above 50 years also stood higher at 17 per cent. Currently, married women account for 55 per cent of domestic workers, followed by widowed or divorced/separated women (30.4 per cent). The age and marital profile highlight that more than the unmarried an~ younger age cohorts it is older women (for whom possibly other employment opportunities are few) who take up domestic work. The naturalisation of house work in a women’s life by marriage is also another factor that would explain the increased presence of older women in this sector. Most domestic workers have little formal education. In 2009-10, 54 per cent were “illiterate,” and 83 per cent had less than middle level schooling, an indication of their poor socio- economic backgrounds. The most interesting pattern, evident in many studies, is the presence of high proportions of women from all social groups, clearly bringing out the gendered understanding of this work more sharply than any other occupation. The category of OBC accounted for the highest proportion (32.4 per cent) followed by SC workers (31.2 per cent) and upper castes (28.4 pr cent). Across all castes, migrants account for the largest share of domestic workers, with the supply of workers maintained through a regular flow of distress migrants from varied and shifting rural origins (Neetha & Palriwala, 2011). In this context, the migration of tribal women to urban centres to take up domestic work is an important development that needs special mention. One of the preferences for tribal girls for domestic work, as established by many field studies, is the absence of caste informed notions of household work (Kasturi, 1990, Neetha, 2004). Micro level studies show that irrespective of the profile of workers and nature of domestic work, the employment and conditions of work in paid domestic work are highly informal with low wages. The details of work, the wage structure and service packages are very complex and variable, making it problematic to arrive at a uniform wage rate for domestic work even for a specific locality (Neetha, 2009). Wages and other conditions of work vary across region and even by locality in the same town/ city. Apart from the variation across larger divisions (such as cook, cleaner, and baby-sitter), wage rates vary within categories depending or~ the nature of contract and other specificities of work and the worker. Further, personal relations are crucial in setting the terms of the contract -be it is wages, leave or other entitlements. Paid domestic work is different from other forms of paid work with very specific workplace characteristics, the content of which is both historically and culturally embedded. It undermines the notion of a division between the domestic spheres as private, separate from the public sphere. For example, the usual labour market distinction of part-time and full-time, which is purely based on daily working time, is often used to analyse employment relationships in domestic work resulting in ambiguities in legislative entitlements governing this sector. Part time domestic workers are distinct from part time workers in any other informal sector of employment. Most ‘part- timers’ undertake same or multiple/heterogeneous tasks in different households. While ‘part- time’ from the point of view of the employer, their aggregate daily hours of work across all the households across all employerhouseholdstend to be equal to or greater than that of a ‘full time’ worker in a factory or construction site (as defined by ‘normal working hours’ under labour law). Yet another specificity of the sector is that of live- in and live-out workers, which falls outside of any informal sector framework. Personal relations govern entry into work and conditions of work, and the contours of the workplace being the four walls of the house makes this sector qualitatively different. One could add further dimensions that complicate the sector calling for a separate framework of analysis. The social characteristics and work related commonalities shared between paid and unpaid domestic workers on the one hand and paid domestic workers and informal workers in other sectors on the other hand underscore the inextricable entanglement of gender with other axes of stratification, particularly class. State regulation has been almost absent in this sector. However, there have been intensified efforts by activists and unions to introduce legislation at the state and national levels. The debates around legislation or recognise the need to coyer various labour rights of domestic workers, but the pathway to achieve this is highly contested. While to some legal protection can be achieved through a mere extension of existing labour laws, many activists have demanded a separate legislation. The demand for separate legislation is rooted in the specificities of the sector and its workers. Accordingly, a national policy on domestic work was drafted in 2012, pending approval of Parliament, the fate of which is yet unclear. Of late, some state governments have opted to Include domestic workers under the Minimum Wages Act, 1948. After much lobbying, domestic workers were brought within the ambit of the Unorganised Workers Social Security Act, 2008 and Prevention of Sexual Harassment at the Workplace Act, 2013. Welfare boards exist in a few states that partly address some of the social security dimensions though actual operation and coverage is an issue. The recent and most acclaimed inclusion of domestic workers under the Rashtriya Swasthya Bima Yojana (RSBY) clearly symbolises the state’s approach to this sector. To register as a domestic worker under the scheme, verification is required from two out of the four authorised agencies such as the police, employers’ resident’s welfare associations, the employer and unions. No other worker in the country is at the mercy of so many diverse interests groups in order to claim their eligible entitlement, which only reaffirms the states’ apathy and neglect, deliberate or otherwise, rooted in the patriarchal and gendered conceptualisations of domestic work. (The paper was presented at a seminar organized in Delhi by All India Working Women Forum. The author is with the Centre for Women Development Studies, New Delhi)  

