Monday, 1 July 2013

सुहडे महल्ले री सैर


मंडयाली लेख-4

सुहडे मुहल्ले री सैर


मैं आपणी प्राइमरी स्कुला री पढाई यु- ब्लॉका ले कितीरी होर दसवीं विजय हाई स्कूला ले। मेरे इन्हा दोन्हो स्कूल री चारदीवारी सुहडे मुहल्ले के मिलहाईं। होर मेरे यों दोनो स्कूल सुहडे महल्ले बिच हे। इन्हे स्कूले मेरा निर्माण कीतीरा। आज हाउं जेहडा बी हा इन्हा स्कूला रा हे संस्कार मेरे अंदर हा। मेरे प्राइमरी होर दसवीं तकरा रे बौहत सारे दोस्त ऐस महल्ले रैहयें। होर कई बारी जवानी बिच कधी केसी के टाकरा हुईरा ता मेरे इन्हे दोस्ते मेरी पंगे बिच बी बडी मदद कितीरी। इधी कठे मुंजो ये महल्ला बडा खास हा। मंडी रा पुराणा महल्ला हुणे रे करूआं महल्ले वालेयां रे सारे शहरा रे लोका के संपर्क हे। हालांकि ऐस महल्ले बिच पैहलके जमाने ले बडा भारी बदलाव आई चुकिरा। दरअसल ये महल्ला धंसीरी जगहा बिच बसीरा हुणे रे कारण पैहले शैहरा भरा री गंदगी के भरी रा रैहां था। पर ये ता शुक्र मनावा जे मंडी शहरा बिच सीवरेज बणी जाणे ले लोका जो केसी हदा तक गंदगी ले बडी राहत मिली गईरी। दिलू रामा री दुकान बाले री गली बटिहें हाउं महल्ले री सैर शुरू करहां। गली बिच पौहंचदे ही वाल्मिकी मंदरा रे दर्शन हुआएं। महल्ले री गलियां काफी हदा तक ठीक ही। उतराई उतरूआं हाउं सीधा महल्ले रे चौक बाले पहुंचा। महल्ले रे बीच भरा होणे करुआं ऐस चौका पर हमेशा रौनक मेला लगीरा रैहां। तीन चार दुकाना भी हुणे रे करूआं इथी कोई ना कोई जाण पहचाणा वाला मिली हे जाहां। चौका पर हे मुंजो आपणे कई दोस्त गोपाल, नवीन मटरी भाई बगैरा मिली गए। तेथी हे मेरा खास मित्र इंद्र पाल इंदु भी मिलही गया। । गले मिलणे बाद हाल चाल पुछे एकी दूजे रे। इंदु आजकल केसकी नौंवे नाटका पर काम करणा चांहां। इधी कठे मेरे पिता जी दीनू कश्यप होरिये इंदू जो कताब देणे कठे बोलिरा हुंगा। इंदु मुंजो कताब देणे री याद करवाहां होर मैं तेस जो बोलहां भई मां से कताब पहुंचाई देणी। इंदु मंडी रा बडा हे प्रतिभाशाली नाटक निर्देशक हा। मैं होर इंदुए कालेजा, नवज्योती कला मंचा होर भगवान युवा मंडला कठे कई नाटक कितीरे। इंदु रे नाटक कई बार राष्ट्रीय युथ फेस्टीवला बिच पहली, दूजी होर तरीजे पुरूस्कार के सम्मानित हुईरे। ऐते अलावा इंदुए आपणे महल्ले होर मंडी शैहरा रे कई नौजवान रंगमंच, फिल्मा होर टीवी री दुनिया कठे तैयार कितीरे। ज्यों आजकाले बडी-2 जगहा पर आपणा नांवं कमाया करहाएं। इंदु री हर साल कोशीस रैहाईं भई मंडी, जोगिन्द्रनगर होर खास करूआं आपणे महल्ले बिच एक ना एक शो होर वर्कशाप जरूर करवाई जाए। इंदु री वर्कशापा बिच बच्चेयां जो बिना फीस लीतिरे नाटक सिखाया जाहां। हालांकि