Wednesday, 30 May 2012

हमारे मौलिक कर्तव्यः पहला कर्तव्य


ऐसा देखा गया है कि देश के नागरिक अपने अधिकारों के प्रति तो जागरूक हैं लेकिन अपने मौलिक कर्तव्यों के प्रति अनभिज्ञ रहते हैं। संविधान के अनुच्छेद 51-ए में मौलिक कर्तव्यों पर प्रकाश डाला गया है।संविधान की धारा 51-ए के ए भाग में पहले मौलिक कर्तव्य के अनुसार. प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करें और उसके आदर्शो, संस्थाओ, राष्ट्र्ध्वज और राष्ट्गान का आदर करे। भारतीय संविधान की प्रस्तावना निम्न प्रकार से पारिभाषित की गई है: " हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को : सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।" पहले मौलिक कर्तव्य के अनुसार हमें संविधान के आदर्शों (उद्देशिका के उद्देश्य) का सम्मान करना चाहिए। 1 यह बताती है कि संविधान जनता से निकलता है तथा जनता ही अंतिम सम्प्रभु है 2 उद्देशिका लोगॉ के लक्ष्यॉ-आकाक्षऑ को प्रकट करती है 3 इसका प्रयोग किसी अनुच्छेद मे विध्यमान अस्पष्टता को दूर करने मे हो सकता है 4 यह जाना जा सकता है कि संविधान किस तारीख को बना तथा लागू हुआ था उद्देशिका संविधान के एक भाग के रूप मॅ 1 परम्परागत मत -- उद्देशिका को संविधान का भाग नहीं मानता है क्योंकि यदि इसे विलोपित भी कर दे तो भी संविधान अपनी विशेष स्थिती बनाये रख सकता है इसे पुस्तक के पूर्व परिचय की तरह समझा जा सकता है यह मत सर्वोच्च न्यायालय ने बेरुबारी यूनियन वाद 1960 मॅ प्रकट किया था 2 नवीन मत---- इसे संविधान का एक भाग बताता है केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य 1973 में दिये निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे संविधान का भाग बताया है ।संविधान का एक भाग होने के कारण ही संसद ने इसे 42वें संविधान संशोधन से इसे संशोधित किया था तथा समाजवादी ,पंथनिरपेक्ष शब्द जोड दिये थे वर्तमान में नवीन मत ही मान्य है उद्देशिका के शब्दों का विश्लेशण 1 सम्प्रभु --- राज्य की सर्वोपरि राजनैतिक शक्ति है की घोषणा करती है, राज्य की राजनैतिक सीमाओं के भीतर इसकी सत्ता सर्वोपरि है, तथा यह किसी बाहरी शक्ति की प्रभुता स्वीकार नहीं करती है। 2 समाजवादी---- भारतीय समाजवाद अनिवार्य रूप असे जनतांत्रिक होना चाहिए ,समाजवादी लक्ष्यों की प्राप्ति जनतांत्रिक माध्यमों से होनी चाहिए ,यह शब्द भारत को एक जनकल्याणरी राज्य के रूप में स्थापित कर देता है 3 धर्मनिरपेक्षता---- इसका अर्थ लौकिकता को आध्यात्मिकता पर वरीयता देना है,धर्म पर आधारित भेदों का सम्मान करना,अन्य धर्मों के प्रति राज्य द्वारा तटस्थता बरतना ही धर्म निरपेक्षता है,ऐसे राज्य किसी एक धर्म को प्रोत्साहन ना देकर विविध धर्मो के मध्य सहिष्णुता तथा सहयोग बढाने का कार्य करें यह एक कर्तव्य है जिसके पालन से विभिन्न धर्मो के बीच सहअस्तित्व स्वीकार किया जाता है,इसका लाभ यह है कि राज्य किसी धर्म के अधीन नहीं होता है जैसे इस्लामिक गणतंत्र ईरान मे इस्लाम गणतंत्र से भी अधिक महत्वपूर्ण है इस प्रकार के राज्य विधि के समक्ष समता बरतते है तथा नागरिकों