Tuesday 17 April 2018

वी. आई. लेनिन की पुस्तक साम्राज्यवाद का पाठ



बीसवीं सदी के महान क्रान्तिकारी चिंतक वी.आई. लेनिन द्वारा लिखी गई यह पुस्तक इस सदी की सर्वाधिक महत्वपुर्ण पुस्तकों में है। इस पुस्तक का महत्व इसमें दिए गए आंकड़ों में नहीं निहित है, इसका महत्व इस वजह से भी नहीं है कि इसमें साम्राज्यवाद और विश्वयुद्ध की व्याख्या की गई है। वास्तव में इसका महत्व इस बात में है कि मार्क्सवाद की पुनर्रचना के लिए इसमें सुदृढ़ ढांचा मुहैया कराया गया है जो बीसवीं सदी के बाकी समय में क्रान्तिकारी व्यवहार का मूल आधार बना है।
इस संस्करण की भूमिका प्रसिद्ध मार्क्सवादी अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक ने लिखी है। इसमें लेनिन की इस पुस्तक को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में रखने की उन्होने कोशीश की है। बीसवीं सदी में क्रान्तिकारी आचरण पर इसके प्रभाव की उन्होंने व्याख्या भी की है और इस को लेकर जो बहस होती रही है, उसमें लेनिन का यह सिद्धांत कहां खड़ा है, इसकी भी उन्होंने व्याख्या की है।
पुस्तक के दसवें अध्याय ‘इतिहास में साम्राज्यवाद की जगह’ में से कुछ अंश उदधृत करना चाहता हुँ...
- साम्राज्यवाद का आर्थिक सारतत्व है एकाधिकारी पूंजीवाद। यह तथ्य खुद ही इतिहास में साम्राज्यवाद की जगह तय कर देता है। मुक्त प्रतियोगिता की सरज़मीं पर और मुक्त प्रतियोगिता से ही उभरने वाला एकाधिकार पूंजीवादी व्यवस्था से एक ऊंची सामाजिक आर्थिक व्यवस्था में संक्रमण का सूचक है। एकाधिकार के चार मुख्य रूप हैं यानि एकाधिकारी पूंजीवाद चार मुख्य रूपों में प्रकट होता है। ये चारों इस जमाने की चारित्रिक विशेषताएं हैं और हमें उन पर खास तौर पर गौर करना चाहिए।
- पहली बात है कि एकाधिकार की परिघटना उत्पादन के संकेंद्रण की एक बहुत ऊंची अवस्था में उभरी। यह अवस्था है पूंजीपतियों के एकाधिकारी संघों, कार्टेलों, सिंडिकेटों और ट्रस्टों के गठन की अवस्था। हमने देखा है कि समकालीन आर्थिक जीवन में ये कितनी महत्वपुर्ण भूमिका निभाते हैं। बीसवीं सदी की शुरूआत में उन्नत देशों में एकाधिकारी संघों ने अपना वर्चस्व बखूबी कायम कर लिया था।
- दूसरी बात है कि एकाधिकारी संघों ने कच्चे माल के सबसे महत्वपुर्ण स्त्रोतों और खास तौर पर कोयला और लोहा उद्योग के कच्चे माल के स्त्रोतों पर कब्जे को बढ़ावा दिया है। ये दोनों उद्योग पूंजीवादी समाज के अंतर्गत बुनियादी अहमियत रखते हैं और इन दोनों ही में कार्टेलों का गठन सबसे ज्यादा हुआ है। कच्चे माल के सबसे महत्वपुर्ण स्त्रोतों पर एकाधिकार ने बड़ी पूंजी की ताकत को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है। साथ ही इसने कार्टेलों में संगठित उद्योगों और कार्टेलों के बाहर के उद्योगों के बीच के आपसी तनावों को भी बहुत उग्र बना दिया है।
- तीसरी बात है कि एकाधिकार की परिघटना बैंकों से उभरी है। पहले बिचौलिए का काम करने वाले छोटे-मोटे उपक्रमों से बढ़कर बैंक आज वित्तीय पूंजी के एकाधिकारी बन गए हैं। प्रमुख पूंजीवादी देशों में से हर देश में तीन से पांच सबसे बड़े बैंकों ने उद्योंगों और बैंकों की पूंजी के बीच बड़ा नजदीकी जुड़ाव कायम कर लिया है। उन्होंने अरबों-अरब की रकम पर नियंत्रण कायम कर लिया है। यह रकम संबद्ध देशों की समस्त पूंजी और आमदनी का अधिकांश है। इस एकाधिकार की सबसे ज्वलंत अभिव्यक्ति है वित्तीय अल्पतंत्र। यह वित्तीय अल्पतंत्र आधुनिक बुर्जुआ समाज के तमाम आर्थिक और राजनीतिक संस्थानों पर निर्भरता के संबंधों का एक घना जाल बिछा देती है।
