Tuesday 21 February 2017

शिवरात्रि महोत्सव प्राधिकरण बनाने और फिजूल खर्च रोकने की मांग




मंडी। अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव का प्राधिकरण बनाया जाए और मेले में होने वाली फिजूल खर्ची पर तत्काल रोक लगाई जाई। इस बारे में जिला परिषद के खलवाहण वार्ड के सदस्य संत राम की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल ने मुखयमंत्री वीरभद्र सिंह को उपायुक्त मंडी हरिकेश मीणा के माध्यम से ज्ञापन सौंपा है। प्रतिनिधिमंडल के सदस्य संत राम, इंडियन पीपलस थियेटर एसोसिएशन के संयोजक लवण ठाकुर, सचिव समीर कश्यप, बीडीसी सदस्य राजकुमार, एडवोकेट ललित ठाकुर, रतन लाल मिश्रा, जिप सदस्य श्याम सिंह चौहान, निर्मला चौहान, जयवंती चौहान, बबिता ठाकुर, बीडीसी अध्यक्ष सराज अमर सिंह व बीडीसी सदस्य खीरामणी ने बताया कि मंडी में हर वर्ष आयोजित होने वाला अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव अक्सर फिजूल खर्ची, बदइंतजामी और कुप्रबंधन का शिकार रहता है। संत राम ने बताया कि महोत्सव के बारे में सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी से पता चला है कि गत वर्ष मेला प्रबंधन कमेटी को 2,40,96,637 रूपये की आय हुई है। जबकि इसमें से 2,22,19875 रूपये की राशि खर्च भी कर दी गई है। मेले का सबसे अधिक खर्चा सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर 82,44,712 रूपये की राशी खर्च की गई है। जो कि मेले की कुल आय का लगभग पैंतीस प्रतिशत बनता है। इस राशि में 70 फीसदी खर्चा स्टार नाइट व बाहरी कलाकारों पर खर्च कर दिया गया है जबकि हिमाचली व स्थानीय लोक कलाकारों को मात्र 30 प्रतिशत ही राशि खर्च की गई है। प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि शिवरात्रि में दो सौ से भी अधिक देवी देवता भाग लेने के लिए आते हैं। जिनके साथ हजारों देवलु, बजंतरी व देवी देवताओं के कारदार, गुर इत्यादि शामिल होते हैं। हैरानी की बात है कि मेला प्रबंधक कमेटी के आमंत्रण पर बुलाए जाने वाले इन विशेष मेहमान देवी देवताओं पर मात्र 49,38,430 रूपये खर्च किए जाते हैं। यानि मेले की कुल आय का मात्र 20 प्रतिशत ही देवी देवताओं पर खर्च किया जाता है। इतना ही नहीं सूचना से जाहिर हुआ है कि गत वर्ष मेले के दौरान खेल कूद पर 15,14,000 रूपये की राशि खर्च की गई। जो बजट का मात्र 6 प्रतिशत है। वहीं पर स्वागत कमेटी की फिजूल खर्ची पर इससे दुगुनी 30,39,475 रूपये की राशि खर्च की गई। इसके अलावा मिसलेनियस राशि के रूप में भी 34,74,493 रूपये खर्च किए गए दर्शाए गए हैं। जबकि ग्राउंड व विज्ञापन पर ही 9,58,765 रूपये की राशि खर्च कर दी गई। आलम यह है कि मेले के दौरान भारी फिजूल खर्ची करने के बावजूद भी करीब 18 लाख रूपये मेला प्रबंधन कमेटी के पास शेष बचा हुआ है जिससे जाहिर होता है कि कमेटी के पास साधनों की कमी नहीं है। लेकिन यहां सवाल खडा होता है कि अगर कमेटी के पास पर्याप्त राशि है तो फिर मेले में बदइंतजामी और कुप्रबंधन क्यों है। प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि मेले का मुखय आकर्षण यहां आने वाले दूरदराज के क्षेत्रों के देवी देवता और देवलू हैं। मंडी जिला के विभिन्न छोरों से अपने परंपरागत रथों पर आने वाले इन देवी देवताओं के साथ हजारों की संखया में लोग मंडी पहुंचते हैं। यहां पहुंचने पर माधो राव के दर्शन के बाद वह अपने अपने डेरों पर चले जाते हैं। इन देवी देवताओं के रहने के ठिकाने कुछ तो राजमहल में हैं जबकि अन्य स्थानीय लोगों के घरों, मंदिरों व स्कूलों आदि में हैं। लेकिन इन देवी देवताओं के ठहराव के लिए मेला प्रबंधन कमेटी की ओर से समुचित व्यवस्था नहीं की जाती। वहीं पर उन्हे कमेटी की ओर से दी जाने वाली धाम में खुले आसमान के नीचे बिठाया जाता है और उन्हे कडी धूप और बारिश में खाना खाने के लिए बाध्य होना पडता है। प्रतिनिधिमंडल के अनुसार मेला कमेटी की ओर से इन देवी देवताओं को नाममात्र का