Sunday 6 March 2016

सरकारी धन के गबन पर पूर्व उपप्रधान को 3 साल की कैद



मंडी। सरकारी धन का गबन करने के आरोपी उप प्रधान को अदालत ने तीन साल के कठोर कारावास और 6000 रूपये जुर्माने की सजा का फैसला सुनाया है। इस मामले में प्रधान और एक सदस्य के खिलाफ अभियोग साबित न होने पर उन्हे बरी कर दिया गया है। जिला एवं सत्र न्यायधीश बलदेव सिंह की विशेष अदालत ने सदर उपमंडल के अरठी (बाडी गुमाणु) निवासी होशियार सिंह पुत्र टोडर राम के खिलाफ भादंस की धारा 467 और 468 के तहत जालसाजी व धोखाधडी करने का अभियोग साबित होने पर क्रमश: तीन-तीन साल कठोर कारावास और तीन-तीन हजार रूपये जुर्माने की सजा सुनाई है। आरोपी के जुर्माना राशि को समय पर अदा न करने पर छह-2 माह की अतिरिक्त साधारण कारावास की सजा भुगतनी होगी। ये दोनों सजाएं एक साथ चलेंगी। अभियोजन पक्ष के अनुसार आरोपी वर्ष 2005 से 2010 तक ग्राम पंचायत बाडी गुमाणु का उप प्रधान था। आरोपी ने जाली और झूठे दस्तावेज तैयार करके 4200 रूपये की सरकारी राशि का गबन किया था। इस बारे में मामले के गवाह भीम सिंह ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी हासिल की तो यह घोटाला सामने आया था। सूचना से जाहिर हुआ था कि भूपिन्द्र सिंह, कादसी देवी और महेन्द्र पाल के जाली हस्ताक्षर मस्ट रोल पर करके सरकारी धन का दुरूपयोग किया गया है। हालांकि उनको कार्य पर नहीं लगाया गया था और न ही उन्हे वेतन भुगतान किया गया था। इतना ही नहीं कार्य किए जाने के बारे में मस्ट रोल में भी नहीं दर्शाया गया था। ऐसे में शिकायतकर्ता ने पुलिस को शिकायत दी थी। पुलिस ने शिकायत के आधार पर कार्यवाही करते हुए मामला दर्ज करके अदालत में उप प्रधान, प्रधान और सदस्य के खिलाफ अदालत में अभियोग चलाया था। अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी करते हुए जिला न्यायवादी आर के कौशल ने मामले को साबित करने के लिए 27 गवाहों के बयान कलमबंद करवाए। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पुलिस ने मस्ट रोल पर किए गए हस्ताक्षरों से मिलान के लिए आरोपियों के हस्ताक्षरों के नमूने लिए थे। इन नमूनों पर विशेषज्ञ ने अपनी रिर्पोट देते हुए बताया है कि आरोपी उप प्रधान के हस्ताक्षर ही मस्ट रोल से मिलते हैं। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी उप प्रधान के खिलाफ संदेह की छाया से दूर अभियोग साबित करने में सफल रहा है। जिसके चलते अदालत ने आरोपी उप प्रधान को उक्त कारावास और जुर्माने की सजा का फैसला सुनाया है। जबकि मामले के सहआरोपी प्रधान व सदस्य के खिलाफ अभियोग साबित न होने के कारण उन्हे बरी करने का आदेश दिया गया है।
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