Wednesday 24 April 2019

कांगणी जंगल को बचाया जाएः शहीद भगत सिंह विचार मंच



मंडी। डीपीएफ कांगणी जंगल को बचाने के लिए महामहिम राष्ट्रपति से मांग की गई है। शहीद भगत सिंह विचार मंच तथा मंडी शहरवासियों ने इस जंगल की भूमी को परिवर्तित करके किसी भी विभाग को देने पर पूर्णतया रोक लगाने की मांग की है। शहीद भगत सिंह विचार मंच तथा स्थानीय वासियों का कहना है कि मण्डी शहर से सटे हुए दो डीपीएफ जंगल कांगणी और गंधर्व स्थित हैं। सरकार की ओर से पिछले कुछ वर्षों से इन जंगलों की डीपीएफ भूमी को पर्यावरण, वन, एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार से अनुमति लेकर विभिन्न निर्माण कार्य करवाए जा रहे हैं। डीपीएफ कांगणी करीब 148 हैक्टेयर यानि करीब 1862 बीघा के क्षेत्र में फैला हुआ है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचना में पता चला है कि साल 2002 से इस जंगल की भूमी को अन्य विभागों को परिवर्तित करने का सिलसिला शुरू हुआ जब सरकार के विभाग एग्रीकल्चर प्रोडयूस मार्केट कमेटी की ओर से यहां पर करीब 0.70 हैक्टेयर भूमी पर मार्केट यार्ड बनाया गया। साल 2014 में फूड कारपोरेशन आफ इंडिया का गोदाम बनाने के लिए 0.90 हैक्टेयर भूमि इसमें से उन्हें दे दी गई। फिर साल 2016 में आर्ट कल्चर एंड लैंग्वेज विभाग को 0.323 हैक्टेयर भूमि संस्कृति सदन बनाने के लिए दी गई। साल 2017 में इसी जंगल की 6.31 हैक्टेयर भूमी लिफ्ट वाटर सप्लाई स्कीम (ऊहल से मण्डी शहर) के लिए सिंचाई एवं जन स्वास्थय विभाग को परिवर्तित कर दी गई। साल 2019 में करीब 2.5888 हैक्टेयर डीपीएफ कांगणी की वन भूमी प्रदेश सरकार टूरिस्म एवं सिविल एविएशन विभाग को हैलीपोर्ट और सांस्कृतिक केन्द्र बनाने के लिए दे दी गई। इसके अलावा कुछ अन्य विभाग इस जंगल की भूमी को अपने नाम करवाने के लिए अनुमतियों का इंतजार कर रहे हैं। पता चला है कि जिला न्यायलय परिसर बनाने के लिए करीब 120 बीघा जमीन का टुकडा इसी वन भूमी में चयनित किया गया है। जिसकी अनुमति अभी वन विभाग को प्राप्त नहीं हुई है। एक स्लौटर हाऊस भी इसी जंगल की भूमी में बनाने का प्रस्ताव है। जबकि एग्रीकल्चर मार्केट कमेटी भी अतिरिक्त भूमी की मांग इसी जंगल की भूमी में से कर रही है। वहीं पर एक खेल का मैदान भी डीपीएफ कांगणी में बनाये जाने का प्रस्ताव है। मंच का कहना है कि पर्यावरण, वन, एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, क्षेत्रीय कार्यालय (उत्तर-मध्य क्षेत्र) भारत सरकार द्वारा मौके का निरिक्षण किए बगैर सरकारी विभागों के पक्ष में जंगल की भूमी परिवर्तित करने की अनुमतियां दी जा रही हैं। जबकि इतनी अधिक अनुमतियां जारी हो जाने से वर्तमान में कांगणी डीपीएफ जंगल का अस्तित्व ही खतरे में आ गया है। अनुमतियों मिल जाने के बाद वन भूमी में भारी पैमाने पर निर्माण कार्य जारी हो गए हैं जबकि जंगल की हरी पट्टिका की जगह अब खनन से घायल पहाड़ों का मंज्जर सामने आ रहा है। जिससे लगता है कि कांगणी डीपीएफ जंगल अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है क्योंकि विकास के नाम पर