Wednesday 30 April 2014

हिमाचली लोकसंस्कृति की समृद्ध संपदा लुप्त होने के कगार पर


 मंडी। प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले मंडी जनपद को विरासत में लोकसंस्कृति का संपदा का अदभुत खजाना मिला है। लेकिन अधिकांश सांस्कृतिक विधाएं संरक्षण और संवर्धन के अभाव में दम तोडती नजर आ रही हैं। रियासत कालीन मंडी जनपद में जहां दर्जनों लोक नाटय और लोकनृत्य की विधाएं फलती फूलती रही। लेकिन इसके बाद यह सांस्कृतिक विरासत लगातार हाशिये पर जा रही है। कुछ विधाएं तो लगभग लुप्तप्राय ही हो गई हैं। सबसे बडा संकट तो जनपद की मंडयाली बोली और टांकरी लिपी पर आ गया है। मंडयाली की लिपी टांकरी थी लेकिन इसे जानने वाले आज गिने चुने ही रह गये हैं। मंडयाली में ही इन लोक विधाओं का संप्रेषण होता था। अनुमान लगाया जा सकता है कि जब मंडयाली बोली ही लुप्तप्राय होने के कगार पर है तो इन लोकनृत्य विधाओं के फलने फूलने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। मंडयाली के संरक्षण के लिए कोई कदम सरकार की ओर से नहीं उठाया जा रहा है। लेकिन बोली, भाषा और संस्कृति जनपद के लोगों में रची बसी है। यही कारण है कि अभी तक पुरी तरह से लुप्त नहीं हो पाई है। यह ठीक है कि रियासतकाल से भी लोकनृत्य और लोकनाटय की विधाओं को बहुत कम राज्याश्रय था लेकिन इसके बावजूद लोकमानस में अपनी जगह होने के कारण यह अपनी संपन्नता के साथ जीवित थी। यह भी सच है कि रियासतकालीन दौर के बाद बोली, भाषा और संस्कृति पर देश-विदेश के सांस्कृतिक प्रभावों से जनपदीय लोक संस्कृति की विशेषताएं संकट में आ गई हैं। ऐसे में इनके संरक्षण के प्रयास किये जाने चाहिए थे। लेकिन कोई सांस्कृतिक निति न होने के कारण लोकनाटयों व लोकनृत्यों की विधाएं गहरे संकट में हैं और कुछ के तो मात्र नाम ही सुनने को मिलते हैं। हिमाचल प्रदेश का केन्द्रीय जिला होने के कारण इसकी सीमाएं कुल्लू, कांगडा, बिलासपुर, हमीरपुर और शिमला जिलों के साथ सटी हैं। ऐसे में जनपद के लोगों का इन जिलों से संपर्क रहने के कारण इन क्षेत्रों का प्रभाव भी मंडी जनपद के लोकनाटयों और नृत्यों पर हमेशा से रहा है। मंडी जिला में करीब दो दर्जन लोकनाटय और नृत्यों की विधाएं प्रचलित थी। मंडी में लुड्डी, नागरीय नृत्य, गिद्धा, चरकटी, बुढडा, पहिया नृत्य, नाट नृत्य, जाग नृत्य, बाच नृत्य, हरिरंग नृत्य, छम्म नृत्य और लोकनाटय बांठडा की लोकविधाएं जनपद की संस्कृति की पहचान है।

लुड्डी

लुड्डी मंडी का प्रमुख लोकनृत्य है जो अभी भी लोगों के बीच अपनी पहचान बनाए हुए है। पुरूष, महिला, बच्चे, बुढे सभी इसमें भाग लेते हैं। लुडडी के दौरान नर्तकों को नृत्य की परंपरा का पालन करना होता है। धीरे-धीरे शुरू होने वाला यह नृत्य अपने चर्मोत्कर्ष पर बहुत तेज गति ले लेता है।

नागरीय नृत्य

यह नृत्य अब बहुत कम प्रचलन में रह गया है। इस नृत्य में मां श्यामाकाली की अराधना की जाती है। यह नृत्य ऋतु गीत के गायन किया जाता है।

बुढड़ा

लोकनाटय का प्रमुख पात्र बुढड़ा कहलाता है। उसके साथ दो पुरूष नारी वेश में होते हैं जिन्हे चंद्रावली कहा जाता है। नृत्य और अभिनय करते हुए बुढडा प्रांगण में प्रवेश करता है उसके बाद क्रमवार चंद्रावली, जोगी, डंडू, पहाडी आदी पात्र सम्मलित होते हैं। चानणी ओची री चागा, ग्वालू रा बांढडा लागा, लोकगीत इस लोकनाटय के दौरान गाया जाता है।

पहिया नृत्य

मंडी जनपद में कुछ विशेष अवसरों पर किये जाने वाले पहिया नृत्य भी परंपरा में रहा है। लेकिन यह लोकनृत्य भी अब लगभग गौण हो चुका है। इस नृत्य में महिलाएं सिर पर पारू (मिट्टी का बर्तन) उठाकर नृत्य करती हैं। इस पारू में छोटे-2 छेद कर दिये जाते हैं और पारू में दीपक जलाकर इसे सिर पर रखकर नृत्य किया जाता है। यह नृत्य अधिकांशत: मंदिरों के प्रांगण में कुंवारी कन्याओं द्वारा किया जाता है।

