Wednesday 11 May 2016

सरकार के खिलाफ पुख्ता समाचार को भी नहीं छापते समाचार पत्र


अखबारों के व्यवसायीकरण का आलम यह है कि सरकार के खिलाफ पुख्ता सूचनाओं को भी समाचार पत्र नहीं झापते और इस समाचारों को बेदर्दी से रद्दी को टोकरी में भेज दिया जाता है। दो दिन पहले सूचना के अधिकार पर आधारित समाचार प्रकाशनार्थ भेजा था तो क्षेत्र में चलने वाली हिंदी की दस अखबारों में से सिर्फ तीन अखबारों में समाचार को स्थान मिल पाया। तीनों के प्रति बडी श्रद्धा उमडी। बीते कल भी एक समाचार प्रकाशानार्थ भेजा था लेकिन 10 में से सिर्फ एक ही समाचार पत्र मे स्थान मिल पाया। इस समाचार पत्र को सलाम...। बाकियों के बारे में क्या कहुं कुछ समझ में नहीं आता। यही लगता है कि शायद सरकार का अखबारों पर प्रेशर होता है लेकिन यह प्रेशर सिर्फ इसी लिए होता है कि अखबारों को सरकार और उनके नुमाइंदों व पार्टी समर्थकों से विज्ञापन हासिल करना है। विज्ञापन अखबारों की आय का 60 प्रतिशत होता है। नेताओं के समर्थकों में व्यापारी व ठेकेदार वर्ग भारी संख्या में होता है जो अपने नेताओं के जन्मदिनों पर इन अखबारों में कई पेज विज्ञापनों के छपवाता है। लेकिन विज्ञापन की इस दौड में सच्चाई घुट कर रह जाती है और असलियत लोगों के सामने आ ही नहीं पाती। सामने आता है तो सिर्फ जनता के पैसे के दम पर चमकता फूलों से लदा नेताओं का नेताओं का चेहरा। हालातों से लगता है कि यही कुछ आगे भी चलता रहेगा लेकिन ऐसी परिस्थिति में जनता का विश्वास भी लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ से उठता जाएगा। वैसे भी प्रसिद्ध पत्रकार पी साई नाथ के कहे अनुसार यह चौथा स्तंभ ही एकमात्र एेसा स्तंभ है जो मुनाफे की बुनियाद पर खडा है। ...sameermandi.blogspot.com

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