Sunday 22 November 2015

आती हुई कविता



आती हुई कविता

देख रहा हुं
आती हुई कविता
शब्दों के रथ पर आरूढ
सबसे आगे मशाल बन
रोशनी दिखाती
देश के अंधकारमय
कोनों की शिनाख्त करवाती।

कि अब लेखनी थामे हाथों ने
लिया है निर्णय देश की
नियती की परिभाषा रचने का।
आजादी सबकी सुरक्षित रहे।
कलबुर्गी, पनसारे या
डाभोलकर विचारों की
उन्मुक्त उडान में
न कर दिए जाएं कलम।
असहिष्णुता के विषधरों
को कर सकें बेनकाब।

लौटा रहे हैं
अपनी प्रसव पीडा से
उपजी रचनाओं की
बहुमुल्य थाती
भविष्य की
कविता के लिए।

बता सकें
दुनिया से जुडा है देश का
सत्य, विज्ञान और इतिहास।

इससे पहले कि
नफरत के निर्बाध बढते
जहरीले पेडों का दानवी
जंगल सब आगोश में ले,
जंग लगी कुल्हाडी को
धार देने के लिए
लिखी जा रही है
आती हुई कविता।
....समीर कश्यप
22/11/2015

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