Thursday 14 March 2013

शिवरात्री मेले में पहली बार आए हैं रूषाडा गाड के प्राचीन देव शिव शंकर


मंडी। अंतराष्ट्रीय शिवरात्री महोत्सव में इस वर्ष सिराज क्षेत्र के प्राचीन देवता रूषाडा गाड (पांडव शिला) के देवता शिव शंकर भी भाग ले रहे हैं। इस प्राचीन देवता का मूल स्थान करीब 9000 फीट की ऊंचाई पर देवदार के शंकर जंगल में स्थित है। इस देवता की हार पांडव शिला, भजनार, धार, दाऊंट, कोठी, घनेहड, खुलाट, सरार और गरेई गांवों में फैली हुई है। देव शिव शंकर की शुरूआत जठेल और खुलाण खानदानों से मानी जाती है। अनुश्रुती के अनुसार रूषाडा गाड गांव के खुलाण खानदान का एक बुजुर्ग धान खरीदने के लिए करसोग गया हुआ था। जहां से वापिसी में लौटते समय उन्हे खड्ड में एक अंडाकार पत्थर दिखाई दिया तो चटनी आदि बनाने की मंशा से इसे अपने साथ ले आया। अभी बुजुर्ग का घर कुछ ही दूरी पर था तो उसने रास्ते में जंगल में विश्राम किया। लेकिन जब घर जाने के लिए चलने लगा तो वह पत्थर को वहां से उठा नहीं सका। अगले दिन फिर से जब बुजुर्ग इस पत्थर को लाने गया तो इसका आकार बढ गया था। जिससे वह पत्थर नहीं ला सका। इसके कुछ दिनों के बाद जठेल खानदान की एक गाय जब दूध नहीं देने लगी तो इसका कारण जानने के लिए गाय का पीछा किया गया। गाय का पीछा करने पर पता चला कि गाय उसी पत्थर पर दुध गिरा रही थी। देवता ने गुर के माध्यम से अपना नाम शिव शंकर बताया। इसके बाद से गांव वालों ने इस पत्थर की पूजा करनी शुरू कर दी। शिव शंकर के प्रकट होने पर स्थानिय लोगों ने इस शिवलिंग के पास काष्ठनुमा मंदिर का निर्माण किया है। देव शिव शंकर के भक्तों के अनुसार इस शिवलिंग का आकार निरंतर बढ रहा है और इस समय इसका आकार करीब 25 फुट तक हो गया है। देव शिव शंकर की देवता कमेटी के सदस्य दलीप चंद, राम लाल, कमल देव ठाकुर, नरेश ठाकुर और कुलदीप ठाकुर ने बताया कि देवता के पास दोनों हारों के मेले लगते हैं। रूषाड गाड हार का काहुली धार में 20 अप्रैल को मेला लगता है। जबकि पांडव शिला हार का रिंजू मैदान में 16 आषाढ को मेला लगता है। इसके अलावा हर दिन मंदिर में श्रधालुओं का तांता लगा रहता है।

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