Friday 9 February 2018

मक्सिम गोर्की के उपन्यास माँ का पाठ




मक्सिम गोर्की के प्रसिद्ध उपन्यास माँ को एक बार फिर से पढ़ा। इससे पहले कालेज के दिनों में माँ को पढ़ा था। पुस्तक का पाठ करते हुए कुछ अंशों ने झकझोरित किया। जिन्हें आपके साथ शेयर कर रहा हूँ।

-हमारे बच्चे दुनिया में आगे बढ़ रहे हैं। वे सारी दुनिया में फैल गए हैं और दुनिया के कोने-कोने से आकर वे एक ही लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं। जिन लोगों के हृदय सबसे शुद्ध हैं, जिनके मस्तिष्क सबसे श्रेष्ठ हैं वे पाप के ख़िलाफ बढ़ रहे हैं और झूठ को अपने ताकतवर पाँवों तले कुचल रहे हैं। वे नौजवान हैं और स्वस्थ हैं और उनकी सारी शक्ति एक ही लक्ष्य – न्याय – को प्राप्त करने के लिए, व्यय हो रही है। वे मनुष्य के दुख को मिटाने के लिए, इस पृथ्वी पर से विपदा का नाम-निशान मिटा देने के लिए और कुरूपता पर विजय प्राप्त करने के लिए मैदान में उतरे हैं – और विजय उनकी अवश्य होगी। जैसाकि किसी ने कहा है वे एक नया सूर्य उगाने के लिए निकले हैं और वे इस सूर्य को उगाकर रहेंगे। वे टूटे हुए दिलों को जोड़ने के लिए निकले हैं और वे उन्हें जोड़कर रहेंगे।
सच्चाई और न्याय के पथ पर चल रहे हैं, लोगों के हृदय में एक नये प्रेम का संचार कर रहे हैं, उन्हें एक नये स्वर्ग का चित्र दिखा रहे हैं और पृथ्वी को एक नयी ज्योति से आलोकित कर रहे हैं – आत्मा की अखण्ड ज्योति से। इसकी न्यी ज्वाला से एक नये जीवन का उदय हो रहा है, यह जीवन समस्त मानवता के प्रति हमारे बच्चों के प्रेम से उत्पन्न हो रहा है। इस प्रेम की ज्योति को कौन बुझा सकता है? कौन सी शक्ति इसे नष्ट कर सकती है और इसका मुकाबला कर सकती है? इस प्रेम को पृथ्वी ने जन्म दिया है और स्वयं जीवन उसकी विजय के लिए लालायित है – स्वयं जीवन।
- ऐसा मालूम होता है कि जैसे मनुष्य के लिए एक नये ईश्वर का जन्म हुआ हो। हर चीज़ सब के लिए सब एक-दूसरे के सुख-दुख के साझेदार। मैं तो इसे इसी ढंग से समझती हूँ। वास्तव में ही तुम लोग साथी हो, सब एक खून के रिश्ते से बँधे हो, सब एक ही माँ की सन्तान हो और वह माँ है सत्य। पेलागेया निलोवना (माँ)
- हम समाजवादी हैं। इसका मतलब है कि हम निजी सम्पति के ख़िलाफ़ हैं, निजी सम्पति की पद्धति समाज को छिन्न-भिन्न कर देती है, लोगों को एक-दूसरे का दुश्मन बना देती है, लोगों के परस्पर हितों में एक ऐसा द्वेष पैदा कर देती है जिसे मिटाया नहीं जा सकता, इस द्वेष को छुपाने के लिए या न्याय-संगत ठहराने के लिए वह झूठ का सहारा लेती है और झूठ, मक्कारी और घृणा से हर आदमी की आत्मा को दूषित कर देती है। हमारा विश्वास है कि वह समाज, जो इंसान को केवल कुछ दूसरे इंसानों को धनवान बनाने का साधन समझता है, अमानुषिक है और हमारे हितों के विरूद्ध है। हम ऐसे समाज की झूठ और मक्कारी से