नाट नृत्य

जिला के सराज, सनोर, बदार व बल्ह क्षेत्र में नाट नृत्य आज भी जनपद की देव परंपरा का प्रमुख लोकनृत्य है। शिवरात्री के दौरान मंडी जनपद में आए देवताओं के बजंतरी और देवलू अपने वादय यंत्रों से शहर को गुंजायमान करके कदमों को नाट नृत्य में थिरकने पर मजबूर कर देते हैं। नाट नृत्य में महिला, पुरूष, जवान, बूढे सभी ढोल, नगाडों, शहनाई और करनाल की धुनों पर नृत्य करते हैं।

कलाधर्मी नहीं बन पाए लोककला के संवाहक बजंतरी

लेकिन इस परंपरा के संवाहक लोकवादक बजंतरियों को अभी तक कलाधर्मी होने का सम्मान नहीं मिल पाया है। संरक्षण के अभाव में बजंतरी अभी भी वंचित और उपेक्षित हैं जिससे उनका इस लोक परंपरा से जुडे रह पाना संकट में है। सरकार को चाहिए कि इस लोकधर्मी कला को संरक्षित करने के लिए गंभीर प्रयास किये जाएं। लोकनृत्यों का संरक्षण और संवर्धन किया जाए मंडी जिला की लुप्त प्राय मंडयाली बोली को संरक्षित किया जाए। जिससे लोकनृत्यों की पहचान बची रह सके। मंडी जनपद के लुप्तप्राय हो गए लोकनृत्यों पर शोध करवाई जाए और शोध से प्राप्त सामग्री को प्रचारित और प्रसारित किया जाए। जिससे अगली पीढी तक लोक संस्कृति का हस्तांतरण किया जा सके। स्थानीय लोककलाओं से संबंधित विषय स्कूलों में शुरू किया जाए।
 

क्या कहते हैं कला के जानकार

डा. विद्याचंद ठाकुर

हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी द्वारा डा. तुलसी रमण के संपादन में प्रकाशित हिमाचल के लोक नाट्य पुस्तक में प्रकाशित मंडी के लोकनाटय लेख में डा. विद्याचंद ठाकुर का कहना है कि बहुत से जिलों के साथ सीमा सटी होने के कारण मंडी में लोकसंस्कृति और लोकनाटय की विविधता अन्य जिलों की अपेक्षा अधिक पाई जाती है। उनके अनुसार लोकनाटय बांठड़ा का एक विकसित रूप बुढड़ा कहलाता है।

दीनू कश्यप

इसी पुस्तक में प्रकाशित दीनू कश्यप के लेख मंडी का बांठड़ा में उनका कहना है कि इस नाटय में मनोरंजन के लिए हास परिहास होते हैं। पुराने समय में नैतिक मुल्यों का उल्लंघन करने वाले किसी धनी लम्पट की पोल खोलना, शिक्षा के लिए या फिर राजा या सता द्वारा किसी बेगुनाह को दंडित किए जाने के निर्णय की भर्त्सना करना या समाज को शिक्षा देने जैसे विषय होते थे, जिन्हे यह लोकधर्मी नाटयकार अपनी सामर्थ्य के चलते जनता में ले जाते थे।

रामदयाल नीरज

हिमाचल के वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी रामदयाल नीरज का मानना है कि लोकनाटयों के कलाकार बहुधा दलित या निम्न वर्ग के ही हुआ करते थे। इनमें संवाद स्वछंदता कलाकारों का अपना अधिकार क्षेत्र रहा है।

डा. प्रेम भारद्वाज

कहानीकार मुरारी शर्मा की पुस्तक बांठडा के प्राक्कथन में डा. प्रेम भारद्वाज का कहना है कि पौराणिक धार्मिक परंपरा से अलग बांठडा का एक पारंपरिक रूप यह भी रहा है जिसका कैनवास सीधा रोजमर्रा की जिंदगी से जुडा है। सर्वसाधारण की पीड़ा को उजागर करता है।

मुरारी शर्मा

बांठडा पुस्तक के लेखक मुरारी शर्मा के अनुसार मंडयाली संस्कृति को करीब से जानने के लिए लोकनाटय बांठडा से बेहतर और माध्यम नहीं है। बांठडा में तत्कालीन समाज की मनोविनोदी वृति के अलावा सामाजिक समरसता सांस्कृतिक विविधिता, भाषिय कौशल तो है ही, वहीं पर शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद करने का जज्बा एवं अंधविश्वास पर प्रहार करने की हिम्मत भी रही है। यही इसकी लोकप्रियता का मुख्य कारण भी रहा है। 

No comments:

Post a Comment

मंडी में बनाया जाए आधुनिक पुस्तकालयः शहीद भगत सिंह विचार मंच

मंडी। प्रदेश की सांस्कृतिक और बौद्धिक राजधानी मंडी में आधुनिक और बेहतरीन पुस्तकालय के निर्माण की मांग की गई है। इस संदर्भ में शहर की संस्...