के मध्य धार्मिक आधार पर विभेद नहीं बरतते ,उनको समान अवसर भी उपलब्ध करवाया जाता है इस प्रकार के राज्य धर्मविरोधी, अथवा अधार्मिक न होकर धर्मनिरपेक्ष होते है वे अपने नागरिकों को इच्छा अनुसार धर्म पालन का अधिकार देते है भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 इस से सम्बन्धित हैं पंथनिरपेक्षता कोई उधार लिया गया शब्द नहीं है भारतीय साहित्य में सर्व धर्म समभाव के आदर्श के रूप में यह मौजूद था यहाँ धर्म पर आधारित विभेद का विरोध किया गया है न कि राज्य का धर्म से संबंध का। जनतंत्र ------- अनुच्छेद 19 तथा अनु 326 जनतंत्र से संबंधित है भारत में बहुदलीय लोकतंत्र है गणतंत्र -------- राजप्रमुख निर्वाचित होगा न कि वंशानुगत अपेक्षाएँ (1) न्याय----- सामाजिक आर्थिक तथा राजनैतिक न्याय के वे प्रकार है जो संविधान मॅ भारतीय नागरिकॉ को देने की वकालत की गयी है,1 व्यक्ति 1 वोट राजनैतिक न्याय की प्राप्ति हेतु आवश्यक है[19,326],सामाजिक न्याय की प्राप्ति हेतु अस्पृश्यता का उन्मूलन ,उपाधि का उन्मूलन किया गया है,[अनु 15,16,17,18],आर्थिक न्याय हेतु राज्य हेतु नीति निर्देशक तत्वों का प्रावधान रखा गया है (2) स्वतंत्रता------- इसका अर्थ नागरिक पर बाध्यकारी तथा बाहरी प्रतिबंधों का अभाव है,एक नागरिक द्वारा दूसरे के अधिकारों का उल्लघंन करना निषेधित है, नागरिक स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 में तथा धार्मिक स्वतंत्रता अनु 25-28 में वर्णित है (3)समानता---- स्तर तथा अवसरों की समानता स्थापित करना अनु 15 से 18 में वर्णित है (4) बंधुत्व भारतीय नागरिकों के मध्य बंधुत्व की भावना स्थापित करना,क्योंकि इस के बिना देश मे एकता स्थापित नहीं की जा सकती है संविधान के तीन प्रमुख भाग हैं। भाग एक में संघ तथा उसका राज्यक्षेत्रों के विषय में टिप्पणी की गई है तथा यह बताया गया है कि राज्य क्या हैं और उनके अधिकार क्या हैं। दूसरे भाग में नागरिकता के विषय में बताया गया है कि भारतीय नागरिक कहलाने का अधिकार किन लोगों के पास है और किन लोगों के पास नहीं है। विदेश में रहने वाले कौन लोग भारतीय नागरिक के अधिकार प्राप्त कर सकते हैं और कौन नहीं कर सकते। तीसरे भाग में भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के विषय में विस्तार से बताया गया है। मूल कर्तव्य मूल संविधान में नहीं थे, इन्हे ४२ वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया है। ये रूस से प्रेरित होकर जोड़े गये तथा संविधान के भाग ४ (क) के अनुच्छेद ५१ - अ मे रखे गये हैं । ये कुल ११ है । सबसे पहला कर्तव्य निम्नलिखित हैः 1. प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करें और उसके आदर्शो, संस्थाओ, राष्ट्र्ध्वज और राष्ट्गान का आदर करे। भारत के राष्ट्रीय ध्वज जिसे तिरंगा भी कहते हैं, तीन रंग की क्षैतिज पट्टियों के बीच एक नीले रंग के चक्र द्वारा सुशोभित ध्वज है, जिसकी अभिकल्पना पिंगली वैंकैया ने की थी।[1][2] इसे १५ अगस्त १९४७ को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व २२ जुलाई, १९४७ को आयोजित भारतीय संविधान-सभा की बैठक में अपनाया गया था।