Monday 15 September 2014

हिंदी में वकालत करने वाले नरेन्द्र अकेले अधिवक्ता


मंडी। भले ही हिन्दी भाषा विश्व की तीसरी सबसे बडी भाषा बन गई है। लेकिन प्रदेश में हिन्दी की हालत का यह आलम है कि अभी तक प्रदेश सरकार ने उच्च न्यायलय में हिन्दी को मान्यता देने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। हिन्दी को उच्च न्यायलय में मान्यता दिलाने के लिए प्रदेश सरकार को राष्ट्रपति की मंजुरी लेने के लिए आगे आना चाहिए। जिससे प्रदेश में हिन्दी का उत्थान हो सके। हिन्दी भाषा दिवस पर यह कहना है जिला एवं सत्र न्यायलय में हिंदी में वकालत करने वाले अकेले अधिवक्ता नरेन्द्र शर्मा का। अधिवकता नरेन्द्र शर्मा विगत 1999 से जिला न्यायलय में देवनागरी हिन्दी में विधि व्यवसाय में कार्यरत हैं। श्रमिक न्यायलय शिमला में कार्यरत पीठासीन अधिकारी डी एस खनाल के सुंदरनगर में उपमंडलीय न्यायिक दंडाधिकारी के रूप कार्यकाल के दौरान नरेन्द्र शर्मा को हिन्दी में कार्य करने के प्रेरणा मिली जो उनके लिए बहुमुल्य साबित हुई। नरेन्द्र अकेले ऐसे अधिवक्ता हैं जो अदालतों में सारा कार्य मसलन वाद, प्रतिवाद, पुर्ननिरिक्षण याचिकाओं को बनाने और अन्य कार्यवाहियों को हिन्दी में ही अंजाम देते हैं। उनका कहना है कि हालांकि हिन्दी में कार्य करने के कारण कई बार अडचनें भी सामने आई हैं लेकिन इन पर पार पा जाने के बाद अब सारा कार्य सहजता से हो जाता है। हिन्दी भाषा के प्रशासनिक पहलुओं के बारे में नरेन्द्र बताते हैं कि अंग्रेजी शासन में पंजाब सरकार ने 18 जनवरी 1906 की अधिसूचना संखया 316 जारी करके हिन्दी भाषी क्षेत्र की जिला न्यायलय की भाषा हिन्दी होने को मान्यता दी थी। जिसकी झलक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 345 में देखी जा सकती है। साल 1976 में सीपीसी में जिला न्यायलय की भाषा हिन्दी घोषित की गई है। प्रदेश उच्च न्यायलय के न्यायमुर्ति एम आर वर्मा ने साल 2000 में एक अपील के फैसले में जिला न्यायलय की भाषा हिन्दी घोषित की है। नरेन्द्र के अनुसार पंजाब भू राजस्व नियम 44 के तहत एसडीएम, तहसीलदार को हिन्दी में निर्णय करने का निर्देश है। भारतीय संविधान व राजभाषा अधिनियम की धारा 7 के तहत हिन्दी भाषी क्षेत्र के राज्य उतर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान की सरकारों ने उच्च न्यायलय में हिन्दी को राष्ट्रपति की मंजुरी से मान्य करवाया है। लेकिन हिन्दी भाषी राज्य हिमाचल प्रदेश की सरकार ने प्रदेश उच्च न्यायलय में हिन्दी को मान्य करने के लिए आज तक कोई पहल नहीं की है और न ही केन्द्रीय सरकार को राष्ट्रपति से मंजुरी लेने के लिए कोई अनुरोध किया है। अधिवक्ता नरेन्द्र शर्मा का कहना है कि प्रदेश सरकार को राष्ट्रपति से मंजुरी के लिए आवेदन करना चाहिए जिससे प्रदेश उच्च न्यायलय में भी हिन्दी को मान्यता मिल सके।

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