- चौथी बात है कि एकाधिकार की परिघटना उपनिवेशवाद की नीति से उभरी है। उपनिवेशवाद की नीति के अनेक पुराने मकसदों के साथ वित्तीय पूंजी ने एक नया मकसद भी जोड़ दिया है। यह है कच्चे माल के स्त्रोतों पर कब्जा करने के लिए, पूंजी के निर्यात के लिए, मुनाफे के सौदों, रियायतों, एकाधिकारी मुनाफों वगैरह के लिए प्रभाव क्षेत्रों यानि कुल मिलाकर आर्थिक इलाकों पर कब्जे के लिए संघर्ष। मिसाल के तौर पर 1876 में अफ्रीका के कुल क्षेत्रफल का करीब दसवां हिस्सा यूरोप के प्रमुख देशों का उपनिवेश था। लेकिन 1900 तक अफ्रीका के नब्बे फीसदी इलाके पर औपनिवेशक देशों का कब्जा कायम हो गया। इसके साथ ही सारी दुनिया का बंटवारा पूरा हो गया। तब अनिवार्य रूप से उपनिवेशों पर एकाधिकारी मिल्कीयत कायम करने की शुरूआत हुई। फलस्वरूप दुनिया के विभाजन और पुनर्विभाजन के लिए साम्राज्यवादी देशों के बीच खासतौर पर भीषण संघर्ष का जमाना शुरू हुआ। यह तो सामान्यतः एक जानी हुई बात है कि एकाधिकारी पूंजीवाद ने पूंजीवाद के अंतर्विरोध को किस कदर उग्र बना दिया है। इस संदर्भ में मंहगाई और कार्टेलों के अत्याचारों का ही जिक्र करना काफी होगा। पूंजीवाद के अंतर्विरोधों का इस कदर उग्र हो जाना वित्तीय पूंजी की विश्वव्यापी अंतिम विजय के समय से शुरू हुए इतिहास के संक्रमणकालीन युग की सबसे प्रबल चालक शक्ति साबित हुई है।
- एकाधिकार, अल्पाधिकार, स्वतंत्रता हासिल करने के बजाए वर्चस्व कायम करने की कोशिश और गिने-चुने सबसे धनी और ताकतवर देशों द्वारा छोटे या कमजोर देशों की बढ़ती संख्या के शोषण ने साम्राज्यवाद की उन चारित्रिक विशेषताओं को जन्म दिया है जो हमें उसे परजीवी या पराभवी पूंजीवाद कहने पर मजबूर करते हैं। साम्राज्यवाद की एक प्रवृति के रूप में लगानजीवी राजसत्ता यानी सूदखोर राजसत्ता का स्वरूप दिनों दिन उभरता जाता है। इस राजसत्ता के तहत पूंजी के निर्यात से होने वाली आमदनी से बुर्जुआ वर्ग की दौलत बढ़ती रहती है। यह समझना एक भूल होगी कि पूंजीवाद के पराभव की इस प्रवृति का मतलब यह है कि पूंजीवाद का तेज रफ्तार से विकास अब असंभव है। ऐसा नहीं होता। कुल मिला कर पूंजीवाद का विकास पहले की अपेक्षा बहुत ज्यादा तेजी से हो रहा है। लेकिन यह विकास आम तौर पर अधिकाधिक असमान ही होता जा रहा है। साथ ही उसकी यह असमानता खास तौर पर पूंजी के मामले में सबसे धनी देशों के पराभव के रूप में सामने आ रही है।
- यह वित्तीय पूंजी बड़ी असाधारण तेजी के साथ बढ़ी है और आज वह तेजी के साथ उपनिवेशों पर कब्जा करने में लगी है। इसके लिए वह हिंसक तरीकों का भी इस्तेमाल कर रही है। लेकिन वह उपनिवेशों पर कब्जे के लिए अधिक प्रशांत तरीकों का सहारा लेने की इच्छा नहीं रखती तो इसकी वजह ही यही है कि वह खुद भी बड़ी तेज रफ्तार से बढ़ी है। आखिरकार उपनिवेशों को उसे अधिक समृद्ध देशों से छीनना पड़ेगा और यह महज शांतिपूर्ण तरीकों से ही नहीं होगा।
- उद्योग की विभिन्न शाखाओं में से किसी एक शाखा में और विभिन्न देशों से किसी एक देश में पूंजीपतियों को मिलने वाला एकाधिकारी मुनाफा उन्हें इतने आर्थिक साधन मुहैया करवा देता है कि वे मजदूरों के कुछ तबकों को और कुछ समय तक तो मजदूरों की काफी बड़ी अल्पसंख्या को रिश्वत देकर उन्हें अन्य तमाम उद्योगों और देशों के खिलाफ किसी उद्योग विशेष या किसी देश विशेष के बुर्जुआ वर्ग की ओर मिला लें। इस लालसा को और बढ़ाता है दुनिया के बंटवारे के लिए साम्राज्यवादी देशों के बीच विग्रहों का उग्र होना। और इस तरह साम्राज्यवाद और अवसरवाद के बीच एक रिश्ता बन जाता है।
- साम्राज्यवाद के आर्थिक सारतत्व पर इस पुस्तक में जो भी कहा गया है उससे यही निष्कर्ष निकलता है कि हमें उसे संक्रमणशील पूंजीवाद या ज्यादा सही होगा कि मरणासन्न पूंजीवाद के रूप में पारिभाषित करना चाहिए।

पुस्तक का प्रकाशन ग्रंथ शिल्पी (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड, बी-7, सरस्वती कामप्लेक्स, सुभाष चौक, लक्ष्मी नगर, दिल्ली 110092 ने किया है। फोनः 65179059, 22025140.
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