मंडी। बहुचर्चित मंडी अर्बन कॉपरेटिव बैंक घोटाले के मामले में सोमवार को जिला एवं सत्र न्यायलय ने दोषी करार दिये गए बैंक के अध्यक्ष सहित 6 निदेशकों को चार-चार साल के कठोर कारावास और दो-दो लाख रूपये जुर्माने की सजा सुनाई। जिला एवं सत्र न्यायधीश वीरेन्द्र सिंह की अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आरोपियों पर आपराधिक षडयंत्र के तहत विश्वासघात का आरोप साबित होने पर यह सजा सुनाई। आरोपियों पर 13 मार्च को अदालत ने दोषी करार दिया था। जिसके बाद सजा की अवधि के लिये पहले 19 मार्च, फिर 23 मार्च और बाद में 25 मार्च को सुनवाई निश्चित की थी। सोमवार को खचाखच भरी अदालत परिसर में इस अहम मामले का फैसला सुनाया गया। अदालत ने बैंक के तात्कालीन अध्यक्ष महेन्द्र पाल सहगल, निदेशक अजीत कपूर, मंजीत सिंह धमीजा, महेश बहल, नितिन कपूर और अनिल कपूर को उक्त सजा का फैसला सुनाया। इससे पूर्व अभियोजन पक्ष की ओर मामले की पैरवी करने वाले जिला न्यायवादी जे के लखनपाल ने सजा की अवधि के लिए हुई सुनवाई के दौरान तर्क देते हुए अदालत से आरोपियों को कडी सजा देने की मांग की,जबकि बचाव पक्ष की ओर से आरोपियों के प्रति अदालत से नर्म रूख अपनाने की गुहार लगाई।
अभियोजन पक्ष की ओर से मामले की पैरवी करने वाले जिला नयायवादी जेके लखनपाल ने बताया कि बैंक के प्रशासक मस्त राम ने एक अप्रैल 2005 को सदर थाना मंडी में प्राथमिकी दर्ज करवाई थी कि मार्च 2005 में कार्यभार संभालने के बाद रिकॉर्ड को खंगालने पर उन्हें पता चला कि बैंक के मैनेजर और पदाधिकारियों ने विश्वासघात करके बैंक को भारी नुक्सान पहुंचाया है, क्योंकि बैंक मैनेजर ऋण देते समय बंधक पत्र(मोर्टगेज) प्राप्त करने में कोताही बरती है और बैंक का नॉन परफार्मिंग (एनपीए) को अनाधिकृत रूप से सैटल किया गया है, जिसमें एकमुश्त अदायगी(ओटीएस) स्कीम का उल्लंघन किया गया है।
पुलिस ने भारतीय दंड संहिता के तहत मामला दर्ज कर अदालत में 18 आरोपियों के खिलाफ अभियोग चलाया। सुनवाई के दौरान बैंक के मैनेजर परमिंद्र वैद्य और हेमंत कुमार टंडन की मौत हो गई जबकि 16 आरोपियों के खिलाफ अभियोग साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष की ओर से 17 गवाहों के बयान दर्ज किए गए। अदालत ने अपनी 104 पृष्ठों के फैसले में इस मामले में संलिप्त बैंक के अध्यक्ष सहित निदेशक मंडल के छह सदस्यों को भारतीय दंड संहिता की धारा 409 व 120 बी के तहत षडय़ंत्रपूर्वक विश्वासघात का दोषी करार दिया जबकि 10 अन्य आरोपियों को आरोपमुक्त कर दिया था।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आरोपियों के अपराध से आम जनता और बैंक के निवेशकों और खाताधारकों का विश्वास टूटा है। इस अपराध से कॉपरेटिव बैंकिंग की विश्ववसनियता पर भी प्रश्रचिन्ह लगा है, क्योंकि इस बैंक को आम जनता की भगाीदारी से स्थापित किया गया था। यह अपराध एकदम नहीं किया गया था बल्कि सोचे समझे तरीके से अंजाम दिया गया। अदालत ने कहा कि आरोपियों ने ओटीएस स्कीम का उल्लंघन करके जल्दबाजी में ऋण वसूली के कुछ मामलों का खत्म किया। अदालत ने कहा कि आरोपी यह बताने में असफल रहे कि अनिल सहगल, एनएन सहगल, दया सहगल और किशन चंद वैद्य के मामले ओटीएस स्कीम के तहत कैसे खत्म किए गए जबकि इस मामले की सैटलमैंट करने से बैंक को 741850 रूपए का नुक्सान उठाना पड़ा।
ऐसे में अदालत ने आरोपियों को उक्त करावास और जुर्माने की सजा सुनाई।
अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि दोषियों से वसूल की गई जुर्माना राशि अर्बन बैंक को इस निर्देश सहित दी जाएगी कि यह राशि जमाकर्ताओं को वितरित की जाएगी। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि जुर्माना राशि अदा न करने की सूरत में दोषियों को छह-छह महीने का अतिरिक्त कारावास भुगतना पड़ेगा।
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