Monday 25 August 2014

बैंक को साढ़े नौ लाख लौटाने के फरमान


मंडी। जिला उपभोक्ता फोरम ने एक राष्ट्रियकृत बैंक को उपभोक्ता के पक्ष में 9,50,000 रूपये ब्याज सहित क्रेडिट करने का फैसला सुनाया है। इसके अलावा बैंक की सेवाओं में कमी के कारण उपभोक्ता को हुई मानसिक परेशानी के बदले 10,000 रूपये हर्जाना और 4000 रूपये शिकायत व्यय भी अदा करना होगा। जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष जे एन यादव और सदस्यों रमा वर्मा व आकाश शर्मा ने सदर तहसील के बगगी स्थित मैसर्ज बनारसी दास एंड संस के मालिक हेम राज गुप्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए भारतीय स्टेट बैंक की मंडी शाखा को उक्त राशि 9 प्रतिशत ब्याज सहित उपभोक्ता के पक्ष में क्रेडिट करने का फैसला सुनाया है। अधिवक्ता ए एस ठाकुर के माध्यम से फोरम में दायर शिकायत के अनुसार उपभोक्ता का उक्त बैंक में खाता है। विगत 24 जून 2009 को उपभोक्ता ने मोना एंटरप्राइजिस की ओर से जारी किया गया 9,50,000 रूपये का एक चैक बैंक में जमा करवाया था। इस चैक की राशि उपभोक्ता के खाते में उसी दिन क्रेडिट हो गई थी। लेकिन जब उन्होने जुलाई 2009 में स्टेटमैंट आफ एकाउंट ली तो उन्हे पता चला कि बैंक ने राशि गल्त जमा होने के कारण इसे उसी दिन डेबिट करके निकाल दिया था। बैंक ने न तो राशि निकाल लेने का कोई कारण बताया और न ही असल चैक उन्हे वापिस किया। जिस पर उपभोक्ता ने इस बारे में बैंक को ज्ञापन दिया था लेकिन कोई कार्यवाही न होने पर उन्होने बैंक की सेवाओं में कमी के चलते फोरम में शिकायत दर्ज करवाई थी। फोरम ने अपने फैसले में कहा कि बैंक की ओर से यह दलील दी गई कि मैसर्ज मोना एंटरप्राइसिस ने बैंक को तत्काल सूचना दी थी कि उपभोक्ता ने यह चैक उनके आफिस टेबल से बिना अनुमति और सहमती से लिया है और इसे उपभोक्ता को जारी नहीं किया गया है। लेकिन इस बारे में कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया। अगर दोनों पक्षों में चैक जारी करने के बारे में विवाद था और इस बारे में समझौता होने के बाद इसे वापिस लिया गया था तो इसकी सहमती उपभोक्ता से लिखित रूप से ली जानी चाहिए थी। बैंक का यह कहना कि क्रेडिट की एंट्री को उपभोक्ता के मौखिक रूप से कहने पर वापिस लिया गया था पर विश्वास नहीं किया जा सकता। इतनी बडी राशि के मामले में बैंक को कैजुअल तरीके से नहीं लेना चाहिए था। बैंक के पास कोई दस्तावेज न होने से ऐसा जाहिर हो रहा है कि उनका कहना असत्य और बाद में सोचा गया विचार है। ऐसे में फोरम ने माना कि बैंक ने गल्त व अवैध तरीके से उपभोक्ता की सहमती के राशि को उनके खाते से डेबिट कर दिया। जो बैंक की सेवाओं में कमी को दर्शाता है। जिसके चलते फोरम ने बैंक को उपभोक्ता के पक्ष में उक्त राशि ब्याज सहित क्रेडिट करने के आदेश दिये हैं। वहीं पर बैंक की सेवाओं में कमी के कारण उपभोक्ता को हुई परेशानी के बदले हर्जाना और शिकायत व्यय भी अदा करने का फैसला सुनाया है।

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