Saturday 28 June 2014

जीवनदायिनी नदियां बनीं हत्यारीं


मंडी। सरकारों की लापरवाही और कोताही से जीवन दायनी नदियां कैसे हत्यारी बन जाती हैं इसका सबसे ताजा उदाहरण है हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला में घटित हुआ थलौट हादसा । विगत 8 जून को ब्यास नदी में बिना चेतावनी के पानी छोड देने से हैदराबाद के इंजिनियरिंग के 24 छात्र बह गए थे। यह भयावह हादसा अपनी तरह का कोई पहला हादसा नहीं है और शायद न ही आखिरी हादसा है। क्योंकि देश भर के किसी भी बांध या रिसर्वायर में सुरक्षा को लेकर कोई मापदंड निर्धारित नहीं हैं। इसका खुलासा हाल ही में सामने आई साउथ एशिया नेटवर्क फार डैमस, रिवर्स एंड पीपल (संदर्प) की रिर्पोट से हुआ है। उल्लेखनीय है कि लारजी पनबिजली परियोजना बांध के फ्लड गेट को अचानक खोल देने से आए फ्लैश फ्लड के कारण करीब 2.7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित व्यास नदी के किनारे स्थित घटनास्थल थलौट में 25 लोग जिनमें से हैदराबाद के 24 छात्र थे इस फ्लड में बह गए थे। लोगों के घरों को रोशन करने वाली ब्यास नदी का प्रवाह अचानक कई घरों के चिरागों को बुजा गया। प्रसिद्ध उस्ताद राशिद खान की क्लासिकल ठुमरी बंदिश नदिया बैरी भयी मानो अब देश भर की नदियों का आलाप बनता जा रहा है। जीवन दायिनी कही जाने वाली आर्जिकिय (व्यास नदी का ऋग्वैदिक नाम) की तरह ही अब देश भर की नदियां मृत्यु दायिनी के रूप में तब्दील होती चली जा रही हैं। कुछ ऐसा ही कहना है संदर्प की परिणिता दांडेकर का। संदर्प की रिर्पोट के मुताबिक 8 अप्रैल 2014 को राधिका गुरंग (11), जो चौथी कक्षा की छात्रा थी अपनी बहन चंद्रा और माया के साथ सिक्किम में बारदांग के पास तिस्ता नदी के किनारे से जा रही थी। अचानक पलक जपकते ही 510 मेगावाट के तिस्ता बांध का पानी छोड देने से तीनों पानी की तेज धारा में बहने लग गई। हालांकि माया और चंद्रा भाग्यशाली रही और उन्हे बचा लिया गया लेकिन राधिका को नहीं बचाया जा सका। रिर्पोट के मुताबिक स्थानीय लोगों का कहना था कि बांध का नियंत्रण करने वाले एनएचपीसी की ओर से बिजली बनाने के लिए पानी छोडने से पहले कोई सायरन या चेतावनी नहीं दी जाती जिससे लोगों को नदी के कारण लगातार अपनी जिंदगियों का खतरा बना रहता है। हालांकि एनएचपीसी के खिलाफ कडी कार्यवाही की मांग भी की गई थी, लेकिन कोई कार्यवाही अम्ल में नहीं लाई गई है। गत वर्ष मार्च 28 को तमिलनाडु के 100 मेगावाट कुंडाह परियोजना के पिल्लूर बांध से 6000 क्युसिक पानी छोड देने से मेट्टूपलायना के नजदीक भवानी नदी में पांच लोग बह गए थे। जिनमें से दो बच्चे शामिल थे जिनकी आयु 2 और 3 वर्ष थी। इस हादसे में बचे प्रत्यक्षदर्शी के मुताबिक उनका परिवार नदी के किनारे एक चट्टान पर बैठा हुआ था लेकिन इसी बीच पानी बढना शुरू हुआ। लेकिन तेज प्रवाह के कारण वे नदी से बाहर नहीं निकल पाए। हालांकि इस मामले में अधिकारियों का कहना था कि चेतावनी दी गई थी लेकिन रिर्पोट के मुताबिक यह चेतावनी नदी तट तक नहीं पहुंची। स्थानीय लोगों का कहना था कि कोई चेतावनी इस बारे में नहीं दी गई थी। इस मामले में भी अधिकारियों पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है। संदर्प की रिर्पोट के मुताबिक 8 जनवरी 2012 को सात लोगों का परिवार जिनमें एक बच्चा भी शामिल था कावेरी नदी में तमिलनाडु स्थित 30 मेगावाट की भवानी कटालाई बैराज-दो से पानी छोडने के कारण बह गया