सभी चीजा रा अभाव होणे रे बावजूद भी इंदु री नाटका रे कठे बडी देन ही होर ये सबकुछ तिने आपणे आपा जो दांवा पराले लगाई के कीतिरा। इंदु रा नाटका कठे समर्पण देखी के लगहां भई मंडी बिच नाटक करने वाले भतेरे लोग हे पर केसिये भी आपणा कैरियर दावा पर नीं लगाया। ये ता इंदु हे हा जे कैरियरा पीछे नी भगुआं नाटक करने, सिखाणे होर बधाणे रे कठे कल्हा हे काम करी करहां। मेरे ऐस दोस्ता रे नाटक रे कठे समर्पण जो मेरा सलाम। इंदु के मिलणे बाद हाउं आपणी सैर जारी रखदे हुए छोटी-2 गलियां बटिहें गुजरदा हुआ पार्का रे सौगी वाले पुलहा बाले पहुंचां। सुहडे मुहल्ले बच्चेयां जो खेलणे कठे एक पार्क हा। पर ऐस पार्का री सुंदरता कठे अझी बहुत कुछ काम होणा बाकी है। सुहडा महल्ला सकोडी खाडा रे राइट बैंका पर बसीरा। सकोडी खाडा बिच गंदगी आउणी अझी तका बंद नीं हुईरी। जेता के खाड्डा रे किनारे-2 एक दुर्गंध जे अझी भी महसुस किती जाई सकाहीं। जेता करूआं खाडा रे बाहडा रे घरा रैहणे वाले लोका जो परेशानी रा सामणा करणा पौहां। खासकर इंदिरा कलौनी रे लोका जो ऐसा बदबू जो ज्यादा सैहणा पौंहां क्योकि इन्हा रे घर खाड्डा रे ज्यादा नेडे हे। महल्ले रे आखरी कोणे तक सैर करने बाद मैं एक दूजी गली पकडी के आपणी वापसी शुरू करहां। वापसी करदे-2 मुंजो लगहां जे ये सैर तेबे तक अधूरी हे रैही जाणी जेबे तक हाउं रविदास गुरूद्वारे रे दर्शन नी करघा। कदमे गली बदली के मेरी दिशा गुरूद्वारे बखौ बदली दिती। गुरूद्वारे माथा टेकया। रविदास गुरूद्वारे के मेरी कई यादा जुडीरी। ये गुरूद्वारा जधका इंदु काम लगीरा करदा तधी ले सांस्कृतिक कार्यक्रमा रा केन्द्र है। इथी हे आसे हमेशा रिहर्सला करदे आईरे होर कई इनाम जीतणे री कर्मभुमि ये गुरूद्वारा हे हा। गुरूद्वारे रे मैदाना एक रंगमंच बणीरा। जेथी हर साल रामलीला होर कम से कम एक सांस्कृतिक कार्यक्रम जरूर हुआं। ऐते अलावा भी ये मंच कई कार्यक्रमा जो आयोजित करने रा केन्द्र हा। सुहडे महल्ले री सैर करीके मुंजो जेहडी अनुभूती हुई तेता रा सार ये हा जे समय बडी तेजी के बदली करहां। नौवें-2 घरे पुराणे घरा री तादात कम करी दितीरी। सफाई होर लाईटा री मुंजो ऐथी कोई समस्या ली लगी। हालांकि सकोढी खाडा री बदबू बिल्कुल खत्म करने री योजना पर काम कितया जाणा चाहिए। ऐते अलावा प्रशासना जो सांस्कृतिक गतिविधियां चलाणे कठे इथी कोई केन्द्र शुरू करना चाहिए। मेरी ऐहडी बी समझ ही भई ये महल्ला टेलैंटा के भरी रा। इथी काम करीके आसे नाटक, संगीत होर सभी सांस्कृतिक कर्मियां री बहुत बढिया पौध निकाली सकाहें।
धन्यावाद।
समीर कश्यप
sameermandi.blogspot.com

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