लिखता हुं कि वाकयाते हाल लिख सकुं,
बेचैन जिंदगियों के सवाल लिख सकुं,
मेहनत की लूट का है दौर मेरे भाई,
दलाली की मुट्ठी की पडताल लिख सकुं,
काबिज है ठंडे गुंडों की तादात हर तरफ,
पीछे छुटती सच्चाई की बात लिख सकुं,
खतरनाक है मुर्दा सी चुप्पी भरी यहां,
मरते सपनों को सिलसिलेबार लिख सकुं,
समीर कश्यप
Sameermandi@gmail.com
28-11-2013
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