Wednesday 1 July 2020

कार्ल मार्क्स की जीवनी का पाठ



राहुल सांकृत्यायन लिखित कार्ल मार्क्स की जीवनी का पाठ पूरा हुआ। उनके व्यक्तित्व को संक्षेप में बताने के लिए पुस्तक में से मार्क्स के प्रिय दोस्त फ्रैडरिक एंगेल्स के उस भाषण को आपके साथ साथ बाँटना चाहता हूँ जिसे मार्क्स को दफनाते समय उन्होंने कब्र पर दिया था।
“14 मार्च के अपराह्न में पौने 3 बजे जीवित महानतम चिन्तकने चिन्तन करना छोड़ दिया। दो मिनट अकेला रहने के बाद जब हम भीतर गए, तो देखा, कि वह कुर्सीपर आरामसे, किन्तु सदाके लिए सोये हैं।
इस क्षति का मात्रांकन करना असम्भव है, जो कि इस पुरूषकी मृत्यु के साथ यूरोप और अमेरिकाके लड़ाके सर्वहारा और ऐतिहासिक विज्ञानने उठायी है। जल्दी ही हम उस विच्छेद (भेदन) को काफी अनुभव करेंगे, जिसे कि इस जबर्दस्त पुरूषकी मृत्युने पैदा किया है।
“जैसे डारविनने प्रकृतिमें विकासके नियमके कानूनका आविष्कार किया, उसी तरह मार्क्सने मानव-इतिहासमें विकासके कानूनका आविष्कार कियाः यह सीधा-सादा तथ्य, जो कि पहले वादों के जंगल में छिपा हुआ था—कि मानव प्राणीको सबसे पहले खाने, पीने, वास और पहननेकी जरूरत होती है। इससे पहले कि उसका ध्यान राजनीति, साईंस, कला और धर्मकी ओर जाये। इसीलिए जीवनके नजदीकके भौतिक साधनोंका उत्पादन अतएव लोगों के आर्थिक विकासकी सीढ़ी या काल वह आधार है, जिसके ऊपर राज्य-संस्थाएं, कानूनी सिद्धान्त, कला और लोगोंके धार्मिक विचार भी विकसित हुए हैं।
“ लेकिन, इतना ही नहीं, मार्क्सने आजकलके पूंजीवादी उत्पादनके ढंग, उससे उत्पादन और बूर्ज्वा समाज-व्यवस्था उत्पादनके विशेष कानूनका आविष्कार किया। अतिरिक्त-मूल्य के आविष्कारके साथ ही उन्होंने उस अन्धकारपर एकाएक प्रकाश डाला, जिसमें कि बूर्ज्वा और समाजवादी दोनों ही प्रकारके दूसरे अर्थशास्त्री भटक रहे थे।
“ इस तरह के दो आविष्कार किसी एक जीवनके लिए पर्याप्त थे। सचमुच वह सौभाग्यशाली है, जो कि इनमेंसे एकको भी ढूंढ़ निकालनेमें सफल हो। लेकिन मार्क्सने जिस किसी क्षेत्रमें अनुसन्धान किया (ऐसे क्षेत्र बहुत थे और उनमेंसे कहीं भी मार्क्सका अनुसन्धान पल्लवग्राही नहीं था) उन्होंने स्वतन्त्र आविष्कार किए—गणित के क्षेत्रमें भी।
“ वह एक साइन्सके पुरूष थे, लेकिन इससे ही उनका पूरा व्यक्तित्व पूरा नहीं होता। मार्क्सके लिए साइन्स एक सृजनात्मक ऐतिहासिक और क्रान्तिकारी शक्ति थी। सैद्धान्तिक साइन्सके इस या उस क्षेत्रमें नए आविष्कारसे उनको आनंद जरूर प्राप्त होता था जिसके व्यवहारिक फल शायद अभी दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। उदाहरणार्थ बिजली साइन्सके क्षेत्रमें आविष्कारोंके विकास और अन्तिम समयमें मार्सेल देपरेजके कामको वह बहुत दिलचस्पी के साथ देख रहे थे।
“ चूँकि सबसे ऊपर मार्क्स एक क्रान्तिकारी थे। जीवनमें उनका महान लक्ष्य था पूँजीवादी समाज और उसके द्वारा पैदा की गई राज्य-संस्थाओंको उल्ट फेंकनेमें सहयोग देना, और उस आधुनिक सर्वहाराकी मुक्तिके प्रयत्नमें सहयोग देना, जिसके लिए उन्होंने पहले-पहल उसकी मुक्तिके लिए आवश्यक स्थितियोंका ज्ञान प्रदान किया। इस संघर्षमें उनका असली रूप दिखाई देता था। वह बड़े उत्साह तथा ऐसी सफलताके साथ लड़ते रहे, जो कि बहुत कमको मिली है—पहले 1842 ई. में “राइनिशे जाइटुंग”, पेरिसमें 1844 ई. में “फोरवार्ड”, 1847 ई. में “ड्वाशे-ब्रुजेलेर जाइटुंग, 1848-49 ई. में “नोये राइनिशे जाइटुंग”, 1852-61 ई. में “न्यूयार्क ट्रिब्यून”—और फिर बहुत सी खंडनात्मक कृतियाँ, पेरिस, ब्रुशेल्स और लन्दनमें संगठन-संबंधी काम और अन्तमें इन सबसे बढ़कर महान इन्टरनेशनल-कमकर-एसोसिएशन सचमुच यही अकेला जीवनका अभिमान करने लायक कायम होता, चाहे उसके निर्माताने और कुछ भी नहीं किया होता।
“ और इसीलिए मार्क्स अपने युगके सबसे अधिक घृणित और अत्यधिक गाली पानेवाले पुरूष थे। निरंकुश और गणतंत्री दोनों प्रकारकी सरकारोंने उन्हें अपने देशसे निकाल बाहर किया, टोरी और चरम जनतांत्रिक बूर्ज्वा भी उन्हें कलंकित करनेके अभियानमें होड़ लगाते रहे। उन्होंने इन सबको मकड़ी के जाले की तरह एक ओर बुहार दिया, उपेक्षित किया। और मजबूर होनेपर ही जवाब दिया। वह साइबेरियन खानोंसे यूरोप होते अमेरिकाके कैलिफोर्नियाके तट तक करोड़ों क्रान्तिकारी कमकरों द्वार सम्मानित स्नेहपात्र हो उन्हें शोकाकुल करते मरे। मैं यह कहने की हिम्मत रखता हूँ, कि यद्यपि उनके बहुतसे विरोधी थे, लेकिन वैयक्तिक शत्रु मुश्किलसे कोई था।
“उनका नाम शताब्दियों तक जीता रहेगा, और उसी तरह उनकी कृतियाँ भी”।
राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखित कार्ल मार्क्स की जीवनी से साभार।
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