Wednesday 11 May 2016

तीन साल में करोड का तेल पी गए सीपीएस



मंडी। हिमाचल प्रदेश जहां आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। लेकिन प्रदेश के मुखयमंत्री व मंत्रीपरिषद की तरह मुखय संसदीय सचिव भी वाहनों में भारी भरकम राशि का ईंधन फूंकने व मुरममत के मामले में पीछे नहीं हैं। जहां प्रदेश के मुखयमंत्री तथा मंत्रीपरिषद के सदस्यों ने तीन साल में अपने वाहन में करोडों का ईंधन व मुरममत में खर्च किया है। वहीं पर प्रदेश के 8 संसदीय सचिवों ने भी विगत तीन वर्षों में एक करोड रूपये से ज्यादा राशि अपने वाहनों के ईंधन व मुरममत में खर्च की है। प्रदेश सचिवालय से जारी सूचना के अधिकार से मिली जानकारी में इस तथ्य का खुलासा हुआ है। बालीचौकी तहसील के सुधराणी (खलवाहण) निवासी जिला परिषद सदस्य व आरटीआई एक्टिविस्ट संत राम ने प्रदेश सचिवालय से मुखय संसदीय सचिवों के वाहनों से संबंधित जानकारी मांगी थी। सचिवालय ने सूचना जाहिर करते हुए बताया है कि इन तीन सालों में प्रदेश के आठ मुखय संसदीय सचिवों ने करीब एक करोड से ज्यादा राशि अपने वाहनों के ईंधन और मुरममत में खर्च की है। संत राम ने बताया कि मुखय संसदीय सचिव सोहन लाल ठाकुर और विनय कुमार ने क्रमश: करीब 12-12 लाख रूपये से ज्यादा राशि का ईंधन अपने वाहन में भरवाया है। इसके अलावा नीरज भारती ने ईंधन पर करीब 11 लाख रूपये से ज्यादा राशि खर्च की है। वहीं पर सीपीएस आई डी लखनपाल ने करीब पौने दस लाख, मनसा राम ने करीब 9 लाख, जगजीवन पाल ने दो साल में करीब 7 लाख, नंदलाल ने करीब 8 लाख और रोहित ठाकुर ने पांच लाख रूपये की राशि अपने वाहनों में ईंधन भरने पर खर्च की है। इसके अलावा वाहन की मुरममत के लिए नीरज भारती ने करीब 8 लाख, सोहन लाल ठाकुर ने छह लाख, जगजीवन पाल ने पौने छह लाख, विनय कुमार ने 5 लाख, नंद लाल ने साढे चार लाख, रोहित ठाकुर ने सवा चार लाख, आई डी लखनपाल ने पौने चार लाख और मनसा राम ने अढाई लाख रूपये खर्च किए हैं। संत राम ने कहा कि आर्थिक संकट के बावजूद मितव्यतता न अपना कर सरकार के मुखयमंत्री, मंत्रीपरिषद और मुखय संसदीय सचिव अपनी सुविधाओं पर भारी भरकम खर्चा कर रहे हैं। उन्होने कहा कि पंचायत प्रतिनिधि भी जनता से चुनकर आते हैं और विधानसभा सदस्यों की ही भांती जनता के लिए कार्य करते हैं। लेकिन पंचायत प्रतिनिधियों व विधानसभा सदस्यों के बीच असमानता की खाई लगातार बढती जा रही है। पंचायत प्रतिनिधियों को न तो सममानजनक मानदेय दिया जा रहा है और न ही अन्य सुविधाएं। विधायिका के लिए भारी भरकम वेतन, पेंशन व अन्य सुविधाओं का अंबार लगा हुआ है जबकि ग्रास रूट पर कार्य कर रहे पंचायत प्रतिनिधियों से हो रहा सौतेला व्यवहार लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।
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