वहां अब कंकरीट का जंगल उगता चला जा रहा है। उल्लेखनीय है कि कांगणी डीपीएफ जंगल में बेहतरीन किस्म के चील के पौधे हैं। वन विभाग यहां की चील के बीजों को अन्यत्र स्थानों पर भेजता है। पर्यवरणविदों का कहना है कि डीपीएफ कांगणी और गंधर्व मण्डी शहर के फेफड़े हैं जिनके श्वासकोश से शहरवासी आक्सीजन प्राप्त करते हैं। कम ऊँचाई पर स्थित होने के बावजूद मंडी में अच्छी बारिश होने के कारण भी यही जंगल हैं। इसके अलावा जंगल में कई तरह के पेड-पौधे, घास, झाडियां और औषधीय पौधे हैं। जो निर्माण कार्यों के कारण बर्बाद होते जा रहे हैं। जंगल की घास, झाडियों से पहाड़ की मिट्टी में जकडन बनी रहती है लेकिन निर्माण के चलते यहां पर भारी पैमाने पर भूस्वखलन का हमेशा के लिए खतरा हो जाएगा। वैसे भी इस पहाड़ से भूस्वखलन के कारण अक्सर राष्ट्रीय राजमार्ग-21 बाधित हो जाता है। वहीं पर जंगल का घनापन खत्म होते जाने से यहां के वन्य जीव संपदा भी बुरी तरह से प्रभावित होंगी। इन जंगलों को क्षति पहुंचाऩे में कोई नहीं बल्कि इसकी दोषी स्वयं प्रदेश सरकार और विभिन्न विभाग हैं जो विकास के नाम पर सारे शहरवासियों की सांसों की कीमत पर विनाश का खेल जारी रखे हुए हैं। यह सारा कथित विकास कार्य बिना किसी योजना के हो रहा है। मंच का मानना है कि बेहतर होता अगर टीसीपी विभाग सरकार की जरूरतों को देखते हुए कोई योजना तैयार करती और उसे किसी यूपीएफ या अन्य बंजर भूमी पर क्रियान्वित करती। मंच ने मांग की है कि डीपीएफ कांगणी में दी गई अनुमतियों पर फिर से पुनर्विचार किया जाए और भविष्य में पर्यावरण, वन, एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार को इस जंगल की भूमी को परिवर्तित करके किसी भी विभाग को देने की अनुमति पर पूर्णतया रोक लगाई जाए। इसके अलावा इन जंगलों को बायोडायवर्सिटी पार्क या इको टूरिज्म के तहत संरक्षित किया जाए। अन्यथा दिन पर दिन तबाह होते जा रहे कांगणी जंगल को बचाना असंभव हो जाएगा। विचार मंच के अध्यक्ष समीर कश्यप, पदाधिकारी बी आर जसवाल, सुशील चौहान, मनीष कटोच, नीरज कपूर, विख्यात गुलेरिया, विनोद चौधरी, लक्षमेन्द्र गुलेरिया, वीरेन्द्र कुमार, भारत भूषण, खेम चंद, तरूणदीप, हुक्म चंद, नरेन्द्र कुमार, एच एस ठाकुर, प्रेम राणा, मोहित कौशल, हरंबश, दामोदर दास, विजय भंडारी, राजेश्वर शर्मा, महेश चोपडा, प्रदीप चंदेल, पुष्प राज, मनीष भारद्वाज, लता सांख्यान, शैलेष कुमार शर्मा, पंकज ठाकुर, रितेश शर्मा, गीतानंद ठाकुर, हरित शर्मा, एम एल पाठक, लक्ष्मण ठाकुर, बी सी शर्मा, संजय मंडयाल, कमलेश, संजय भारद्वाज, टी आर पठानिया, लवण ठाकुर, सुरेन्द्र, विनोद भावुक, आर के चावला, दुर्गा दास, रीना, प्रितम सिंह और राकेश की ओर से हस्ताक्षरित ज्ञापन को उपायुक्त के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति को प्रेषित किया गया है। जबकि ज्ञापन की प्रतियां आवश्यक कार्यवाही हेतु राज्यपाल, मुख्यमंत्री, प्रदेश उच्च न्यायलय के मुख्य न्यायधीश, उपायुक्त मंडी और वनमंडलाधिकारी को प्रेषित की गई हैं।
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