भरी हुई नैतिक पद्धति को स्वीकार नहीं कर सकते। व्यक्ति के प्रति उसके रवैये में जो बेहयाई और क्रूरता है उसकी हम निन्दा करते हैं। इस समाज ने व्यक्ति पर जो शारीरिक और नैतिक दासता थोप रखी है, हम उनके हर रूप के ख़िलाफ़ लड़ना चाहते हैं और लड़ेंगे, कुछ लोगों के स्वार्थ और लोभ के हित में इंसानों को कुचलने के जितने साधन हैं हम उन सबके ख़िलाफ़ लड़ेंगे। हम मज़दूर हैं, हम वे लोग हैं जिनकी मेहनत से बच्चों के खिलौनों से लेकर बड़ी-बड़ी मशीनों तक दुनिया की हर चीज़ तैयार होती है, फिर भी हमें ही अपनी मानवोचित प्रतिष्ठा की रक्षा करने के अधिकार से वंचित रखा जाता है। कोई भी अपने निजी स्वार्थ के लिए हमारा शोषण कर सकता है। इस समय हम कम से कम इतनी आजादी हासिल कर लेना चाहते हैं कि आगे चलकर हम सारी सत्ता अपने हाथों में ले सकें। हमारे नारे बहुत सीधे-सादे हैः निजी सम्पति का नाश हो – उत्पादन के सारे साधन जनता की सम्पति हों – सत्ता जनता के हाथ में हो – हर आदमी को काम करना चाहिए। अब आप समझ गये होंगे कि हम विद्रोही नहीं हैं।
अदालत में पावेल के भाषण का अंश
- परिवार बसा लेने से क्रान्तिकारी की शक्ति निचुड़ जाती है – इससे उसे कोई मदद नहीं मिल सकती। बच्चे, तंगदस्ती, बाल-बच्चों का पेट पालने के लिए काम करने की ज़रूरत। क्रान्तिकारी को अपनी शक्ति बचाकर रखनी चाहिए ताकि ज़्यादा काम कर सके। यह वक़्त का तकाजा है। - हमें हमेशा सबसे आगे चलना चाहिए, क्योंकि हम व मज़दूर हैं जिन्हें इतिहास ने पुरानी दुनिया को बदलकर उसकी जगह एक नयी दुनिया बनाने के लिए चुना है। अगर हम पीछे रह जायें, थककर या अपनी किसी छोटी-सी विजय पर सन्तोष करके बैठे रहें, तो हम एक ऐसे अपराध के दोषी होंगे जो अपने लक्ष्य के साथ विश्वासघात से कम नहीं है। कोई दूसरा ऐसा नहीं है जिसके साथ हम अपने ध्येय को हानि पहुँचाये बिना चल सकें, और हमें इस बात को कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमारा लक्ष्य कोई छोटी-मोटी जीत नहीं, बल्कि पूर्ण विजय है।
निकोलाई की माँ से बातचीत
- मुमकिन है कि मैं जो कुछ कह रहीं हूँ वह आपको बेवकूफ़ी की बातें मालूम हो रही हों, लेकिन मैं यह यकीन करती हूँ कि ईमानदार लोग अमर होते हैं, मैं समझती हूँ कि जिन लोगों ने मुझे यह शानदार जीवन बिताने का सुख दिया है वे अमर हैं – ऐसा जीवन जो अपनी आश्चर्यजनक जटिलता से, अपने विभिन्न रूपों के वैविध्य से और उन विचारों के विकास से जो मुझे अपने प्राणों से भी बढ़कर प्रिय हैं, मुझे रोमाचित कर देता है। शायद हम लोग अपनी भावनाओं को बहुत सम्भालकर रखते हैं। हम लोग अपने विचारों को बहुत ज़्यादा महत्व देते हैं, इसलिए हमारा व्यक्तित्व पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता। हम चीज़ों को अनुभव करने के बजाय उनकी मीमांसा करने लगते हैं
साशा का माँ, निकोलाई और सोफिया से वार्तालाप
