Tuesday 25 September 2012

दुराचार की पीडिता के पक्ष में आरोपी एसएचओ और प्रदेश सरकार को 5 लाख हर्जाना देने के फैसला


समीर कश्यप मंडी। दुराचार की पीडिता के पक्ष में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए अदालत ने हिमाचल प्रदेश सरकार और आरोपी एसएचओ गुलजार मुहममद को 5 लाख रूपये ब्याज सहित अदा करने के आदेश दिये। अदालत ने सरकार और एसएचओ को संयुक्त रूप से यह राशि अदा करने के आदेश दिये। इसके अलावा दोनों को इस मामले की 7560 रूपये की कोर्ट फीस भी 30 दिनों में जमा करनेे के आदेश दिये। सिविल जज (वरिषठ मंडल) मदन कुमार के न्यायलय ने सदर तहसील के मझवाड गांव की पीडिता द्वारा दायर किये गये दिवानी वाद का फैसला सुनाते हुए प्रदेश सरकार और नाहन की सेंटर जेल में सजा भुगत रहे आरोपी एसएचओ जिला चंबा के हरदासपुरा मुहल्ला निवासी गुलजार मुहममद पुत्र हसन मुहममद के खिलाफ उकत फैसला सुनाया। अधिवक्ता डी सी गुलेरिया के माध्यम से अदालत में मुआवजे के लिए दायर किए गए दीवानी वाद के अनुसार पीडिता के जीजा खेम चंद की अप्राकृतिक मृत्यु हो गई थी। जिसके कारण उसकी बहन रीतु देवी ने अपने पति खेम चंद की मौत को लेकर पीडिता के पति प्रेम चंद के खिलाफ भादंसं की धारा 306 के तहत सदर पुलिस थाना में मामला दर्ज करवाया था। एसएचओ गुलजार मुहममद उस समय थाना के प्रभारी थे। इस मामले की तहकीकात के दौरान फायदा उठाते हुए एसएचओ ने पीडिता को 30 अगस्त 1994 को थाना में बुलाया। जहां से वह पीडिता को उपरी मंजिल में स्थित अपने कमरे में ले गया। एसएचओ ने पीडिता को डरा धमका कर उससे जबरन दुराचार किया। उस समय पीडिता का पति पुलिस हिरासत में था और उसको मामले में फंसाने की आशंका थी। ऐसे में पीडिता ने अपनी माता को थाना में उससे हुए दुराचार के बारे में बताया। इसके बाद उक्त एसएचओ ने पीडिता को 19 सितंबर 1994 को बयान लेने के लिए फिर से थाना में बुलाया। पीडिता जब थाना गई तो इस बार भी एसएचओ ने उसके साथ अपने कमरे में दुराचार किया। जिस पर पीडिता अपने परिजनों के साथ जिला पुलिस अधीक्षक ओ सी ठाकुर के कार्यालय में एसएचओ की शिकायत करने गई। लेकिन जिला पुलिस अधीक्षक ने प्राथमिकी दर्ज करने और मेडिकल करवाने के आदेश देने के बजाय मामला दर्ज करने में बिल्कुल असमर्थता दिखाई। पुलिस के मामला दर्ज न करने पर पीडिता को अदालत की शरण में जाना पडा। जिस पर अदालत ने पुलिस को मामला दर्ज करने और पीडिता का मेडिकल करवाने के निर्देश दिये थे। लेकिन पीडिता की मुसीबतें तब भी खत्म नहीं हुई क्योंकि अदालत के साफ आदेशों के बाद भी पुलिस ने एसएचओ के खिलाफ 16 दिनों तक मामला दर्ज नहीं किया। मामला दर्ज होने के बाद पुलिस ने सरसरे ढंग से तहकीकात करके अदालत में प्राथमिकी रद्द करने की रिर्पोट पेश कर दी। इसके बाद पीडिता ने अदालत में प्राईवेट कंपलेंट दायर की थी। जिस पर सत्र न्यायलय ने 19 अगस्त 2003 में एसएचओ को दोषी करार देते हुए भादंसं की धारा 376 के तहत 10 साल के कठोर कारावास और 20 हजार जुर्माने की सजा सुनाई थी। सजा के बाद पीडिता ने प्रदेश सरकार और आरोपी के खिलाफ अदालत में मुआवजे के लिए साल 2004 में दीवानी वाद दायर किया था। अदालत ने वादी पीडिता के वाद को डिक्री करते हुए प्रदेश सरकार और आरोपी एसएचओ को उक्त हर्जाना राशि ब्याज सहित अदा करने का फैसला सुनाया।

1 comment:

  1. This case shows how a common woman is being mishandled by the guardian of law, instead we can say it is the insanity. @shammi g i agree with he point that our justice system is bit slow in prosecuting the accused. They should do something about it

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