Saturday 16 March 2013

काष्ठ माडल की कला को नया आयाम देने की कोशीश


मंडी। काष्ठ माडल की कला भले ही अभी लोकप्रिय नहीं हुई है लेकिन इस क्षेत्र में कलाकर्मियों ने कई आयाम स्थापित किये हैं। मंडी के जवाहर नगर निवासी परमानंद भी इस कला में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं। शौकिया शुरूआत ने उन्हे कब इस कला का हुनरमंद बना दिया इसका भान उन्हे तब हुआ जब कला के पारखियों ने उनकी कला का मोल समझा। परमानंद को प्रदेश सरकार की ओर से वर्ष 2007 में राज्य पुरूस्कार से भी नवाजा जा चुका है। दिन के समय फर्नीचर इंडस्ट्री की दुकान में काम करने के बाद शाम को परमानंद का समय अपने माडलों को निखारने में बीतता है। परमानंद अपने शौक के चलते महत्वपूर्ण स्थलों के अभी तक करीब 25 काष्ठ माडल बना चुके हैं। जिनमें से पराशर झील का पैगोडा शैली में बना मंदिर, हैदराबाद की चार मीनार, मंडी का घंटाघर, विक्टोरिया ब्रिज, विजय सीनीयर सैकेंडरी स्कूल का ओ ब्लाक, शिमला का चर्च आदि इनके कुछ प्रसिद्ध माडल हैं। हालांकि वह खुद इनमें से कई जगहों पर गये भी नहीं हैं लेकिन महत्वपूर्ण स्थलों को मात्र इनके चित्रों से देख कर ही जीवंत कर दिया है। इन माडलों में छोटी से छोटी बारिकी का भी ध्यान रखा जाता है और हुबहु आकृति तैयार कर दी जाती है। हाथों की इस कला में भारी मेहनत भी लगती है। परमानंद हमेशा नये माडलों की तलाश में लगे रहते हैं। इन दिनों परमानंद कुल्लू जिला की बंजार तहसील की चैहणी कोठी के माडल पर कार्य कर रहे हैं। जिसके लिए वह हाल ही में अपने एक सहयोगी सूरज के साथ विशेष रूप से चैहणी कोठी भी गए थे। अपने काम के तरीके पर प्रकाश डालते हुए उन्होने बताया कि वह अपने माडल में देवदार, चीड, रई की लकडी व पलाई का प्रयोग करते हैं जिन्हे वह फेविकोल से जोड कर आकार देते हैं। इसके बाद इसे पालिश और पेंट करने के बाद अंतिम रूप दिया जाता है। परमानंद ने बताया कि उन्हे अपनी मेहनत की कदरदानों से उचित कीमत भी मिल जाती है। लेकिन अभी तक वह सार्वजनिक रूप से अपनी कला की प्रदर्शनी नहीं लगा पाए हैं। हालांकि इस बार वह शिवरात्री मेले के दौरान एक दिन के लिए अपनी कला की प्रदर्शनी के तौर पर अपने माडलों को प्रदर्शित करेंगे। उन्होने कहा कि अगर उनके इस कार्य को उचित तवज्जो दी जाए तो यह नयी पीढी के लिए आमदनी का एक अच्छा साधन बन सकता है।

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