- नताशा तुम सच कहती हो। माँ ने कुछ सोचते हुए कहा। लोग इस उम्मीद में ज़िन्दा रहते हैं कि आगे चलकर उनका जीवन बेहतर होगा, लेकिन अगर भविष्य के लिए कोई आशा न हो तो फिर किस काम की ऐसी ज़िन्दगी? और माँ ने लड़की का हाथ थपककर कहा, तो अब तुम अकेली रह गयी? बिल्कुल अकेली। नताशा ने लापरवाही से कहा। कोई बात नहीं। माँ ने थोड़ी देर बाद मुस्कराकर कहा। अच्छे लोग ज़्यादा दिन तक अकेले नहीं रहते – कोई न कोई उनके साथ हो ही जाता है।
- यह तो मैंने भी देखा। उक्रइनी ने उचाट स्वर में कहा। शासकों ने लोगों के दिमागों को ज़हरीला बना दिया है। जब जनता जाग उठेगी तब वह हर चीज़ को ढा देगी। उसे तो बस साफ़ ज़मीन चाहिए, अगर वह साफ़ नहीं होगी तो जनता उसे साफ़ कर देगी। वह हर चीज़ को जड़ से उखाड़ फेंकेगी।
- यह है हमारी ज़िन्दगी। देखती हो लोगों को किस तरह एक-दूसरे का दुश्मन बना दिया गया है? मर्जी न होते हुए भी लोग किसी को मार देते हैं। और जिसे मारते हैं वह कौन होता है? कोई बेचारा मजबूर, जिसे ख़ुद भी हमसे ज़्यादा अधिकार नहीं होते। वह तो हमसे भी ज्यादा अधिकार नहीं होते। वह तो हमसे भी ज़्यादा अभागा होता है, क्योंकि वह बेवकूफ़ भी होता है। पुलिस, राजनीतिक पुलिस और जासूस सब हमारे दुश्मन हैं। लेकिन वे सब हमारे ही लोग हैं, जिनका ख़ून हमारी ही तरह चूस लिया जाता है और जिन्हें हमारी ही तरह तिरस्कार से देखा जाता है। हम सब एक जैसे हैं। लेकिन हमारे मालिकों ने लोगों को एक-दूसरे का दुश्मन बना दिया है, उन्हें भय और दुनिया-भर की खुराफात से अन्धा बना दिया है, उनके हाथ-पाँ बाँ दिए हैं, निचोड़-निचोड़कर उनका ख़ून चूस लिया है, और वे उन्हें एक-दूसरे को मारने और कुचल देने पर मजबूर करते हैं। उन्होंने लोगों को बन्दूक, डण्डा और पत्थर बना दिया है, और कहते हैं, यही राज्यसत्ता है...
माँ, यह अपराध है। लाखों लोगों को इस तरह बेरहमी से मार डालना, मनुष्य की आत्मा को कुचल देना...समझ में आता है तुम्हारी? ये लोग आत्मा के हत्यारे हैं। तुम उनमें और हममें अन्तर देखती हो? जब हम किसी को मारते हैं तो वह घृणा, लज्जा और कष्ट की बात होती है – सबसे बढ़कर घृणा की। लेकिन वे पलक झपकाये बिन, बेरहमी के साथ, किसी संकोच के बिना हज़ारों लोगों को जान से मार देते हैं और बिल्कुल सन्तुष्ट रहते हैं. लोगों को इस तरह कुचलकर रख देने का उनके पास बस एक बहाना यह है कि वे अपने सोने-चाँदी, अपनी हुँडियों और उन तमाम मनहूस चीज़ों की रक्षा करना चाहते हैं जिनकी सहायता से वे हमें गुलाम बनाते हैं। ज़रा सोचा – जब वे लोगों को जान से मारते हैं और उनकी आत्माओं को कुचलकर रख देते हैं तो वे अपनी जान बचाने के लिए नहीं, बल्कि अपनी जायदाद बचाने के लिए ऐसा करते हैं। उन चीज़ों को बचाने के लिए जो मनुष्य के अन्दर नहीं बल्कि मनुष्य से बाहर होती है...
