Thursday 5 September 2013

शिक्षक



शिक्षक


धन्यावाद

हमें ज्ञान की रोशनी

देने के लिए मेरे शिक्षक

तुम ही थे जिन्होने हमें

जिंदगी का ककहरा सिखाया

हमें अच्छी तरह याद है

पहला दिन जब सकुचाते हुए

हमने प्रवेश किया था

जिंदगी की पाठशाला में

तब तुम ही थे कि

हमारा हाथ पकड कर

पहला पन्ना लिखना

सिखाया था

तुम्हारी निगरानी में

हर दिन बढते गये हम

पढते गये हम

सीखते गए हम

चुप से रहने वाले

तुम्हारी शिक्षा की रोशनी में

स्फुटित होने लगे हम

निखरने लगे हम

भाग्यशाली हैं हम

कि नहीं थे हमारे शिक्षक ब्रह्मराक्षस

कि ज्ञान न बांटने पर भटक रही हो

आत्मा जिनकी

पात्र शिष्य की तलाश में

शिक्षक तुमने हमेशा ही

दिया है विद्या दान

पात्र-कुपात्र की परिभाषाओं से दूर

धन्यावाद है तुम्हे शिक्षक

ज्ञान को समाज में बांटने का बीजमंत्र देकर

बह्रराक्षस की अभिशप्तता से बचनेका

मुक्ति पथ दिखलाने के लिए।

समीर कश्यप

5/9/2013

sameermandi@gmail.com

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