मानदेय भेदभावपूर्ण तरीके से दिया जाता है। इसके अलावा करीब तीन दर्जन देवी देवता ऐसे भी मेले में आते हैं जिन्हें आमंत्रित नहीं किया जाता है क्योंकि वह पंजीकृत नहीं हैं। लेकिन राज माधव राय व इस देव समागम के प्रति उनकी श्रद्धा के कारण वह सभी मुश्किलों का सामना करते हुए अनेकों सालों से मंडी आ रहे हैं। अति दुर्गम क्षेत्रों से आने वाले इन देवी देवताओं को कमेटी की ओर से न ही मानदेय दिया जाता है और न ही अन्य कोई सुविधा। जिससे इन देवी देवताओं के साथ आने वाले लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पडता है। इनमें से अधिकतम देवता दलितों के हैं लेकिन दलितों के देवता होने के कारण ही इनके साथ भेदभाव करके इन्हे पंजीकृत न करने की साजिश हर साल रची जाती है। इन सभी अपंजीकृत देवी देवताओं को पंजीकृत करके यह भेदभाव खत्म किया जाए और उन्हें भी अन्य देवी देवताओं के समान मानदेय व अन्य सुविधाएं मुहैया करवाई जाएं। देवी देवताओं को ठहरने के लिए प्रस्तावित देव सदन के निर्माण को जल्द से जल्द शुरू किया जाए। शिवरात्रि मेले की आय के कुल राशि का 50 प्रतिशत देव परंपरा पर खर्च किया जाए। प्रतिनधिमंडल ने बताया कि देव परंपरा के संवाहक बजंतरी वर्ग इस देव समागम को सबसे अनूठा हिस्सा होता है। जो अपने लोक वाद्यों की धुनों से सबको सरोबार करके देव समागम का माहौल लोमहर्षक बना देता है। लेकिन अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाला यह बजंतरी वर्ग अभी भी भारी असमानता और शोषण का शिकार है। उत्कृष्ठ लोक कलाकार होने के बावजूद वह अभी तक अपनी लोक कलाकार की पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है लेकिन उसकी कला का अभी तक सही-2 मूल्यांकन नहीं हो पाया है। दरअसल बजंतरी वर्ग ही हमारे पहाडी क्षेत्र का लोक कलाकार है और उसे लोक कलाकार का दर्जा दिया जाना बेहद आवश्यक है। अन्यथा लुप्त होती जा रही लोक कला के यह संवाहक अपना लोक कला धर्म भविष्य में भी जारी रखने में सक्षम नहीं होंगे। देखा गया है कि शहनाई वादकों की भारी कमी हो गई है और कई देवताओं को शहनाई वादक नहीं मिल पा रहे हैं। ऐसे में बजंतरियों को संरक्षण देते हुए उन्हें लोक कलाकार का दर्जा दिया जाए और शिवरात्रि महोत्सव में भाग लेने वाले हर बजंतरी को प्रतिदिन के हिसाब से वाद्य यंत्रों के मुताबिक सममानजनक मानदेय दिया जाए। प्रतिनिधिमंडल के अनुसार सांस्कृतिक कार्यक्रमों में स्टार नाईटों व बाहरी कलाकारों पर किए जाने वाले फिजूल खर्च को कम किया जाए। जबकि हिमाचली व स्थानीय कलाकारों को अधिक से अधिक मंच पर स्थान दिया जाए और उनकी प्रोत्साहन राशि को भी बढाया जाए। जिससे वह अपनी कला में और निखार ला सकें। प्रतिनिधिमंडल की मांग है कि अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव के आयोजन के लिए मेला प्राधिकरण का गठन किया जाए और इस प्राधिकरण के माध्यम से ही भविष्य में मेले का हर वर्ष आयोजन किया जाए। जिला प्रशासन की अध्यक्षता में बनी मेला प्रबंधन कमेटी के द्वारा मेला आयोजित करने से प्रशासनिक कार्यों में लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पडता है। मेले के दौरान जिला उपायुक्त कार्यालय में कार्यवश आने वाले लोगों को प्रशासनिक अधिकारियों के मेले में व्यस्त होने के कारण कई समस्याओं से जूझना पडता है। वहीं पर मेले के दौरान खेलकूद का जिममा पुलिस विभाग को सौंप दिया जाता है। यह कार्य जिला खेल विभाग सही ढंग से करवा सकता है लेकिन पुलिस विभाग को खेलों का जिममा देना उचित नहीं है क्योंकि वह कानून व्यवस्था का कार्य भी कर रहे होते हैं। प्रतिनिधिमंडल ने मांग की है कि इन विषयों को ध्यान में रखते हुए मेले के दौरान फिजूल खर्ची पर लगाम लगाने के लिए मेला प्राधिकरण का गठन किया जाए जिससे मेले का उचित प्रबंधन किया जा सके और इस सांस्कृतिक देव समागम की मूल आत्मा को बचाते हुए इसका संरक्षण किया जाए।
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