शिक्षक
धन्यावाद
हमें ज्ञान की रोशनी
देने के लिए मेरे शिक्षक
तुम ही थे जिन्होने हमें
जिंदगी का ककहरा सिखाया
हमें अच्छी तरह याद है
पहला दिन जब सकुचाते हुए
हमने प्रवेश किया था
जिंदगी की पाठशाला में
तब तुम ही थे कि
हमारा हाथ पकड कर
पहला पन्ना लिखना
सिखाया था
तुम्हारी निगरानी में
हर दिन बढते गये हम
पढते गये हम
सीखते गए हम
चुप से रहने वाले
तुम्हारी शिक्षा की रोशनी में
स्फुटित होने लगे हम
निखरने लगे हम
भाग्यशाली हैं हम
कि नहीं थे हमारे शिक्षक ब्रह्मराक्षस
कि ज्ञान न बांटने पर भटक रही हो
आत्मा जिनकी
पात्र शिष्य की तलाश में
शिक्षक तुमने हमेशा ही
दिया है विद्या दान
पात्र-कुपात्र की परिभाषाओं से दूर
धन्यावाद है तुम्हे शिक्षक
ज्ञान को समाज में बांटने का बीजमंत्र देकर
बह्रराक्षस की अभिशप्तता से बचनेका
मुक्ति पथ दिखलाने के लिए।
समीर कश्यप
5/9/2013
sameermandi@gmail.com
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