Tuesday 4 February 2014

राष्ट्रीय पाईका बैडमिंटन फाइनल में पहुंची प्रदेश की दिव्या दुग्गल और संगीता


मंडी। कर्नाटक के बेल्लरी में जारी राष्ट्रीय पाईका की बैडमिंटन प्रतियोगिता में हिमाचल प्रदेश की दो खिलाडियों ने इतिहास दर्ज करते हुए फाइनल में अपनी जगह बनाई है। मंडी की दिव्या दुग्गल और सिरमौर की संगीता की जोडी ने सेमीफाइनल में झारखंड की टीम को शिकस्त देकर फाइनल में प्रवेश किया है। प्रतियोगिता के फाइनल में हिमाचल प्रदेश की टीम तमिलनाडु के साथ खिताबी टककर में उतरेगी। दिव्या और संगीता की जोडी की इस कामयाबी से प्रदेश भर में खुुशी की लहर दौड गई है। मंडी जिला की बालीचौकी उपतहसील के सुधराणी (खलवाहण) गांव की दिव्या दुगगल इससे पहले भी लगभग एक दर्जन से अधिक राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी है। दिव्या और संगीता के फाइनल में पहुंचने पर हि. प्र. बैडमिंटन एसोसिएशन के सचिव राजेन्द्र शर्मा, जिला खेल अधिकारी पदम सिंह नेगी, जिला बैडिमिंटन एसोसिएशन के सचिव बी डी मोदगिल, वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला (कन्या) मंडी के प्रधानाचार्य, कोच लोकेश शर्मा, राजेन्द्र वैद्या तथा ग्राम पंचायत खलवाहण के प्रधान भूमे राम ने उन्हे बधाई दी है।

Monday 3 February 2014

अधिवक्ता अरूण महाजन का देहावसान


मंडी। जिला एवं सत्र न्यायलय में कार्यरत अधिवक्ता अरूण महाजन का देहांत हो गया। उनका अंतिम संस्कार हनुमान घाट में किया गया। जिला बार एसोसिएशन ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है। जानकारी के अनुसार मंडी न्यायलय में कार्यरत अधिवक्ता अरूण महाजन (60) का बीमारी के कारण शनिवार रात को देहांत हो गया। वह कुछ समय से बीमार चल रहे थे। शनिवार रात उनकी तबीयत खराब होने से उनका देहांत हो गया। अरूण महाजन ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से कानून स्नातक की डिग्री ली थी। जिसके बाद से वह मंडी न्यायलय में बतौर अधिवक्ता अपनी सेवाएं दे रहे थे। उनका अंतिम संस्कार रविवार को हनुमान घाट में किया गया। इधर, जिला बार एसोसिएशन ने सोमवार को बार रूम में शोकसभा का आयोजन किया। जिसमें दो मिनट का मौन रख कर अधिवक्ता अरूण महाजन को श्रद्धांजली अर्पित की गई।

मंडी में बनाया जाए आधुनिक पुस्तकालयः शहीद भगत सिंह विचार मंच

मंडी। प्रदेश की सांस्कृतिक और बौद्धिक राजधानी मंडी में आधुनिक और बेहतरीन पुस्तकालय के निर्माण की मांग की गई है। इस संदर्भ में शहर की संस्...