Friday, 11 October 2013

दोस्तियां



दोस्तियां...

दूर होकर भी पास होने का अहसास करा जाती हैं

दोस्तियां ऐसी अक्सर हमें कई बार रूला जाती हैं

पास होने पर भी कोसों दूरियां कभी साध जाती हैं

फासलों की एक बारीक सी लकीर खींच जाती हैं

जहन के भीतर से अक्समात प्रकट हो जाती हैं

अलसुबह मुंह से नाम अपना निकलवा जाती हैं

जिंदगी को संवारने की राह कभी दिखा जाती हैं

तो इसे पा लेने की चाह कभी पीछे छोड़ जाती हैं

अपने न होने का कभी भ्रम भी ये फैला जाती हैं

दुश्मनी भी कभी इसका लिबास पहने आ जाती है

जीवन पथ की कठिनाई में सापेक्ष खड़ी हो जाती हैं

बेहद कड़वी ही सही बात अपनी समझा जाती हैं

अपनी सार्थकता का राज निष्कपट जता जाती हैं।।

समीर कशयप

30 अप्रैल 2010

sameermandi@gmail.com

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