मंडी। जिला एवं सत्र न्यायलय में बतौर अधिवक्ता कार्यरत नरेन्द्र शर्मा हिमाचल प्रदेश के अकेले वकील हैं जो न्यायलय का सारा कामकाज हिंदी भाषा में करते हैं। यह अपनी मातृभाषा के प्रति उनका जज्बा ही है कि वह अनेकों परेशानियों से गुजरने के बाद भी अपनी वकालत का तमाम कार्य हिंदी भाषा में करते हैं। न्यायलयों में हालांकि सारा कार्य अंग्रेजी भाषा में ही होता है लेकिन नरेन्द्र शर्मा के हिंदी में लिखे गए दावों, प्रतिदावों और याचिकाओं को भी अदालतों में मान्य किया जाता है। नरेन्द्र शर्मा का कहना है कि देवनागरी (हिंदी) में विधि व्यवसाय उन्होने वकालत की पढाई के बाद वर्ष 1999 में सुंदरनगर न्यायलय के सब जज दुर्गा सिंह खेनल के कार्यकाल में उनकी प्रेरणा से शुरू किया था। वह याद करते हुए बताते हैं कि जब जज साहब की बदली हुई थी तो उन्होने कहा था कि हिंदी हमारी मातृभाषा के साथ-2 संविधान के अनुसार राष्ट्रिय भाषा भी है इसलिए हिंदी में विधि व्यवसाय जारी रखना। उनके मुताबिक हिंदी में वकालत करने पर उन्हे कई कठिनाइयां आई और हिंदी के विरोध में कई स्वर भी उठे लेकिन उन्होने इनका सामना करते हुए हिंदी में वकालत का कार्य जारी रखा। नरेन्द्र शर्मा का कहना है कि वह जिला स्तर तक के कोर्ट का पूरा कार्य वाद, प्रतिवाद, पुनरावेदन, पुर्ननिरिक्षण आदी का कार्य हिंदी में ही करते हैं। नरेन्द्र शर्मा ने बताया कि भारतीय संविधान की धारा 343 के तहत देवनागरी (हिंदी) को राष्ट्रिय भाषा का दर्जा दिया गया है। पठित राजभाषा अधिनियम 1963 की धार 7 के तहत हिंदी भाषी राज्यों उतर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि के उच्च न्यायलयों में हिंदी को मान्य कर लागू कर दिया गया है। लेकिन हिंदी भाषा राज्य हिमाचल प्रदेश ने अभी तक उच्च न्यायलय में मान्यता नहीं मिल सकी है। हिंदी दिवस पर अधिवक्ता नरेन्द्र शर्मा का कहना है कि प्रदेश के उच्च न्यायलय में भी हिंदी को मान्यता दी जानी चाहिए और हिंदी के प्रोत्साहन के लिए आगे आना चाहिए।
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