[3] इसमें तीन समान चौड़ाई की क्षैतिज पट्टियाँ हैं , जिनमें सबसे ऊपर केसरिया, बीच में श्वेत ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी है। ध्वज की लम्बाई एवं चौड़ाई का अनुपात २:३ का है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है जिसमें २४ अरे होते हैं। इस चक्र का व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है व रूप सम्राट अशोक की राजधानी सारनाथ में स्थित स्तंभ के शेर के शीर्षफलक के चक्र में दिखने वाले की तरह होता है। भारत का राजचिह्न सारनाथ स्थित अशोक के सिंह स्तंभ की अनुकृति है, जो सारनाथ के संग्रहालय में सुरक्षित है। मूल स्तंभ में शीर्ष पर चार सिंह हैं, जो एक-दूसरे की ओर पीठ किए हुए हैं। इसके नीचे घंटे के आकार के पदम के ऊपर एक चित्र वल्लरी में एक हाथी, चौकड़ी भरता हुआ एक घोड़ा, एक सांड तथा एक सिंह की उभरी हुई मूर्तियां हैं, इसके बीच-बीच में चक्र बने हुए हैं। एक ही पत्थर को काट कर बनाए गए इस सिंह स्तंभ के ऊपर 'धर्मचक्र' रखा हुआ है। भारत सरकार ने यह चिन्ह 26 जनवरी, 1950 को अपनाया। इसमें केवल तीन सिंह दिखाई पड़ते हैं, चौथा दिखाई नही देता। पट्टी के मध्य में उभरी हुई नक्काशी में चक्र है, जिसके दाईं ओर एक सांड और बाईं ओर एक घोड़ा है। दाएं तथा बाएं छोरों पर अन्य चक्रों के किनारे हैं। आधार का पदम छोड़ दिया गया है। फलक के नीचे मुण्डकोपनिषद का सूत्र 'सत्यमेव जयते' देवनागरी लिपि में अंकित है, जिसका अर्थ है- 'सत्य की ही विजय होती है'। सरकारी झंडा निर्दिष्टीकरण के अनुसार झंडा खादी में ही बनना चाहिए। यह एक विशेष प्रकार से हाथ से काते गए कपड़े से बनता है जो महात्मा गांधी द्वारा लोकप्रिय बनाया था। इन सभी विशिष्टताओं को व्यापक रूप से भारत मंे सम्मान दिया जाता हैं भारतीय ध्वज संहिता के द्वारा इसके प्रदर्शन और प्रयोग पर विशेष नियंत्रण है। [ रंग-रूप अशोक चक्र, "धर्म का पहिया (धर्म) भारत के राष्ट्री य ध्वकज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच की पट्टी का श्वेत धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है। सफ़ेद पट्टी पर बने चक्र को धर्म चक्र कहते हैं। इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गति‍शील है और रुकने का अर्थ मृत्यु है।[1] भारत का राजचिह्न सारनाथ स्थित अशोक के सिंह स्तंभ की अनुकृति है, जो सारनाथ के संग्रहालय में सुरक्षित है। मूल स्तंभ में शीर्ष पर चार सिंह हैं, जो एक-दूसरे की ओर पीठ किए हुए हैं। इसके नीचे घंटे के आकार के पदम के ऊपर एक चित्र वल्लरी में एक हाथी, चौकड़ी भरता हुआ एक घोड़ा, एक सांड तथा एक सिंह की उभरी हुई मूर्तियां हैं, इसके बीच-बीच में चक्र बने हुए हैं। एक ही पत्थर को काट कर बनाए गए इस सिंह स्तंभ के ऊपर 'धर्मचक्र' रखा हुआ है। भारत सरकार ने यह चिन्ह 26 जनवरी, 1950 को अपनाया। इसमें केवल तीन सिंह दिखाई पड़ते हैं, चौथा दिखाई नही देता। पट्टी के मध्य में उभरी हुई नक्काशी में चक्र है, जिसके दाईं ओर एक सांड और बाईं ओर एक घोड़ा है। दाएं तथा बाएं छोरों पर