Friday, 9 August 2013

कि जरूरी है...



(स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर)

 कि जरूरी है

अपने पाक रिश्तों की
कसम खाकर कहुंगा हर बात
कि कहना बात का
बहुत जरूरी है
कि वातावरण में तारी
इस दौर की हवाओं का जहरीलापन
कहीं विषैला न कर दे भीतर तक
बात इसलिये कहनी है
कि भीतर की बेचैनी जो
आंख, मुंह, कान, माथे की त्योरियों
और नाक के नथुनें से
फूट पडने को है आतुर
शब्दों में उसे ढाल सकुं
विचारों में इसे पिरो सकुं
बात कहनी है कि
सामंती से औद्योगिक समाज
में होते हस्तांतरण की चुनौतियां
बरअक्स खडी हैं

जरूरी है बात कहना
कि भ्रम की चादर के कोहरे को छांट
मुक्ति पथ पर है आगे बढना
कि जरूरी है
वर्चस्व की जंग में
भूमिका और दखल सुनिश्चित बनाना
कि जरूरी है अपनी बात से
जन संघर्षों की आवाज बुलंद करना
कि जरूरी है
शोषण के उत्कर्ष के बीच
विरोधाभास को अपने हक में लेना
कि जरूरी है तर्क और विज्ञान की
कसौटी पर सही उतरना

कि जरूरी है
केदारनाथ बनने से हर स्थल को बचाना
कि जरूरी है
भूमिहीन के आशियाने उजाडने वाले
निरंकुश कानूनों के खिलाफ लडना
कि जरूरी है
नेताओं और अफसरों को
इस गणतंत्र की सही पहचान करवाना
कि जरूरी है
महिलाओं को सुरक्षा कवच में लाना
कि जरूरी है
मेहनतकशों के हकों के डकैतों
को सबक सिखलाना
कि जरूरी है
ऋणों से कुचले किसानों की आत्महत्याएं रोकना
कि जरूरी है
काले धन पर लगी घोटालेबाजों की
कुंडली हटाना
अगर हमें अपनी स्वतंत्रता को है बचाना
निहायत जरूरी है अवाम की आवाज को
हथियार बना
समाजवाद की राह पर ले जाना....।

समीर कश्यप
sameermandi@gmail.com
9-8-2013

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