Saturday 17 December 2011

माधोराव की संपति के बेनामी सौदे के मामले में 7 आरोपियों के खिलाफ अंतिम रिपोर्ट अदालत में पेश


मंडी। मंडी राजघराने की संपती का बेनामी सौदा करने के मामले में पुलिस ने 7 आरोपियों के खिलाफ अदालत में अंतिम रिर्पोट पेश कर दी है। अब इन आरोपियों के खिलाफ अदालत में मामला लंबित है और जल्द ही आरोपियों पर बेनामी सौदे सहित भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत अभियोग शुरू हो जाएगा। आरटीआई के तहत मिली जानकारी में जिला पुलिस ने इस तथ्य का खुलासा किया है। इस मामले को सामने लाने वाली संस्था आरटीआई बयुरो ने माधो राव मंदिर की रायल संपती के बेनामी सौदे की तहकीकात के संबंध में सूचना के अधिकार के तहत पुलिस  से जानकारी मांगी थी। जिस पर अतिरिक्त जिला पुलिस अधीक्षक ने आरटीआई के तहत सूचना मुहैया करवाई है। इस सूचना में पुलिस का कहना है कि 11 जुलाई 2008 को पुलिस ने बेनामी सौदे और भारतीय दंड संहिता की धारा 409, 465, 201, 182 और 120-बी के तहत मामला दर्ज किया था। इस मामले की तहकीकात में सामने आया है कि जिला की चच्योट तहसील के बैहरी गांव निवासी खुब राम ने आय के सत्रोत बताने के लिए और बेनामी सौदा जाहिर न करने के लिए एक अन्य आरोपी यूपी निवासी सुधीर मलिक के साथ एक जाली एग्रीमेंट बनाया था जिसके लिए मंडी के एक स्टांप विक्रेता रूप लाल से सटांप खरीदे गए थे। इस दस्तावेज को शिमला के नोटरी पब्लिक सुरेन्द्र सिंह देष्टा ने बैक डेट में तस्दीक किया था और शिमला के ही एक अन्य अधिवक्ता संजय कुमार ने शिनाख्तकर्ता का कार्य किया था। पुलिस की तहकीकात के अनुसार मंडी के सैण मुहल्ला निवासी संजय शर्मा ने खुब राम, सुभाष कुमार व अन्य लोगों के साथ षडयंत्र रचा था। वहीं पर तहकीकात में यह भी सामने आया है कि अस्पताल मार्ग निवासी देविन्द्र जम्वाल को संजय शर्मा, सुभाष कुमार, खुब राम तथा अन्य लोगों ने राजघराने की संपति की मालिक इन्दिरा महिन्द्रु की अनुमति के बगैर राजमहल की संपति को बेचने के लिए मनवाया। यही नहीं देविन्द्र जम्वाल ने इस भूमि विक्रय का कोई भी पैसा रानी इन्दिरा महेन्द्रु को न दिया है। जिसके चलते देविन्द्र जम्वाल को भी इस मामले में आरोपी बनाया गया है। सूचना से जाहिर हुआ है कि आरोपियों के खिलाफ अंतिम रिर्पोट अदालत में पेश करने के बाद अब जल्द ही आरोपियों के खिलाफ अभियोग की सुनवाई शुरू होगी। इधर, आरटीआई ब्युरो के सदस्य लवण ठाकुर ने कहा कि इस धरोहर संपति को बेनामी घोषित करके सरकार इसे तुरंत अपने कब्जे में ले। जिससे करीब 400 साल पुरानी इस धरोहर का संरक्षण और संवर्धन किया जा सके। 

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