Thursday 21 July 2016

भवन नियमित करने के अध्यादेश में हो बदलावः संघर्ष समिति



मंडी। भवन नियमितिकरण संघर्ष समिति मंडी ने घनी आबादी वाले शहरों में 30 प्रतिशत ओपन स्पेस हटाने की मांग की है। जबकि प्रदेश सरकार के अध्यादेश में छोटे मकानों को नियमित करने की दरों में कमी लाने की मांग की है। समिति ने निर्णय लिया है कि इस बारे में प्रदेश के मुखयमंत्री वीरभद्र सिंह से व्यक्तिगत रूप से मिलकर इस समस्या के निराकरण की मांग की जाएगी। भवन नियमितिकरण संघर्ष समिति की बैठक बुधवार को सीनीयर सिटीजन भवन में आयोजित हुई। समिति के संयोजक उत्तम चंद सैनी, अध्यक्ष अमर चंद वर्मा, चंद्रमणी वर्मा, हितेन्द्र शर्मा, हरमीत सिंह बिट्टू, प्रदीप परमार, समीर कश्यप, मुरारी लाल शर्मा, रमेश वालिया व अन्य पदाधिकारियों ने बताया कि बुधवार की बैठक में टीसीपी के संशोधिक अध्यादेश के बारे में विचार विमर्श किया गया। समिति का कहना है कि भवनों के नियमितिकरण की दरों को कम किया जाए, 30 प्रतिशत ओपन स्पेस की शर्त को भीड भरे शहरी क्षेत्रों में लागू नहीं किया जाए और आवेदन करने की निर्धारित समय सीमा न रखी जाए। समिति के सदस्यों ने बताया कि सरकार की ओर से जारी नियमितिकरण की पॉलिसी अभी भी आम जनता की पहुंच से दूर है। समिति का मानना है कि छोटे घरों के मालिक व छोटे व्यवसायिक परिसरों वाले लोग अभी भी इस एकमुश्त नियमितिकरण पालिसी का फायदा नहीं उठा पाएंगे। उन्होने बताया कि मंडी व अन्य शहरों के कोर टाउन एरिया में बने 160 वर्ग मीटर तक के रकबे वाले छोटे भवनों के सेटबैक में 30 प्रतिशत ओपन स्पेस की शर्त को पूरा नहीं कर सकते। शहरों में घरों के साथ सटे हुए घर हैं जिसके चलते 30 प्रतिशत ओपन स्पेस रखने की शर्त को यहां पर लागू करना संभव नहीं है। ऐसे में सरकार को अध्यादेश से इस शर्त को हटा कर शत प्रतिशत डेविएशन को अनुमति देनी चाहिए। अध्यादेश में नियमितिकरण की दरें अभी भी बहुत ज्यादा हैं और छोटे घरों व व्यवसायिक इकाइयों वाले लोगों की क्षमता से बहुत दूर हैं। जिससे वह इस पालिसी का फायदा उठाने से वंचित रह जाएंगे। समिति के सदस्यों ने बताया कि मौजूदा पालिसी के मुताबिक अगर किसी का मकान 160 वर्ग मीटर (चार बिस्वा) में बना है तो इसके ग्राउंड फलोर के सैटबैक की 70 प्रतिशत डेविएशन के लिए करीब एक लाख नौ हजार रूपये की फीस अदा करनी होगी। इसके अलावा 54 हजार रूपये प्रति मंजिल के हिसाब से अन्य फलोरों की फीस निर्धारित की गई है। इस तरह से नगर परिषद क्षेत्र में इस रकबे के लिए कुल फीस करीब 2.18 लाख रूपये के करीब तय की गई है जो आम नागरिक की पहुंच से बहुत दूर है। उसी तरह नप क्षेत्र में 100 वर्ग मीटर तक की नियमितिकरण फीस 1.5 लाख निर्धारित की है जबकि तीन मंजिलों तक यह 4.5 लाख रूपये बनती है। आम नागरिकों के लिए इतनी अधिक फीस जमा करवाना उनकी पहुंच से दूर है। समिति ने मांग की है कि 160 वर्ग मीटर तक छोटे भवनों और 80 वर्ग मीटर तक की व्यवसायिक इकाईयों की नियमितिकरण की फीस मौजूदा दर से 60 प्रतिशत कम की जाए। व्यवसायिक, होटल, पर्यटन, उद्योग के प्रयोग के लिए फीस सौ फीसदी बढाई गई है। लेकिन इस बढौतरी को दो बिस्वा तक की व्यवसायिक ईकाइयों पर लागू नहीं किया जाए और उन्हे इससे पूरी छूट दी जाए। समिति ने बीपीएल व आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की फीस 50 फीसदी कम करने का स्वागत किया है। समिति का मानना है कि एक अन्य श्रेणी इजाद की जानी चाहिए जिसमें चार बिस्वा के भवनों व दो बिस्वा तक के व्यवसायिक इकाइयों को शामिल करके उनकी फीस कम की जानी चाहिए। अन्यथा इस पालिसी का फायदा सिर्फ अमीर लोग ही उठा पाएंगे जबकि गरीब व आम लोग इसका समुचित फायदा उठाने से वंचित रह जाएंगे। समिति के अनुसार प्रदेश में अलग-2 जिलों के शहरों के लिए अलग-2 डिवेलपमेंट प्लान बनाए गए हैं। जिनमें मंजिलों की संखया और सेट बैक के लिए अलग-2 नियम लागू किये गए हैं। शिमला में जहां फ्रंट सेटबैक 2 मीटर है और अन्य 1.5 मीटर तो वहीं पर मंडी में 3 मीटर और 2 मीटर के सैटबैक नियम हैं। उसी तरह मंजिलों की संखया में भी विसंगति है। समिति ने मांग की है कि पूरे प्रदेश के लिए एक समान प्लान लागू किये जाएं और इनके नियमों में भी एकरूपता लायी जाए। इस अवसर पर टीसीपी के तहत लाए गए मंडी शहर के साथ लगते गांवों तल्याहड, नेला, सिल्हा कीपड, सन्यारढ, पंजेहटी और बाडीगुमाणु के लोगों ने भी बैठक में भाग लेकर टीसीपी नियमों के ग्रामीण क्षेत्र में लागू हो रहे नियमों के बारे में चर्चा की और अपनी समस्याओं के बारे में जानकारी दी।
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