Tuesday 27 October 2015

अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा महोत्सव की झलकियां





देवभूमी के अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा महोत्सव की झलक पाने का संयोग मंगलवार को आक्समिक ही बन गया। दोपहर बाद करीब तीन बजे ढालपुर मैदान स्थित मेला स्थल पर पहुंचे तो माइक से घोषणा हो रही थी कि देवता जलेब के लिए तैयार रहें। इसी दौरान कुल्लू शहर के ढालपुर मैदान में देवताओं का रूख भगवान रघुनाथ जी के स्थान की ओर होता देख हम भी देवताओं के साथ-2 रघुनाथ स्थल पर पहुंचे। अठारह करडू के नाम से पहचानी जाने वाली देवभूमी कुल्लू घाटी के सभी छोरों से इस देव समागम में भाग लेने आए देवी-देवताओं और उनके साथ आए देवलुओं व बजंतरियों का उत्साह देखते ही बन रहा था। कुल्लू दशहरा से एक दिन पुर्व मुहला होता है। जिसमें सभी देवी-देवता रघुनाथ जी के दर्शन करतेे हैं। इनमें कुछ देवता मुहला के दिन ही रघुनाथ जी के दर्शन के बाद दूर पहाडों की उंची चोटियों में स्थित अपने-2 स्थानों के लिए लौटना शुरू कर देते हैं। लगभग एक सप्ताह तक कुल्लू दशहरा के देव समागम में रहने के बाद अगले बरस फिर से मिलने की आशा में देवताओं के वापिस लौटने का उत्साह भी देखने योग्य होता है। उनका आपस में गले मिलना और एक दूसरे को आदर देना उनके आपस में मानवीय संबंधों को उजागर करता है। देवताओं, देवलुओं व बजंतरियों के लौटते कदमों में नयी उर्जा व उत्साह साफ देखा जा सकता है। ढालपुर स्थित रघुनाथ जी के स्थल पर देवताओं के आने जाने का सिलसिला लगातार जारी था। सभी देवता बारी-2 से रघुनाथ जी को नमन करके वहां से प्रस्थान कर रहे थे। रघुनाथ जी के साथ पंडित मंदिल भी पुरोहित के रूप में विराजमान थे। जबकि राज परिवार व महंत परिवारों के सदस्य भी देवताओं के दर्शन करवाने की व्यवस्था संभाले हुए थे। वहीं पर मौजूद मेरे सायल अशोक महंत ने बताया कि आज के दिन को यहां मुहला कहा जाता है। इसी दिन कई देवता रघुनाथ जी के दर्शन के बाद अपने-2 स्थानों के लिए जाना शुरू कर देते हैं। जबकि कई अन्य देवता लंका दहन के बाद कुल्लू से प्रस्थान करते हैं। वाल्मिकी जयंती की छुट्टी होने के कारण कुल्लू दशहरा में लोग भारी संख्या में मौजूद थे। जिसके चलते कुल्लू के ढालपुर मैदान का कोना-2 लोगों से उमडा पडा था। देवताओं के दर्शन के बाद पेट की भूख की खलबली हमें खाने के पंडालों की ओर आकर्षित कर रही थी। ऐसे में हमारे कदम मेले की भीड को काटते हुए सीधे प्रदर्शनी मैदान की ओर बढते जा रहे थे। इस बीच ढालपुर मैदान में बहुत बडा तिरंगा झंडा लहराता हुआ दिखाई दिया। पता चला कि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह दशहरा महोत्सव के समापन के लिए कुल्लू में मौजूद हैं और उन्हीं के हाथों यह झंडा आज ही फहराया गया है। यह मालूम पडा कि आज समारोह की अंतिम सांस्कृतिक संध्या में कुमार शानी नाइट होगी। प्रदर्शनी मैदान में कुल्लवी व्यंजन सीडू व अन्य खाद्य सामग्री के बहुत से स्टाल सुरूचिपूर्ण ढंग से लगे हुए थे। एक स्टाल की कुर्सियों पर जगह मिलते ही इत्मीनान से बैठ कर देशी घी के साथ सीडू की एक-एक प्लेट के लिए आर्डर दिया। लेकिन स्वाद लगने पर एक-एक प्लेट और लग गई और उसका भी उतना ही आनंद आया। दशहरा में मंडी से भी बहुत से लोग पहुंचे हुए थे। प्रदर्शनी मैदान के नजदीक ही सनू भाई, नीटू भाई, राकेश वत्स बिटू भाई व टीमी भाई भी मिले। मेले में घूम लेने के बाद कोर्ट के नजदीक पार्क किए हुए वाहन की ओर गए तो वहां पर कुल्लू के अधिवक्ता शमशेर ठाकुर, राम लाल ठाकुर व नगवाईं के वकील साहब से मुलाकात हुई। मेले के हिंडोलों में बैठे लोगों की डर से उठती चीखो पुकार व भारी वाहनों के कारण लगे जाम के बीच धीरे-धीरे सरकते हुए मंडी वापिसी की यात्रा शुरू की। इस यात्रा में मंडी कोर्ट के पुराने टाइपिस्ट बालकृश्न मेरे सहयात्री के रूप में साथ थे। उन्होने इस यात्रा का भरपूर आनंद उठाते हुए इसे अभूतपूर्व कहा।
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