अन्य चक्रों के किनारे हैं। आधार का पदम छोड़ दिया गया है। फलक के नीचे मुण्डकोपनिषद का सूत्र 'सत्यमेव जयते' देवनागरी लिपि में अंकित है, जिसका अर्थ है- 'सत्य की ही विजय होती है'। राष्ट्रप–गान भारत का राष्ट्र गान अनेक अवसरों पर बजाया या गाया जाता है। राष्ट्र गान के सही संस्कारण के बारे में समय समय पर अनुदेश जारी किए गए हैं, इनमें वे अवसर जिन पर इसे बजाया या गाया जाना चाहिए और इन अवसरों पर उचित गौरव का पालन करने के लिए राष्ट्रे गान को सम्मायन देने की आवश्यइकता के बारे में बताया जाता है। सामान्यौ सूचना और मार्गदर्शन के लिए इस सूचना पत्र में इन अनुदेशों का सारांश निहित किया गया है। राष्ट्र। गान - पूर्ण और संक्षिप्ति संस्कतरण स्व्र्गीय कवि रविन्द्र नाथ टैगोर द्वारा "जन गण मन" के नाम से प्रख्या त शब्दोंै और संगीत की रचना भारत का राष्ट्र। गान है। इसे इस प्रकार पढ़ा जाए: जन-गण-मन अधिनायक, जय हे भारत-भाग्यै-विधाता, पंजाब-सिंधु गुजरात-मराठा, द्रविड़-उत्कजल बंग, विन्य़्म -हिमाचल-यमुना गंगा, उच्छिल-जलधि-तरंग, तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मांगे, गाहे तव जय गाथा, जन-गण-मंगल दायक जय हे भारत-भाग्यत-विधाता जय हे, जय हे, जय हे जय जय जय जय हे। उपरोक्तय राष्ट्र गान का पूर्ण संस्कगरण है और इसकी कुल अवधि लगभग 52 सेकंड है। राष्ट्रीय गीतः वन्दे् मातरम गीत बंकिम चन्द्रक चटर्जी द्वारा संस्कृलत में रचा गया है; यह स्वीतंत्रता की लड़ाई में लोगों के लिए प्ररेणा का स्रोत था। इसका स्थातन जन गण मन के बराबर है। इसे पहली बार 1896 में भारतीय राष्ट्रीजय कांग्रेस के सत्र में गाया गया था। इसका पहला अंतरा इस प्रकार है: वंदे मातरम्, वंदे मातरम्! सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्, शस्यश्यामलाम्, मातरम्! वंदे मातरम्! शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्, फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्, सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्, सुखदाम् वरदाम्, मातरम्! वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥ गद्य रूप 1 में श्री अरबिन्द द्वारा किए गए अंग्रेजी अनुवाद का हिन्दीग अनुवाद इस प्रकार है: मैं आपके सामने नतमस्तेक होता हूं। ओ माता, पानी से सींची, फलों से भरी, दक्षिण की वायु के साथ शान्तं, कटाई की फसलों के साथ गहरा, माता! उसकी रातें चाँदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही है, उसकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुंदर ढकी हुई है, हंसी की मिठास, वाणी की मिठास, माता, वरदान देने वाली, आनंद देने वाली। भारत वर्ष का नागिरक होने के नाते हमें जहां मौलिक अधिकारों के प्रति जानकारी होनी चाहिए। वहीं हमें अपने मौलिक कर्तव्यों के प्रति भी सजग होना चाहिए। आओ आज के दिन हम यह प्रण लें कि देश के प्रति अपने कर्तव्यों को लेकर हम देशवासियों को जागरूक करें। जिससे हमारा देश दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति कर सकें।

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