Sunday, 24 July 2011

डयुटी में बाधा डालने का आरोपी बरी


मंडी। सरकारी कर्मचारी की डयुटी में बाधा डालने का अभियोग साबित न होने पर अदालत ने एक आरोपी को बरी करने का फैसला सुनाया है। न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी, जोगिन्द्रनगर जिया लाल आजाद के न्यायलय ने जिला एवं सत्र न्यायलय की सिविल नजारत के नायब नाजिर किशोर शर्मा के खिलाफ भादंसं की धारा 186 और 189 के तहत अभियोग साबित न होने पर उसे बरी कर दिया। अभियोजन पक्ष के अनुसार 15 जुलाई 2010 को एएसआई रामलाल की अगुवाई में पुलिस का दल बिंद्रावणी के पास नाका पर तैनात था। इसी दौरान पंडोह की ओर से आ रहे एक मोटरसाईकिल को रोका गया। मोटरसाईकिल चालक पुलिस को वाहन के दसतावेज नहीं दिखा सका। जिस पर जांच अधिकारी ने वाहन का चालान कर इसे जबत करना चाहा तो मोटरसाईकिल पर पीछे बैठे आरोपी ने आगे आकर कहा कि वह कोर्ट के कर्मचारियों की यूनियन का प्रधान है। आरोपी ने कहा कि प्रधान होने के नाते उसका जजों पर प्रभाव है अगर मोटरसाईकिल को जबत किया तो वह जांच अधिकारी राम लाल को किसी कोर्ट कार्यवाही में फंसा देगा। आरोपी ने जांच अधिकारी के कार्य में बाधा डाली जिससे उनका कार्य बाधित हुआ। जांच अधिकारी ने आरोपी नाजिर के मामला दर्ज कर अभियोग चलाया था। अभियोजन की ओर से इस मामले में 5 गवाह पेश किए गए। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि मामले के तथ्यों से जाहिर होता है कि शिकायतकर्ता ने अपने आप ही इस मामले की जांच की है और खुद ही आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के तहत बयान दर्ज किए। जिससे यह सपषट होता है कि शिकायतकर्ता आरोपी के खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रसित था। हालांकि मामला राषिट्रय राजमार्ग पर घटित हुआ जहां आबादी भी थी लेकिन पुलिस ने कोई सवतंंत्र गवाह कार्यवाही में शामिल नहीं किया। वहीं पर सरकारी कर्मी के खिलाफ काबले जमानत अपराध की शिकायत दर्ज करने के लिए न्यायिक दंडाधिकारी का आदेश भी नहीं लिया गया था। इसके अलावा जांच अधिकारी ने 15 साल का अनुभव होने के बावजूद गवाहों के बयानों पर उनके हसताक्षर लिए हैं। जबकि ऐसा करने के लिए सीआरपीसी की धारा 162 में रोक लगाई गई है। ऐसे में अदालत ने प्र्यापत साक्ष्य न होने के कारण आरोपी को बरी करने का फैसला सुनाया।

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