था। उसी दिन, दो युवक भी इसी पानी की चपेट में आने से बह गए थे। इस बारे में कोई रिर्पोट उपलब्ध नहीं है कि टंगेडको (जो यह परियोजना चलाती है) या बैराज अथारिटी की कोई जवाबदेही सुनिश्चित की गई हो या उनके खिलाफ कोई कार्यवाही अम्ल में लाई गई हो। हालांकि इस मामले में पाया गया था कि नदी तट पर लोगों को पानी छोडने की चेतावनी देने के लिए कोई सायरन नहीं लगाया था। उतराखंड में तो पनबिजली बांधों से अचानक पानी छोड देने से होने वाली मौतों का इतिहास भरा पडा है। अप्रैल 2011 में उतराखंड के भागीरथी नदी पर बने मनेरी भाली-एक बांध से अचानक पानी छोड देने से तीन श्रद्धालु पानी में बह गए थे। वर्ष 2006 में भ मनेरी भली में तीन महिलाएं पानी में बह गई थी। हालांकि उतरकाशी के जिला दंडाधिकारी ने बांध के कार्यकारी अभियंता के खिलाफ मामला दर्ज करने के आदेश भी दिये थे लेकिन आगे कार्यवाही नहीं हो सकी। नवंबर 2007 में उतराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड की ओर से मनेरी भाली चरण-दो के गेटस को खोलने और बंद करने का परिक्षण किया जा रहा था। इसी बीच दो युवक पानी में बह गए। स्थानीय लोगों के विरोध करने पर कार्यकारी अभियंता और जिला दंडाधिकारी ने मात्र एक नोटिस जारी कर दिया जिसके मुताबिक जोशीयदा बैराज की धारा में स्थित मनेरी भाली की बिना नोटिस जारी किए कभी भी पानी छोडा जा सकता है। इसी तरह का नोटिस निपको जो रांगानदी बांध का संचालन करता है और 405 मेगावाट वाले आसाम सीमा के साथ बने अरूणाचल प्रदेश के दिकरौंग पावर हाउस ने जारी किया है। नोटिस के मुताबिक रांगानदी डायवर्जन बांध किसी भी समय खोला जा सकता है। किसी भी तरह के मानवीय, पशुओं या संपति को पहुंचने वाली हानी के लिए निपको की कोई जिम्मेवारी नहीं होगी। कर्नाटक में दिसंबर 2011 को ग्रीनको द्वारा संचालित 48 मेगावाट एएमआर परियोजना का पानी छोडने से तीन युवक बह गए थे। यह इस बांध की पहली घटना नहीं थी। लोग इस बांध के पानी से करीब सात लोगों के बह जाने का आरोप लगाते हैं। पहली अक्तुबर 2006 को मध्यप्रदेश के दतिया जिला में सिंद नदी पर बने मनीखेडा बांध का अचानक भारी मात्रा में पानी छोड देने से 39 लोगों की मौत हो गई थी। अचानक पानी छोडने के बारे में कोई चेतावनी नहीं दी गई थी जिसके कारण यह लोग बह गए थे। मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने इस घटना की जांच के आदेश दिये थे और इस संबंध में उच्च न्यायलय के सेवानिवृत न्यायधीश ने 2007 में अपनी रिर्पोट भी पेश की थी। लेकिन यह रिर्पोट दबा दी गई है और इस तक पहुंच मुश्किल हो गई है। सरकार ने इसे जारी नहीं किया है और किसी की जवाबदेही सुनिश्चित करने और कार्यवाही अम्ल में लाये जाने की बात आठ साल बाद भुला दी गई है। क्या यह ठीक है कि लापरवाही और पारदर्शिता के बगैर बांधों का संचालन करने और सैंकडों मौतों को अंजाम देने के बावजूद भी दोषियों की जवाबदेही सुनिश्चित न की जाए। हालांकि थलौट हादसे में भी यह ढिलमुल निती जारी रखी जा सकती थी। लेकिन इस मामले में प्रदेश उच्च न्यायलय ने पहलकदमी करके घटना का संज्ञान लिया है और घटना के मामले की जांच कर रहे मंडलायुक्त से रिर्पोट तलब की है। इससे लगता है कि थलौट हादसे से लिये गए सबक से देश भर के बांधों से होने वाली मौतों के बारे में लापरवाही और कोताही करने वालों पर निति निर्धारण की दिशा सुनिश्चित हो सकेगी।

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