जासूस इसाई की हत्या की सूचना मिलने पर पावेल का माँ और उक्रइनी से वार्तालाप
- यही छोटे-छोटे मोटी तोंदवाले लोग सबसे बड़े पापी हैं और यही सबसे ज़हरीली जोंकें हैं जो जनता का ख़ून चूस रही हैं। पीसीसियों ने इन्हें बुर्जुआ का नाम ठीक ही दिया था...इस बात को याद रखना, माँ...बुर-जुआ, क्योंकि वे बिल्कुल जुए के समान हैं, जिन-जिन लोगों के भोलेपन का वे फ़ायदा उठा सकते हैं उन पर वे वार करते हैं और उनका ख़ून चूसते हैं...
तुम्हारा मतलब है कि यह सब कुछ पैसेवाले करते हैं? माँ ने पूछा।
हाँ। यह उनका दुर्भाग्य है कि वे पैसेवाले हैं। अगर बच्चे के खाने में तांबा मिलाते रहो तो उसकी हड्डियों की बाढ़ मारी जाती है और बच्चा बौना रह जाता है, लेकिन जब किसी आदमी को सोने का ज़हर दिया जाता है, तो उसकी आत्मा बौनी रह जाती है – छोटी और गन्दी और बेजान, रबर की उन गेंदों की तरह जो बच्चे पाँच-पाँ कोपेक की ख़रीदते हैं...
पावेल और माँ का वार्तालाप
- इस दुनिया में कोई भी ऐसा है जिनका दिल कभी न दुखा हो? उक्रइनी उठा और सिर हिलाते हुए मुस्कराकर बोला। मुझे इतना दुख दिया गया है कि मैंने अब ध्यान ही देना छोड़ दिया है। जब लोग हैं ही ऐसे तो हो ही क्या सकता है? अगर आदमी इन सब बातों की तरफ़ ध्यान देने लगे तो उसके काम में हर्ज होने के अलावा कुछ नहीं होता और इन बातों पर कुढ़ना अपना वक़्त ख़राब है। ज़िन्दगी का ढंग ही कुछ ऐसा है। पहले मैं भी लोगों से नाराज़ हो जाया करता था, लेकिन फिर मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि यह सब बेकार है। हर आदमी डरता है कि उसका पड़ोसी उसे खा जायेगा, इसलिए वह पहले खुद ही उस पर वार करना चाहता है। मेरी माँ, ज़िन्दगी का ढंग ही ऐसा है।
- आपमें से जो लोग कहते हैं कि हमें हर बात जाननी चाहिए वे ठीक हैं। हमें अपने अन्दर ज्ञान की ज्योति जगानी चाहिए, ताकि वे लोग जो अँधेर में भटक रहे हैं वे हमें देख सकें। हमारे पास हर चीज़ का सच्चा और ईमानदार जवाब होना चाहिए। हमें पूरी सच्चाई और पूरे झूठ की जानकारी होनी चाहिए...
- तो तुम करना क्या चाहते हो? माँ ने उसकी बात काटकर पूछा।
पहले ख़ुद पढूँगा और फिर दूसरों को पढ़ाऊँगा। हम मज़दूरों को पढ़ना चाहिए। हमें इस बात का पता लगाना चाहिए और इसे अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि हमारी ज़िन्दगी में इतनी मुश्किलें क्यों हैं।
यह पुस्तक परिकल्पना प्रकाशन ने प्रकाशित की है। इसे हासिल करने के लिए जनचेतना के साथी Manan Vij, Namita, Manav से संपर्क किया जा सकता है या इसे जनचेतना के पते डी-68, निरालानगर, लखनऊ- 226020 से प्राप्त किया जा सकता है।
...sameermandi.blogspot.com

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