Thursday, 2 June 2011

व्यासा की लहरें



मचलती हुई हवा में छम-छम
हमारे संग-संग चले व्यासा की लहरें
जमाने से कहो अकेले नहीं हम
हमारे संग-संग चले व्यासा की लहरें

वेदों में थी आर्जकीय यह
बाद में व्यासा नाम पड़ा
धरती इसकी सोना उगलती
जड़ी-बुटियों से थी भरी
वेदों की रचना भी यहीं से हुई

ऋषियों का है ये ही कहना
व्यासा है धरती का गहना
सर को छुका कर नाम लो इसका
यह तो है शक्ति निर्बल की
तभी तो हम करते हैं इसको नमन

हरियाली सी छा जाती है
छांव में इसके आंचल की
प्यार का पहला दर्पण देखा
हमने तो इनके दर्शन में
के युं ही नहीं खाते हम इसकी कसम

साथ दिया है इन लहरों ने
जब सबने मुंह फेर लिया
और कभी जब गम की जलती
धूप ने हमको घेर लिया
तो इनके ही कदमों में झुक गए हम

इस देश में तेरे हज़ारों मनुष्य
हाहाकार करे, तू कुछ भी न बोले
हो व्यासा सुनो
हो व्यासा तू बहती हो क्यों


बांधों में तुझको बांध दिया है
धारा को तेरी लुप्त किया है
सब जीवों को तेरे नष्ट किया
समृध तेरी घाटी उजाड़ हो रही है
धमाकों से तुझको ध्वस्त किया है
हो व्यासा तू बहती है क्यों

धर्मांधता करे धर्मों से शोषण
मुल्यविहीन लोग राज करें
ये शांत समाज को तोड़ रहे
जातिप्रथा मुंह बाए खडी है
सदियों से ये जुझते रहे हैं
हो व्यासा तु बहती है क्यों

शिक्षा बिना बच्चे पडे हैं
रोजी बिना बेकार खडे हैं
ये पुंजी की दौड़ है अंधी लगी
कहीं भ्रष्ट प्रशासन कहीं लुटते संसाधन
कहीं लाचार नारी कहीं दुष्ट अत्याचारी
अपना सौदा भी देखती है तू
हो व्यासा तू बहती है क्यों

सुनो रे सुनो
उठो तो ज़रा
ये व्यासा संदेशा तुम्हे दे रही
उठो नौजवानों शत्रु को पहचानो
ये धरती तुम्हारी ये देश तुम्हारा
तुम आगे बढो तुम अपना भविष्य लिखो
हो व्यासा तू बहती है क्यों
तुम अपना भविष्य लिखो ।

समीर कश्यप,
33-9, भगवान मुहल्ला, मंडी, हि.प्र.
98161- 55600,
sameermandi@gmail.com.







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